सामान्य ज्ञान
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 6 फरवरी 2013 को शुरू किए गए एक कार्यक्रम है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य मिशन के तहत बाल स्वास्थ्य जांच और जल्द उपचार सेवाओं का उद्देश्य बच्चों में चार तरह की परेशानियों की जल्द पहचान और प्रबंधन है। इन परेशानियों में जन्म के समय किसी प्रकार का विकार, बच्चों में बीमारियां, कमियों की विभिन्न परिस्थितियां और विकलांगता सहित विकास में देरी शामिल है।
इसके दायरे में अब जन्म से लेकर 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों को शामिल किया गया है। सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में कक्षा एक से 12वीं तक में पढऩे वाले 18 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले 0-6 वर्ष के आयु समूह तक के सभी बच्चों को इसमें शामिल किया गया है। ये संभावना है कि चरणबद्ध तरीके से लगभग 27 करोड़ बच्चों को इन सेवाओं का लाभ प्राप्त होगा।
इस कार्यक्रम के तहत सभी जिलों में शीघ्र देखभाल केन्द्र खोले जाने हैं, जिनमें खण्ड स्तर पर वहां भेजे गए मरीजों का इलाज किया जाना है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के शुभारंभ के साथ इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों में बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ इसे आंगनवाड़ी और सरकार एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में लागू किया जाना है। इस कार्यक्रम के तहत देशभर में एक चरणबद्ध तरीके से चलाए गए अभियान में 25 करोड़ बच्चों को शामिल किया जाना है और उन्हें जिला अस्पतालों और क्षेत्रीय स्तरों पर नि:शुल्क प्रबंधन और उपचार सुविधाएं प्रदान की जानी है। चलते-फिरते चिकित्सा दलों द्वारा आंगनवाड़ी केन्द्रों में पंजीकृत 6 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों की स्वास्थ्य जांच की जानी है। सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के बच्चों के स्वास्थ्य की भी ऐसी ही जांच की जानी है।
केनोपनिषद
केनोपनिषद दस प्रधान उपनिषदों में से एक है। सामवेदीय उपनिषदों में छांदोग्य और केन उपनिषद् प्रसिद्घ है। इन दोनों पर शंकराचार्य तथा अन्य विद्वानों ने टिप्पिणयां लिखी हैं। इस उपनिषद का केन नाम इसलिए पड़ा कि इसका प्रारंभ केन (किसके द्वारा) शब्द से होता है। इसमें संपूर्ण विश्व का धारण और संचालन करने वाली सत्ता के बारे में बताया गया है।
स्कंध
स्कंध एक संस्कृत शब्द है । जिसका अर्थ है- समष्टिï। पालि खंध, बौद्घ मत के अनुसार पांच तत्व, जो मिलकर व्यक्ति के मानसिक एवं शारीरिक अस्तित्व को संपूर्ण बनाते हैं।
आत्मा की पहचान किसी एक हिस्से से नहीं होती, न ही यह हिस्सों का योग है। ये हैं- (1) पदार्थ या शरीर (रूप), चार तत्वों, पृथ्वी, वायु, अग्रि, एवं जल का अभिव्यक्त स्वरूप (2) संवेदना या अनुभूति (वेदना), (3) वस्तुओं का संवेदन बोध (संस्कृत में संज्ञा, पालि में सन्ना), (4) मानसिक रचना (संस्कार या संखार) और (5) तीन अन्य मानसिक समष्टिïयों की जागरूकता या चेतना, (विज्ञान या विन्नान) सभी व्यक्ति निरंतर परिवर्तन की स्थिति में हैं, क्योंकि चेतना का तत्व हमेशा एक सा नहीं रहता तथा मनुष्य की तुलना नदी से हो सकती है, जिसकी एक पहचान बनी रहती है, हालांकि इसको बनाने वाली जल की बूंदें हर क्षण बदलती रहती हैं।