संपादकीय
photo twitter sketch
आज दुनिया में किसी जानकारी के सबसे पहले देने और पाने का जरिया जो ट्विटर बन गया है, उसका पहला ट्वीट 18 करोड़ रूपए से अधिक में बिकने जा रहा है। ट्विटर की स्थापना करने वाले जैक डोर्सी ने 2006 में पहला ट्वीट किया था जिसमें महज इतना लिखा था कि वे अपना ट्विटर सेट कर रहे हैं, पांच शब्दों के इस ट्वीट को वे अब नीलाम कर रहे हैं, तो अब तक बोली 18 करोड़ रूपए से ऊपर जा चुकी है। ट्विटर के दुनिया में 33 करोड़ से अधिक इस्तेमाल करने वाले हैं, और वे अरबों-खरबों ट्वीट करते हैं। यह पूरा सिलसिला जैक डोर्सी की एक कल्पना से शुरू हुआ था, और आज करोड़ों लोग आंख खुलते ही सबसे पहले लोगों के ट्वीट पढ़ते हैं, अपनी पहली अंगड़ाई और पहली उबासी ट्वीट करते हैं।
लेकिन आज दुनिया की सबसे अधिक कमाने वाली, और जिंदगी को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली तमाम कंपनियां एक सोच के साथ शुरू हुईं। न तो उन्हें शुरू करने वाले लोग परंपरागत या कारोबारी-कुनबे के लोग थे, और न ही उन्होंने कोई सामान बनाकर बेचा। उन्होंने एक कल्पना की, उसे इस्तेमाल के लायक शक्ल में ढाला, ईमेल शुरू की, गूगल जैसा सर्च इंजन शुरू किया, फेसबुक या इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाए, वॉट्सऐप जैसी मैसेंजर सर्विस शुरू की, और दुनिया के लोगों की जिंदगी के एक हिस्से पर राज करना शुरू कर दिया। ऐसे तमाम लोग पहली पीढ़ी के कारोबारी थे, वे न रतन टाटा थे, न मुकेश अंबानी थे, और न ही फोर्ड कंपनी के मालिक के कुनबे के थे। वे तमाम लोग जींस और टी-शर्ट में जीने वाले, तकरीबन बेचेहरा और बेनाम लोग थे जिन्हें शायद खुद की इतनी संभावनाओं का भी अंदाज नहीं रहा होगा। इनके जितनी पढ़ाई वाले करोड़ों लोग रहे होंगे, इनके जितनी गरीबी वाले भी अरबों लोग रहे होंगे, लेकिन इनके जैसी मौलिक सोच वाले और नहीं थे, और यही वजह है कि उनकी कल्पना ने उन्हें आसमान से भी ऊपर अंतरिक्ष तक पहुंचा दिया। दिलचस्प बात यह है कि बिना सामान, बिना कारखाने, और शायद अपने एक मामूली कम्प्यूटर पर ही उन्होंने दुनिया का भविष्य मोड़ दिया, लोगों के जीने का तरीका बदल दिया और तय कर दिया।
इस बात को आज यहां लिखने की वजह यह है कि जो लोग अपनी जिंदगी से नाखुश हैं, बराबरी के मौके न मिलने की जिन्हें शिकायत है, उन्हें यह भी देखने और सोचने की जरूरत है कि अपनी खुद की संभावनाएं कैसे पैदा की जाती हैं, कैसे उन्हें हवा से तलाश लिया जाता है, और किस तरह कल्पनाओं को कामधेनु की तरह दुहा जा सकता है। यह भी जरूरी नहीं है कि हर कोई दुनिया की सबसे अनोखी सोच के साथ ही कामयाब हो सकें, लोग अपनी जिंदगी के दायरे में छोटी-छोटी सोच से भी कामयाब हो जाते हैं। सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के इतिहास का एक वीडियो दिखता है जिसमें सर गंगाराम नाम के एक मशहूर इंजीनियर का गांव दिखता है। अंग्रेजों के वक्त के इस नामी इंजीनियर ने करीब के रेलवे स्टेशन से अपने गांव तक लोगों के आने -जाने के लिए पटरियां बिछाकर उस पर ऐसी घोड़ा-गाड़ी दौड़ाई जो कि दुनिया की एक अनोखी हॉर्स-ट्रेन बन गई। सर गंगाराम ने अपनी कमाई से जनकल्याण के ढेरों काम किए, और पाकिस्तान से लेकर हिन्दुस्तान तक उनके नाम के सर गंगाराम हॉस्पिटल है मशहूर हैं। इसी पाकिस्तान में मलाला नाम की बच्ची ने आतंक का सामना करते हुए भी, आतंकियों की गोलियां खाते हुए भी लड़कियों को पढऩे के हक लड़ाई लड़ी, और नोबल पुरस्कार तक पहुंची। इसी पाकिस्तान में इस देश या दुनिया की सबसे बड़ी एक ऐसी एम्बुलेंस सेवा है जिसे एक मामूली आदमी के बनाए हुए ट्रस्ट ने शुरू किया और चलाया। जिस पाकिस्तान में लोगों की तमाम किस्म की संभावनाओं को बड़ा सीमित माना जाता है, वहां पर अब्दुल सत्तार ईधी ने हजारों एम्बुलेंस का एक जाल बिछा दिया। यह काम कारोबार नहीं था, बल्कि समाजसेवा था, जो कि उनके गुजरने के बाद भी देश भर में कामयाबी से चल रहा है। अब्दुल सत्तार ईधी अंग्रेजों के वक्त आज के हिन्दुस्तानी हिस्से के गुजरात में पैदा हुए थे, और विभाजन के बाद परिवार पाकिस्तान चले गया, और ईधी की समाजसेवा बढ़ते-बढ़ते आसमान तक पहुंची। आज भी दुनिया में इस एम्बुलेंस सेवा का कोई मुकाबला नहीं है। भारत के दूसरी तरफ बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस ने कई दशक पहले ग्रामीण बैंक के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को अपने बहुत छोटे रोजगार-कारोबार के लिए माइक्रोफायनेंस करना शुरू किया था, उससे बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में जमीन-आसमान जैसा फर्क आया, और मोहम्मद यूनुस को नोबल शांति पुरस्कार भी मिला। कुछ ऐसा ही हाल हिन्दुस्तान में अमूल ब्रांड के पीछे के सहकारी-प्रयोग का है जिसे वर्गीज कुरियन नाम के एक व्यक्ति ने अपनी कल्पना और मेहनत से आसमान तक पहुंचाया, और आज देश और दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां भी उसका मुकाबला नहीं कर पा रही हैं।
यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि दुनिया में सबसे अधिक कामयाब होने के लिए न तो कुनबे की दौलत काम आती है, न आरक्षण से मिला हुआ दाखिला काम आता, और न आरक्षण से मिली हुई नौकरी काम आती है। दुनिया में सबसे बड़ी कामयाबियां लोगों के भीतर से निकलकर आईं, उन्होंने अपने आपको साबित किया, और अपने से अधिक बाकी दुनिया के भी काम आईं। हमने कारोबार के कुछ ब्रांड के नाम यहां पर गिनाए हैं, लेकिन उनसे परे भी बहुत से ऐसे ब्रांड हैं, घर के गैरेज में शुरू की गई एप्पल कंपनी, चीन में साम्यवादी सरकारी नियंत्रण के बीच भी दुनिया की सबसे बड़ी कारोबारी कंपनी अलीबाबा, अमरीका में कामयाब हुई अपने किस्म की अनोखी कंपनी अमेजान, ऐसे बहुत सारे मामले हैं जिनसे लोग हौसला पा सकते हैं। जब बात कल्पना से आगे बढऩे की आती है, तो न जाति के पैर काम आते, न कुनबे की दौलत के। इनके बिना भी कल्पना के पंखों से उडक़र लोग न महज खुद आसमान पर पहुंचते हैं, बल्कि दुनिया को भी अंतरिक्ष की सैर करा देते हैं। इसलिए कल्पना के महत्व को समझने की जरूरत है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)