संपादकीय
हिंदुस्तान जैसे लोकतंत्र में किसी आम चुनाव के बाद बहुमत से आई हुई किसी पार्टी या गठबंधन की सरकार के सामने यह आजादी रहती है कि वह संसद में अपने बाहुबल के अनुपात में जो-जो फैसले लेना चाहे वे लेती रहे, और कमजोर हो चुके विपक्ष को जितना अनसुना करना है उतना करती रहे, लेकिन आजादी का ऐसा इस्तेमाल लोकतंत्र नहीं कहलाता। लोकतंत्र तो बाहुबल के बावजूद विपक्ष को सुनना, देश के मीडिया को सुनना, देश के मुखर तबके की बातों को सुनना, इसे लोकतंत्र कहते हैं। लेकिन मोदी सरकार के साथ दिक्कत यह है कि उसे पहले तो लोकसभा में जिस तरह का स्पष्ट बहुमत एनडीए गठबंधन के अलावा भी भारतीय जनता पार्टी के स्तर पर हासिल था, वह अभूतपूर्व था और उसने मानो मोदी सरकार को अपने मन का सब कुछ करने की एक आजादी दे दी थी। अब धीरे-धीरे एक-एक राज्य जीतते हुए एनडीए के पास राज्यसभा में भी इतना बहुमत हो गया है कि वह अपने अधिकतर कानूनों को वहां भी पास करवा सकती है। नतीजा यह निकला कि पिछले बरस तीन ऐसे किसान कानून ध्वनिमत से पास करा दिए गए जिन्हें लेकर विपक्ष का बहुत विरोध आखिरी तक जारी था। जिसे लेकर देश के इतिहास का एक सबसे मजबूत किसान आंदोलन चल रहा था और आज भी चल रहा है। ऐसे में कुछ एक खबरें हक्का-बक्का करती हैं।
पिछले बरस यह खबर आई कि साढ़े आठ हजार करोड़ रुपयों से एक ऐसा विमान खरीदा गया है जिससे प्रधानमंत्री का सफर अधिक असुरक्षित और अधिक आरामदेह हो जाएगा। इस खर्च में मौजूदा विमान को आधुनिक बनाना भी शामिल है। ऐसा भी नहीं कि प्रधानमंत्री को अभी किसी खराब विमान में चलना पड़ता है, या इतने महंगे विमान के बिना भारतीय प्रधानमंत्री का काम नहीं चल सकता था। इसके बाद अभी जब पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी से, वैक्सीन की कमी से, दवाइयों की कमी से, अस्पतालों की कमी से, और हर किस्म की कमी से, बड़ी संख्या में लोग बेमौत मारे जा रहे हैं, उस बीच यह खबर आती है कि प्रधानमंत्री के लिए अगले बरस एक नया बंगला बनकर तैयार हो रहा है और केंद्र सरकार ने उसके लिए 2022 की समय सीमा तय कर दी है। जहां देश के लोगों को सांस नहीं मिल रही वहां प्रधानमंत्री के बंगले के लिए समय सीमा तय हो रही है और इसे घोषित किया जा रहा है! यह सब इस अंदाज में हो रहा है मानो प्रधानमंत्री का आज का बंगला असुविधा का था और उनके लिए या उनके मोर के लिए यह बंगला छोटा पड़ रहा था, या वहां हिफाजत की कोई कमी थी। यह खबर ऐसे वक्त पर आई है जब दिल्ली में सेंट्रल विस्ता नाम का 22 हजार करोड़ का एक ऐसा प्रोजेक्ट चल रहा है जिसमें संसद को नई इमारत मिलने जा रही है और प्रधानमंत्री को यह नया बंगला! अभी तो कुछ महीनों के लिए इस खाली जमीन पर निर्माण के बजाय इसे श्मशान बना देना था, ताकि लोग ठीक से जल तो सकें !
देश के बहुत सारे लोगों के साथ-साथ बंगाल में फिर से लौटकर आई आज की सबसे कामयाब नेता ममता बनर्जी ने चुनाव जीतने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखकर कहा है कि आज जब पूरे देश में लोगों को वैक्सीन की सबसे ज्यादा जरूरत है, जब केंद्र सरकार को 30000 करोड़ रुपए वैक्सीन के लिए निकालने चाहिए, उस वक्त यह सरकार संसद की नई इमारत बनाने के लिए 20000 करोड़ रुपए खर्च कर रही है? आज देश बहुत ही तकलीफ में है, एक-एक करके कई मुख्यमंत्रियों ने ऐसे असुविधा के सवाल प्रधानमंत्री के सामने रखे हैं कि जब देश के लोगों को मुफ्त में वैक्सीन देनी चाहिए उस वक्त यह सरकार सेंट्रल विस्ता नाम के निहायत गैरजरूरी प्रोजेक्ट पर इतना बड़ा खर्च करने जा रही है। देश के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगाकर देख ली है और वहां से पिछले मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकाल में ऐसी तमाम अपील खारिज कर दी गई हैं और केंद्र सरकार को सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट को बनाने की छूट दी गई।
आज हालत यह है कि गरीब भूखे मर रहे हैं, लोगों के पास काम नहीं है, बाजार बंद हैं, कंस्ट्रक्शन बंद हैं, लेकिन इस सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवा घोषित करते हुए उस पर काम जारी रखा गया है। जब पूरे देश में तमाम काम चल रहे थे उस वक्त भी संसद-सत्र को खारिज करवा दिया गया था कि कोरोना के खतरे को देखते हुए संसद का सत्र ठीक नहीं होगा। उस वक्त तो देश में छोटे-छोटे से काम भी चल रहे थे, लेकिन संसद को गैरजरूरी मान लिया गया था। संसद का सत्र गैरजरूरी है लेकिन संसद की अच्छी भली बिल्डिंग की जगह 20000 करोड़ रुपए की नई इमारत का प्रोजेक्ट जरूरी है, यह बात ही लोगों को हक्का-बक्का कर देती है। आज जब देश में ऑक्सीजन की कमी है, दवाई नहीं है, अस्पताल नहीं है, जब दुनिया के दर्जनों देश हिंदुस्तान की मदद के लिए सामान भेज रहे हैं, और तो और पाकिस्तान जैसे बदहाल देश भी अपनी तरफ से पूरी मेडिकल मदद करने का प्रस्ताव भारत को भेज चुके हैं, पाकिस्तान के आम लोग भारत के आम लोगों को शुभकामनाएं भेज रहे हैं, उस वक्त अगर सरकार प्रधानमंत्री के हवाई जहाज, प्रधानमंत्री के बंगले, प्रधानमंत्री के गृहप्रदेश में तीन हजार करोड़ रुपए से सरदार पटेल की प्रतिमा बनवाने के बाद, 20 हजार करोड़ रुपए से नया संसद भवन वगैरह बनाने में लगी है तो लोग हक्का-बक्का हैं कि केंद्र सरकार को इस देश की जनता ने सरकार चलाने के लिए वोट दिया है या ऐसी बेरहमी करने के लिए वोट दिया है?
यह सिलसिला पूरी तरह से संवेदना शून्य है, और इतिहास इसे बुरी तरह दर्ज करके रखेगा। वैसे भी लोग इस बात को खुलकर लिख रहे हैं और आपस में इसकी चर्चा कर रहे हैं कि सरदार पटेल की प्रतिमा की जगह कितने नए एम्स बन सकते थे, कितने वेंटिलेटर आ सकते थे, कितनी जिंदगियों को बचाया जा सकता था, ऐसी तमाम तुलना लोग कर रहे हैं और ऐसे तमाम हिसाब लोग लगा रहे हैं। वैसे तो भारतीय संसदीय लोकतंत्र में एक बार जिसे बहुमत देकर संसद में भेज दिया गया, उसका सब कुछ बर्दाश्त करना संवैधानिक मजबूरी है, लेकिन यह लोकतांत्रिक मजबूरी बिल्कुल नहीं है। लोकतंत्र तो चुनाव प्रणाली से या संसदीय व्यवस्था से बहुत ऊपर की एक चीज होती है जिसमें जनमत का सम्मान भी एक बात होती है, और आज जब यह देश दूसरे देशों से आ रही ऑक्सीजन से अपने लोगों की सांसें जारी रखने पर मजबूर हुआ है, उस वक्त यह देश 20000 करोड़ रुपए का यह शान-शौकत वाला प्रोजेक्ट जबरदस्ती जारी रखकर दानदाता देशों को क्या दिखाना चाह रहा है? अगर इस देश के पास सचमुच संसद की एक निहायत गैरजरूरी इमारत के लिए और उसके आसपास की दूसरी इमारतों के लिए 20000 करोड़ रुपए की फिजूल की रकम है, तो फिर उसे दूसरे छोटे-छोटे देशों से मदद क्यों लेनी चाहिए? मदद देने और लेने में कोई दिक्कत नहीं होना चाहिए लेकिन जो देश आज दूसरे देशों से मदद ले रहा है उसे अपनी फिजूलखर्ची पर तो काबू पाना चाहिए? आज जहां लाशों को जलने के लिए जगह नहीं मिल रही, जहां कब्रिस्तानों में दफन होने के लिए 2 गज जमीन नहीं मिल रही, वहां पर कई बंगलों के अहाते में अकेले रहने वाले प्रधानमंत्री, एक और अधिक शान शौकत वाले नए बंगले में रहने जाएं, इससे किसका कलेजा ठंडा होगा? अगर प्रधानमंत्री निवास के मोर से भी पूछा जाए वह भी इससे खुश नहीं होगा।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)