सामान्य ज्ञान

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद
21-Apr-2021 12:21 PM
ज़हिर उद-दिन मुहम्मद

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद (जन्म-14 फरवरी 1483 ,निधन- 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था जिसका मूल मध्य एशिया था । वह भारत में मुगल वंश का संस्थापक था । वो तैमूर लंग का परपोता था और विश्वास रखता था कि चंगेज खां उसके वंश का पूर्वज था ।
 बाबर का जन्म फऱगना घाटी के अंदिजन नामक शहर में हुआ था जो अब उज्बेकिस्तान में है । हालांकि  बाबर का मूल संबंध मंगोलिया के बर्लास कबीले से सम्बन्धित था पर उस कबाले के लोगों पर फारसी तथा तुर्क जनजीवन का बहुत असर रहा था, वे इस्लाम में परिवर्तित हुए तथा उन्होने तुर्केस्तान को अपना वासस्थान बनाया । बाबर की मातृभाषा चागताई भाषा थी पर फ़ारसी, जो उस समय उस स्थान की आम बोलचाल की भाषा थी, में भी वो प्रवीण था । उसने चागताई में बाबरनामा के नाम से अपनी जीवनी लिखी ।
मंगोल जाति (जिसे फ़ारसी में मुगल कहते थे) का होने के बावजूद उसकी जनता और अनुचर तुर्क तथा फ़ारसी लोग थे । उसकी सेना में तुर्क, फारसी, पश्तो के अलावा बर्लास तथा मध्य एशियाई कबीले के लोग भी थे। 
कहा जाता है कि बाबर बहुत ही तगड़ा और शक्तिशाली था । ऐसा भी कहा जाता है कि सिर्फ व्यायाम के लिए वो दो लोगों को अपने दोनों कंधों पर लादकर उन्नयन ढाल पर दौड़ लेता था । लोककथाओं के अनुसार बाबर अपने राह में आने वाले सभी नदियों को तैर कर पार करता था । उसने गंगा को दो बार तैर कर पार किया । बाबर के चचेरे भाई मिजऱ्ा मुहम्मद हैदर ने लिखा है कि उस समय, जब चागताई लोग असभ्य तथा असंस्कृत थे तब उन्हें ज़हिर उद-दिन मुहम्मद का उच्चारण कठिन लगा । इस कारण उन्होंने इसका नाम बाबर रख दिया ।
बाबर के द्वारा मुगलवंश की नींव रखने के बाद मुगलों ने भारत की संस्कृति पर अपना अमिट छाप छोड़ी। कहा जाता है कि अपने पुत्र हुमायुं के बीमार पडऩे पर उसने अल्लाह से हुमायुं को स्वस्थ्य करने तथा उसकी बीमारी खुद को दिए जाने की प्रार्थना की थी । इसके बाद बाबर का स्वास्थ्य बिगड़ गया और अंतत: वो 1530 में 48 वर्ष की उम्र में मर गया । उसकी ईच्छा थी कि उसे काबुल में दफऩाया जाए पर पहले उसे आगरा में दफऩाया गया । लगभग नौ वर्षों के बाद शेरशाह सूरी ने उसकी इच्छा पूरी की और उसे काबुल में दफऩा दिया ।

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