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मोदी और ममता को कोरोना की परवाह नहीं तो हम क्या कर सकते हैं?- डॉक्टरों ने लिखा चुनाव आयोग को ख़त
07-Apr-2021 9:36 PM
मोदी और ममता को कोरोना की परवाह नहीं तो हम क्या कर सकते हैं?- डॉक्टरों ने लिखा चुनाव आयोग को ख़त

PRABHAKAR MANI TEWARI/BBC

प्रभाकर मणि तिवारी
कोलकाता से,  7 अप्रैल।
 "कोरोना क्या है? कोरोना कहीं नहीं है. कोरोना ख़त्म हो चुका है." पश्चिम बंगाल में होने वाली चुनावी रैलियों में हिस्सा लेने आए बिना मास्क पहने किसी भी व्यक्ति से अगर इसकी वजह पूछें तो उसका जवाब कमोबेश इन शब्दों में ही मिलता है. राज्य के एक वरिष्ठ राजनेता तो नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, "अभी हमारे सामने दूसरी लड़ाई है. कोरोना के साथ दो मई के बाद लड़ लेंगे." इन टिप्पणियों से पता चलता है कि कोरोना के बढ़ते ख़तरों से बंगाल में लोग कितने लापरवाह हैं. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अभियान के तेज़ी पकड़ते ही इसके साथ कंधे से कंधा मिला कर कोरोना के मामले भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों ने चेताया कि विधानसभा चुनाव ख़त्म होने पर बंगाल में कोरोना संक्रमण का नया रिकॉर्ड बन सकता है. उनका कहना है कि आठ चरणों तक चलने वाली चुनाव प्रक्रिया कोरोना के लिहाज़ से भारी साबित हो सकती है.


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सोशल डिस्टेंसिंग के नियम
तमाम राजनीतिक दलों की रैलियों और चुनाव अभियान के दौरान न तो कहीं किसी के चेहरे पर मास्क नज़र आता है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोरोना की इस दूसरी लहर को ध्यान में रखते हुए आठ अप्रैल को कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बैठक करेंगे. उससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर गहरी चिंता जताई है. लेकिन साथ ही चेताया है कि अब कोरोना की आड़ में मतदान स्थगित करने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
ममता कहती हैं, "पूरे देश में दोबारा संक्रमण बढ़ रहा है. क्या ऐसी परिस्थिति में तीन या चार चरणों में ही मतदान कराना उचित नहीं होता? लेकिन अब जब आठ चरणों में चुनाव हो ही रहा है तो इसे किसी भी हालत में रोका नहीं जा सकता. खेल जब शुरू हो ही गया है तो इसे ख़त्म भी करना होगा."
लेकिन राज्य में सत्ता की प्रमुख दावेदार के तौर पर उभरी बीजेपी ने ममता की टिप्पणी को अहमियत देने से इनकार कर दिया है.
प्रदेश बीजेपी के महासचिव सायंतन बसु कहते हैं, "कोरोना के बीच अगर बिहार में चुनाव हो सकते हैं तो बंगाल में क्यों नहीं? राज्य में अभी हालत इतनी ख़राब नहीं हुई है कि चुनाव रोकना पड़े. ममता धांधली नहीं कर पा रही हैं. इसलिए ऐसी टिप्पणी कर रही हैं."

 


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निर्वाचन आयोग को डॉक्टरों की चिट्ठी
सीपीएम और कांग्रेस ने भी कहा है कि फ़िलहाल कोरोना की स्थिति इतनी ख़राब नहीं हुई है.
सीपीएम नेता रबीन देब कहते हैं, "अभी बंगाल में संक्रमण की स्थिति उतनी ख़राब नहीं है कि चुनाव रोकना पड़े. लेकिन हम सबको कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए."
कांग्रेस नेता प्रदीप भट्टाचार्य ने ममता और बीजेपी पर कोरोना के मुद्दे पर राजनीति करने का आरोप लगाया है.
वहीं राज्य के डॉक्टरों के सामूहिक मंच 'द ज्वॉइंट फ़ोरम ऑफ़ डॉक्टर्स-वेस्ट बंगाल' ने निर्वाचन आयोग को पत्र भेज कर चुनाव अभियान के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल की सरेआम धज्जियां उड़ने पर गहरी चिंता जताते हुए उससे हालात पर नियंत्रण के लिए ठोस क़दम उठाने की अपील की है.
बिहार चुनाव से पहले आयोग ने कोविड-19 से बचाव के लिए जो प्रोटोकॉल बनाए थे, पश्चिम बंगाल में तमाम राजनीतिक दल उनकी अनदेखी करते रहे हैं.
डॉक्टरों के समूह ने अपने पत्र में लिखा है, "क्या आपने कभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मास्क पहनते देखा है? अगर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ही कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन करें तो हम क्या कर सकते हैं?"


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चुनावी प्रक्रिया के दौरान
जाने-माने पर्यावरणविद् सुभाष दत्त ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को लिखे पत्र में कहा है, "चुनाव अभियान के दौरान कोविड प्रोटोकॉल के सरेआम उल्लंघन पर आयोग की चुप्पी पीड़ादायक है."
जाने-माने स्वास्थ्य विशेषज्ञ कुणाल सरकार कहते हैं, "चुनाव आयोग बंगाल में चुनाव अभियान के दौरान कोविड-19 प्रोटोकॉल को लागू करने में नाकाम रहा है. तमाम राजनीतिक दल बिना मास्क पहने सामाजिक दूरी के नियमों का पालन किए बिना हज़ारों लोगों के साथ रैलियां कर रहे हैं."
वैसे तो पश्चिम बंगाल के अलावा जिन बाक़ी चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं वहां भी चुनावी प्रक्रिया के दौरान कोरोना संक्रमण के मामलों में तेज़ी देखी गई है.
असम में तीन दौर में 126 सीटों के लिए मतदान पूरा हो चुका है और बाक़ी राज्यों में एक ही दिन छह अप्रैल को मतदान कराए गए.
लेकिन पश्चिम बंगाल में फ़िलहाल तीन चरणों में कुल 91 सीटों के लिए वोट पड़े हैं. अभी 29 अप्रैल तक पाँच चरणों में बाक़ी 201 सीटों पर मतदान होना है.
पूर्वोत्तर राज्य असम में मंगलवार यानी छह अप्रैल को कोरोना के 92 नए मामलों के साथ सक्रिय मामलों की संख्या 683 तक पहुंच गई है.


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राज्य में कोरोना संक्रमण का ग्राफ़
इससे पहले पाँच अप्रैल को 70 और चार अप्रैल को 69 नए मामले सामने आए थे. सिर्फ़ अप्रैल के आंकड़ों को देखें तो ऐसे मामलों में रोज़ाना वृद्धि हो रही है.
इस महीने पहले छह दिनों में ही 420 मामले सामने आए हैं. जबकि इसके पहले कई महीनों से ऐसे मामलों की संख्या रोज़ाना 10 से 15 के बीच थी.
आख़िरी चरण में कामरूप ज़िले के एक मतदान केंद्र पर वोट देने आए अलकेश डेका कहते हैं, "संक्रमण की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए मतदान केंद्रों की तादाद बढ़ाई जानी चाहिए थी ताकि कोविड-19 से बचाव के नियमों का पालन सुनिश्चित किया जा सके. लेकिन यहां तो लोग कतार में एक-दूसरे से चिपक कर खड़े हैं."
दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में तमाम सीटों पर एक ही चरण में छह अप्रैल को वोट डाले गए. बावजूद इसके मंगलवार को राज्य में 3,645 नए मामले सामने आए.
इनमें से 1,303 मामले अकेले राजधानी चेन्नई में थे. राज्य में एक दिन में 15 लोगों की मौत भी हो गई. दक्षिण के एक अन्य राज्य केरल में भी मतदान तो एक ही चरण में हुआ.
लेकिन चुनाव अभियान के ज़ोर पकड़ने के साथ ही राज्य में संक्रमण का ग्राफ़ भी तेज़ी से चढ़ा है.


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चुनावी रैलियों में भीड़
राज्य में मंगलवार को 3,502 नए मामले सामने आए. इनमें सबसे ज़्यादा 360 मामले कोझिकोड में आए और उसके बाद 316 मामलों के साथ एर्नाकुलम दूसरे नंबर पर रहा.
राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि कुल मामलों में से 3,124 लोग अपने स्थानीय तौर पर ही संक्रमित हुए हैं.
उनका कहना है कि चुनावी रैलियों में भीड़ से संक्रमण फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. इन रैलियों में सामाजिक दूरी के नियमों का पालन नहीं किया गया.
पश्चिम बंगाल चुनाव में जहां सत्ता के दावेदारों की साख और नाक दांव पर हों, कोरोना संक्रमण उनकी प्राथमिकता सूची में काफ़ी नीचे चला गया है.
राज्य में छह अप्रैल को 2,058 नए मामले सामने आए. यह इस साल का रिकॉर्ड है. वैसे, इससे पहले बीते तीन दिनों से औसतन 19 सौ मामले सामने आ रहे थे. चुनाव अभियान से इसका संबंध समझना कोई मुश्किल नहीं है.

नए मामलों की संख्या
मार्च के पहले सप्ताह में जब चुनाव अभियान की शुरुआत हुई थी तो दो मार्च को संक्रमण के नए मामलों की संख्या महज़ 171 थी.
अब स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि दो मई को चुनाव के नतीजे आने तक दैनिक संक्रमण कई गुना ज़्यादा हो सकता है.
दरअसल, 26 फ़रवरी को विधानसभा चुनाव की तारीख़ों के एलान के बाद से ही संक्रमण का ग्राफ़ लगातार ऊपर चढ़ रहा है.
26 फ़रवरी को 216 नए मामले सामने आए थे जो 31 मार्च को बढ़ कर 931 तक पहुँच गए. इस दौरान पॉज़िटिविटी रेट भी चार गुना बढ़ गई.
कोलकाता नगर निगम में स्वास्थ्य सलाहकार तपन मुखर्जी कहते हैं, "अगर संक्रमण का ग्राफ़ इसी तरह चढ़ता रहा तो मई में नए मामलों की तादाद तीन हज़ार के पार पहुँच सकती है."


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क्या कहते हैं विशेषज्ञ

एक साल से भी लंबे समय तक कोरोना के मरीज़ों की देखभाल और इस बीमारी पर शोध करने वाले स्वास्थ्य विभाग के महामारी विशेषज्ञ अनिर्वाण दलुई कहते हैं, "बीते साल 24 मई को 208 मामले सामने आए थे. संक्रमितों की संख्या में दस गुनी वृद्धि में तब दो महीने से ज़्यादा का समय लगा था. लेकिन अब चार मार्च से चार अप्रैल तक यानी ठीक एक महीने में ही इसमें दस गुनी वृद्धि हुई है. अगर हमने तुरंत इस पर अंकुश लगाने के उपाय नहीं किए तो इस महीने के आख़िर तक दैनिक मामलों की संख्या छह से सात हज़ार तक पहुंचने की आशंका है."
माइक्रोबायोलॉजिस्ट भास्कर नारायण चौधरी कहते हैं, "लॉकडाउन नहीं होना, कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन और चुनावी रैलियों में बिना किसी सुरक्षा के बढ़ती भीड़ ही तेज़ी से बढ़ते संक्रमण की प्रमुख वजहें हैं."
डॉक्टर अनिर्वाण दलुई कहते हैं, "आठ चरणों में होने वाले चुनावों की वजह से रोज़ाना किसी न किसी पार्टी की रैली या सभाएं हो रही हैं. वहां जुटने वाली भीड़ में सामाजिक दूरी का पालन संभव ही नहीं है, ज़्यादातर लोग बिना मास्क के होते हैं. ऐसे में अभी दूसरी लहर का चरम आना बाक़ी है."


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कोलकाता के इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ के एसोसिएट प्रोफेसर प्रभाष प्रसून गिरी कहते हैं, "राजनीतिक दलों को अपनी रैलियों में जुटने वाली भीड़ की तादाद कम करने के साथ ही कोविड प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करना चाहिए था. तमाम नेताओं को बार-बार लोगों से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की भी अपील करनी चाहिए थी."
महानगर के एक निजी अस्पताल में कोविड वार्ड के प्रमुख और क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉक्टर अजय सरकार बताते हैं, "मार्च के पहले सप्ताह में हमारे कोविड वार्ड में पांच मरीज़ थे जो अब 24 तक पहुँच गए हैं."
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव आयोग को रैलियों और चुनाव अभियान के दौरान लोगों की तादाद तय कर देनी चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो हालात बेक़ाबू होने का अंदेशा है.
हालांकि राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी आरिज आफ़ताब कहते हैं, "तमाम उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों से कोरोना से उपजी परिस्थिति को ध्यान में रख कर ही चुनाव अभियान चलाने को कहा गया है."


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कोलकाता पुलिस के संयुक्त आयुक्त शुभंकर सिन्हा कहते हैं, "हम कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने वालो के ख़िलाफ़ कार्रवाई के साथ ही लोगों में जागरूकता फैलाने का अभियान भी चला रहे हैं." कोलकाता नगर निगम का दावा है कि वह भी बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चला रहा है. इसके साथ ही तमाम इलाक़ों को सैनिटाइज़ करने का काम भी चल रहा है. लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इन उपायों का ज़मीन पर कोई असर नहीं नज़र आता. तेज़ी से बढ़ते आंकड़े ही इसका सबूत हैं. राज्य के स्वास्थ्य सेवा निदेशक अजय चक्रवर्ती भी मानते हैं, "लोगों में कोरोना के प्रति जागरूकता का बेहद अभाव है." (bbc.com/hindi)

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