विचार / लेख

स्वतंत्रता के साथ मर्यादा भी जरूरी
07-Mar-2021 6:49 PM
स्वतंत्रता के साथ मर्यादा भी जरूरी

बेबाक विचार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

सरकार ने ज्यों ही 25 फरवरी को दूरसंचार तंत्र को नियंत्रित करने की आचार संहिता जारी की, इंटरनेट, अखबारों और टीवी चैनलों पर हायतौबा मच गई। वह तो मचनी ही थी, क्योंकि लोगों के मन में यह भाव पहले से ही बैठा हुआ है कि सरकार सारे खबरतंत्र को अपनी कठपुतली बनाकर रखना चाहती है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस भाव को ही अभाव में बदल दिया है। उसने सरकार को उलटे डांट लगाई कि आपने जो आचार-संहिता जारी की है, वह निरर्थक है, क्योंकि उसमें दोषियों को सजा का न तो कोई प्रावधान है और उसमें न तो यह बताया गया है कि इंटरनेट पर चलनेवाले असंख्य अश्लील चित्र और कहानियों को रोकने का क्या इंतजाम है? अपनी आचार-संहिता में सरकार ने यह भी नहीं बताया है कि यदि इन सूचना-माध्यमों पर कोई आपत्तिजनक या अपमानजनक सामग्री भेजी जाती है तो उसके पास ऐसे कौन से तरीके हैं, जिनके द्वारा वह उन्हें रोक सकेगी?

एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने यह कडक़ मांग की है और दूसरी तरफ देश के खबरतंत्र में यह डर फैल गया है कि अब जबकि यह आचार-संहिता कानून का रूप ले लेगी तो भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दम घुट जाएगा। यह डर स्वाभाविक है लेकिन हमें यह भी पता होना चाहिए कि दूरसंचार माध्यमों का दुरुपयोग अन्य देशों में बहुत पहले से ही इतने भयंकर रूप में हो रहा था कि उन्हें उसे रोकने के लिए सख्त कानून बनाने पड़े हैं। ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, यूरोपीय देशों और अमेरिका आदि में इन आधुनिक सूचना-माध्यमों पर निगरानी के लिए कठोर कानून काफी पहले से लागू हैं।

मैं स्वयं यह मानता हूं कि इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्री पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। उसके कारण देश में दुराचार और यौन अपराधों में वृद्धि हो रही है। बच्चे और नौजवान संस्कारहीन होते जा रहे हैं। सरकार को आतंकवादियों, तस्करों, पेशेवर अपराधियों, सामूहिक हिंसकों और विदेशी जासूसों आदि के टेलिफोन, ई-मेल, व्हाट्सऐप आदि पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए लेकिन यह काम बहुत ही संकोच और सावधानीपूर्वक होना चाहिए। इसमें पूरी जवाबदेही की जरूरत है। यह गंभीर और नाजुक कार्रवाई एक संसदीय कमेटी की देख-रेख में हो तो बेहतर रहेगा ताकि मंत्री या अफसर अपनी मनमानी न कर सकें।

जहां तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है, उस पर किसी प्रकार की रोक-टोक का सवाल ही नहीं उठता, बशर्ते कि वह अपने संवैधानिक दायरे में रहे। देशद्रोह संबंधी धारा 124ए में संशोधन नितांत आवश्यक है। स्वतंत्र भारत में वह गुलामी की प्रतीक है। उसका उपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा होता है।

 सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को आश्वस्त किया है कि देश के सूचना तंत्र को सन्मार्ग पर चलाने के लिए वह शीघ्र ही नया आदेश जारी करेगी या कानून बनाएगी। बेहतर तो यह हो कि संसद के इसी सत्र में पूरी और खुली बहस के बाद एक ऐसा कानून पारित किया जाए, जो भारत के सूचना तंत्र को अभिव्यक्ति की मर्यादा और स्वतंत्रता का पर्याय बना दे।

  (नया इंडिया की अनुमति से)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news