संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दो बातें उनसे जिन्हें छत्तीसगढ़ की टीकाकरण नीति को लेकर शिकायत है टीका-आरक्षण की
03-May-2021 1:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दो बातें उनसे जिन्हें छत्तीसगढ़ की टीकाकरण नीति को लेकर शिकायत है टीका-आरक्षण की

देश भर में आज चुनाव की चर्चा चल रही है कि किस राज्य के विधानसभा चुनाव में किस पार्टी का क्या हाल रहा। उस पर लिखना बड़ा आसान और पढऩा दिलचस्प हो सकता है, लेकिन एक अधिक बड़ा मुद्दा देश में कोरोना के मोर्चे पर काबू पाने को लेकर है जिसमें देश के तमाम प्रदेश शामिल हैं, उस पर चर्चा अधिक जरूरी है। ऐसे में आज छत्तीसगढ़ को लेकर एक चर्चा जरूरी है जो कि यहां पर सत्तारूढ़ भूपेश सरकार के खिलाफ जमकर चलाई जा रही है । छत्तीसगढ़ सरकार ने तय किया है कि राज्य में सरकार के खरीदे हुए कोरोना-टीके पहले अंत्योदय परिवारों को लगाए जाएंगे यानी जो परिवार सबसे गरीब हैं, गरीबी रेखा के नीचे हैं,  उनको ये टीके सबसे पहले लगेंगे। जिस दिन यह फैसला सार्वजनिक किया गया उस दिन से भूपेश बघेल और कांग्रेस के बहुत से विरोधियों ने सोशल मीडिया पर अंधाधुंध यह लिखना शुरू किया कि अब टीकों का भी आरक्षण कर दिया गया है। और ऐसी बातों को पढक़र बिना फैसले के मतलब को जाने हुए, कई लोगों ने यह भी लिखना शुरू कर दिया कि यह पिछड़े वर्ग की राजनीति हो रही है या जातिगत आरक्षण हो रहा है। लेकिन राज्य सरकार का फैसला यह था कि जिन गरीब तबकों के पास, गरीबी रेखा के नीचे वाले राशन कार्ड हैं, वहां से टीकों की शुरुआत की जाए। 

सरकार का हो सकता है कि यह भी सोचना हो कि अधिक आय वर्ग के लोग निजी अस्पतालों में भी जाकर, भुगतान करके टीके लगवा सकेंगे। लेकिन हमें सरकार की सोच का नहीं मालूम है, हमें केवल सरकार की घोषणा का मालूम है, और उसके विरोध का मालूम है, इसलिए हम अपनी आज की बात को वहीं तक सीमित रखते हैं। इस प्रदेश में राज्य सरकार को अपने खर्च पर एक करोड़ 34 लाख से अधिक आबादी को टीके लगवाने हैं। उसे अपने पैसों से खरीदने हैं, कंपनियों से बाजार भाव के मुताबिक भाव तय करके खरीदने हैं, और इस अखबार का एक मोटा अंदाज यह है कि इतनी आबादी को दो-दो टीके लगाने में राज्य सरकार के करीब 1000 करोड़ रुपए लगेंगे। लेकिन बात फिर भी रुपयों की नहीं है क्योंकि जिस राज्य की सरकार पांच-दस हजार करोड़ रुपए कर्ज लेकर भी किसानों की कर्ज माफी करती है, और धान खरीदी पर खर्च करती है उसके लिए लोगों की जान बचाने के लिए 1000 करोड़ रुपए बहुत बड़ी रकम नहीं है, लेकिन मुद्दा इससे परे का है। 

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरह टीके देने को लेकर अपना हाथ खींच लिया है और राज्यों के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी है कि वे 18 से 44 वर्ष तक के लोगों को खुद टीके खरीदकर लगाएं, उससे यह स्थिति हो गई है कि राज्य आज टीका कंपनियों के सामने गिड़गिड़ाते हुए खड़े हैं, जो कि टीके सप्लाई करने की हालत में ही नहीं हैं, या निजी अस्पतालों को पहले महँगे में बेचना चाहती हैं। और केंद्र सरकार तो अपना हाथ खींच ही चुकी है। छत्तीसगढ़ की टीके खरीदने की कोशिश को देखें और उसका नतीजा देखें तो इस राज्य सरकार ने दोनों वैक्सीन कंपनियों को 25-25 लाख टीके सप्लाई करने का आर्डर भेजा है जिसमें से एक कंपनी ने मई के इस महीने में कुल 3 लाख टीके देने की क्षमता बतलाई है। नतीजा यह है कि एक करोड़ 34 लाख से अधिक की आबादी में से इस मई के महीने में कुल 3 लाख लोगों को टीके लग सकते हैं। और यह राज्य सरकार का तय किया हुआ नहीं है यह केंद्र सरकार का एकतरफा तय किया हुआ फैसला है कि 1 मई से 18 से 44 बरस के तमाम लोगों को टीके लगाए जाएंगे, और केंद्र सरकार ने ही अपना एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया है जिसमें अब तक करोड़ों लोग रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं। 

हम पहले एक से अधिक बार इस मुद्दे पर लिख चुके हैं कि जो टीके राज्य सरकार को खरीदने हैं, जो राज्य को लगाने हैं, वह कब और किस आयु वर्ग के लोगों को लगे इसके फैसले करने की केंद्र सरकार को क्या जरूरत थी ? हर राज्य अपनी-अपनी स्थिति के हिसाब से अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से यह तय करते कि उन्हें कहां से टीके लगाने की शुरुआत करनी है। छत्तीसगढ़ की हालत यह हो गई कि सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा। आज इस प्रदेश में मोदी सरकार ने एक करोड़ 34 लाख से अधिक लोगों को टीके की कतार में लगवा दिया और राज्य सरकार अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद मई में 3 लाख  टीके पाने वाली है। अब सवाल यह है कि इन 3 लाख की शुरुआत इतने बड़े तबके में कहां से की जाए, समंदर में एक लोटा पानी कहां से निकाला जाए कि वह खाली किया जा सके, कहां से शुरुआत की जाए ? कहीं ना कहीं से शुरुआत तो करनी थी। 

हमारी अपनी राय यह है कि राज्य सरकार को स्वास्थ्य कर्मचारियों और फ्रंटलाइन वर्करों के परिवारों को यह टीके पहले लगाने चाहिए क्योंकि उनके परिवार के लोग रोज अस्पताल जाते हैं, रोज सडक़ों पर पुलिस-ड्यूटी करते हैं, रोज एंबुलेंस चलाते हैं, रोज लाशों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं, और रोज नालियां साफ कर रहे हैं। जब ऐसा खतरनाक काम करके वे घर लौटते हैं तो जाहिर तौर पर घरवालों के लिए एक अधिक बड़ा खतरा लेकर जाते हैं। इसलिए हमारी अपनी सोच तो यह है कि इस प्रदेश के ऐसे परिवारों के करीब 15-20 लाख लोगों को सबसे पहले टीके लगाने चाहिए। लेकिन हमने अपनी यह सोच लिखी उसके पहले राज्य सरकार यह फैसला कर चुकी थी कि वह अंत्योदय कार्ड रखने वाले लोगों से इसकी शुरुआत करेगी। अब इस प्रदेश में करोड़ों की आबादी में दसियों लाख ऐसे लोग हैं जो कि इस तबके में आते हैं, और केंद्र सरकार की तय की हुई उम्र सीमा में भी आते हैं। अब अगर तीन लाख टीकों की शुरुआत सबसे गरीब तबके से की जाए तो उसमें कौन सा जातिगत आरक्षण हो गया है ? उसमें विरोध का ऐसा कौन सा मुद्दा भाजपा को या दूसरे सवर्ण तबके को दिख रहा है? यह बात समझने की जरूरत है कि समाज में सबसे कम आय वाले लोग निजी अस्पतालों में जाकर खरीद कर टीका लगवाने की क्षमता सबसे कम रखते हैं इसलिए अधिक आय के लोगों को तो निजी अस्पतालों के भरोसे तब तक छोड़ा जा सकता है जब तक राज्य सरकार सबसे गरीब लोगों को टीका लगाने का अपना जिम्मा पूरा ना कर ले। राज्य सरकार ने तमाम एक करोड़ 34 लाख लोगों को टीका लगाने की बात कही है जिसमें इस प्रदेश के अरबपति भी आते हैं। लेकिन जब ऊंट के मुंह में जीरे सरीखी सप्लाई हो तो आखिर सरकार किसी न किसी तबके से तो शुरुआत करेगी। इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार को इस बात की तोहमत देना कि वह कोई जातिगत आरक्षण कर रही है, या इसमें आरक्षण कर रही है यह निहायत फिजूल की बात है। 

भाजपा के जो लोग छत्तीसगढ़ सरकार पर टीका-आरक्षण लगाने की बात कहकर उसका विरोध कर रहे हैं उनको यह देखने की जरूरत है कि टीके का पूरा कार्यक्रम तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तरह-तरह के आरक्षण के साथ ही शुरू किया। पहले 60 बरस के ऊपर के लोगों के लिए किया, फिर स्वास्थ्य कर्मचारियों और फ्रंटलाइन वॉरियर्स के लिए किया, उसके बाद 45 वर्ष से ऊपर के लिए किया, तो भाजपा के लोगों को यह भी समझने की जरूरत है कि क्या नरेंद्र मोदी की सरकार ने बिना आरक्षण के टीके लगा दिए? आज अगर छत्तीसगढ़ की सरकार सबसे गरीब को सबसे पहले टीके देने की बात कर रही है तो वह सही बात है, उसमें हमारी राय का एक संशोधन हो जाता तो बेहतर होता, लेकिन अगर उस पैमाने पर गए बिना अगर सरकार केवल अंत्योदय कार्ड के आधार पर एक आसान शिनाख्त करके यह टीके लगाने जा रही है तो इसमें गलत क्या है? इस बात को लेकर सरकार के ऊपर एक जातिवादी आरक्षण करने का आरोप लगाना तो यह एक नफरत फैलाने की बात अधिक है अगर गरीब कुछ खास कुछ खास जातियों के ही हैं तो विरोध करने वाले लोगों को यह देखना चाहिए कि कुछ खास जातियां इतनी गरीब क्यों है ? आर्थिक आधार पर तय किए गए अंत्योदय कार्ड तो उस आयवर्ग के सवर्ण लोगों के पास भी होंगे. जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उनसे हम उम्मीद करते हैं कि सोशल मीडिया पर वे कोई बेहतर फार्मूला बताएं। आज मई के महीने में छत्तीसगढ़ सरकार को जो टीके मिलने वाले हैं अगर यही रफ्तार जारी रहेगी तो 40 महीने में एक करोड़ 33 लाख टीके मिल सकेंगे और यह बात तब है जब यह राज्य कंपनियों के मांगे हुए मनमाने दाम देकर टीके लेने को तैयार है.  फिलहाल छत्तीसगढ़ सरकार ने जो तय किया है उस पर हमने अपनी एक राय जोड़ी है, और सरकार अगर उस राय को नहीं भी सुनती है और वह अंत्योदय से शुरू करती है तो भी हम सरकार की इस नीति का समर्थन करते हैं।

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