सामान्य ज्ञान
कुष्ठ या हैन्सेन का रोग जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी है। कुष्ठरोग मुख्यत: ऊपरी श्वसन तंत्र के श्लेष्म और बाह्य नसों की एक ग्रैन्युलोमा-संबंधी बीमारी है। त्वचा पर घाव इसके प्राथमिक बाह्य संकेत हैं। यदि इसका उपचार नहीं किए जाए तो कुष्ठरोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है। यह रोग माइकोबैक्टिरिअम लेप्राई नामक जीवाणु (बैक्टिरिया) के कारण होता है। यह मुख्य रुप से मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका, परिधीय तंत्रिकाओं, आंखों और शरीर के कुछ अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करता है। यह न तो वंशागत है और न ही दैवीय प्रकोप बल्कि यह एक रोगाणु से होता है। सामान्य: त्वचा पर पाए जाने वाले पीले या ताम्र रंग के धब्बे जो सुन्न हों या रंग तथा गठन में परिवर्तन दिखाई दे, तो यह कुष्ठ रोग के लक्षण हो सकते हैं। यह रोग छूत से नहीं फैलता।
एम. लेप्रोमेटॉसिस पहचाना गया अपेक्षाकृत नया माइकोबैक्टेरियम है, जिसे 2008 में विकीर्ण लेप्रोमेटस कुष्ठरोग के एक जानलेवा मामले से पृथक किया गया था।
कुष्ठ की गणना संसार के प्राचीनतम ज्ञात रोगों में की जाती है। इसका उल्लेख चरक और सुश्रुत ने अपने ग्रंथों में किया है। उत्तर साइबेरिया का छोडक़र संसार का कोई भाग ऐसा नहीं था जहां यह रोग न रहा हो। किंतु अब ठंडे जलवायु वाले प्राय: सभी देशों से इस रोग का उन्मूलन किया जा चुका है। यह अब अधिकाशं: कर्क रेखा से लगे गर्म देशों के उत्तरी और दक्षिणी पट्टी में ही सीमित है और उत्तरी भाग की अपेक्षा दक्षिणी भाग में अधिक है। भारत, अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका में यह रोग अधिक व्यापक है। भारत में यह रोग उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक है। उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और दक्षिण महाराष्ट्र में यह क्षेत्रीय रोग सरीखा है। उत्तर भारत में यह हिमालय की तराई में ही अधिक देखने में आता है।
प्रो-टेम स्पीकर कौन होता है?
नव निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करने और नए लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कराने के लिए राष्टï्रपति एक अस्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति करते हैं। यह नए स्थायी स्पीकर के निर्वाचित होने के बाद खुद ही पद से हट जाता है। इस अस्थायी स्पीकर को ही प्रो -टेम स्पीकर कहा जाता है। भारत में यह परंपरा है कि संसद में जो सर्वाधिक समय तक संसद सदस्य रहा होता है, उसी को राष्टï्रपति प्रो- टेम स्पीकर नियुक्त कर देते हंै।