विचार / लेख
मुंबई के एक ऑटो ड्राइवर ने अपनी पोती की शिक्षा के लिए पूरी जिंदगी खपा दी। अपने दो बेटों की मौत के बाद उसकी पोती ने पूछा था ‘दादाजी क्या मुझे स्कूल छोडऩा पड़ेगा?’ ऑटो ड्राइवर के संकल्प के आगे गम और आंसू बौने पड़ गए।
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
ऑटो ड्राइवर देसराज ज्योतसिंह ने अपनी जिंदगी में बहुत दुख झेले-दो-दो जवान बेटों की मौत और बूढ़े कंधों पर परिवार और पोती-पोते की शिक्षा और बेहतर भविष्य की जिम्मेदारी। वो कहते हैं, ‘मेरा यह मानना है कि तकलीफें चाहें छोटी हों या बड़ी, समंदर की लहरों की तरह होती हैं - आती हैं और जाती हैं। वैसे ही जिन मुसीबतों से हम गुजरते हैं वो हमारी जिंदगी में सदा के लिए नहीं रहती हैं। ‘ 74 साल के ऑटो ड्राइवर देसराज ने इसे जिंदगी का आदर्श वाक्य बना लिया और तकलीफों से पार पाते चले गए। ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे‘ ने देसराज की कहानी सोशल मीडिया पर साझा की और कुछ लोगों ने इस बूढ़े ऑटो ड्राइवर की मदद के लिए क्राउड फंडिंग शुरू की। फंडिंग के जरिए देसराज को 24 लाख रुपये मिल गए।
देसराज की प्रेरणादायक कहानी
‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे‘ ने देसराज की कहानी साझा करते हुए बताया, ‘6 साल पहले मेरा बड़ा बेटा घर से गायब हो गया था। एक सप्ताह बाद लोगों ने उसका शव एक ऑटो में पाया, उसकी मृत्यु के बाद एक तरह से मैं भी आधा मर गया। लेकिन मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई। मुझे शोक मनाने का समय भी नहीं मिला। मैं अगले दिन दोबारा सडक़ पर ऑटो चलाने निकल गया।‘ देसराज के जीवन में दोबारा एक मुसीबत उस वक्त आ गई जब दो साल बाद उनके छोटे बेटे की लाश रेलवे ट्रैक पर मिली। वे कहते हैं, ‘दो बेटों की चिताओं को आग दिया है मैंने, इससे बुरी बात एक बाप के लिए क्या हो सकती है?‘
अपनी कहानी बताते हुए देसराज कहते हैं कि मेरी बहू और उसके चार बच्चों की जिम्मेदारी ने मुझे चलते रहने दिया। वे कहते हैं जब अंतिम संस्कार हो गया तो उनकी पोती जो कि 9वीं कक्षा में थी, ने सवाल किया ‘दादाजी, क्या मुझे स्कूल छोडऩा पड़ेगा?’ देसराज कहते हैं, ‘मैंने अपना पूरा साहस जुटाया और उसे आश्वस्त किया कभी नहीं। तुम जितना चाहो पढ़ाई करो।’
इसके बाद देसराज ने कई-कई घंटे काम करना शुरू कर दिया। वह सुबह 6 बजे घर से निकलते और आधी रात तक ऑटो चलाते। वह इतना कमा पाते कि सात लोगों का परिवार किसी तरह से चल पाता जिसमें करीब 6 हजार रुपये स्कूल की फीस भी शामिल है।
पोती की शिक्षा के लिए बेच दिया घर
देसराज की जीतोड़ मेहनत एक दिन रंग लाई। पिछले साल उनकी पोती ने 12वीं के बोर्ड में 80 फीसदी अंक हासिल किए। उसके बाद देसराज की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने उस दिन अपने सभी यात्रियों को मुफ्त में यात्रा कराई। ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ ने अपनी पोस्ट में लिखा कि देसराज कि पोती ने उनसे कहा कि वह बीएड करने के लिए दिल्ली जाना चाहती है। इसके बाद देसराज के सामने एक नई चुनौती आ खड़ी हुई लेकिन वह कहते हैं कि उसका सपना सच किसी भी हाल में पूरा करना था इसलिए उन्होंने अपना घर बेच दिया और अपनी पत्नी, बहू और बच्चों को अपने रिश्तेदार के पास गांव भेज दिया।
पिछले एक साल से देसराज बिना छत के मुंबई में दिन और रात काट रहे हैं। उन्होंने ऑटो रिक्शा को ही अपना घर बना लिया है। जब सवारी नहीं होती है तो देसराज ऑटो में ही बैठे रहते हैं। वे बताते हैं कि कभी-कभी उनके पैरों में दर्द हो जाता है लेकिन वह दर्द तब गायब हो जाता है जब उनकी पोती फोन करती है और कहती है वह क्लास में अव्वल आई है।
देसराज को इंतजार है अपनी पोती के टीचर बनने का ताकि वह गर्व से उसे गले से लगा सके। क्राउड फंडिंग से मिले 24 लाख रुपये के बाद देसराज बेहद खुश हैं और उन्होंने लोगों का शुक्रिया अदा किया है। (डायचे वैले)