विचार / लेख
- सतीश जायसवाल
माघ पूर्णिमा के साथ छत्तीसगढ़ में ग्रामीण वार्षिक मेलों की शुरुआत हो जाती है। और होली पर्व पर, धूल पँचमी तक इन मेलों की बहार होती है।
पहले के दिनों में छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक-पारंपरिक स्वरूप की एक झलक इन मेलों में मिल जाती थी।अब धीरे-धीरे वह धूमिल पड़ने लगी है। उस पर व्यापारिक और राजनैतिक प्रभाव गहराने लगा है।
यहां के तीन प्रमुख मेलों ने फिर भी इन प्रभावों से अपने को काफी हद तक बचाकर रखा है। और अपने सांस्कृतिक स्वरूप को सहेजा हुआ है। ये मेले हैं -- शिवरीनारायण, सिरपुर और पीथमपुर।
माघ पूर्णिमा के साथ शुरू होने वाले शिवरीनारायण मेला का एक प्रमुख और विशिष्ट आकर्षण यहां के रामनामी समुदाय के लोग होते हैं।
ये लोग, स्त्री-पुरुष और बच्चे तक अपने पूरे शरीर पर राम-राम नाम का गोदना गोदवाते हैं। और सर पर बाँस के बने मोरपंखी मुकुट सर पर धारण करते हैं।
ऐसे में ये लोग और भी दर्शनीय हो जाते हैं। और मेले का एक विशिष्ठ आकर्षण बन जाते हैं।
इन्हें देखने के लिए देश-विदेश के लोग स्वाभविक तौर पर यहां पहुंचते है। मीडियाकर्मी और स्कॉलर्स भी यहां आते हैं।
इस वर्ष माघ पूर्णिमा के पर्व पर रामनामियों के एक समूह ने यहां, महानदी में स्नान किया।और यहां से निकल गए। अब, हो सकता है कि अगले वर्ष इसी अवसर पर फिर दिखें। नहीं भी दिखें। कोई निश्चय नहीं।