संपादकीय
बीती शाम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश के नाम एक संदेश में कहा कि उनके 15-16 सांसद बिक गए हैं, और वे विपक्ष में बैठने को तैयार हैं। कल शनिवार को उन्हें संसद में अपना बहुमत साबित करना है, और उसके पहले देश के नाम प्रसारित इस संदेश के मायने साफ हैं। उन्होंने विपक्षी नेताओं को चोर बताते हुए यह भी कहा कि उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की जा रही थी। उन्होंने कहा- वे सोच रहे थे कि मेरे ऊपर नो कॉंफिडेंस की तलवार लटकाएंगे, और मुझे कुर्सी से प्यार है तो मैं इनके सारे केस खत्म कर दूंगा। उन्होंने कहा कि वे ऐसे दबने वाले नहीं हैं, और वे खुद होकर विश्वास मत लेने संसद जा रहे हैं, और विपक्ष में बैठने को तैयार हैं। उन्होंने विपक्ष के लोगों को मुल्क का गद्दार और डाकू जैसे कई तमगे भी दिए हैं, और कहा कि चुनाव आयोग ने उन लोगों को बचा लिया है जिन्होंने पैसे लेकर वोट दिए थे।
पाकिस्तान का हाल देखें तो हिन्दुस्तान में पिछले बरसों में सांसदों और विधायकों के संसद के भीतर और बाहर वोट या आत्मा बेचने की बात भी दिखाई देती है, और यह लगता है कि एक मजबूत कहा जाने वाला लोकतंत्र भारत, किस तरह एक कमजोर कहे जाने वाले लोकतंत्र पाकिस्तान से इस मामले में तो मिलता-जुलता दिख रहा है, कि किस तरह निर्वाचित जनप्रतिनिधि बिक रहे हैं। पाकिस्तान की हालत अधिक खराब है क्योंकि वहां लोकतंत्र की हालत अधिक खराब है, धर्म और धर्मान्धता बुरी तरह से हावी हैं, जिस तरफ हिन्दुस्तान बढ़ते चल रहा है। पाकिस्तान में कट्टरपंथ ने देश को खोखला कर दिया है, और हिन्दुस्तान कुछ उसी किस्म के कट्टरपंथ का शिकार है।
अब जिस ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को देखते हुए हिन्दुस्तान, और पाकिस्तान की संसदीय व्यवस्था बनाई गई थी, उस ब्रिटेन में सांसदों की इस तरह की खरीद-बिक्री सुनाई नहीं पड़ती है। पैसा वहां हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के मुकाबले बहुत अधिक है, लेकिन सांसदों को खरीदकर कोई सरकार गिरा दे, या बना ले, ऐसा सुनाई नहीं पड़ता। तो फिर उसी संसदीय व्यवस्था को देखते हुए जो व्यवस्था इन दो देशों में बनाई गई, वह चौपट क्यों हो गई? आज हिन्दुस्तान में जगह-जगह विधायक और सांसद पार्टियां छोड़ रहे हैं, दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं, सदन की सदस्यता छोडक़र दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं, सरकारों को गिरा रहे हैं, और नई सरकार बना रहे हैं, ऐसे तमाम सिलसिलों पर खरीद-बिक्री की खुली तोहमत लग रही है, और हिन्दुस्तान का शायद ही कोई वोटर यह मान रहा हो कि आत्माओं का ऐसा परकाया प्रवेश बिना पैसों के हो रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि जब अधिकतर लोगों के बिकने की संभावना पूरी रहती है, बस उन्हें पूरा दाम मिलने की देर रहती है, तो ऐसे में लोकतंत्र का हाल क्या होने जा रहा है? अभी कुछ दिन पहले भी इस मुद्दे पर इसी जगह लिखते हुए हमने हिसाब लगाया था कि पूरे देश की विधानसभाओं पर कब्जे के लिए दो नंबर की पार्टी को महज कुछ हजार करोड़ रूपए लगेंगे, और फिर कमाई की गुंजाइश जिस तरह रहती है, उससे साफ है कि हर प्रदेश में हजारों करोड़ रूपए सत्तारूढ़ पार्टी कमा भी सकती है। अब यह बात साफ लगती है कि पाकिस्तान जैसे कमजोर लोकतंत्र को छोड़ भी दें जहां कि कल इमरान सरकार के गिरने का आसार दिख रहा है, तो भी हिन्दुस्तान जैसे मजबूत कहे जाने वाले, और दुनिया के सबसे विशाल कहलाने वाले लोकतंत्र में भी संसद और विधानसभाओं को किसी कड़े मुकाबले की नौबत में रूपयों से खरीदना मुश्किल नहीं है। यह संसदीय व्यवस्था मतदान की तकनीकी कामयाबी से परे बेअसर और नाकामयाब हो चुकी है। बिना हिंसा के वोट डल जाएं, और कम्प्यूटरों पर गिन लिए जाएं, यह महज तकनीक और प्रशासन की कामयाबी है। लेकिन मतदान के पहले और मतगणना के बाद का पूरा चुनाव और संसदीय कामकाज हिन्दुस्तान में भी बुरी तरह से नाकामयाब हो चुका है। जहां पर लोगों के पार्टियां बदल-बदलकर चुनाव लडऩे पर रोक न हो, अपनी सरकार गिराने और विरोधी पार्टी की सरकार बनाने के खुले खेल पर कोई रोक न हो, जहां संसद के भीतर बिना बहस तमाम काम करवा देने पर कोई रोक न हो, वहां पर देश को दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र कहना फिजूल की बात है।
हिन्दुस्तान में जिन लोगों को धर्म के राज की चाहत है, उन्हें देखना और समझना चाहिए कि पड़ोस के पाकिस्तान में धर्म और धर्मान्धता ने लोकतंत्र का क्या हाल कर दिया है। आज पाकिस्तानी प्रधानमंत्री अपने 15-16 सांसदों से बिक जाने की बात राष्ट्र के नाम संदेश में कर रहे हैं, हिन्दुस्तान की संसद की कल्पना करें कि किसी गठबंधन को 15-16 सांसदों की कमी हो, तो क्या आज उतनी खरीदी में कोई दिक्कत आएगी? यह पूरा सिलसिला बहुत खतरनाक अंत की ओर बढ़ रहा है, और कल पाकिस्तान में अगर इमरान-सरकार गिरती है, तो हिन्दुस्तान को उससे सबक लेना चाहिए। सत्ता के खेल में लगे लोगों को अपनी आत्मा को बेचना और थोक में बिकाऊ आत्माओं को खरीदना कभी बुरा नहीं लगेगा, और इस तरह बिकते-बिकते हिन्दुस्तानी लोकतंत्र और कमजोर ही होते जाएगा। पाकिस्तान में तानाशाही के जो दाम चुकाए हैं, और आज वह देश जिस तरह भुखमरी के कगार पर है, उस बात को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए। लोकतंत्र कमजोर होता है तो वह महज चुनाव को कमजोर नहीं करता, देश के हर पहलू को कमजोर करता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)