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क्या कोरोना के मरीज फिर से सूंघना सीख सकते हैं?
18-Mar-2021 8:07 PM
क्या कोरोना के मरीज फिर से सूंघना सीख सकते हैं?

कोरोना इंफेक्शन के बाद बहुत से मरीजों की स्वाद लेने और सूंघने की क्षमता चली जाती है और देर तक वापस नहीं आती. यदि लंबे समय तक स्वाद और गंध महसूस न हो तो लोग परेशान हो जाते हैं. क्या स्वाद और गंध वापस लाने की कोई तरकीब है?

   डॉयचे वैले पर टीना रोथ की रिपोर्ट- 

कारेन और हाइनर रीजे को मछली वाली ब्रेड पसंद है, प्याज मिली हुई. लेकिन जब से उन्हें कोविड हुआ है, दोनों की जीभ में कोई स्वाद नहीं रहा. कारेन रीजे बताती हैं कि थोड़ा बेस्वाद है. वैसे उन्हें खट्टा सा स्वाद तो आ रहा है, लेकिन सही में बिस्मार्क ब्रेड जैसा नहीं है. वहीं हाइनर रीजे बताते हैं कि वे प्याज को उसकी आवाज से पहचान रहे हैं, उसका स्वाद उन्हें नहीं आ रहा. कोरोना के मरीजों पर अब तक जो रिसर्च हुए हैं उसके अनुसार स्वाद न आने की वजह जीभ का तंत्र नहीं है. दरअसल कोरोना बीमारी के बाद सूंघने की क्षमता बिगड़ जाती है और उसका असर स्वाद पर भी पड़ता है.

इंफेक्शन की हालत में कोरोना वायरस नाक के मेम्ब्रेन में गंध लेने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देता है. आम तौर पर वे फिर से पैदा हो जाती हैं. लेकिन कुछ मरीजों में सूंघने की क्षमता लंबे समय तक वापस नहीं आती या स्थायी रूप से चली जाती है. डॉ. मार्टिन लॉडियन कील मेडिकल कॉलेज में पढ़ाते हैं. वे बताते हैं, "ऐसा लगता है कि सूंघने की क्षमता में करीब 10 प्रतिशत की कमी जारी रहती है." ये पूरी कमी नहीं है लेकिन कोविड बीमारी के बाद सूंघने की क्षमता में बदलाव जरूर होता है.

गंध को महसूस करने में गड़बड़ी के कारण का पता लगाना आसान नहीं है. हर खुशबू सुगंध के अलग अलग मॉलिक्यूल से पैदा होती है, और हर मॉलिक्यूल के लिए एक खास रिसेप्टर जरूरी होता है जो उसे उचित सुगंध देता है. जब कोरोना वायरस के कारण सूंघने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं तो सुगंध वाले कुछ मॉलिक्यूलों को उनका रिसेप्टर नहीं मिलता. इस तरह दिमाग तक सुगंध का पूरा प्रभाव पहुंच नहीं पाता और इसकी वजह से सुगंध का पता नहीं चलता और उलझन की स्थिति पैदा होती है.

ऐसा ही अनुभव हाइनर रीजे को भी हुआ. उनके घर में ताजा ताजा रोस्ट की गई कॉफी की बींस थीं. कॉफी के दानों को भूना जाए तो वह अच्छी सोंधी सी खुशबू देती है. लेकिन हाइनर रीजे ने बताया कि वे जब अपने ड्रॉइंग रूम से निकल कर किचन की तरफ पहुंचे तो उन्हें "अजीब सी गंध आई गैस जैसी." संभव है कि घ्राण शक्ति में इस गड़बड़ी की वजह सिर्फ वायरस से इंफेक्ट हुए नाक के मेम्ब्रेन में कोशिकाओं का नष्ट होना नहीं है. जानवरों पर किए गए टेस्ट में साबित किया जा सका है कि कोरोना वायरस सूंघने वाली कोशिकाओं और तंत्रिका से होता हुआ दिमाग तक चला जाता है. वहां वह गंध के लिए इंपल्स देने वाले हिस्सों को नष्ट कर देता है.

दिमाग की कोशिकाएं इंपल्स ही न दें तो नाक गंध को सूंघे कैसे. ऐसी स्थिति में रास्ता क्या बचता है? कई स्टडी से पता चला है कि सूंघने की आसान ट्रेनिंग करने से सूंघने की क्षमता फिर से बेहतर हो सकती है. इसके लिए मरीजों को चार अलग तरह की परफ्यूम सुंघाई जाती हैं. डॉ. लॉडियन बताते हैं, "इसके लिए मरीज उन्हें खुद अपनी नाक के नीचे रखते हैं, सूंघते हैं और पहचानने की कोशिश करते हैं." यह दो बार किया जाता है, एक बार सुबह और एक बार शाम में. दस से पंद्रह सेकंड के लिए.

सूंघने के अभ्यास के लिए पेंसिल वाले परफ्यूम इस्तेमाल किए जाते हैं जिनमें गुलाब, यूकेलिप्टस, नींबू और लौंग की गंध होती है. खुशबू के इन नमूनों को खुद तैयार किया जा सकता है. या तो खुशबू वाले तेल हों या तेज गंध वाले मसाले. कोई खास सुगंध लेना जरूरी नहीं. सुगंध को जानना और उसे पता करना जरूरी नहीं होता, अहम है उसे महसूस करना. डॉ. लॉडियन बताते हैं, "पहले महसूस करने की कोशिश कीजिए, फिर दिमाग को ट्रेन कीजिए, फिर संभव है कि नए सर्किट बनेंगे और आप रोजमर्रा में फिर से सूंघने की क्षमता विकसित कर लेंगे."

ट्रेनिंग से थोड़ी मदद मिली है. कारेन और हाइनर को अब उम्मीद है कि वे जल्द ही चीजों को बेहतर सूंघ पाएंगे और उनकी स्वाद की क्षमता भी बेहतर होगी. (dw.com)

एमजे

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