संपादकीय
भारत के पड़ोस के जिस म्यांमार में लोकतंत्र की वापिसी के लिए चल रहे आंदोलन पर वहां की ताजा फौजी तानाशाही की गोलियां अभी एक दिन में सौ से अधिक लोगों का कत्ल कर चुकी हैं। जाहिर है कि वहां के लोग पड़ोस के देशों में जाकर शरण लेने की कोशिश करेंगे। ऐसे में भारत में म्यांमार से लगी सरहद के मणिपुर में भी वहां के कुछ लोग आ रहे हैं, और ऐसे में राज्य की सरकार ने एक आदेश निकालकर सभी जिलों को कहा कि म्यांमार के नागरिकों के अवैध दाखिले को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करें, और अपने जिलों में आए ऐसे लोगों को रहने-खाने का कोई भी इंतजाम न दें। मणिपुर की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह अभी कुछ दिन पहले खबरों में आए थे जब मीडिया में उनका एक वीडियो सामने आया जिसमें वे अफसरों के साथ किसी सरकारी इमारत का दौरा कर रहे हैं, और उनके चलने के कालीन के दोनों तरफ स्कूली बच्चे जमीन पर सिर टिकाए हुए कतार में खड़े थे। उसके बाद अभी आए इस दूसरे आदेश से भी राज्य की सरकार के खिलाफ देश-विदेश के सोशल मीडिया में इतना कुछ लिखा गया कि सरकार को अपने इस आदेश को सुधारना पड़ा, और नर्म करना पड़ा। वरना पहले आदेश में मणिपुर सरकार ने जिलों को लिखा था कि किसी सामाजिक या अशासकीय संगठन को भी म्यांमार से आने वाले लोगों को रहने-खाने का इंतजाम न करने दिया जाए।
मणिपुर का यह आदेश उस वक्त आया जब संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के राजपूत ने भारत सरकार और भारत की राज्य सरकारों से अपील की थी कि दोनों देशों के बीच के लंबे ऐतिहासिक संबंधों को न भुलाया जाए, और आज मानवीय त्रासदी की वजह से म्यांमार के जो लोग भारत में जान बचाने के लिए आ रहे हैं, उन्हें शरण दी जाए। भारत का पुराना इतिहास रहा है कि पड़ोसी देशों से मुसीबत में आने वाले लोगों की उसने मदद की है। पाकिस्तान से आए हुए लोगों को भारत में लगातार नागरिकता दी जाती रही है, चीन छोडक़र आए हुए दलाई लामा सहित दसियों हजार तिब्बतियों को भारत ने शरण दी है, जब पाकिस्तान ने अपने पूर्वी पाकिस्तान वाले हिस्से पर जुल्म किया, और लाखों लोग सरहद पार करके भारत आए, तो तब से लेकर अब तक वे बांग्लादेशी कहे जाने वाले लाखों शरणार्थी भारत में ही हैं। और तो और अभी भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांग्लादेश की राजकीय यात्रा पर वहां औपचारिक घोषणा करके आए हैं कि बांग्लादेश की आजादी के लिए चले सत्याग्रह में 1971 में हिन्दुस्तान में वे भी शामिल थे। और यह तो इतिहास में अच्छी तरह दर्ज है कि बांग्लादेश के निर्माण के साथ ही जुड़ी हुई हकीकत है कि भारत ने ऐसे लाखों शरणार्थियों को अपने देश में बसाया जो कि आज भी यहीं हैं। भारत में नेपाल के लोग बिना वीजा रहकर काम करते हैं, और बहुत किस्म की नौकरियां भी करते हैं। इस तरह भारत में तकरीबन हर पड़ोसी देश के लोगों की मुसीबत में मदद अपनी आजादी के दिनों से ही की है। ऐसे में जब भारत का एक राज्य यह आदेश निकालता है कि म्यांमार से आने वाले लोगों को खाना भी न दिया जाए, और न किसी को इजाजत दी जाए कि वह ऐसे शरणार्थियों को खाना दे, तो ऐसा सरकारी आदेश धिक्कार के लायक है। खासकर उस वक्त जब देश की मोदी सरकार और मणिपुर की प्रदेश सरकार एक ही पार्टी की अगुवाई वाली सरकारें हैं, यह सोच पाना नामुमकिन है कि एक भाजपाई मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार से पूछे बिना अपने स्तर पर ऐसा आदेश निकाल सकता है। जब पड़ोस के देश में फौजी तानाशाह की फौज एक-एक दिन में सौ से अधिक लोकतंत्र-आंदोलनकारियों को मार गिरा रही है, उस वक्त जान बचाकर आए हुए लोगों को अगर गौरवशाली इतिहास वाले हिन्दुस्तान में जगह और खाने-पीने से भी मना कर दिया जाए, तो हिन्दुस्तान एक दकियानूसी टापू बनकर रह जाएगा।
वैसे भी आज हिन्दुस्तान न सिर्फ म्यांमार बल्कि दूसरे देशों में हो रही अमानवीय घटनाओं में अपनी अंतरराष्ट्रीय-मानवीय जिम्मेदारी निभाने से बुरी तरह कतरा रहा है। उसने फिलीस्तीनियों पर हो रहे अंतहीन इजराईली जुल्मों को देखने से भी मना कर दिया है, उस पर कुछ बोलना तो दूर रहा। देश के भीतर विदेशी कहे जाने वाले दसियों लाख लोगों को हिरासत-शिविरों में डालने, और अंतत: देश के बाहर निकालने पर भी मोदी सरकार आमादा है। यह एक अलग बात है कि इस दर्जे में गिने जा रहे सबसे अधिक लोग जिस बांग्लादेश से आए बताए जाते हैं, उस बांग्लादेश की दो दिन की राजकीय यात्रा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने इन लोगों की चर्चा तक नहीं की, जबकि बांग्लादेश के विदेश मंत्री खासे अरसे पहले यह बोल चुके थे कि उन्होंने भारत सरकार से लिस्ट मांगी है कि अगर कोई बांग्लादेशी नागरिक वहां अवैध रूप से रह रहे हैं तो उन्हें बांग्लादेश वापिस लेने तैयार है। भारत के बहुचर्चित और विवादास्पद एन.आर.सी., नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजनशिप, के विवाद पर बांग्लादेशी विदेश मंत्री एक बार भारत का दौरा रद्द भी कर चुके हैं।
अपने पड़ोस के लोगों की मुसीबत के वक्त उनके काम आना किसी भी लोकतांत्रिक देश की घोषित जिम्मेदारी रहती है। अंतरराष्ट्रीय संबंध ऐसी जिम्मेदारी की बुनियाद पर ही बनते हैं। लोगों ने हाल के बरसों में देखा है कि सीरिया जैसे अशांत देशों से नौकाओं पर सवार होकर योरप पहुंचने वाले लाखों शरणार्थियों को तकरीबन तमाम यूरोपीय देशों ने जगह दी है, और उनके लिए इंतजाम किए हैं। मणिपुर का रूख भारत के लिए बहुत शर्मिंदगी का है, और खुद भारत सरकार का रूख भी ऐसा नहीं है कि जिस पर आने वाली सदियां कोई गर्व कर सके। मानवीय आधार पर मदद की नौबत आने पर बिना किसी शर्त इंसानों को जिंदा रहने की मदद करनी चाहिए। भारत का जो फौजी विमान पाकिस्तान में गिरा था, वह दुश्मन-फौजी विमान होने के बावजूद वहां की सरकार ने उसके हिन्दुस्तानी पायलट की मदद की थी। भारत सरकार को मणिपुर सरकार की चिट्ठी पर इस देश का नजरिया साफ करना चाहिए क्योंकि यह मामला भारत के किसी राज्य के पड़ोसी देश से संबंध का नहीं है, बल्कि भारत के विश्व समुदाय से संबंधों का मामला है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)