सामान्य ज्ञान

खैबर दर्रा
16-Apr-2021 1:32 PM
खैबर दर्रा

खैबर दर्रा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच स्थित है। यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सुदूर उत्तरी दर्रा है।  यह काबुल को पेशावर से जोड़ता है। यह दर्रा ऐतिहासिक रूप से पश्चिमोत्तर दिशा से भारतीय उपमहाद्वीप पर होने वाले हमलों का प्रवेश  द्वार रहा है। 
खैबर नाम शुष्क, खंडित पर्वत श्रृंखलाओं को भी दिया गया है, जिससे होकर यह दर्रा गुजरता है और जो स्पिन घर  (सफेद कुह) श्रेणी के अंतिम  हिस्से का निर्माण करता है। इसे जोडऩे वाले स्कंध के दोनों ओर दो छोटी धाराओं के स्रोत हैं, जिनके तल खैबर महाखड्ड का निर्माण करते हैं। यह संकरा महाखड्ड खैबर दर्रा बनाता है।  यह स्लेटी पत्थरों और चूना पत्थरों की चट्टानों के बीच 180-300 मीटर ऊंचाई पर मुड़ता हुआ, पाकिस्तान में जमरूद से कुछ किलोमीटर दूर शादी बगियार मार्ग से खैबर पहाडिय़ों में प्रवेश करता है और पश्चिमोत्तर दिशा में लगभग 53 किमी तक जारी रहता है।  हफ्तचाह के पुराने अफगान किले के ठीक बाद यह बंजर लोयाह दक्काह मैदान में खुलता है, जो काबुल नदी तक फैला हुआ है। 
खैबर दर्रा कारवां के रास्तों और पक्की सडक़ से जुड़ा हुआ है। इस दर्रे से होकर जाने वाला रेल मर्गा जिसका उद्घाटन वर्ष 1925 को किया गया, जमरूद को लंदीखाना से जोड़ता है, जो अफगान सीमा पर स्थित है। 34 सुरंगों और 94 पुलों से गुजरने वाली लाइन ने इस क्षेत्र के परिवहान में क्रांति ला दी है। इस दर्रे को सडक़ मार्ग से बाहर से भी पार किया जा सकता है, जो जमरूद से 14 किमी उत्तर में पहाड़ों में प्रवेश करता है और लालपुरा दक्का से बाहर निकलता है। 
बहुत कम दर्रों का इतना सतत रणनीतिक महत्व या इतने ऐतिहासिक सरोकार हैं। जैसा खबर दर्रे का है।  इससे इरानी, यूनानी, अफगान और अंग्रेज सभी गुजर चुके हैं और सबके लिए यह अफगान सीमा पर नियंत्रण के लिए एक प्रमुख बिंदु था। पांचवीं शताब्दी ई..पू. में इरान के डेरियस प्रथम महान काबुल के आसपास के क्षेत्रों को जीतकर खैबर दर्रे तक पहुंचे थे। 

गच्छ
गच्छ जैन धर्म के मूर्तिपूजक दिगंबर समुदाय के भिक्षुओं और उनके अनुयायियों का एक समूह है, जो अपने आप को प्रमुख मठवासी गुरुओं का वंशज मानते हैं। हालांकि सातवीं-आठवीं शताब्दी से लगभग 84 अलग-अलग गच्छों की उत्पत्ति हो चुकी है, लेकिन इनमें से बहुत कम का अस्तित्व आधुनिक क्रम के रूप में विद्यमान है। इनमें खरतार (मुख्यत: राजस्थान में स्थित), तप और अंचल गच्छ शामिल हैं। 
हालांकि सिद्धांत और विश्वास के किसी महत्वपूर्ण पहलू में ये गच्छ एक-दूसरे से मत भिन्नता नहीं रखते, लेकिन आचारों, विशेषकर धार्मिक तिथिपत्र और अनुष्ठानों के मामले में उनकी अपनी अलग-अलग व्याख्याएं हैं और वे स्वयं को अलग-अलग वंशों का भी मानते हैं। 
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news