विचार / लेख
-संजय श्रमण
जब देश में, अर्थव्यवस्था और राजनीति ठीक चल रही होती है तब समाज में बाबा लोग बहुत सक्रिय रहते हैं।
शहरीकरण, वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण से जन्मी सुविधा और सुरक्षा का सबसे ज्यादा लाभ उठाते हुए ये धूर्त परजीवी इन्हीं उपलब्धियों को गालियां देते हुए आत्मा-परमात्मा की बकवास करते हैं।
फिर जैसे ही समाज में पैसा आता है और लोगों के पास खाली समय होता है वैसे ही ये परजीवी उन्हें आत्मा-परमात्मा, ध्यान-समाधि-निर्वाण आदि सिखाने निकाल पड़ते हैं। लेकिन जैसे ही राजनीति अस्थिर होती है, अर्थव्यवस्था खतरे मे ंपड़ती है, वैसे ही ये नालायक धूर्त अचानक गायब हो जाते हैं।
फिर मज़े की बात ये कि इनको पूजने वाली पब्लिक भी इनसे सवाल नहीं पूछती कि बाबाजी आपकी शिक्षाओं का क्या परिणाम हो रहा है?
इनसे कोई नहीं पूछता कि आपके ध्यान समाधि इत्यादि की बकवास के बावजूद इस देश में लोग अपने पड़ोसी का घर क्यों जला रहे हैं?
इन अनपढ़ और अंधविश्वासी बाबाओं से कोई नहीं पूछता कि अध्यात्म और धर्म की शक्ति इतने बड़े देश को सभ्यता कब तक सिखा पाएगी?
जब भी देश में आग लगती है, तब सबसे पहले इन बाबाओं की गर्दन पकड़ी जानी चाहिए। ये ही वे असली लोग हैं जो एक अंधविश्वासी और प्रतिगामी राजनीति को समर्थन देकर गुंडों और बलात्कारियों को संसद में पहुंचाते हैं।
जब महंगाई बढ़े और देश में दंगे हों इन बाबाओं को पकडक़र पूछिए कि आपके प्रवचनों और साधनाओं ने इस देश को क्या दिया है?
जिस धर्म या आध्यात्म से समाज को कोई लाभ नहीं उसे भी एक नालायक सरकार की तरह ही उखाड़ कर फेंक देना चाहिए।