संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सडक़ों पर खूनी लापरवाही की छूट का काला धंधा...
16-Feb-2021 6:07 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सडक़ों पर खूनी लापरवाही की छूट का काला धंधा...

फोटो : कलेक्टर सीधी

अभी कुछ घंटे पहले मध्यप्रदेश के सीधी में एक मुसाफिर बस नहर में गिरी, और 42 लोग मारे गए। मरने वालों में अधिकतर छात्र थे जो कि क्रिकेट मैच और रेलवे की परीक्षा की वजह से सफर कर रहे थे। हिन्दुस्तान में हर कुछ दिनों में किसी न किसी प्रदेश में मुसाफिर बसों का हादसा सुनाई पड़ता है, या ट्रकों पर लादकर ले जाए जा रहे मजदूरों की मौत का। सवाल यह है कि जब गाडिय़ां बेहतर बन रही हैं, नई टेक्नालॉजी के चलते गाडिय़ों पर काबू बेहतर होना चाहिए, जब सडक़ें पहले के मुकाबले बेहतर बन चुकी हैं, तब फिर ऐसे हादसों से क्या साबित होता है? 

हिन्दुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में देखें तो मुसाफिर बसों से लेकर ट्रकों तक, और निजी गाडिय़ों से लेकर सडक़ों पर चलने वाली कारोबारी मशीनों तक से भारी भ्रष्टाचार जुड़ा हुआ है। तकरीबन हर प्रदेश में इन गाडिय़ों पर काबू करने वाले आरटीओ विभाग और पुलिस के ट्रैफिक विभाग को सत्ता अपनी उगाही का गिरोह बनाकर चलती है, नतीजा यह होता है कि जिन गाडिय़ों से दर्जनों मुसाफिरों की जिंदगी जुड़ी रहती है उन गाडिय़ों की मनमानी रफ्तार, और ड्राइवरों के नशे जैसे तमाम जुर्म को इन दो विभागों का अमला अनदेखा करते चलता है। हिन्दुस्तान के सडक़ हादसों में अधिकतर मौतों का जिम्मा ऐसी ही कारोबारी गाडिय़ों का होता है जिन्हें सरकारी भ्रष्टाचार की वजह से नाजायज हिफाजत हासिल होती है। 

अब नौबत पहले के मुकाबले अधिक खतरनाक इसलिए होती जा रही है कि गाडिय़ां अधिक तेज रफ्तार बन रही हैं, और अधिक तेज रफ्तार से चल भी रही हैं। सडक़ें चौड़ी होती जा रही हैं, बीच के गांव-कस्बों की भीड़ के ऊपर से पुल निकल जाते हैं, और रफ्तार कम करने की जरूरत नहीं पड़ती। यह देखा हुआ है कि कारोबारी गाडिय़ों के मालिक ड्राइवरों को जायज घंटों से बहुत अधिक वक्त तक जोते रखते हैं, और ड्राइवरों की तेज रफ्तार, लापरवाही, यहां तक कि उनका नशा करना भी अनदेखा करते हैं। पुलिस और आरटीओ भी महीना पाकर इस सबसे संगठित सडक़-अपराध को अनदेखा करते हैं। 

इन दो विभागों का भ्रष्टाचार ऐसा भी नहीं है कि वह सरकार की काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा हो, सरकार की मोटी काली कमाई को बड़े कंस्ट्रक्शन, बड़ी सप्लाई, बड़ी खरीदी, बड़ी बिक्री और खदानों जैसे धंधों से होती है। ट्रैफिक और आरटीओ इनके मुकाबले छोटा भ्रष्टाचार हैं, लेकिन ये इतना संगठित हैं कि किसी भी प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार में इसके कम होने की गुंजाइश दिखती नहीं है। नतीजा यह होता है कि सडक़ों पर बेकसूर लोग बड़ी संख्या में मारे जाते हैं। 

छत्तीसगढ़ में हम देखते हैं कि कारों के सीट बेल्ट, दुपहियों के हेलमेट, गाड़ी चलाते मोबाइल पर बातचीत, नशे में ड्राइविंग, ओवरलोड से लेकर बसों की खूनी रफ्तार तक किसी पर भी कार्रवाई अवैध उगाही तक सीमित रहती है, उसकी उगाही का बहुत छोटा हिस्सा ही सरकारी खजाने में जाता है, और बाकी तमाम वसूली नेताओं और अफसरों में बंट जाती है। इसी वजह से कोई नियम सडक़ों पर लागू नहीं किए जाते क्योंकि इन विभागों का अमला तो सीमित है, और वह या तो नियम लागू करा ले, या अवैध वसूली कर ले। 

किसी प्रदेश में अगर जनता में जागरूकता हो, तो वे अंधाधुंध रफ्तार वाली गाडिय़ों की रिकॉर्डिंग करके उसके खिलाफ अदालत तक जा सकते हैं, और अगर वहां के जज इन विभागों से उपकृत न हो रहे हों, तो इनके खिलाफ कोई कार्रवाई भी हो सकती है। सडक़ों पर खूनी रफ्तार या नशे की लापरवाही, या ओवरलोड गाडिय़ों के खिलाफ कार्रवाई की मांग जनता का हक है क्योंकि यह लापरवाही बेकसूर लोगों के लिए भी जानलेवा होती है। अब जब तक जनता के बीच से आवाज नहीं उठेगी, और अदालत तक नहीं पहुंचेगी, तब तक न सिर्फ यह भ्रष्टाचार जारी रहेगा, बल्कि इसी तरह मौतें भी जारी रहेंगी। राजनीतिक दलों से लेकर अफसरों तक किसी को ट्रांसपोर्ट और ट्रैफिक से काली कमाई नहीं खटकती है। यहां तक कि विपक्षी दल को भी जरूरत के वक्त इन्हीं विभागों से आमसभा में भीड़ लाने मुफ्त में गाडिय़ां मिल जाती हैं। लेकिन जनता को अपने मामूली लाइसेंस बनवाने के लिए भी रिश्वत देनी ही पड़ती है। हमारे कम लिखे को अधिक बांचें, और लोगों की जिंदगी की इस किस्म की बिक्री रोकने के लिए अदालत जाने लायक सुबूत जुटाएं, वरना हमारे-आपके बेकसूर बच्चे भी किसी दिन इसी तरह सडक़ों पर मारे जाएंगे। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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