विचार / लेख

टेक्नॉलॉजी भी करती है रंगभेद!
15-Apr-2021 5:57 PM
टेक्नॉलॉजी भी करती है रंगभेद!

-गिरीश मालवीय

बहुत से लोग आज टेक्नोलॉजी को खुदा माने बैठे हैं लेकिन जिनके हाथों में टेक्नोलॉजी का विकास की कमान है वो किस तरह से डिस्क्रिमिनेशन कर सकते हंै ये लोग नहीं जानते।

यहाँ हम किसी कांस्पीरेसी थ्योरी की बात नहीं कर रहे। भास्कर के संपादकीय पेज पर एक खबर छपी है कि ऑक्सीमीटर अश्वेतों में गलत ऑक्सीजन लेवल की गणना दे रहे हैं। कोविड के दौर में यह गलती जानलेवा साबित हो गई है। जब अमेरिका में कोविड अपने चरम पर पहुंचा तो हजारों अश्वेत सही समय पर सही इलाज के लिए वंचित रह गए क्योंकि ऑक्सीमीटर की रीडिंग अश्वेतों में ज्यादा दिखा दी गई। नतीजा यह हुआ हजारों अश्वेत की मौत हो गई।

अमरीका की प्रमुख स्वास्थ्य नियामक एफडीए ने हाल के शोध में कहा है कि अश्वेत रोगियों को खतरनाक रूप से निम्न रक्त ऑक्सीजन का स्तर लगभग तीन गुना पाया गया है, जो कि श्वेत रोगियों के रूप में पल्स ऑक्सीमेट्री द्वारा पता लगाया गया।

सिर्फ यही नहीं 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया कि एक सॉफ्टवेयर के कारण श्वेतों को अश्वेतों की तुलना में हॉस्पिटल में इलाज में प्राथमिकता मिली। आने वाले दौर में कोरोना के बाद किस तरह से दुनिया एक सर्विलांस विश्व में बदल रही है। इस पर जब मैंने एक वीडियो बनाने के दौरान रिसर्च की तो मुझे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि चेहरे की पहचान करने वाली टेक्नोलॉजी फेशियल रिकग्निशन बड़े पैमाने पर भेदभाव कर रही है।

स्टडी से पता चलता है कि अधिकांश फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर का एल्गोरिदम श्वेत लोगों की तुलना में काले लोगों और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के चेहरे की गलत पहचान कर रहा है।

ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के प्रमुख। कारण अफ्रीकी अमेरिकी व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद पुलिस की कार्यनीति के साथ लॉ इन्फोर्समेंट के लिए इस्तेमाल की गई फेसिअल रिकग्निशन की इस टेक्नोलॉजी को गहन जांच के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है।

अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन ने कहा कि पुलिस बॉडी कैमरा फुटेज पर चेहरे की पहचान के सभी उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि यह गलत पहचान कर रहे हैं। चेहरे की पहचान करने वाली इस टेक्नोलॉजी को अमरीका के सैन फ्रांसिस्को में बैन कर दिया गया है।

यह तो हुई अमरीका की बातें आपको लग रहा होगा कि वहाँ यह होता है!...हमारे यहाँ थोड़ी ही न यह सब होता है!. जबकि यह समस्या भारत मे बहुत बड़े पैमाने पर है।

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा लगभग तीन करोड़ राशन कार्ड रद्द किए जाने के खिलाफ याचिका लगाई गई। दरअसल गुडिय़ा देवी की ओर से जनहित याचिका दायर की गई  जिसकी झारखंड में सिमडेगा जिले की 11 वर्षीय बेटी संतोषी की 28 सितंबर, 2018 को भुखमरी से मृत्यु हो गई।

याचिका में कहा गया है कि संतोषी, जो एक गरीब दलित परिवार से संबंध रखती थी, की मृत्यु हो गई क्योंकि स्थानीय अधिकारियों ने उसके परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया था क्योंकि वे इसे आधार से जोडऩे में विफल रहे थे। मार्च 2017 से परिवार को राशन मिलना बंद हो गया और इसके परिणामस्वरूप, पूरा परिवार भूख से मर गया। उस वक्त यह मामला खूब सुर्खियां बटोर रहा था।

आप जानते हैं कि राशन कार्ड को आधार से क्यों नही जोड़ा जा सका? क्योंकि आधार में जो बायोमेट्रिक टेक्नोलॉजी उपयोग की गई है वह संतोषी के परिवार की सही पहचान नहीं कर पाई। सिर्फ संतोषी का ही नहीं बल्कि ऐसे तीन करोड़ परिवारों का राशन कार्ड रदद् कर दिया गया।

2018 में उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने बताया था कि राशन कार्डों के डिजिटलीकरण और आधार सीडिंग के दौरान 3 करोड़ राशन कार्ड फर्जी पाए गए जिन्हें रद्द किया गया।

अब बताइये, आप यह क्या कर रहे हैं ! आपने टेक्नोलॉजी को एक ऐसे फ्रैंक्सटाइन में तब्दील कर दिया हैं जो haves और haves not के बीच की दूरी को और अधिक बढ़ा रही है।

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