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पेट्रोल और डीजल के दाम : क्या आम आदमी को जल्द राहत मिलेगी?
05-Mar-2021 3:11 PM
पेट्रोल और डीजल के दाम : क्या आम आदमी को जल्द राहत मिलेगी?

जुबैर अहमद

भारत में शायद पहली बार पेट्रोल की कीमत कुछ शहरों में 100 रुपए प्रति लीटर हो गई हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों के हालिया रुझान को देखें, तो तेल और भी महँगा हो सकता है।
तो क्या आम उपभोक्ताओं को जल्द राहत नहीं मिलने वाली है? क्या हमें तेल और डीजल पर धीरे-धीरे निर्भरता कम करनी होगी?

तेल की आसमान छूती कीमतों पर विपक्ष सरकार की लगातार आलोचना कर रहा है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कुछ दिन पहले एक प्रेस कॉंफ्रेंस में कहा था कि सरकार को पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त करों को तुरंत हटाना चाहिए। इससे कीमतों को नीचे लाने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार लोगों के लिए सबसे महंगी सरकार रही है, जिसने लोगों पर भारी कर लगाया है।
क्या घट सकती हैं कीमतें?
खबर ये है कि केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी को थोड़ा कम करने पर विचार कर रही है। सूत्रों के मुताबिक इस पर वित्तीय और तेल मंत्रालयों में आम सहमति अब तक नहीं बन सकी है।
लेकिन अगर सरकार थोड़ा बहुत एक्साइज ड्यूटी कम कर भी देती है, लेकिन दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल का दाम बढ़ता ही जाता है, जिसकी पूरी संभावना है, तो भारत में उपभोक्ताओं को अधिक राहत नहीं मिलेगी।
अगले कुछ हफ्तों और महीनों में पेट्रोल और डीज़ल के दाम में उतार-चढ़ाव आ सकता है, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि आने वाले समय में दाम में काफी उछाल आएगा।

इन दिनों अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम लगभग 66-67 डॉलर प्रति बैरल है। तो क्या इस साल ये 100 डॉलर तक पहुँच सकता है?
सिंगापुर में भारतीय मूल की वंदना हरी पिछले 25 सालों से तेल उद्योग पर गहरी नजऱ रखती हैं। वो कहती हैं, ‘100 (डॉलर) क्या 100 (डॉलर) से ज़्यादा भी बढ़ सकता है।’
केंद्र सरकार तेल के दाम को नियंत्रण में करने की कोशिश जरूर कर रही है, लेकिन सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल के विचार में सरकार के हाथ बँधे हैं।

वो कहते हैं, ‘कुल मिलाकर सरकार के रेवेन्यू कलेक्शन (राजस्व संग्रह) में 14.5 प्रतिशत की कमी आई है। इस अवधि में सरकार का खर्च 34.5 प्रतिशत बढ़ गया है। इसके बावजूद सरकार ने टैक्स नहीं बढ़ाया है। इसके कारण राजकोषीय घाटा 9.5 प्रतिशत हो गया है। सकल घरेलू उत्पाद उधार का 87 प्रतिशत है। तो मुझे केंद्र की ओर से कोई राहत देने की गुंजाइश नजर नहीं आती। राज्य सरकारों को राहत देनी चाहिए।’ लेकिन अगर केंद्र सरकार के हाथ बँधे हैं, तो राज्य सरकारें भी मजबूर हैं। तेल से होने वाली कमाई में केंद्र का हिस्सा सबसे ज़्यादा है। हर 100 रुपए के तेल पर केंद्र और राज्य सरकारों के कर और एजेंट के कमीशन को जोड़ें, तो 65 रुपए बनते हैं जिनमे 37 रुपए केंद्र का है और 23 रुपए पर राज्य सरकारों का हक है।

लॉकडाउन के दौरान जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल का भाव बुरी तरह से गिर कर 20 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच आया था, तब लोगों को उम्मीद थी कि पेट्रोल और डीजल के दाम कम होंगे, लेकिन ये बढ़ते ही गए। ऐसा क्यों हुआ?
वंदना हरी कहती हैं, ‘पिछले साल जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम काफ़ी कम हो गए थे, लेकिन आपके (देश में) दाम इसलिए कम नहीं हुए, क्योंकि केंद्र सरकार ने तेल पर टैक्स दो बार बढ़ा दिए थे।’
उनका कहना है कि पिछले साल आम लोगों पर इसका इतना असर नहीं हुआ, क्योंकि कच्चे तेल का बेस प्राइस (20 डॉलर) काफी कम था। अब ये 67 डॉलर है, यानी ये 80 प्रतिशत महँगा है।

देश में पेट्रोल पंप पर मिलने वाले पेट्रोल और डीजल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के भाव से जुड़े होते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल का दाम घटे या बढ़े, तो भारत में भी इसी तरह का उतार-चढाव नजर आना चाहिए। लेकिन पिछले छह साल में ऐसा हुआ नहीं।

आयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) के पूर्व अध्यक्ष आरएस शर्मा कहते हैं, ‘2014 में जब यह सरकार सत्ता में आई, तो तेल की कीमत 106 डॉलर प्रति बैरल थी। उसके बाद से कीमतों में कमी आ रही है। हमारे पीएम ने भी मजाक में कहा था कि मैं भाग्यशाली हूँ कि जब से मैं सत्ता में आया हूँ, तेल की दरें कम हो रही हैं। उस समय पेट्रोल की कीमत 72 रुपए प्रति लीटर थी। सरकार ने भारत में कीमत कम नहीं होने दीं, इसके बजाय सरकार ने उत्पाद शुल्क में वृद्धि की।’

आम आदमी को राहत देने के नुस्खे
तो क्या आगे चल कर पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ते ही जाएँगे और जनता को अब कोई राहत नहीं मिलेगी? विशेषज्ञ पेट्रोल और डीजल के दाम को कम करने के कई नुस्खे बताते हैं, लेकिन वो सारे कठिन हैं।
पहला, केंद्र और राज्य सरकारें तेल पर लगाए एक्साइज ड्यूटी कम करें, लेकिन दोनों ऐसा करने के मूड में नहीं हैं।
दूसरा सब्सिडी बहाल करने का सुझाव, जो मोदी सरकार की आर्थिक विचारधारा के खिलाफ है।

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं, ‘सब्सिडी पीछे की ओर लौटने वाला कदम है। सोचिए अगर पेट्रोल की कीमतें घटती हैं, तो अमीरों को भी फायदा होगा, न केवल गरीबों को। गैस में हम ऐसा कर पाए। पीएम कहते हैं कि अच्छी अर्थव्यवस्था, अच्छी राजनीति है और लोग इसे महसूस कर रहे हैं।’

वंदना हरी ये आइडिया आजमाने की सलाह देती हैं कि स्कूटर इत्यादि चलाने वालों को पेट्रोल में सब्सिडी दी जाए जैसे कि एलपीजी सिलेंडर में बड़े रेस्टोरेंट और होटलों को सब्सिडी नहीं दी जाती है, केवल गरीबों को दी जाती है।
लोगों को राहत पहुँचाने का एक तीसरा विकल्प भी है। तेल को जीएसटी के अंतर्गत लाने का विकल्प। लेकिन ये एक सियासी मुद्दा है और जैसा कि ओएनजीसी के पूर्व अध्यक्ष आरएस शर्मा ने कहा कि राज्य सरकारों ने इसी शर्त पर जीएसटी बिल पर हामी भरी थी कि शराब और तेल को जीएसटी से बाहर रखा जाए।

इसकी वजह ये है कि शराब और पेट्रोल, डीजल इत्यादि पर एक्साइज ड्यूटी लगा कर राज्य सरकारें खूब पैसे कमाती हैं। प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रिमंडल के सभी मंत्री पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लगाने की भरपूर वकालत करते रहे हैं

तेल सस्ता करने का और कोई विकल्प
बीजेपी के गोपाल कृष्णा अग्रवाल एक और विकल्प की बात करते हैं और वो ये है कि भारत सरकार ईरान और वेनेजुएला से कच्चा तेल खरीदने की कोशिश कर रही है। इन दोनों देशों पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ये आयात खटाई में पड़ा है। ईरान से भारत डॉलर की बजाय रुपए में तेल खरीदने का इरादा रखता है, जिसके लिए ईरान तैयार है।

कुछ विशेषज्ञ ये भी सलाह देते हैं कि भारत तेल के अपने स्ट्रेटेजिक रिजर्व भंडार को बढाए। फिलहाल देश में तेल की पूरी तरह से आयात रूेकने पर लोगों की जरूरतों के लिए इन भंडारों में 10 दिनों की जरूरत का तेल मौजूद है। निजी कंपनियों के पास कई दिनों के लिए तेल के भंडार हैं।

सरकार 10 दिनों से 90 दिनों तक के लिए रिजर्व बढ़ाना चाहती है, जिस पर काम शुरू हो गया है। हालाँकि स्ट्रेस्ट्रेटेजिक रिज़र्व आपातकालीन समय के लिए होता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में आपदा या युद्ध के कारण अगर तेल के दाम आसमान छूने लगे, तो भंडार में जमा किए गए तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस समय दुनिया में ऐसे सबसे बड़े भंडार अमेरिका ने बना रखे हैं। अमेरिका और चीन के बाद तेल का सबसे अधिक आयात भारत करता है। इसलिए विशेषज्ञ जोर देकर रिजर्व को बढ़ाने की बात करते हैं।

आयात पर निर्भरता
भारत में पेट्रोलियम और गैस जरूरत से बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं, इसीलिए इनका आयात होता है। देश को पिछले साल अपने खर्च का 85 प्रतिशत हिस्सा पेट्रोलियम उत्पाद को विदेश से आयात के लिए करना पड़ा था, जिसकी लागत 120 अरब डॉलर थी।
विशेषज्ञों के बीच एक विचार काफ़ी समय से बहस का मुद्दा है और वो ये कि भविष्य में विशेषज्ञ लंबे अरसे के लिए हल ढूँढें और तेल पर निर्भरता कम करें। मोदी सरकार लंबे अरसे से हल के लिए कई योजनाओं को शुरू करने का इरादा रखती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 फरवरी को तमिलनाडु में एक भाषण में ऊर्जा में विविधता और इस पर निर्भरता को कम करने पर काफी जोर भी दिया था।

तेल पर निर्भरता कम करने की कोशिश
सिंगापुर में वंदा इनसाइट्स संस्था की संस्थापक वंदना हरी के मुताबिक भारत सरकार को आगे के लिए सोचना चाहिए। उनकी सलाह थी कि 10-15 सालों को सामने रख कर योजनाएँ बनानी चाहिए।
वो कहती हैं, ‘अंत में तेल का इस्तेमाल कम होगा। हम इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़ रहे हैं, हाइड्रोजन की तरफ बढ़ रहे हैं या प्राकृतिक गैस की तरफ बढ़ रहे हैं, जो अच्छी बात है। लेकिन ये 2030-35 से पहले ये मुमकिन नहीं।’
वंदना मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट के विस्तार की भरपूर वकालत करती हैं। लंबे अरसे बाद तेल के उपभोक्ताओं को राहत तो मिल सकती है, लेकिन आने वाले कुछ महीनों और सालों में शायद कोई राहत न मिले।

लेकिन आरएस शर्मा की दो बातें यहाँ अहम हैं- एक ये कि उनके अनुसार सरकारें आम तौर पर पाँच साल की अवधि को लेकर चलती हैं और उसी हिसाब से योजनाएँ बनाती हैं। 15 साल के लंबे अरसे को लेकर योजनाएँ नहीं बनाई जातीं।
उनका दूसरा तर्क ये है कि लंबे अरसे से तेल पर निर्भरता घटाने के सारे उपायों पर अमल करने के बाद भी निर्भरता केवल 15 प्रतिशत कम होगी। हाँ इसके बावजूद वो उन लोगों में शामिल हैं, जो तेल पर निर्भरता को कम करने और ऊर्जा के विविधिकरण के पक्ष में हैं।
फिलहाल गोपाल कृष्ण अग्रवाल पेट्रोल और डीजल के दामों में कमी ‘न करने के फ़ैसले को सही करार देते हैं।’ लोग इसे सरकार की मजबूरी कह सकते हैं और च्वाइस भी।

वे कहते हैं, ‘अगर हम एक्साइज ड्यूटी घटाकर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम करते हैं, तो हमें कर में कुछ बढ़ोतरी करनी होगी। यह तो एक ही बात है। इसलिए च्वाइस के साथ सरकार ने ऐसा नहीं किया है।’
‘जैसा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कहती हैं ये एक धर्म संकट है। अभी सबसे अच्छा विकल्प यही है। अगर राजस्व संग्रह बढ़ता है, तो कीमतों में कमी आ सकती है।’

भारत की विशाल अर्थव्यवस्था के विकास में तेल ईंधन का काम करता है। अगर तेल की कीमतें बढ़ती रहीं, तो मुद्रा स्फीति, जीडीपी और चालू खाता पर दबाव बढ़ेगा। जिससे अर्थव्यवस्था की सेहत खराब हो सकती है और इसका गंभीर असर माँग पर पड़ सकता है और फिर आर्थिक विकास भी प्रभावित होगा। (bbc.com)

 

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