विचार / लेख

कौन हैं राम?
21-Apr-2021 11:53 AM
कौन हैं राम?

-कनक तिवारी 

राम का असर हिन्दुस्तान के अवाम पर सबसे ज्यादा है। राम ऐसे राजपुत्र हैं जिनका सगापन सौतेली माता के लिए ज़्यादा है। वे संयोग या नीयतन दलित वर्ग के नायक बनकर ब्राहाणों के राक्षसत्व का विनाश करते हैं। सबसे प्रामाणिक एकनिष्ठ पति होकर भी सीता के निर्वासन और अग्नि परीक्षा के लिए पत्नीपीड़क राम को दुनिया की तमाम औरतेें माफ नहीं कर पा रही हैं। राम से ज़्यादा इतिहास में अन्य किसी ने सब कुछ खोया भी नहीं है। 

राम लोकतंत्र का थर्मामीटर और मर्यादा का बैरोमीटर हैं। वे जनतंत्रीय उपेक्षित प्रश्नों के अनाथालय है। वे कुतुबनुमा हैं। जिधर राम होते हैं, उधर ही उत्तर है। भारतीय दार्शनिक या़त्रा के मील के पत्थर हैं। उनके अक्स को समझे बिना साम्प्रदायिक दृष्टिकोणों से लड़ाई नहीं जीती जा सकती। राम पहले भारतीय के रूप में उत्तर दक्षिण एकता के नायक हैं। सदियों बाद कृष्ण पूरब पष्चिम एकता की धुरी बने। इस लिहाज से राम भारत के देशांश और  कृष्ण अक्षांश हैं। देशांशों से अक्षांशों की संख्या दुगुनी होती है। सुनते हैं राम विष्णु की आठ कलाओं और कृष्ण सोलह कलाओं से बने थे। राम एकांगी और कृष्ण बहुआयामी थे।

राम के पास सच का हथियार था। वे देश को राजनीतिक भाषा का ककहरा पढ़ाने वाले विश्वविद्यालय हैं। आज के राजनेता इस बीजगणित को कितना समझते हैं? रामनवमी के कार्यक्रम में राजभोगी मुख्य अतिथि के मुंह से मदिरा की गंध नहीं आए तो वह सहयोगियों की दृष्टि में तुच्छ लगता है। संसद में अश्लीलता का पिछले बरसों से मंत्रोच्चार हो रहा है। राम के लोकतंत्र को बचाए रखने का जनसंकट पैदा हो गया है। 

राम के लिए बेकार मध्यवर्गीय नवयुवकों की भीड़ के द्वारा धोबी के मकान पर हमला करवाने के बाद जिन्दाबाद के नारे लगवा लेना कठिन नहीं था। अदना व्यक्ति के द्वारा राजसत्ता की लक्ष्मी पर आधारहीन आरोप शंका के आधार पर लगाए जाने की खतरनाक शुरुआत का ही सफाया किए जाने की शुरुआत हो सकती थी। राम ने ऐसा नहीं किया। इतिहास में अपनी जगह सुरक्षित रखने के बदले राम ने नियमों और मर्यादाओं के नाम पर दाम्पत्य जीवन, पुत्रमोह, परिवार सुख और सत्ता की बलि चढ़ा दी। शिकायत करने का सार्वजनिक अधिकार राम की वजह से जिन्दा है। हर मुसीबतजदा, अन्यायग्रस्त, व्यवस्थापीड़ित व्यक्ति के दिल में प्रज्वलित साहस में राम की बाती है।

राम के साथ दोहरी जिम्मेदारियां थीं। वे राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री की भूमिका सम्हाले हुए थे। उच्चतम न्यायालय भी खुद थे। उन्होंने अपना सब कुछ नष्टकर लोकनीति और न्यायिक निष्कपटता सुनिश्चित की। वे अपने दरबार में किसी ऐसे व्यक्ति को गृहमंत्री बने नहीं रहने देते जिस पर धार्मिक अपराध करने सम्बन्धी अपराध कायम होता। एक व्यक्ति द्वारा लिए गए निर्णयों के खतरे ज्यादा होते हैं। इसके बावजूद राम ने उस अंतिम व्यक्ति से संवाद कर निर्णय किए जिसे रस्किन ने गांधी की चिन्ता के खाते में डाला था। सामन्तवादी व्याख्याकार प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार बताते हैं कि जिसे चाहें अपना मंत्री बनाए। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री रामदरबार की नकल करते मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता करते हैं। राम मन्दिर में धार्मिक व्यक्ति की शक्ल में सर झुकाने वाले राजनेता अपने काबीना मंत्रियों को सहयोगी समझने के बदले ‘यसमैन‘ बनाकर इतिहास में खुद को महिमामंडित करना चाहते हैं। यह राम का रास्ता नहीं है।

अपनी विद्या का गलत प्रयोग करने के बावजूद रावण के पास राम ने भाई लक्ष्मण को शिष्टाचार सीखने भेजा। राजनीति में कितने राम हैं जो अपने लक्ष्मणों को भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, बलात्कार, हत्या आदि के प्रकरणों से बचाने के लिए राजसत्ता का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे राम हैं जो अपने लक्ष्मणों से अपनी ही पार्टी के दुश्मनों को निपटने के लिए बयान दिलवाते हैं। फिर खुद मध्यस्थ की भूमिका अदा कर राम को धन्यवाद देते हैं कि उनका भी लक्ष्मण आज तक कम से कम आज्ञाकारी तो है।

राम परिवारवादी नहीं थे। लक्ष्मण और सीता को छोड़कर लंका विजय तक कोई रिश्तेदार उनके साथ नहीं था। उन्होंने दलितों का साथ लिया। आदिवासियों  को लोकतंत्र के युद्ध का साहसिक पुर्जा बनाया। राजनेता अपने परिवारजनों के कारण मारे जा रहे हैं। जीतने का कीर्तिमान रचने वाले, शराबी पुत्र के कुलक्षणों पर पर्दा डालने, सरकारी जंगलों की लकड़ी कटाई के आरोपों को लेकर नेता सांसत में हैं। सत्ताधीश खुद के खर्च से प्रायोजित मौसमी संस्थाओं की नकली उपाधियों से विभूषित अपनी रामलीला में रमे हैं। बुद्धिजीवियों को बीन बीनकर राज्य व्यवस्था बाहर कर रही है। अभियुक्त न्याय सिंहासन पर काबिज हैं। यशस्वी पिताओं द्वारा रचित ग्रन्थों के पठन, प्रकाशन तक की राजनेताओं को चिन्ता नहीं है। विद्वानों का स्थान नवरत्नों की शक्लों में सेवानिवृत्त, त्यागपत्रित और बर्खास्त नौकरशाही धीरे धीरे ले रही है। वे रामराज्य के धोबी की लोकभाषा नहीं बल्कि शासन का अहंकार बनते हैं।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news