राजनीति
अनिल दुबे
भोपाल, 4 दिसंबर (भाषा)। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में लाभ मिलने की कांग्रेस की उम्मीदें उस समय धराशायी हो गईं जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उन 21 सीटों में से 17 सीटें जीत लीं जहां से राहुल गांधी के नेतृत्व वाली यह यात्रा गुजरी थी।
भाजपा ने रविवार को मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 163 सीटें जीतकर दो-तिहाई बहुमत हासिल कर लिया जबकि कांग्रेस 66 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही।
पिछले साल 23 नवंबर से चार दिसंबर के बीच ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने मप्र के मालवा-निमाड़ क्षेत्र के छह जिलों, बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, इंदौर, उज्जैन और आगर मालवा से होकर 380 किलोमीटर की दूरी तय की जिसमें कुल मिलाकर 21 सीटें हैं।
भाजपा ने 2018 में इनमें से 14 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस सात सीटों पर विजयी रही। इस बार 2023 के चुनावों में भाजपा ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर 17 कर ली और कांग्रेस चार सीटों पर सिमट गई।
भाजपा की अर्चना चिटनीस ने बुरहानपुर, मंजू दादू ने जिले की नेपानगर सीट से जीत हासिल की। बुरहानपुर सीट 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह शेरा ने जीती थी जो इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर असफल रहे।
कांग्रेस की सुमित्रा कास्डेकर ने 2018 में नेपानगर सीट जीती, लेकिन बाद में उन्होंने पाला बदल लिया और 2020 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनी गईं। भाजपा ने यह सीट बरकरार रखी है।
भाजपा के नारायण पटेल और छाया मोरे भी क्रमश: मांधाता और पंधाना से जीते।
पंधाना सीट पर 2018 में भाजपा के राम दांगोरे ने जीत हासिल की थी, जबकि मांधाता सीट पर कांग्रेस के नारायण पटेल जीते थे। पटेल बाद में भाजपा में चले गए और 2020 में उपचुनाव जीते। उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी ने फिर से टिकट दिया।
खरगोन जिले में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ बड़वाह और भीकनगांव विधानसभा सीट से होकर गुजरी। बड़वाह से भाजपा के सचिन बिड़ला जीते तो भीकनगांव से कांग्रेस प्रत्याशी झूमा सोलंकी विजयी रहीं। 2018 में दोनों सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। बड़वाह विधायक सचिन बिड़ला बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ इंदौर जिले की सभी आठ सीटों पर पहुंची। यहां सभी आठ सीटों पर भाजपा विजयी रही।
भाजपा की उषा ठाकुर और मधु वर्मा क्रमश: महू और राऊ से जीतीं।
इंदौर-1 सीट पर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मौजूदा विधायक संजय शुक्ला को हराकर जीत हासिल की।
भाजपा के रमेश मेंदोला (इंदौर-2), गोलू शुक्ला (इंदौर-3), मालिनी गौड़ (इंदौर-4) और महेंद्र हार्डिया (इंदौर-5) भी जीते हैं।
इसके अलावा, 2020 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए तुलसी सिलावट ने सांवेर सीट से जीत हासिल की।
पिछले साल चार दिसंबर को राजस्थान में प्रवेश करने से पहले ‘भारत जोड़ो यात्रा’ आगर मालवा जिले की आगर मालवा और सुसनेर विधानसभा सीटों से गुजरी थी।
आगर मालवा सीट पर भाजपा के माधव सिंह ने जीत हासिल की जबकि सुसनेर सीट पर कांग्रेस के भैरो सिंह को जीत मिली।
भाजपा ने 2018 में आगर मालवा विधानसभा सीट जीती लेकिन 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस से हार गई, जहां मौजूदा विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन के कारण उपचुनाव जरूरी हो गया था। सुसनेर विधानसभा सीट 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार विक्रम सिंह राणा ने जीती थी, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा के मोहन यादव और अनिल जैन ने क्रमश: उज्जैन दक्षिण और उज्जैन उत्तर सीट से जीत हासिल की।
घट्टिया से भाजपा के सतीश मालवीय और तराना सीट से कांग्रेस के महेश परमार विजयी हुए। महिदपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के दिनेश जैन जीते।
भाजपा ने 2018 में उज्जैन जिलों की पांच में से चार सीटें जीतीं, कांग्रेस को केवल एक सीट पर जीत मिली।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के मध्य प्रदेश के यात्रा मार्ग पर कांग्रेस ने जो चार सीटें जीतीं, वे हैं भीकनगांव, तराना, महिदपुर और सुसनेर।
कांग्रेस नेताओं ने दावा किया था कि इस साल मई में कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का कारण ‘भारत जोड़ो यात्रा’ थी।
दक्षिणी राज्य में पार्टी ने उन 20 विधानसभा सीटों में से 15 पर जीत हासिल की जहां से राहुल गांधी के नेतृत्व वाली यात्रा गुजरी।
बाद में इस साल अक्टूबर में कांग्रेस ने लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद करगिल के चुनावों में अपनी जीत का श्रेय यात्रा को दिया।
सलमान रावी
इस साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा के चुनाव होंगे. इन चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने दो राज्यों में अपने उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी है, जिससे हलचल काफ़ी बढ़ गई है.
हालांकि अभी कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है, लेकिन चुनाव की तारीख़ की घोषणा होने के काफ़ी पहले भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में 39 और छत्तीसगढ़ में 21 उमीदवारों की लिस्ट जारी कर अटकलों के बाज़ार को और भी ज़्यादा गर्म कर दिया है.
मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं जबकि छत्तीसगढ़ में 90. राजस्थान की विधानसभा की 200 सीटें हैं.
कुछ विश्लेषक इसे भारतीय जनता पार्टी की ‘रणनीति’ मान रहे हैं तो कुछ इस क़दम की अपनी तरह से व्याख्या भी कर रहे है. कुछ इसे ‘जल्दबाज़ी में उठाया गया क़दम’ भी कह रहे हैं.
हिमाचल और कर्नाटक में हुए विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत को भी कुछ विश्लेषक इस जल्दबाज़ी का कारण मान रहे हैं.
ये चुनाव, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों के लिए बहुत मायने रखते हैं क्योंकि पिछले विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल हुई थी.
इन राज्यों में किसी तीसरी राजनीतिक शक्ति की ग़ैर-मौजूदगी में मुक़ाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच आमने-सामने का है.
जहाँ छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें पाँच सालों तक चलीं, वहीं मध्य प्रदेश में उनकी सरकार तब गिर गई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संगठन से बग़ावत करके अपने समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया.
कांग्रेस के 22 विधायक उनके साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे, सरकार गिर गई जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी फिर से मध्य प्रदेश की सत्ता में लौट आई.
आम चुनाव पर कितना असर?
हिंदी पट्टी के विधानसभा के चुनावों के नतीजों पर पूरे देश की नज़र रहेगी क्योंकि इनके परिणाम आते ही आने वाले लोकसभा के चुनावों में क्या कुछ होगा इसके कुछ तो संकेत मिलने लगेंगे.
तो क्या ये मान लिया जाए कि इन राज्यों के परिणामों से समझा जा सकेगा कि आम चुनावों में ऊँट किस करवट बैठ सकता है?
कांग्रेस पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ऐसा नहीं मानते.
वो कहते हैं कि विधानसभा के चुनावों का ‘वोटिंग पैटर्न’ आम चुनावों से बिलकुल अलग होता है और ज़रूरी नहीं है कि राज्यों के चुनावों के नतीजों से इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सके कि कुछ ही महीनों के बाद होने वाले आम चुनावों पर इनका कितना असर पड़ेगा.
किदवई ने वर्ष 2014 के आम चुनावों का उदाहरण दिया और कहा, “उस समय नरेंद्र मोदी की लहर पर सवार भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनावों में एक तरह से ‘स्वीप’ कर दिया था. भारी बहुमत के साथ केंद्र में उसकी सरकार बनी लेकिन उसके तुरंत बाद दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत मिला था. तो ये कहना मुश्किल है कि पांच राज्यों और ख़ास तौर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा के चुनावों के परिणामों का असर आम चुनावों पर पड़ेगा.”
उन्होंने ओडिशा की भी मिसाल दी जहाँ विधानसभा में तो बीजू जनता दल यानी बीजेडी जीतती है जबकि लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को अच्छी-ख़ासी सीटें मिल जाती हैं.
राजनीतिक टिप्पणीकार विद्याभूषण रावत अलग राय रखते हैं. वो कहते हैं कि 2018 कई राज्यों के विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी लेकिन वर्ष 2019 में हुए आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को भारी सीटें इसलिए मिलीं थीं कि कांग्रेस में अंदरूनी कलह चल रही थी. मगर वो कहते हैं, इस बार के विधानसभा के चुनाव बहुत मायने रखेंगे और उसके नतीजे भी आम चुनावों को प्रभावित करेंगे.
कैसे? ये पूछे जाने पर वो कहते हैं, “पिछले आम चुनावों में कांग्रेस कमज़ोर थी. राहुल गाँधी के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे थे, मगर इन कुछ एक सालों में राहुल में राजनीतिक परिपक्वता देखने को मिली. अगर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन रहता है या वो जीत हासिल करती है तो जो विभिन्न विपक्षी दलों का नया गठबंधन, जो राष्ट्रीय स्तर पर बना है, उसमें कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी और इससे भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. लेकिन अगर कांग्रेस इन तीन राज्यों में कामयाब नहीं होती है तो आम चुनावों में भाजपा को एक तरह से ‘वाक ओवर’ मिल जाएगा यानी दिल्ली की सत्ता में फिर वापसी का उनका रास्ता आसान हो जाएगा.”
राजनीतिक विश्लेषक और उज्जैन स्थित ‘मध्य प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेस एंड रिसर्च’ के निदेशक यतिंदर सिंह सिसोदिया कहते हैं कि इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि गुजरात और उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा में अगर भाजपा को सबसे ज़्यादा सीटें मिलीं थीं तो वो इसी इलाके से मिलीं थीं.
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, “अगर तीन राज्यों में भाजपा का ख़राब प्रदर्शन होता है तो फिर उसके पास सिर्फ़ उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्य ही रह जायेंगे. इन तीन राज्यों में सिर्फ़ दो ही राजनीतिक दलों का दबदबा रहा है इसलिए लोकसभा चुनावों में विपक्ष की एकता पर यहाँ के नतीजों का असर ज़रूर पड़ेगा.”
सिसोदिया के अनुसार लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के दो कार्यकाल उसके इतिहास के सबसे स्वर्णिम कार्यकाल हैं जब पूर्ण बहुमत के साथ वो सत्ता में बनी रही. वहीं कांग्रेस के लिए आज़ादी के बाद ये राजनीतिक दौर सबसे निचले पायदान पर है इसलिए वो कहते हैं कि कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए इन विधानसभा के चुनावों के नतीजे बहुत मायने रखेंगे.
राजस्थान
राजस्थान की राजनीति बड़े दिलचस्प मोड़ पर आकर खड़ी हुई है जहाँ कांग्रेस के नेता सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच रस्साकशी चलती ही आ रही है. वहीं भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को पार्टी ने चुनाव की किसी भी समिति से दूर ही रखा है. दोनों प्रमुख संगठनों की अंदरूनी कलह अब जनता के सामने है.
वैसे जानकार कहते हैं कि राजस्थान में दोनों ही दलों का पलड़ा ऊपर-नीचे होता रहता है, राजस्थान की जनता ने ऐतिहासिक तौर पर लंबे समय से किसी पार्टी को दूसरा मौक़ा नहीं दिया है.
मसलन, वर्ष 2008 और 2018 के आम चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी लेकिन 200 सीटों वाली विधानसभा में उसे बहुमत के लिए ज़रूरी 101 सीटें नहीं मिल पाई थीं. निर्दलीय और दूसरे छोटे दल के विधायकों के समर्थन से कांग्रेस ने सरकार चलाई.
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि जहाँ वर्ष 2008 में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच वोटों का अंतर सिर्फ़ 3 प्रतिशत था, ये अंतर वर्ष 2018 में सिर्फ़ एक प्रतिशत पर आ गया था, यानी कांटे की टक्कर.
लेकिन जब वर्ष 2013 में भारतीय जनता पार्टी को जीत हासिल हुई थी तो उस समय दोनों दलों के बीच वोटों का अंतर 10 प्रतिशत का था, तब कांग्रेस को सिर्फ़ 21 सीटें मिलीं थीं जबकि भारतीय जनता पार्टी की झोली में 163 सीटें आयीं थी. ये प्रचंड बहुमत था.
राजस्थान में फिलहाल दोनों ही दल अपने पत्ते खोलने में कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखा रहे हैं और एक एक क़दम बहुत नाप-तौलकर रख रहे हैं. वैसे भी राजस्थान में हर पांच सालों के बाद सत्ता परिवर्तन का एक रिवाज चला आ रहा है और विश्लेषक कहते हैं कि इसलिए कांग्रेस के सामने इस बार के चुनावों में काफ़ी चुनौतियां हैं, पार्टी की अंदरूनी कलह जो सार्वजनिक है और सत्ता विरोधी भावना भी है.
मध्य प्रदेश
भारतीय जनता पार्टी ने जिन 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है इनमें अधिकतर वो सीटें हैं जिन पर क्षेत्र के दिग्गजों ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की है. इनमें 38 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं जबकि एक सीट बहुजन समाज पार्टी के पाले में है. ये इलाके मूलतः आदिवासी बहुल या अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्ग की ज़्यादा आबादी वाले हैं.
प्रदेश कांग्रेस कमिटी के मीडिया प्रकोष्ठ के अध्यक्ष केके मिश्रा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि जिन सीटों पर उम्मीदवारों की सूची भाजपा ने जारी की है ये वो सीटें हैं जिन पर कांग्रेस के मौजूदा विधायक हैं. और सभी अपने-अपने क्षेत्र में बड़ा प्रभाव रखते हैं जैसे राऊ की सीट से जीतू पटवारी जो राहुल गाँधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' में उनके साथ आगे-आगे नज़र आए.
इसी तरह कसरावद से पूर्व मंत्री सचिन यादव, सोनकच्छ से सज्जन सिंह वर्मा और झाबुआ से मध्य प्रदेश में कद्दावर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया जैसे विधायक हैं जिन्हें हरा पाना मुश्किल है.
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता हितेश वाजपेयी पार्टी के इस क़दम को ‘चुनावी रणनीति’ की संज्ञा देते हुए स्वीकार करते हैं कि ये वो सीटें हैं जहां उनके उम्मीदवारों का अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा है.
वो कहते हैं, “इन सीटों पर कांग्रेस के जीते हुए विधायकों को चुनाव की तैयारी करने का पर्याप्त समय मिला इसलिए हमने भी इन सीटों पर उम्मीदवारों की सूची इसलिए जारी कर दी ताकि वो कांग्रेस से लोहा लेने के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दें. हर चुनाव की अपनी अलग तासीर होती है. उसी के हिसाब से चुनाव लड़ने की रणनीति भी बनाई जाती है. हम भी ऐसा ही कर रहे हैं.”
वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार से सबक़ लेते हुए भाजपा हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों में ‘किसी तरह का जोखिम’ नहीं उठाना चाहती है.
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, “संभवत: इसीलिए चुनाव आयोग ने मतदान की तारीक़ों की बेशक घोषणा नहीं की हो, दो राज्यों में प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करके भाजपा यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस से बहुत आगे है.”
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में पिछले विधानसभा चुनावों में यानी 2018 में कांटे की टक्कर थी. वो बात और है कि कांग्रेस की झोली में 114 सीटें आयीं थीं जबकि भाजपा को 109 सीटें मिलीं थीं लेकिन दोनों ही दलों का ‘वोट शेयर’ लगभग बराबर का ही था, भाजपा का वोट शेयर 41.02 प्रतिशत था, वहीं कांग्रेस का 40.89 प्रतिशत था.
लेकिन पूर्ववर्ती चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर का भारी अंतर रहा है. यतिंदर सिंह सिसोदिया कहते हैं कि वोट शेयर में सिर्फ़ एक प्रतिशत अंतर ही कई सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकता है इसलिए दोनों ही दल पूरी ज़ोर आज़माइश कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़
पिछले विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार इतनी करारी थी कि वो 90 में से 15 सीटों पर सिमट गई थी. वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए इस प्रदेश में भाजपा की इतनी करारी हार पहले कभी नहीं हुई थी.
छत्तीसगढ़ में पिछले विधान सभा के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर भी बहुत ज़्यादा नीचे गिरा. 2018 के विधानसभा के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर घटकर 32.29 पर आ गया था जबकि कांग्रेस ने 68 सीटें जीतीं थीं और उसका वोट शेयर 43.04 था.
इससे पहले 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत हुई थी मगर कांग्रेस के साथ उसकी कांटे की टक्कर रही.
चुनावों की घोषणा से पहले ही भाजपा ने 21 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है जिसमे सबसे महत्वपूर्ण नाम है सांसद विजय बघेल का जिनको पाटन विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है. ये सीट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले विधानसभा चुनाव में जीती थी. विजय बघेल दुर्ग से भाजपा के सांसद हैं और वो कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रिश्तेदार भी हैं.
दूसरी सीट है रामानुजगंज की जहां राज्यसभा के सांसद रहे चुके रामविचार नेताम को पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किया है. नेताम क़द्दावर आदिवासी नेता हैं और वो भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमिटी के प्रवक्ता आरपी सिंह कहते हैं कि मध्य प्रदेश की तरह ही भाजपा ने उन सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा की है जहाँ वे हार गए थे.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने इन उम्मीदवारों को ‘बलि के बकरे’ की संज्ञा दी और दावा किया कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस ‘सबसे ज़्यादा मज़बूत’ स्थिति में है.
इस पर छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता अजय चंद्राकर का कहना था कि संगठन ने इन सीटों पर पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा की है ताकि उन्हें तैयारी करने का पूरा मौक़ा मिले. वो कहते हैं कि विजय बघेल को उम्मेदवार बनाए जाने के बाद अब देखना ये होगा कि मुख्यमंत्री उसी सीट से लड़ते हैं या वो अपने लिए कोई दूसरी सीट ढूंढेंगे.
हालांकि पहली सूची के बाद छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश दोनों जगह भाजपा के अंदर से विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं. मध्य प्रदेश में तो पार्टी के नेताओं ने सड़क पर उतारकर विरोध प्रदर्शन भी किया है.
वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना कहते हैं कि इसीलिए भाजपा ने इतने पहले सूची जारी की है ताकि विरोध से समय रहते निपटा जा सके. उनका कहना है कि अगर आखिरी क्षणों में सूची जारी होती तो विद्रोह और विरोध से संगठन को निपटना मुश्किल हो जाता. (bbc.com)
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली, 20 अगस्त । अगले साल होने वाले लोक सभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने अपनी तैयारी तेज कर दी है। विपक्षी एकता और एकजुटता की संभावनाओं के बीच भाजपा देशभर में अपने वर्तमान सांसदों का रिपोर्ट कार्ड तैयार कर फिर से चुनाव जीत सकने वाले सांसदों की लिस्ट को अंतिम रूप देने में जुटी है।
दरअसल, 2019 के पिछले लोक सभा चुनाव में भाजपा को 303 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वर्तमान में लोक सभा में भाजपा के पास 301 सांसद हैं लेकिन सूत्रों की मानें तो इनमें से 65 से ज्यादा सांसदों की रिपोर्ट कार्ड बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में एंटी-इनकंबेंसी से बचने के लिए भाजपा इन सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने यानी वर्तमान सांसदों का टिकट काटने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इनमें से कुछ सांसदों का संसदीय क्षेत्र भी बदला जा सकता है।
आपको याद दिला दें कि मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर भाजपा ने इसी वर्ष 30 मई से 30 जून तक देशभर में एक विशेष जनसंपर्क अभियान चलाया था, जिसमें पार्टी के सभी सांसदों को जुट जाने को कहा गया था। पार्टी के कई सांसदों ने इस कार्यक्रम में पूरे मन से भाग नहीं लिया, जिसकी वजह से भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को वर्चुअली बैठक कर उन सांसदों को फटकार भी लगानी पड़ी थी। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाजपा संसदीय दल की बैठक में कई बार सांसदों को फटकार लगाते हुए यह कह चुके हैं कि या तो वो अपना रवैया बदलें या फिर बदले जाने के लिए तैयार रहें।
पिछले कुछ महीनों के दौरान देश भर में पार्टी संगठन द्वारा टिफिन बैठक सहित, कई अन्य महत्वपूर्ण अभियान चलाए गए, उसमें भी कई सांसद पार्टी की उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं जुटा पाए थे।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो, संघ नेताओं से बहुत करीबी रिश्ते रखने वाले पार्टी के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री अगर अपना प्रदर्शन नहीं सुधार पाते हैं तो इस बार पार्टी उनका टिकट भी काट सकती है। एक जमाने में काफी चर्चित रह चुके और वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री एक हाई प्रोफाइल सांसद से उनके संसदीय क्षेत्र के तमाम विधायक, मेयर और संगठन के बड़े नेता नाराज चल रहे हैं। देश के हाई प्रोफाइल परिवार से जुड़े एक भाजपा सांसद को यह फीडबैक दे दिया गया है कि इस बार उन्हें टिकट तभी दिया जाएगा जब वह पार्टी के प्रति अपना रवैया बदलते हुए स्वयं टिकट मांगें।
2019 के लोक सभा चुनाव में विपक्ष के हाई प्रोफाइल नेताओं को हराने वाले कई सांसदों को भी इस बार अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में जाकर लोगों से संपर्क करने और स्थानीय संगठन के नेताओं से बेहतर समन्वय स्थापित करने को कहा गया है। संदेश बिल्कुल साफ है कि अगर उनकी रिपोर्ट कार्ड में सुधार नहीं हुआ तो पार्टी उनका टिकट काटने में भी संकोच नहीं करेगी।
उत्तर प्रदेश से जिन सांसदों पर टिकट कटने की तलवार लटक रही है, उसमें कई ऐसे सांसद भी हैं जो वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा ने चुनाव जीत सकने वाले कई ऐसे नेताओं की भी अलग से एक लिस्ट बनाई है जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश में विधायक हैं और उनमें से कई योगी सरकार में मंत्री हैं या योगी सरकार में पहले मंत्री रह चुके हैं। यूपी की कई सीटों पर पार्टी अपने वर्तमान सांसदों का टिकट काटकर इन्हें चुनावी मैदान में उतार सकती है।
बिहार की बात करें तो पार्टी अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले एक वर्तमान केंद्रीय मंत्री का टिकट भी 2024 के लोक सभा चुनाव में काट सकती है। हालांकि वह अपना संसदीय क्षेत्र बदलने की गुहार आलाकमान से लगा रहे हैं। बिहार से टिकट कटने वाले सांसदों की लिस्ट में तीन पूर्व केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। बिहार में लोक सभा की 40 में से सभी 40 सीट जीतने के मिशन में जुटी भाजपा इस बार एक दूसरे प्रदेश से वर्तमान में सांसद और पार्टी के चर्चित चेहरे को बिहार से लोक सभा चुनाव लड़ाने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
दिल्ली में पार्टी अपने एक पूर्व दिवंगत केंद्रीय मंत्री के परिवार के सदस्य को लोक सभा चुनाव में उतार सकती है। दिल्ली के एक लोक सभा सांसद को पार्टी दूसरे राज्य से चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है तो वहीं दो अन्य सांसदों के टिकट काटने की भी तैयारी चल रही है। हरियाणा में पार्टी इस बार 5 सीटों पर उम्मीदवार बदलने की तैयारी कर रही है। तो वहीं इसके साथ ही भाजपा मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल और यहां तक कि अपने सबसे मजबूत गढ़ गुजरात में भी कई वर्तमान सांसदों का टिकट काटने जा रही है। गुजरात में पार्टी के कई दिग्गज राज्य सभा सांसद इस बार लोक सभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और उन्हें वर्तमान सांसदों का टिकट काट कर ही टिकट दिया जाएगा।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इनमें से कुछ सांसदों का टिकट उम्र के फैक्टर की वजह से काटा जा रहा है लेकिन ज्यादातर सांसद ऐसे हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहे हैं। पार्टी की नजर ऐसे सांसदों पर भी बनी हुई है जो 2014 और 2019 में एक ही सीट से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं।
हालांकि इनमें से कई सांसदों ने पार्टी आलाकमान का रुख भांपकर आला नेताओं तक दौड़ लगाना शुरू कर दिया है तो वहीं कई सांसद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर टिकट बचाने की कोशिश में लग गए हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 15 जुलाई । पश्चिम बंगाल में हालिया संपन्न पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने प्रचंड जीत हासिल की और भाजपा दूसरे स्थान पर रही। इसके बावजूद कांग्रेसी खेमा उत्साहित है। कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हुई है और अगर अभी लोक सभा चुनाव हुए तो पार्टी चार से पांच सीट जीतने में सफल होगी।
पंचायत चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को करीब 51.14 फीसदी वोट मिले, उसके बाद भाजपा को 22.88 प्रतिशत और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को 12.56 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस को करीब 6.42 फीसदी और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) को करीब 2 फीसदी वोट मिले हैं।
पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि पिछले चुनाव की तुलना में राज्य में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने दो फीसदी वोट हासिल किए और इस बार के पंचायत चुनाव में पार्टी के मत प्रतिशत में चार फीसदी से अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। यह कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
सूत्र ने माना कि 2021 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे खराब नतीजों में से एक मिला था। विधानसभा चुनावों में पार्टी एक सीट भी नहीं जीत सकी थी। लेकिन, पंचायत चुनावों के नतीजों में पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है।
सूत्र ने यह भी स्वीकार किया कि 42 वर्षों से अधिक समय तक राज्य में नहीं रहने के बावजूद कांग्रेस अपने प्रदर्शन में सुधार कर रही है। वहीं, केंद्रीय नेतृत्व और राज्य स्तर के नेताओं के बीच कोई मतभेद नहीं है। पंचायत चुनावों में पार्टी ने 63,229 सीटों में से 3,000 से अधिक सीटें जीतीं।
राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने का कारण बताते हुए सूत्र ने कहा कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव दो ध्रुवों के बीच थे। जिससे भाजपा को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी का स्थान हासिल करने में मदद मिली। भाजपा कुल 294 सीटों में से 77 सीटें जीतने में सफल रही। जबकि, विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 213 सीटें जीती थीं।
2016 के विधानसभा चुनाव में 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2021 में वाम दलों के साथ अपना खाता भी नहीं खोल सकी। राज्य में 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 2.94 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही। वाम दलों को 4.72 प्रतिशत वोट शेयर मिले।
सूत्र ने कहा कि पार्टी को उम्मीद है कि वह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में राज्य में मजबूत वापसी करेगी, भले ही उसका किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन न हो।
सूत्र ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कारण तृणमूल कांग्रेस को 6 सीटों का नुकसान हुआ, जिसमें मालदा उत्तर और जादवपुर की सीटें भी शामिल थीं।
सूत्र ने कहा कि 2021 के विधानसभा चुनावों में खराब नतीजों ने कांग्रेस को बैकफुट पर नहीं धकेला है और वह 2024 के लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उत्सुक है। उन्होंने बताया कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के ध्रुवीकरण की राजनीति के चलते 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दो सीटों पर सिमट गई, जहां पार्टी नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी भी हार गए।
उन्होंने कहा कि बीजेपी ने प्रणब मुखर्जी के नागपुर में आरएसएस मुख्यालय जाने के मुद्दे का ध्रुवीकरण किया, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में अभिजीत मुखर्जी के खिलाफ गया। लेकिन, लोग अब ध्रुवीकरण की राजनीति और धार्मिक आधार पर मतदान से निराश हो रहे हैं। यही कारण है कि पार्टी को अगले साल राज्य में लोकसभा चुनाव में चार से पांच सीटें जीतने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि अगर अभी आम चुनाव होते हैं तो भी पार्टी आसानी से चार से पांच सीटें जीतने में सफल रहेगी, क्योंकि उसके कैडर और नेता जमीनी स्थिति से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। कांग्रेस वरिष्ठ नेता दीपा दासमुंशी, सांसद अधीर रंजन चौधरी, एएच खान चौधरी, शंकर मालाकार, प्रदीप भट्टाचार्य, नेपाल महतो और अब्दुल मन्नान के साथ एकजुट होकर लड़ने को तैयार है। अभी भी दासमुंशी और चौधरी का रायगंज और मालदा दक्षिण संसदीय क्षेत्रों में दबदबा है। इन नेताओं के जरिए सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को टक्कर देना मुश्किल नहीं है।
उन्होंने कहा कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस आक्रामक चुनाव अभियान चलाते हैं, जिससे तनाव उत्पन्न होता है और लोग इससे ऊब गए हैं। इसके अलावा लोग तृणमूल कांग्रेस सरकार में कथित भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। मंत्रियों सहित टीएमसी के कई नेताओं को केंद्रीय जांच एजेंसियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे तृणमूल कांग्रेस की जनता में छवि खराब हुई है। जबकि, बंगाली हिंदू समाज के एक वर्ग की नाराजगी से भाजपा को नुकसान तय है।
सबसे खास बात है कि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू करते हुए समान विचारधारा वाले दलों को साथ लाने के लिए बातचीत कर रही है। सूत्र की मानें तो भले ही तृणमूल कांग्रेस के साथ भाजपा का गठबंधन हो जाए, 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने वाली भाजपा राज्य में 10 सीटों से नीचे चली जाएगी।
ध्यान देने वाली बात है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 सीटें जीतने वाली तृणमूल कांग्रेस 2019 के चुनावों में 22 सीटों पर सिमट गई। जबकि, भाजपा ने 2014 में दो सीटों से 2019 में 18 सीटों पर जीत का सफर पूरा किया। आपको बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में सात सीटें जीती थी। इसके बाद पार्टी 2014 में चार और 2019 के लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर सिमट गई। (आईएएनएस)
पटना 9 जुलाई। बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दावा किया कि ललन सिंह के नेतृत्व में जदयू के 40 फीसदी विधायक राजद में शामिल हो सकते हैं और तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बना सकते हैं।
ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। भाजपा नेता संजय जयसवाल का बयान महागठबंधन के नेताओं के बीच भ्रम पैदा कर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार को अस्थिर करने का प्रयास हो सकता है।
जायसवाल ने कहा, आजकल बिहार में जदयू का अस्तित्व नहीं है। ललन सिंह के नेतृत्व में पार्टी के 40 फीसदी नेता राजद में शामिल होकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बना सकते हैं और ललन सिंह उपमुख्यमंत्री बनेंगे।
जयसवाल ने कहा, जदयू के लगभग 60 प्रतिशत नेता भाजपा के संपर्क में हैं। वे नीतीश कुमार के महागठबंधन में शामिल होने के फैसले से खुश नहीं थे। उन्होंने राजद के खिलाफ चुनाव लड़े और अब सरकार में हिस्सेदारी कर रहे हैं। चुनाव के दौरान उन्हें जनता के सामने जाना होगा। इसलिए, वे भाजपा में शामिल होना चाहते हैं। (आईएएनएस)
पटना, 8 जुलाई । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही देश के स्तर पर विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयास में जुटे हों, लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और विभाग के आईएएस अधिकारी केके पाठक का विवाद पार्टी स्तर तक पहुंचा, उससे लग रहा है कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
जिस तरह बिहार के मंत्री और जदयू के नेता अशोक चौधरी और राजद नेता और एमएलसी सुनील कुमार सिंह बयान दे रहे हैं, उससे साफ है कि राजद और जदयू के बीच खींची लकीर अब मोटी होती जा रही है।
एमएलसी सुनील कुमार सिंह ने मंत्री अशोक चौधरी पर सीधा सियासी हमला बोलते हुए कहा कि वह हर रोज पार्टी बदलते हैं। सुनील कुमार सिंह ने उन पर व्यक्तिगत निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें जंगलराज याद आ रहा है, लेकिन उन्हें यह भी याद होना चाहिए कि अगर लालू प्रसाद नहीं होते तो वे जेल में होते।
उन्होंने यहां तक कहा कि उनका नाम एक नेता की हत्या में आया था। सिंह ने चौधरी पर बराबर दल बदलने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे कई घाट का पानी पी चुके हैं।
इससे पहले मंत्री चौधरी ने बिहार में जंगलराज की याद दिलाते हुए सिंह पर भाजपा की भाषा बोलने का आरोप लगाया था। सिंह यहीं नहीं रुके। सिंह ने सोशल मीडिया के जरिए भी अधिकारियों को 'अंगुलिमाल' तक कह दिया। ऐसी स्थिति में तय है कि अभी राजद और जदयू की तनातनी समाप्त नहीं होने वाली है। (आईएएनएस)
भोपाल, 18 जून| देश की राजनीति में इस साल के अंत में होने वाला मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव भूचाल लाने वाला है। हमेशा की तरह इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा। लेकिन एक मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन के अभाव में कुछ अन्य दल अपने क्षेत्रों का विस्तार करने का प्रयास करेंगे। पिछले साल 'कोयला नगरी' सिंगरौली में मेयर पद जीतकर शानदार एंट्री करने वाली दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) इस साल पहली बार मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
जनवरी में 'आप' ने राज्य की कार्यकारिणी को भंग कर दिया और दो महीने बाद सिंगरौली मेयर का चुनाव रानी अग्रवाल ने जीत लिया। पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी पदोन्नत किया।
मार्च में राज्य का दौरा करने के दौरान केजरीवाल ने सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के फैसले की घोषणा की थी। अपनी घोषणा में, उन्होंने मध्य प्रदेश में सत्ता में आने पर मुफ्त बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिए 'दिल्ली मॉडल' की अवधारणा का हवाला दिया।
'आप' ने अभी तक मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे की घोषणा नहीं की है, लेकिन सूत्रों ने दावा किया है कि वह भाजपा और कांग्रेस दोनों के कुछ बड़े नेताओं के साथ बातचीत कर रही है।
यह भी खबर सामने आ रही है कि कई नेता भाजपा और कांग्रेस से दूर हो गए हैं और राजनीति में आगे बढ़ने के लिए 'आप' में जगह पाने की जुगत में हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कई कारणों से 'आप' का मध्य प्रदेश में ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन यह भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए खेल बिगाड़ सकती है।
राज्य-आधारित एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, मध्य प्रदेश में 'आप' क्यों सफल नहीं होगी? पहला, इसलिए कि उसके कार्यकर्ता जनता के मुद्दों पर लड़ने के लिए सड़कों पर नहीं थे। दूसरा, क्योंकि मुफ्त उपहारों की इसकी अवधारणा पहले से ही कांग्रेस और भाजपा द्वारा अपनाई जा रही है। तीसरा कारण यह है कि दिल्ली में अपने मंत्रियों के खिलाफ हुए भ्रष्टाचार ने आप को झटका दिया है। अगर इसका थोड़ा सा भी असर हुआ तो यह केवल उम्मीदवारों के कारण होगा, जिन्होंने अपनी खास सीटों पर अपना आधार बनाया है, या तो उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण या भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच की आंतरिक लड़ाई के कारण होगा।
इस बीच, उत्तर प्रदेश स्थित बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) काफी जनाधार गंवाने के बावजूद भी चुनाव लड़ेंगी।
जहां सपा के एकमात्र मौजूदा विधायक राजेश शुक्ला (बिजावर) पिछले साल जनवरी में राष्ट्रपति चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, वहीं बसपा के मौजूदा विधायक संजीव कुशवाहा भी भगवा पार्टी में शामिल हो गए हैं।
हाल ही में रीवा की मनगवां सीट से बसपा की पूर्व विधायक शीला त्यागी कांग्रेस में शामिल हो गईं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चरशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी मध्य प्रदेश में विस्तार करना शुरू कर दिया है और हाल ही में दो प्रमुख चेहरों बुद्धसेन पटेल और व्यापम के व्हिसलब्लोअर आनंद राय को पार्टी में शामिल किया है।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि बीआरएस जल्द ही महाराष्ट्र की तर्ज पर सभी छह जोन में अपना कार्यालय स्थापित करने की योजना बना रहा है। (आईएएनएस)
प्रवीण द्विवेदी
[Each of MP's six divisions sees its own interplay of castes and leaders.] भोपाल, 18 जून (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में महज पांच महीने शेष हैं, ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के बीच गलाकाट लड़ाई शुरू हो गई है। राज्य में सीधी टक्कर में दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच कर्नाटक की तरह हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार देखने की संभावना है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से विधानसभा चुनाव के नतीजे अहम होंगे
2019 में, सत्तारूढ़ भाजपा ने राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से 28 पर जीत हासिल की थी।
छह डिवीजनों (क्षेत्र और भूगोल के अनुसार) में विभाजित राज्य में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह चौहान, कांतिलाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजेंद्र शुक्ला, और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे राजनीतिक दिग्गजों का अपने-अपने क्षेत्रों व जातियों में मजबूत प्रभाव है।
कमोवेश इनमें से हर एक राजनेता का मध्य प्रदेश की राजनीति में मजबूत दबदबा है।
मसलन, 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विंध्य क्षेत्र की 30 में से 24 सीटों पर जीत हासिल की थी। दो बार के पूर्व मंत्री और रीवा के विधायक राजेंद्र शुक्ल की चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका थी, हालांकि, वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में अपने लिए जगह सुरक्षित नहीं कर सके। रीवा जिले की सभी आठ सीटों पर भगवा पार्टी ने जीत हासिल की थी।
हालांकि कांग्रेस को 2018 में विंध्य क्षेत्र में बड़ा झटका लगा था, लेकिन उसने क्षेत्र में मतदाताओं की भावनाओं का चालाकी से उपयोग किया और 30 साल बाद रीवा के मेयर पद पर जीत हासिल की।
सतना के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह ने दावा किया, विंध्य क्षेत्र में एक करीबी मुकाबला होगा, और कांग्रेस वर्तमान परिदृश्य के अनुसार 10-12 सीटें जीतेगी।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में, दो केंद्रीय मंत्रियों- ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के गढ़ में, कांग्रेस ने 2018 में 34 विधानसभा सीटों में से 27 पर जीत हासिल की थी। तब सिंधिया कांग्रेस के साथ थे। हालांकि, उन्होंने और उनके 22 वफादार विधायकों ने कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को छोड़कर हुए भाजपा का दामन थाम लिया।
हाल ही में मुरैना में जिला पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक की अध्यक्षता करते हुए नरेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया कि वह और सिंधिया मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि इस साल ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा कम से कम 26 सीटें जीत सके। तोमर ने कहा, हम ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कम से कम 26 सीटें जीतेंगे और भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएगी।
इसी तरह महाकौशल अंचल में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा। 2018 के विधानसभा चुनावों में ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने 38 सीटों में से 24 सीटें हासिल कीं। इस क्षेत्र में जबलपुर और छिंदवाड़ा शामिल हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का गढ़ है।
महाकौशल क्षेत्र में आठ जिलों में 15 अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटें हैं। कांग्रेस ने उनमें से 13 पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 2018 के चुनावों में शेष दो सीटें जीतीं। यही वजह है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने जबलपुर से पार्टी के चुनाव प्रचार की शुरुआत की, जबकि दो दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना योजना की पहली किस्त वहीं से जारी की।
मालवा और निमाड़ क्षेत्र, जिसमें राज्य के दो बड़े शहर इंदौर और उज्जैन हैं, में 66 सीटें हैं। इनमें से 2018 में कांग्रेस को 35 सीटें मिलीं (उज्जैन संभाग की 29 में से 11 सीटें और इंदौर संभाग की 37 में से 24 सीटें)।
भोपाल संभाग, जिसमें मुख्यमंत्री चौहान के गृह जिले रायसेन, विदिशा और सीहोर शामिल हैं, में 25 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से 17 भाजपा के पास और आठ कांग्रेस के पास हैं, इनमें भोपाल जिले की तीन सीटें शामिल हैं। इसी तरह, होशंगाबाद, जिसका नाम पिछले साल नर्मदापुरम रखा गया था, में 11 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से सत्तारूढ़ भाजपा ने सात सीटें जीतीं और शेष चार कांग्रेस ने हासिल कीं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में सदस्यों की संख्या 230 है। 2018 के पिछले चुनावों में कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 109 सीटों पर जीत हासिल की थी।
चेन्नई, 1 जून | दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने गुरुवार को चेन्नई में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से मुलाकात की। केजरीवाल ने स्टालिन से दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं पर प्रदेश की सरकार का नियंत्रण खत्म करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन मांगा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आम आदमी पार्टी (आप) के दोनों नेताओं ने सीएम स्टालिन से यहां अलवरपेट स्थित उनके आवास पर मुलाकात की। विचार-विमर्श के दौरान आप सांसद राघव चड्ढा, द्रमुक संसदीय दल के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री टी.आर. बालू भी मौजूद थे।
केजरीवाल नए अध्यादेश के खिलाफ राज्यसभा में विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करने के लिए इन दिनों देशव्यापी दौरे पर हैं। आप के संयोजक दो जून को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात करने वाले हैं। (आईएएनएस)
भोपाल 1 जून | मध्य प्रदेश में आगामी समय होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का चेहरा कौन होगा और मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इस मसले पर वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की राय स्पष्ट तौर पर सामने न के बाद से राज्य में नई बहस शुरू हो गई है। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने तो यहां तक कह दिया है कि उनके समर्थक उनका भी नाम ले रहे हैं।
कांग्रेस ने बीते कुछ अरसे से मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है। प्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है। कांग्रेस के कई नेता कमलनाथ को भावी और अवश्यंभावी मुख्यमंत्री बताने के पोस्टर भी लगा चुके हैं। इस पर कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री अजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव पार्टी संविधान का हवाला देते हुए यह कह चुके हैं कि निर्वाचित विधायक और पार्टी प्रमुख ही नेता का चयन करते हैं।
बीते दिनों मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर राहुल गांधी से जब सवाल किया गया तो वे उसे सीधे तौर पर न केवल टल गए, बल्कि सिर्फ इतना कहा कि कांग्रेस डेढ़ सौ सीटें जीत रही है।
राहुल गांधी के बयान के बाद से राज्य के कई नेताओं के बयान आए है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर नेता प्रतिपक्ष डा गोविंद सिंह से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि कुछ लोग हमारा भी नाम ले रहे हैं जो जिसके समर्थक हैं उसकी बात कर रहे हैं। छिंदवाड़ा के लोग चाहते हैं कि हमारा नेता मुख्यमंत्री बने। जहां तक मेरी बात है तो नेता नहीं मैं कार्य करता हूं।
राहुल गांधी की बात पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से भी जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने यही कहा कि किस संसदीय लोकतंत्र में डायरेक्ट मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं होता, विधानसभा के सदस्य के द्वारा चयन होता है, जो कहा गया है वह अपने हिसाब से ठीक है,जनभावनाएं मध्यप्रदेश की है तो 99 प्रतिशत लोग कमलनाथ नेतृत्व में चुनाव लड़े जाने के पक्ष में है और यह जन भावना है कि वही मुख्यमंत्री बने।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बयान को ट्वीट करते हुए कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले ने ट्वीट किया है, भगवान से धोखा करने वाली भाजपा को इस बार जनता के श्राप का सामना करना पड़ेगा। बीजेपी कितना भी झूठ फैला है लेकिन आएंगे कमलनाथ ही। दिग्विजय सिंह ने दो टूक कह दिया है कि मध्य प्रदेश की 99 प्रतिशत जनता कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनाना चाहती है मध्यप्रदेश में एक ही नारा है जय जय कमलनाथ। (आईएएनएस)
बेंगलुरु, 11 मई। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में ज्यादातर एक्जिट पोल में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कड़ी टक्कर का अनुमान जताए जाने के बीच नतीजों को लेकर दोनों दलों के नेताओं की धड़कने तेज गई हैं जबकि जनता दल (सेक्युलर) त्रिशंकु जनादेश की उम्मीद कर रहा है ताकि वह सरकार गठन में अहम भूमिका निभा सके।
हालांकि, मतदान बाद आए अधिकांश सर्वेक्षणों में सत्तारूढ़ भाजपा पर कांग्रेस को बढ़त दिखाई गई है और राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जताई गई है।
राज्य की 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतों की गिनती 13 मई को होगी।
राजनीतिक नेताओं को कई सप्ताह के प्रचार और बुधवार को हुए मतदान के बाद आखिरकार बृहस्पतिवार को कुछ आराम करने का मौका मिला।
दोनों राष्ट्रीय दलों के सूत्रों ने कहा कि उन्हें अपनी पार्टी के आसानी से जीतने का भरोसा है, लेकिन एग्जिट पोल ने निश्चित रूप से उन्हें एक हद तक चिंतित कर दिया है।
उन्होंने कहा कि कोई नहीं चाहता कि इस बार भी 2018 जैसी स्थिति सामने आए।
त्रिशंकु जनादेश की स्थिति में जद (एस) महत्वपूर्ण कारक होगा और 2018 की तरह वह ‘किंग’ या ‘किंगमेकर’ के रूप में उभर सकता है।
सूत्रों ने बताया कि खंडित जनादेश की स्थिति में गठबंधन सरकार के गठन की कुंजी रखने वाले पार्टी जद (एस) के नेता एच डी कुमारस्वामी स्वास्थ्य जांच के लिए सिंगापुर रवाना हो गए हैं और मतगणना के दिन वापस आ जाएंगे।
जद (एस) नेता को चुनाव प्रचार के दौरान थकावट और कमजोरी के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
जद (एस) के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘‘निश्चित तौर पर त्रिशंकु जनादेश का परिदृश्य है और जद (एस) की सक्रिय भूमिका के साथ गठबंधन सरकार की प्रबल संभावना है। परिणामों को औपचारिक रूप से सामने आने दें। उसके बाद चीजें सामने आएंगी कि कौन क्या भूमिका निभाएगा।’’
साल 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। इसके बाद कांग्रेस 80 सीटें और जद (एस) 37 सीटें जीतकर क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहीं। एक निर्दलीय सदस्य भी था, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कर्नाटक प्रज्ञावंत जनता पार्टी (केपीजेपी) के एक-एक सदस्य निर्वाचित हुए थे।
तब किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने और कांग्रेस तथा जद (एस) के गठबंधन करने की कोशिश के बीच सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और वरिष्ठ नेता बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनी
हालांकि, विश्वास मत से पहले तीन दिनों के भीतर ही उनकी सरकार गिर गई। क्योंकि येदियुरप्पा आवश्यक संख्या नहीं जुटा सके थे।
इसके बाद, कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन ने सरकार बनाई और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। लेकिन 14 महीनों के भीतर ही यह सरकार भी गिर गई। क्योंकि 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और वे सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर आ गए। बाद में सभी भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी की सत्ता में वापसी में मदद की।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और कर्नाटक के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बृहस्पतिवार को कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धरमैया से यहां उनके आवास पर मुलाकात की और चर्चा की।
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई एग्जिट पोल को खारिज करते हुए भाजपा की आसान जीत को लेकर आश्वस्त दिखे।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछली बार कर्नाटक चुनाव के दौरान एग्जिट पोल में कांग्रेस को 107 और भाजपा को 80 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया था, लेकिन वास्तव में यह उल्टा था। भाजपा को 104 और कांग्रेस को 80 सीटें मिली थीं। एग्जिट पोल के बारे में ऐसे कई उदाहरण हैं और यह एक बार फिर दोहराया जाएगा।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी 150 सीटें जीतने के अपने लक्ष्य को हासिल करेगी, बोम्मई ने कहा कि मोदी का प्रचार अभियान भाजपा के लिए एक बड़ा कारगर था और इसका युवाओं और महिला मतदाताओं के बीच व्यापक प्रभाव पड़ा।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने 150 नहीं कहा है, मैं कहता रहा हूं कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा और हमें यह मिलेगा।’’
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने भी विश्वास जताया कि कांग्रेस 141 सीटें जीतेगी और पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। उन्होंने त्रिशंकु विधानसभा की संभावना से इनकार किया।
कनकपुरा विधानसभा क्षेत्र में अपने मतदाताओं को धन्यवाद देते हुए शिवकुमार ने कहा कि उन्होंने जो ताकत दी है, वह सिर्फ उनके लिए नहीं है, यह राज्य के लोगों के लिए है।
उन्होंने कहा, ‘‘यहां हर घर के लोग उम्मीदवार थे और उन्होंने चुनाव लड़ा।’’ (भाषा)
सुनील को सुनें : कर्नाटक एक्जिट पोल से सुप्रीम कोर्ट तक यह कैसी लहर!
कर्नाटक मतदान पूरा होते ही जो एक्जिट पोल आए, उनमें से तकरीबन तमाम सत्तारूढ़ भाजपा की पुख्ता हार बता रहे हैं, और कांग्रेस को सबसे आगे दिखा रहे हैं। आधे पोल कांग्रेस को अकेले सरकार बनाते दिखा रहे हैं। यह तो कल शाम की बात हुई, आज दोपहर तक सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दो फैसले दिए जो केन्द्र सरकार और भाजपा को सदमा देने वाले हैं। एलजी के साथ लड़ाई में अदालत ने केजरीवाल के हक में फैसला दिया है, और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार हटाने या गिराने में राज्यपाल और विधानसभाध्यक्ष दोनों के फैसले संविधान से परे बताए हैं। 18 घंटों में निराश करने वाली तीन इतनी बड़ी खबरें आई हैं कि वे मोदी-शाह के लिए आत्ममंथन का मौका लाई हैं। इस अखबार ‘छत्तीसगढ़’ के संपादक सुनील कुमार को न्यूजरूम से सुनें।
तिरुवनंतपुरम, 9 मई | केरल राज्य सचिवालय में मंगलवार सुबह मामूली आग लग गई। उद्योग मंत्री पी. राजीव के अतिरिक्त निजी सचिव विनोद के कार्यालय में लगी आग पर 15 मिनट के भीतर काबू पा लिया गया।
जिलाधिकारी व पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे। शार्ट सर्किट को आग लगने कारण बताया गया है।
हालांकि, कुछ लोगों के अनुसार, आग लगाई गई है।आग ऐसे समय में लगी है जब कथित एआई कैमरा घोटाले को लेकर कांग्रेस मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और पी. राजीव पर हमलावर है।
राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र केल्ट्रोन द्वारा इस मुद्दे को संभालने के तरीके पर विपक्ष सवाल उठा रहा है, जिस पर उनका आरोप है कि यह लगभग 100 करोड़ रुपये है।
संयोग से, केल्ट्रोन के कार्यालय में आयकर अधिकारियों के निरीक्षण के एक दिन बाद आग लग गई, जो परिवहन विभाग के लिए एआई कैमरे स्थापित करने की परियोजना में कार्यान्वयन एजेंसी थी।
हालांकि पुलिस ने आज सुबह की घटना पर मामला दर्ज कर लिया है।
सानू वी. जॉर्ज
तिरुवनंतपुरम, 2 अप्रैल| आगामी लोकसभा चुनाव भले ही अभी कई महीने दूर हैं, लेकिन अगर आंकड़ों का विश्लेषण करें तो फिलहाल यह कहा जा सकता है कि केरल भाजपा इकाई राज्य में पारंपरिक राजनीतिक मोचरें के लिए हर तरीके से तैयार है।
राज्य में 20 लोकसभा सीटें हैं और 2019 के संसदीय चुनावों में, केरल भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने 19 सीटों पर तीसरा स्थान हासिल किया और केवल 15.64 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने 19 सीटें जीतीं और 47.48 प्रतिशत वोट हासिल किया। तत्कालीन सत्तारूढ़ माकपा के नेतृत्व वाले वाम को 36.29 फीसदी वोट और सिर्फ एक सीट मिली।
एक और संकेतक आंकड़ा है कि भाजपा के लिए दरार डालना एक कठिन कार्य हो सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों में 140 विधानसभा क्षेत्रों में, भाजपा केवल एक सीट पर आगे रही और सात सीटों पर दूसरे स्थान पर रही।
संयोग से केरल में भाजपा 2021 में अपनी एकमात्र सीट बरकरार रखने में असमर्थ रही, जिसे उसने 2016 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के इतिहास में पहली बार जीता था, जब वह नेमोम विधानसभा सीट हार गई।
2021 के विधानसभा चुनावों में, 2016 के चुनावों की तुलना में भाजपा का वोट शेयर 2.60 प्रतिशत से घटकर 12.36 प्रतिशत पर आ गया।
हाल की सभी चुनावी लड़ाइयों के परिणाम पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ हैं, हालांकि राज्य और राष्ट्रीय नेतृत्व दोनों एक बड़ा चेहरा पेश करने और पहले दौर का अभियान शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य नेतृत्व ने तिरुवनंतपुरम, त्रिशूर, अत्तिंगल और पठानमथिट्टा को उन सीटों के रूप में चिन्हित किया है जहां पार्टी प्रभाव डाल सकती है।
पोल पंडितों का अनुमान है कि भाजपा के लिए यहां राह मुश्किल है। यह केवल तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट पर दूसरे स्थान पर रही। अन्य में जहां उसे 'उम्मीदें' थीं, वामपंथी उम्मीदवार और जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवार के पीछे उसके तीसरे स्थान के बीच का अंतर लगभग एक लाख वोटों का था। इसलिए, अगर कोई चमत्कार होता भी है तो इसकी बहुत कम संभावना है कि पार्टी अपना खाता खोल पाएगी। (आईएएनएस)
अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश नाइजीरिया ने अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है. पर्दे के पीछे से देश की राजनीति चलाने वाले बोला टिनुबू अब राष्ट्रपति के तौर पर कई समस्याओं का सामना करेंगे.
71 साल के बोला टिनुबू को अफ्रीका के सबसे बड़े शहर लागोस का गॉडफादर भी कहा जाता है. नाइजीरिया की राजधानी भले ही अबूजा हो, लेकिन देश, वित्तीय राजधानी लागोस के पैसे ही चलता है और इस रकम का बड़ा हिस्सा टिनुबू के इशारों पर घूमता रहा है. 2023 में नाइजीरिया में पहली बार सेना की छाया से आजाद होकर नए राष्ट्रपति के चुनाव हुए. फरवरी के आखिर में हुए इन चुनावों में सत्ताधारी पार्टी, ऑल प्रोग्रेसिव कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार टिनुबू की जीत हुई. टिनुबू को 87.9 लाख वोट मिले. दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवारों के खाते में 69.8 और 61 लाख वोट आए.
नाइजीरिया के राष्ट्रपति चुनावों में सबसे ज्यादा वोट और कुल 36 में से 24 राज्यों व राजधानी अबूजा में 25 फीसदी वोट पाने वाला उम्मीदवार विजेता घोषित किया जाता है. टिनुबू ने इसमें सफलता पाई. चुनावी नतीजों के एलान के बाद राजधानी अबूजा में टिनुबू ने कहा, "मैं बहुत ही खुश हूं कि मुझे फेडरल रिपब्लिक ऑफ नाइजीरिया का राष्ट्रपति चुना गया है. यह एक जबरदस्त जनादेश है. मैं तहेदिल से इसे स्वीकार करता हूं."
पर्यवेक्षकों के मुताबिक, यह नाइजीरिया में अब तक हुए सबसे निष्पक्ष चुनाव हैं. हालांकि वोटिंग के दौरान कुछ जगहों पर नई तकनीक के कारण समस्याएं भी आईं. देश के इंडिपेंडेंट नेशनल इलेक्टोरल कमीशन (आईएनईसी) ने चुनाव से पहले हर पोलिंग यूनिट के नतीजे रियल टाइम में वेबसाट पर अपलोड करने का वादा किया था. लेकिन ज्यादातर यूनिटें ऐसा नहीं कर सकीं. परिणाम आने के बाद भी हजारों पोलिंग यूनिटों के रिजल्ट ऑनलाइन नहीं हो सके. इन तकनीकी खामियों के चलते मुख्य विपक्षी पार्टियों ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए नतीजों को खारिज किया है.
टिनुबू के सामने चुनौतियां
नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मदू बुहारी के समर्थक रहे टिनुबू अब पर्दे के पीछे की राजनीति से बाहर निकल चुके हैं. नए राष्ट्रपति के सामने चुनौतियों की लंबी लिस्ट है. इनमें पूर्वोत्तर नाइजीरिया में इस्लामिक उग्रवाद, हत्याएं और सामूहिक अपहरण जैसी मुश्किलें भी हैं और ऊर्जा संकट और अथाह भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियां भी.
इस्लामिक चरमपंथियों की बढ़ती ताकत एक अलग सिरदर्द है. अप्रैल 2014 में पूर्वोत्तर नाइजीरिया के बोर्नो प्रांत में इस्लामिक आतंकी संगठन बोको हराम ने चिबॉक के स्कूल से 276 छात्राओं का अपहरण कर लिया. अगवा की गई छात्राओं में ज्यादातर ईसाई थीं. इनमें से कई लड़कियां आज भी घर नहीं लौटी हैं. मानवाधिकारों का मुद्दा उठाने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक 2015 में भी बोको हराम ने करीब 2000 महिलाओं को अगवा किया. इनमें से ज्यादातर को आतंकियों ने सेक्स स्लेव बनाया. देश में आज भी हर साल सैकड़ों महिलाओं का अपहरण होता है.
संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद बर्बादी
जलवायु परिवर्तन के चलते पशु पालकों और किसानों में हो रहा संघर्ष, कचरे की समस्या, मिट्टी की खराब होती क्वालिटी और जंगलों की कटाई भी नाइजीरिया के लिए बड़ी परेशानी हैं. 2005 में देश दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से जंगल साफ करने के लिए बदनाम हो चुका है. 2010 में सोने की प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले पारे की वजह से जामफारा राज्य में सैकड़ों बच्चों की मौत भी हुई.
पश्चिमी अफ्रीका में अटलांटिक महासागर के तट पर बसा नाइजीरिया आबादी के लिहाज से दुनिया का छठा बड़ा देश है. 22.5 करोड़ की आबादी वाले नाइजीरिया के पास दुनिया का 10वां बड़ा पेट्रोलियम भंडार है. आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा खपत के लिहाज से नाइजीरिया का तेल भंडार 237 साल तक लगातार काम आ सकता है. लेकिन आईएमएफ की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 32 फीसदी नाइजीरियाई नागरिक अति गरीबी का शिकार हैं.
लेकिन मुश्किल राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने की है. एक जनवरी 1960 को ब्रिटेन से आजाद होने वाले नाइजीरिया का अब तक का इतिहास गृह युद्धों और सैन्य शासन से भरा रहा है. देश में 1960 से 1998 तक गृहयुद्ध और सैन्य तख्तापलट ही होते रहे हैं.
ओएसजे/सीके (एएफपी, एपी)
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली, 30 जनवरी | मोदी सरकार के कई दिग्गज मंत्री 2024 में लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूत और सुरक्षित लोकसभा सीट की तलाश कर रहे हैं। कुछ नेताओं की यह तलाश पूरी हो गई है, लेकिन कुछ नेताओं की तलाश अभी जारी है।
दरअसल, अब तक उच्च सदन राज्यसभा से चुनकर आने वाले मोदी सरकार के दिग्गज मंत्री 2024 में लोकसभा चुनाव लड़कर अपनी लोकप्रियता साबित करने के साथ ही अगली सरकार में भी मंत्रिपद के लिए अपनी दावेदारी पेश करने की कोशिश करते नजर आएंगे। इसकी एक बड़ी वजह भाजपा का एक अघोषित नियम भी है, जिसके तहत पार्टी अपने किसी भी नेता को लगातार तीसरी या चौथी बार राज्य सभा भेजने से परहेज करती है। कई नेताओं के मामले में एक-दो बार पहले पार्टी ने इस अघोषित नियम में छूट भी दी है, लेकिन मुख्तार अब्बास नकवी प्रकरण के बाद से राज्यसभा से आने वाले दिग्गज मंत्रियों ने लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाना शुरू कर दिया। इसमें खासतौर से वो मंत्री शामिल हैं, जिन्हें पार्टी पहले दो या दो से ज्यादा बार राज्य सभा भेज चुकी है। आपको याद दिला दें कि मंत्री होने के बावजूद पार्टी ने नकवी को फिर से राज्य सभा नहीं भेजा और किसी भी सदन का सदस्य नहीं होने के कारण उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, मोदी सरकार के धर्मेद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, मनसुख मंडाविया, परशोत्तम रूपाला, पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण जैसे कद्दावर मंत्री 2024 में लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। बताया यह भी जा रहा है कि हरदीप सिंह पुरी और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। ये सभी नेता अपने-अपने लिए लोकसभा की मजबूत और सुरक्षित सीट की तलाश कर रहे हैं।
सबसे पहले बात केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान की करते हैं, जिन्हें भाजपा ने 2012 में पहली बार और 2018 में दूसरी बार राज्यसभा भेजा था। उनका दूसरा टर्म अप्रैल, 2024 में खत्म हो रहा है, यानी केंद्र में अगली सरकार के गठन के समय प्रधान की राज्यसभा सदस्यता समाप्त हो चुकी होगी।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, धर्मेद्र प्रधान अपने गृह राज्य ओडिशा की ढेंकानाल लोकसभा सीट से 2024 में लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हाल ही में प्रधान स्वयं सार्वजनिक तौर पर चुनाव लड़ने की इच्छा भी जता चुके हैं। प्रधान के करीबी और उनके परिवार के सदस्य लगातार ढेंकानाल का दौरा भी कर रहे हैं।
केंद्र सरकार के एक और कद्दावर मंत्री भूपेंद्र यादव का भी राज्यसभा का कार्यकाल अप्रैल 2024 में ही खत्म हो रहा है। भाजपा उन्हें भी 2012 और 2018 में यानी दो बार राज्यसभा भेज चुकी है। बताया जा रहा है कि भूपेंद्र यादव राजस्थान की अलवर या हरियाणा की भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं।
गुजरात से आने वाले दिग्गज नेता एवं केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया को भाजपा दो बार और केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला को तीन बार राज्यसभा भेज चुकी है। मंडाविया और रूपाला, दोनों ही मंत्रियों का राज्य सभा कार्यकाल अप्रैल, 2024 में ही समाप्त हो रहा है और सूत्रों के मुताबिक, ये दोनों ही नेता अपने लिए लोक सभा की मजबूत सीट की तलाश कर चुके हैं।
बताया जा रहा है कि मनसुख मंडाविया, अपने गृह राज्य गुजरात के भावनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, हालांकि इसके साथ ही उन्होंने गुजरात की सूरत और पोरबंदर लोकसभा सीट को भी विकल्प के तौर पर रखा हुआ है। केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला भी अपने गृह राज्य गुजरात की दो लोकसभा सीटों का विकल्प लेकर चल रहे हैं। रूपाला राज्य की अमरेली और राजकोट लोकसभा सीट पर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
राज्यसभा से आने वाले मोदी सरकार के कई अन्य दिग्गज मंत्री, जिनका राज्यसभा का कार्यकाल 2026 और 2028 में खत्म हो रहा है, वे भी लोकसभा की मजबूत सीट ढूंढ रहे हैं। इसमें पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण जैसे कद्दावर मंत्री शामिल हैं। दोनों ही मंत्रियों को अब तक भाजपा तीन-तीन बार राज्यसभा भेज चुकी है।
वैसे तो गोयल का राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई 2028 में और सीतारमण का जून 2028 में समाप्त होगा, लेकिन सूत्रों की मानें तो ये दोनों दिग्गज मंत्री भी 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। पीयूष गोयल अपने गृह राज्य महाराष्ट्र के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में भी अपने लिए लोक सभा की मजबूत सीट की तलाश में जुटे हुए हैं। वहीं, निर्मला सीतारमण भी अपने गृह राज्य तमिलनाडु से लोकसभा का चुनाव लड़ सकती हैं।
आपको याद दिला दें कि कुछ महीने पहले ही केंद्रीय वित्तमंत्री सीतारमण चेन्नई के बाजार में सब्जी खरीदती और स्थानीय लोगों से बातचीत करती हुई नजर आई थीं।
कांग्रेस से भाजपा में शामिल होकर मध्यप्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बनाने में मददगार ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने पहली बार जून 2020 में राज्यसभा भेजा था और उनका कार्यकाल जून 2026 में समाप्त होगा, लेकिन बताया जा रहा है कि सिंधिया भी 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का राज्यसभा का दूसरा टर्म नवंबर 2026 में खत्म होगा, लेकिन बताया जा रहा है कि पार्टी के संकेतों को समझते हुए पुरी भी अपने लिए लोकसभा की मजबूत सीट की तलाश में जुटे हुए हैं। (आईएएनएस)
कोलकाता, 22 नवंबर | पश्चिम बंगाल में मिथुन चक्रवर्ती अब भाजपा की संगठनात्मक गतिविधियों में जमीनी स्तर पर बड़ी भूमिका निभाएंगे। मिथुन 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन उनकी गतिविधियां मुख्य रूप से पार्टी के लिए मेगा अभियान रैलियों में भाग लेने तक ही सीमित थीं।
हाल ही में, कोलकाता में मिथुन चक्रवर्ती ने कहा कि वह अब राज्य में पार्टी की गतिविधियों पर अधिक ध्यान देंगे। दरअसल, अगले दो वर्षों में होने वाले दो बड़े चुनाव, 2023 में पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की राज्य इकाई को लगता है कि सुपरस्टार को पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों में बड़े पैमाने पर शामिल करने का यह सही समय है।
भाजपा की राज्य कमेटी के एक सदस्य ने कहा कि मिथुन चक्रवर्ती के लिए इस सिलसिले में अगले कुछ दिनों के लिए विस्तृत कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जा चुकी है। इसकी शुरूआत 23 नवंबर को होगी, जब चक्रवर्ती और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद सुकांत मजूमदार, पश्चिम बंगाल के आदिवासी बहुल पुरुलिया जिले में पंचायत स्तर के भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करेंगे।
24 नवंबर को, चक्रवर्ती और सुकांत मजूमदार दोनों एक अन्य आदिवासी बहुल जिले बांकुड़ा में होंगे, जहां उस दिन स्थानीय पार्टी नेताओं के साथ बैठक में भाग लेने के अलावा, वे 25 नवंबर को वहां एक रैली को भी संबोधित करेंगे। इसी तरह के कार्यक्रम पश्चिम बर्दवान के आसनसोल में 26 नवंबर और बीरभूम जिले में 27 नवंबर को निर्धारित किए गए हैं।
पार्टी नेतृत्व राज्य में आदिवासी बहुल क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, इसका कारण यह है कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों और 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
17 अक्टूबर को बीजेपी की राज्य इकाई ने कोर कमेटी में बड़े फेरबदल की घोषणा की और वहां मिथुन चक्रवर्ती को शामिल किया। कुल 24 नेताओं को कोर कमेटी में जगह दी गई है, इस तरह यह राज्य में पार्टी की अब तक की सबसे बड़ी कोर कमेटी बन गई है। 24 सदस्यीय समिति में पश्चिम बंगाल के लिए पार्टी के प्रभारी सुनील बंसल और राज्य के केंद्रीय पर्यवेक्षक मंगल पांडे, अमित मालवीय और आशा लाकड़ा के चार स्थायी सदस्य शामिल हैं। (आईएएनएस)|
विशाल गुलाटी
मंडी, 24 सितंबर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को 68 सदस्यीय हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए भाजपा के प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे। वह 'छोटी काशी' यानी मंडी में करीब एक लाख युवाओं को संबोधित करेंगे।
वह युवा विजय संकल्प रैली को संबोधित करेंगे, जो चुनाव की घोषणा से पहले नियोजित तीन रैलियों में से पहली है। मंडी जिले में 10 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। रैली में 40 साल से कम उम्र के एक लाख से अधिक युवाओं के जुटने की संभावना है।
मंडी के बाद मोदी बाद की तारीखों में बिलासपुर और चंबा शहर में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। भाजपा नेता अमित शाह और जेपी नड्डा भी राज्य का अलग-अलग दौरा करेंगे।
भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख सुरेश कश्यप ने कहा कि प्रधानमंत्री का मंडी का दौरा लोगों के लिए गर्व की बात है।
कश्यप ने आईएएनएस से कहा, "हिमाचल के लोगों के प्रति नरेंद्र मोदी का स्नेह अद्भुत है और हिमाचल के लोग भी उनसे बहुत प्यार करते हैं। मोदी जी का हिमाचल से गहरा संबंध रहा है।"
उन्होंने कहा कि भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित युवा रैली एक बड़ी सफलता होगी और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मोदी को सुनने के लिए आ रहे हैं।
उन्होंने कहा, "इस रैली में एक लाख से अधिक युवा हिस्सा लेने जा रहे हैं, जिससे भाजपा में नई ऊर्जा का संचार होगा। इस रैली में हिमाचल प्रदेश के हर बूथ से 20 युवा हिस्सा लेंगे।"
मोदी की यात्रा से उत्साहित मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर, जो युवा विजय संकल्प रैली से संबंधित व्यवस्थाओं की व्यक्तिगत रूप से निगरानी कर रहे हैं, ने कहा कि प्रधानमंत्री की यात्रा राज्य और यहां के लोगों के प्रति उनकी उदारता को दर्शाती है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने राज्य के दौरे से पहले ही राज्य के लिए एक बल्क ड्रग फार्मा पार्क को मंजूरी दे दी है।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, "यह उन लोगों को करारा जवाब है, जिन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने राज्य को कुछ नहीं दिया।"
पार्टी ठाकुर के नेतृत्व में चुनाव में उतरेगी। उन्होंने कहा कि राज्य के लिए 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं को मंजूरी देने के अलावा, प्रधानमंत्री ने राज्य को 800 करोड़ रुपये की विशेष सहायता प्रदान की थी।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश को विकास के मामले में देश के अग्रणी राज्यों में से एक बनाने के लिए इन वर्षो में राज्य के लोगों को उनके योगदान पर धन्यवाद देने के लिए राज्य सरकार के 75 कार्यक्रमों का आयोजन करने के राज्य सरकार के फैसले से विपक्षी नेता परेशान थे।
उन्होंने कहा कि परंपरा बदलने को लेकर भाजपा सरकार का नारा भी कांग्रेस नेताओं को रास नहीं आ रहा है।
ठाकुर ने आईएएनएस को बताया, "यह परंपरा (लगातार एक और कार्यकाल के लिए कप्तान बनाए रखने की) पूरे देश में बदल गई है और अब ऐसा करने की हिमाचल प्रदेश की बारी है।"
मोदी ने पिछली बार 31 मई को अपनी सरकार की आठवीं वर्षगांठ को ऐतिहासिक रिज से चिह्न्ति करने के लिए केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों को संबोधित करने के लिए राज्य का दौरा किया था।
इससे पहले, उन्होंने राज्य सरकार की चौथी वर्षगांठ के अवसर पर 27 दिसंबर, 2021 को मंडी में एक रैली को संबोधित किया था।
वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने आईएएनएस को बताया कि पिछले पांच वर्षो में राज्य और केंद्र में डबल इंजन की सरकार है और विकास की गति और योजनाओं के क्रियान्वयन ने गति पकड़ी है। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 6 सितंबर | बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा है कि भारत रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे से निपटने में मदद करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है। वह भारत की चार दिवसीय यात्रा पर हैं। इस दौरान दोनों देश कनेक्टिविटी और नदी जल-बंटवारे के मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं। हसीना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हैं और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से भी मुलाकात करेंगी।
भारत एक बड़ा देश है। यह बहुत कुछ कर सकता है, उन्होंने कहा।
हसीना ने अपने भारत दौरे की शुरूआत सोमवार को हजरत निजामुद्दीन की दरगाह से की। विदेश मंत्री एस जयशंकर और व्यवसायी गौतम अदाणी ने भी बांग्लादेशी प्रधानमंत्री से मुलाकात की।
भारत और बांग्लादेश के बीच समग्र रणनीतिक संबंध पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रहे हैं, दोनों प्रधानमंत्रियों ने 2015 से 12 बार मुलाकात की है।
पिछले साल मार्च में, प्रधान मंत्री मोदी ने शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी और उस देश की मुक्ति के युद्ध के 50 वर्षों को चिह्न्ति करने के लिए आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए बांग्लादेश की यात्रा की। भारत ने 1971 के युद्ध की 50वीं वर्षगांठ पर कई कार्यक्रमों की मेजबानी भी की थी, जिसके कारण बांग्लादेश की मुक्ति हुई थी।
हसीना मंगलवार को अपने भारतीय समकक्ष पीएम मोदी के साथ बातचीत करेंगी जिसमें दोनों पक्षों के बीच रक्षा, व्यापार और नदी जल बंटवारे सहित प्रमुख क्षेत्रों में समझौते की संभावना है। (आईएएनएस)|
चेन्नई, 11 जुलाई | एडप्पादी के. पलानीस्वामी (ईपीएस) तमिलनाडु की मुख्य विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक के अंतरिम महासचिव होंगे। मद्रास हाईकोर्ट द्वारा मंजूरी मिलने के बाद जनरल काउंसिल की बैठक आयोजित हुई, जिसमें यह फैसला लिया गया। इस बैठक में समन्वयक और सह-समन्वयक के दोहरे नेतृत्व पदों को भी रद्द कर दिया गया, जो क्रमश: ओ. पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी द्वारा आयोजित किए गए थे। साथ ही, बैठक में महासचिव पद को बहाल करने और पार्टी के प्राथमिक सदस्यों द्वारा पद के लिए एक व्यक्ति का चुनाव सुनिश्चित करने के प्रस्ताव को पारित किया।
अन्नाद्रमुक विधायक आर.बी. उदयकुमार ने संगठनात्मक चुनावों के माध्यम से पार्टी के विभिन्न पदों के लिए पार्टी पदाधिकारियों के चुनाव का प्रस्ताव पेश किया।
जे. जयललिता के निधन के बाद, अन्नाद्रमुक दोहरे नेतृत्व में काम कर रही है। जिसके चलते ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) और एडप्पादी के पलानीस्वामी (ईपीएस) के बीच कई महीनों से पार्टी के वर्किं ग फॉर्मेट को लेकर विवाद जारी है। 14 जून को हुई पदाधिकारियों की बैठक में पार्टी में एक ही नेतृत्व का आह्वान किया गया था।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई | आतंकवाद के मसले पर देश के 22 जगहों पर कांग्रेस नेताओं के प्रेस कांफ्रेंस पर कटाक्ष करते हुए भाजपा ने कहा कि तुष्टिकरण के कारण से जिस प्रकार से कांग्रेस ने आतंकवाद का साथ दिया है, वह कांग्रेस आज इस मसले पर देश भर में प्रेस कांफ्रेंस कर रही है। भाजपा ने कहा कि आतंकवाद पर प्रेस कांफ्रेंस करने की बजाय , कांग्रेस को माफी मांगनी चाहिए। 'कांग्रेस का हाथ आतंकवाद के साथ' होने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने कहा कि देश में हुई आतंकी घटनाओं में कांग्रेस ने जिस प्रकार से आतंकियों का साथ दिया है, वह सूची बहुत लंबी है।
भाजपा राष्ट्रीय मुख्यालय में मीडिया से बात करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि यासीन मलिक के साथ कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तस्वीर खिंचवाई थी, यूपीए सरकार के दौरान इस आतंकवादी का महिमामंडन किया गया था। बुरहान वानी के संदर्भ में कांग्रेस ने गलत नैरेटिव फैलाया। हाफिज सईद जैसा आतंकी भी दुनिया में सिर्फ एक राजनीतिक दल कांग्रेस की तारीफ करता है।
पात्रा ने सोनिया गांधी पर सीधा निशाना साधते हुए आगे कहा कि लोगों के मन मस्तिष्क के अंदर देश के विरोध में धर्म को लेकर एक उन्माद पैदा करने वाले जाकिर नायक के साथ स्वयं सोनिया गांधी खड़ी थी,क्योंकि उनके पति राजीव गांधी जी के नाम पर डोनेशन लिया था। बाटला हाउस एनकाउंटर में आतंकवादियों की लाश को देखकर कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी फूट-फूट कर रोई थी, ऐसा बयान स्वयं उनके मंत्री सलमान खुर्शीद ने दिया था। राहुल गांधी जेएनयू जाकर अफजल से जुड़े बयानों का समर्थन करते हैं और ये सब भूलकर कांग्रेस आतंकवाद को लेकर देश भर में प्रेस कांफ्रेंस कर रही है।
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस को आतंकवाद के मसले पर देश भर में प्रेस कांफ्रेंस करने की बजाय माफी मांगनी चाहिए, माफीनामा लिखना चाहिए कि उन्होंने किस प्रकार से आतंक और आतंकवादियों को बढ़ावा दिया। कांग्रेस को देश को बताना चाहिए कि उन्होंने चीन के साथ जिस एमओयू पर हस्ताक्षर किया था ,उसमें क्या था ?
भाजपा ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने के लिए गांधी परिवार आतंकियों के साथ भी गठजोड़ कर सकती है, यही उनका इतिहास रहा है। (आईएएनएस)
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली, 9 जुलाई । जांच एजेंसियों का दुरुपयोग, एक ऐसा मुद्दा रहा है जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में हमेशा ही टकराव की स्थिति देखने को मिली है। सत्ता में चाहे जो भी पार्टी या गठबंधन हो, उस समय विपक्ष की भूमिका निभाने वाला राजनीतिक दल उस पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाता नजर आता है। पिछले कुछ दशकों के दौरान, आरोप प्रत्यारोप की यह राजनीति बढ़ती ही जा रही है।
कांग्रेस के भ्रष्टाचार, घपले और घोटालों को मुद्दा बनाकर 2014 में लोक सभा चुनाव जीतने वाली भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर भी विपक्ष, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है। कांग्रेस, टीएमसी, एनसीपी, आरजेडी और शिवसेना के अलावा अन्य कई विपक्षी दल केंद्र सरकार पर ईडी, सीबीआई और अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का लगातार आरोप लगा रहे हैं।
आईएएनएस से बात करते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दार्जिलिंग से लोक सभा सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि भाजपा कानूनी प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। उन्होंने कहा कि 'चोरी ऊपर से सीनाजोरी' नहीं चलेगी। जिन लोगों ने देश की दौलत चुराई है उन्हें कानून के सामने जवाब देना ही होगा, चाहे वो कोई भी हो।
हाल ही में, राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में कांग्रेस ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं, मुख्यमंत्रियों और कार्यकतार्ओं को सड़क पर उतार दिया था। सड़कों पर आंदोलन के दौरान कांग्रेस ने दिल्ली पुलिस पर दुर्व्यवहार करने का भी आरोप लगाया। कांग्रेस नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और दिल्ली पुलिस के दुर्व्यवहार के खिलाफ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी शिकायत की।
भाजपा ने इसी महीने हैदराबाद में हुई अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कांग्रेस के इन आरोपों का पुरजोर खंडन किया। बैठक में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में कांग्रेसनीत विपक्ष पर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि, अपने राजनीतिक हित को साधने के लिए कांग्रेस एवं इसके सहयोगी दल झूठ और फरेब की राजनीति का सहारा ले रहे हैं। आज जब जांच एजेंसियों द्वारा कांग्रेस के अध्यक्ष एवं इसके पूर्व अध्यक्ष से पूछताछ की जाती है तो पूरी कांग्रेस सड़कों पर उतरकर इसका विरोध करती है।
प्रस्ताव में यह भी आरोप लगाया गया है कि, इन्हें न तो भारत के संविधान पर भरोसा है, न देश की जनता पर विश्वास है और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों में इनकी आस्था है।
कांग्रेस के आरोपों और विरोध प्रदर्शन पर पलटवार करते हुए उसी समय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था कि गांधी परिवार द्वारा भ्रष्टाचार के जरिए अर्जित किए गए दो हजार करोड़ रुपये की संपत्ति को बचाने के लिए यह प्रयास किया जा रहा है। राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ मामले में कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्य सभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि नेशनल हेराल्ड मामले का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। यह मामला यूपीए सरकार के दौरान ही 1 नवंबर 2012 को प्रारंभ हुआ था लेकिन इसमें सरकार की किसी एजेंसी द्वारा कार्रवाई नहीं हुई और अब हाइकोर्ट के निर्देश के ऊपर ही कार्रवाई हो रही है और हाइकोर्ट के निर्देश पर ही वो जमानत पर है।
हालांकि भाजपा सरकार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली कांग्रेस एकमात्र पार्टी नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल , एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, शिवसेना नेता संजय राउत, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव समेत देश के कई अन्य विपक्षी दल भी एनडीए सरकार पर इसी तरह का आरोप लगा रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आरोपों पर तीखा पलटवार करते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दार्जिलिंग से लोक सभा सांसद राजू बिष्ट ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि यह 'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' का सबसे बढ़िया उदाहरण है। पश्चिम बंगाल वह राज्य है, जहां पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी टीएमसी कैडर की तरह काम कर रहे हैं। सरकार ने मनगढ़ंत आरोप लगाकर सांसदों, विधायकों और भाजपा नेताओं के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज किए हैं, राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है और ममता बनर्जी उल्टा हम पर ( भाजपा सरकार ) आरोप लगा रही है।
भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता ने आगे कहा , ईडी ने देश भर से हजारों करोड़ की संपत्ति जब्त की है। भाजपा कानूनी प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल पुलिस पर सवाल खड़ा करते हुए लगभग 25 मामलों की जांच करने का जिम्मा सीबीआई को सौंपा है।
बिष्ट ने कहा कि 'चोरी ऊपर से सीनाजोरी'नहीं चलेगी। जिन लोगों ने देश की दौलत चुराई है उन्हें कानून के सामने जवाब देना ही होगा, चाहे वो कोई भी हो।
दरअसल, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के आरोपों पर भाजपा का स्टैंड बिल्कुल साफ है कि इन मामलों से सरकार का कोई लेना देना नहीं है। मेरिट के आधार पर जांच एजेंसिया अपनी-अपनी कार्रवाई कर रही है और सरकार पर आरोप लगाने वाले नेताओं को भ्रष्टाचार के मामले में जवाब देना चाहिए और कानूनी प्रक्रिया ( पूछताछ, जांच और मुकदमा ) के मामले में सहयोग करना चाहिए।
भाजपा के नेता यूपीए सरकार के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कई दिनों तक, एसआईटी द्वारा घंटों-घंटों तक की गई पूछताछ का हवाला देते हुए यह भी कहते हैं कि गलत और झूठे आरोपों के बावजूद मोदी ने बिना किसी हंगामें के अकेले जाकर एसआईटी के सवालों का सामना किया और जांच प्रक्रिया में पूरा सहयोग दिया लेकिन अब विपक्षी दल अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का झूठा आरोप लगा रहे हैं।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई| पिछले महीने पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद शिवसेना एक बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रही है। इसके कारण महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया गया। शिंदे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा समर्थित महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री हैं। शिवसेना के 55 में से 40 विधायक शिंदे खेमे में शामिल हो गए।
ठाकरे को एक और झटका तब लगा, जब ठाणे नगर निगम में शिवसेना के 67 सदस्यों में से 66 शिंदे गुट में शामिल हो गये। वहीं, अब शिवसेना के दो सांसद राहुल शेवाले और राजेंद्र गावित ने ठाकरे को एक पत्र लिखकर मांग की है कि पार्टी को भाजपा की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना चाहिए।
इससे पहले ठाकरे ने संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन किया था।
हालांकि बदले राजनीतिक परि²श्य में शिवसेना प्रमुख ने कहा है कि वह पार्टी के सभी सांसदों से बात करने के बाद राष्ट्रपति चुनाव के बारे में फैसला लेंगे।
सीवोटर-इंडियाट्रैकर ने आगामी राष्ट्रपति चुनावों के बारे में शिवसेना के रुख के बारे में लोगों के विचार जानने के लिए आईएएनएस के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वे किया।
सर्वे से पता चला कि उत्तरदाताओं के एक बड़े अनुपात के साथ इस मुद्दे पर लोगों के विचार विभाजित थे। 57 प्रतिशत ने सुझाव दिया कि ठाकरे को मुर्मू का समर्थन करना चाहिए। वहीं 43 प्रतिशत इस भावना से असहमत थे और कहा कि शिवसेना प्रमुख को संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करना चाहिए।
सर्वे के दौरान, जबकि एनडीए के 64 प्रतिशत मतदाताओं ने जोर देकर कहा कि ठाकरे की पार्टी को भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को वोट देना चाहिए, इस मुद्दे पर विपक्षी समर्थकों के विचार विभाजित थे।
सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, जहां विपक्षी समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा- 51 प्रतिशत ने कहा कि ठाकरे को मुर्मू का समर्थन करना चाहिए, वहीं 49 प्रतिशत ने सुझाव दिया कि पार्टी को यशवंत सिन्हा को वोट देना चाहिए।
सर्वे में इस मुद्दे पर विभिन्न सामाजिक समूहों की राय में अंतर पर प्रकाश डाला गया।
जबकि अधिकांश उच्च जाति हिंदुओं (यूसीएच), 68 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 66 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग 63 प्रतिशत ने सुझाव दिया कि ठाकरे को मुर्मू का समर्थन करना चाहिए, जबकि अधिकांश मुसलमानों ने यशवंत सिन्हा के समर्थन में पार्टी के पक्ष में बात की।
इस मुद्दे पर अनुसूचित जनजातियों के विचार विभाजित थे। एक बड़े अनुपात के साथ, 56 प्रतिशत ने यशवंत सिन्हा को शिवसेना के समर्थन का सुझाव दिया।
(आईएएनएस)
पटना, 9 जुलाई | भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर पटना में पार्टी के बिहार विंग के पदाधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करेंगे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने शुक्रवार देर रात नड्डा के दौरे की योजना बनाने और तैयारियों की रिपोर्ट लेने के लिए एक बैठक की।
जायसवाल ने कहा, "राष्ट्रीय अध्यक्ष की बैठक जिलाध्यक्षों और अन्य अधिकारियों के अलावा संगठन के हर विंग के प्रभारी के साथ होगी।"
जायसवाल ने कहा, "हम प्रत्येक कार्यकर्ता, विभिन्न विंग के अध्यक्षों, जिलाध्यक्षों और राज्य के अन्य अधिकारियों के लिए 14, 15 और 16 जुलाई को तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेंगे। हम उस कार्यक्रम में 300 नेताओं के भाग लेने की उम्मीद कर रहे हैं।"
जायसवाल ने आगे कहा, "नेता आगे 'सप्तऋषि' और 'पन्ना प्रमुख' जैसे जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से संवाद करेंगे। पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाएगा। तीन दिवसीय कार्यक्रम के बाद वे 31 जुलाई को नड्डा के दौरे के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।"
(आईएएनएस)
उपचुनाव विशेष रिपोर्ट-6
आसनसोल से बिकास के शर्मा
आसनसोल संसदीय इलाके में हिंदी भाषी मतदाताओं का प्रतिशत करीब 55 है। मुख्य रूप से जिन दो दलों में टक्कर संसदीय उपचुनाव में देखी जा रही है वैसी भाजपा एवं तृणमूल ने हिंदी भाषी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए एडी से लेकर चोटी तक एक करने वाला प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। जहां एक और राज्य की सत्ताशीन तृणमूल के प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा स्वयं एक हिंदी भाषी हैं और प्रचार के दौरान ज्यादातर हिंदी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं उनके काम चलाऊ बांग्ला भाषा का ज्ञान उनको बांग्ला भाषी मतदाताओं के बीच भी कहीं-न-कहीं स्थापित कर रहा है।
साथ ही भाजपा ने एक बांग्ला भाषी आसनसोल दक्षिण की विधायक अग्निमित्रा पॉल को टिकट देकर अपने पारंपरिक रूप से माने जाने वाले हिंदी वोटरों के साथ-साथ बंगाली समुदाय को भी यह संदेश दिया है कि पार्टी गैर बंगालियों की नहीं बल्कि आपकी अपनी ही है। हालांकि श्रीमती पॉल के समर्थन में दिखाई देने वाले विधायक अजय कुमार पोद्दार, पूर्व मेयर जितेंद्र तिवारी, राजेश सिंहा आदि नेता हिंदी भाषी ही हैं। भाषाई संतुलन में तृणमूल और भाजपा दोनों ही एक दूसरे को मात देने में जुटी हुईं हैं।
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल को बांग्ला भाषियों का प्रचुर समर्थन मिला था, जिसकी बदौलत वे बहुमत से जीतकर मुख्यमंत्री बनीं। लगातार भाजपा की तरफ खिसकते गैर बांग्ला भाषियों को साधने के लिए ही तृणमूल नेत्री ने एक समय भाजपा के संग रहे केंद्रीय मंत्री एवं अपने जमाने के लोकप्रिय फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिंहा को लोकसभा उपचुनाव में आसनसोल सीट से उतारा है।
राजनीतिक विश्लेषक दिनेश पांडे की मानें तो भाजपा द्वारा अग्निमित्रा को यूं ही टिकट नहीं दिया गया है अपितु उसके पीछे भगवा दल की सोची समझी रणनीति यह है कि गैर बांग्ला भाषियों के वोट तो भाजपा के संग होते ही हैं और बंगाली महिला को खड़ा करके कुछ प्रतिशत वोट भी ले लिए जाएं तो जीत निश्चित होगी।
श्री पांडेय ने आगे कहा कि तृणमूल द्वारा हिंदी भाषी को और भाजपा द्वारा बांग्ला भाषी नेता को टिकट देना ही आसनसोल सीट को सबसे रोचक बना देता है। लेकिन देश के क्षेत्रीय दलों को अपनी राष्ट्रवादी रणनीति में फंसाने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा और देश में विपक्ष की मजबूत आवाज बन चुकीं नेत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के उपचुनाव प्रचार को देखकर कबीर की उलट बांसी याद आती है।
आसनसोल के पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जहां हिंदी भाषियों के बीच जमकर काम किया था और तृणमूल केवल बंगाली समुदाय और मुस्लिमों के बीच ही फंसी रह गई इस बार भाजपा का बांग्ला भाषी उम्मीदवार को टिकट देना और प्रचार के लहजे में 'आसनसोल घोरेर मेेयेके चाय' (आसनसोल घर की बेटी को चाहता है) यह मानकर किया जा रहा है कि दो चुनाव में आए हिंदी भाषियों के वोटों के साथ इस बार बंगाली वोट भी भाजपा के साथ रहेगा।
वहीं तृणमूल सुप्रीमो के बंगाल की जमीन का होने के दावे के बीच हिंदी भाषी शत्रुघ्न सिन्हा को टिकट देकर दोनों वोटों का संतुलन बनाया जा रहा है। किंतु राजनीतिक विश्लेषक सह वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रदीप कुमार सुमन का मानना है कि इस बार यह भी स्पष्ट है कि श्री सिन्हा के पक्ष में हिंदी भाषियों का एक बड़ा वर्ग मैदान में उतारा हुआ है और जहां भी वे जा रहे हैं लोगों का हुजूम लग जा रहा है जो कि विगत दो चुनावों में तृणमूल प्रार्थियों के साथ नहीं देखा गया है। उन्होंने कहा कि लगातार बंगाल के सभी चुनावों में जीत से भी राज्य की सत्ताशीन पार्टी का आत्मबल मजबूत है और सभी नेताओं ने सीट को भाजपा से छीनने में पूरी ताकत लगा दी है। वाममोर्चा समर्थिक सीपीआईएम और कांग्रेस के जनाधार के कम होने का लाभ भी इस बार तृणमूल के पक्ष में ही जाता दिखाई दे रहा है।
प्रयागराज में रेलवे भर्ती में नए नियम लागू करने और अन्य भर्तियों में देरी को लेकर आंदोलन कर रहे छात्रों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया और फिर घरों में घुसकर तलाशी ली गई, पीटा गया और कई छात्रों को हिरासत में भी लिया गया.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
प्रयागराज के वरिष्ठ पुलिस अजय कुमार ने बताया, "मंगलवार को थाना कर्नलगंज के प्रयाग स्टेशन पर हजार की संख्या में छात्रों ने हंगामा किया और रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया. सूचना मिलने पर पुलिस वहां पहुंची काफी कोशिश के बाद हंगामा कर रहे छात्रों को वहां भगाया गया. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया था. पुलिस द्वारा हटाए जाने के बाद वो आस-पास के लॉज में छिप गए और वहां से पत्थरबाजी भी कर रहे थे.”
छात्रों पर बलप्रयोग
एसएसपी का कहना था कि इसके बाद कुछ पुलिसकर्मी भी लॉज में घुसे और बल प्रयोग किया. उनके मुताबिक, "इस तरह के वीडियो भी संज्ञान में आए हैं. पूरे घटनाक्रम की जांच की जा रही है. जो उपद्रवी छात्र हैं उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है और जिन पुलिसकर्मियों ने अनावश्यक बल प्रयोग किया है उनके खिलाफ भी निलंबन की कार्रवाई की जा रही है. किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा.”
प्रदर्शनकारी छात्रों के मुताबिक पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज किया और दर्जनों छात्रों को उनके हॉस्टलों और घरों से हिरासत में ले लिया. लाठी चार्ज होने पर प्रदर्शनकारी छात्र आस-पास के हॉस्टलों और घरों में छिप गए लेकिन पुलिस ने हॉस्टलों और लॉज में रह रहे छात्रों को वहां से जबरन निकाला, मारा-पीटा और कमरों के दरवाजे भी तोड़ दिए.
छोटा बघाड़ा में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र दीपक मौर्य ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरे लॉज में करीब तीस छात्र रहते हैं. हम सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं और हममें से कोई प्रदर्शन में शामिल भी नहीं था. फिर भी हमारे लॉज से पुलिस वाले छात्रों को पीटते हुए बाहर ले गए. कमरों में घुसकर किताबें तक फाड़ दीं. हम लोग हाथ जोड़ कर अपने बारे में बताते रहे लेकिन उनके सिर पर जैसे जुनून सवार था. यह सुनिश्चित होने के बाद कि हम लोग प्रदर्शन में नहीं थे, हमें छोड़ दिया गया.”
किस बात का विरोध
वहीं प्रदर्शन में शामिल कई छात्र अभी भी लापता बताए गए हैं. पुलिस ने कुछ छात्रों को हिरासत में लिया है लेकिन उनका विवरण नहीं दिया गया है. यहां रह रहे तमाम प्रतियोगी छात्र डर के मारे मीडिया से भी बात नहीं कर रहे हैं. प्रतियोगी छात्र रेलवे की एनटीपीसी यानी नॉनटेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी की ग्रुप डी परीक्षा को दो चरणों में कराए जाने का विरोध कर रहे थे. शुरुआत में जब इस परीक्षा का नोटिफिकेशन आया था तब यह एक ही चरण में होनी थी और उसके बाद फिजिकल टेस्ट होना था.
एक प्रतियोगी छात्र देवेश के मुताबिक, "आरआरबी एनटीपीसी यानी नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी ग्रुप टी की वेकेंसी 2019 में निकली थी. काफी दबाव के बाद अगले महीने फरवरी में परीक्षा की तारीख आई. ग्रुप डी की परीक्षा में अब तक एक चरण की परीक्षा होती थी और उसके बाद फिजिकल होता था. परीक्षा से ठीक पहले रेलवे ने एक नया नोटिफिकेशन जारी कर बताया कि अब परीक्षा दो चरणों में होगी, उसके बाद फिजिकल होगा.”
हालांकि छात्रों के विरोध के बाद अब रेलवे ने इस परीक्षा को स्थगित कर दिया है और छात्रों की शिकायतों की जांच के लिए एक कमेटी बना दी है. इससे पहले, इसी रेलवे की एनटीपीसी में ही ग्रुप सी की परीक्षा के परिणाम में धांधली के आरोपों को लेकर भी छात्रों ने आंदोलन किया था. उस समय भी सैकड़ों की संख्या में छात्रों को हिरासत में लिया गया था.
गड़बड़ी के आरोप
प्रयागराज में छात्र नेता पंकज पांडेय कहते हैं, "एनटीपीसी के ग्रुप सी के रिजल्ट में एक ही छात्र को 4 से अधिक पदों पर पहली बार की परीक्षा में ही क्वालीफाई कराया जा रहा है. इसलिए छात्रों की मांग है कि जो रिजल्ट जारी किया जाए, वो 20 गुना हो और प्रत्येक पद का 20 गुना होना चाहिए. रेलवे मंत्रालय ने अलग-अलग तरीके से स्पष्टीकरण देकर के यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया है कि उसने जो रिजल्ट जारी किया है वह सही है, लेकिन वह यह नहीं बता पा रहा है कि एक छात्र को एक से ज्यादा पदों पर कैसे क्वालीफाई कराया गया है.”
पंकज पांडेय बताते हैं, "देश भर के विभिन्न रेलवे जोन में नॉन-टेक्निकल पापुलर कटेगरी (NTPC) में 35 हजार से अधिक ग्रुप सी पदों पर भर्ती के लिए सात चरणों में रेलवे भर्ती बोर्ड द्वारा आयोजित पहले चरण यानि CBT1 (कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट1) के नतीजों की घोषणा 14 जनवरी 2022 को की गई थी. इसके बाद से कई उम्मीदवार एनटीपीसी परीक्षा परिणाम में कथित गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर आवाज उठा रहे हैं. इस बारे में अब तक 30 लाख से अधिक ट्वीट किए जा चुके हैं. वहीं ग्रुप डी नौकरी के लिए पहले एक चरण में परीक्षा कराने का नोटिफिकेशन आया लेकिन अब कह रहे हैं कि दो चरण में परीक्षा होगी.”
मंगलवार को प्रतियोगी छात्रों के खिलाफ हुई पुलिस कार्रवाई के वीडियो देखते ही देखते वायरल होने लगे तो इसकी गूंज राजनीतिक स्तर पर भी होने लगी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पुलिस की कार्रवाई के वीडियो पोस्ट करते हुए ट्विटर पर लिखा है, "प्रयागराज में पुलिस द्वारा छात्रों के लॉज में और हॉस्टलों में जाकर तोड़-फोड़ करना एवं उनको पीटना बेहद निंदनीय है. प्रशासन इस दमनकारी कार्रवाई पर तुरंत रोक लगाए. युवाओं को रोजगार की बात कहने का पूरा हक है और मैं इस लड़ाई में पूरी तरह से उनके साथ हूं.”
बिहार में भी भड़के छात्र
प्रतियोगी छात्र बिहार में भी आंदोलनरत हैं और मंगलवार को उनके प्रदर्शन का दूसरा दिन था. ये छात्र भी रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड द्वारा नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी में अलग-अलग पदों पर निकली भर्तियों में धांधली और लापरवाही को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. मंगलवार को इन छात्रों का प्रदर्शन भी काफी उग्र हो गया.
पुलिस ने छात्रों पर डंडे बरसाए तो छात्रों ने भी पुलिस टीम पर पत्थरबाजी की. छात्रों के साथ कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं. आंदोलन ना सिर्फ पटना में बल्कि आरा, नवादा जैसे कई अन्य जिलों से सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने संबंधी तस्वीरें भी आई हैं. कुछ जगहों पर रेल कोच जलाए जाने की भी घटनाएं हुई हैं.
रेलवे की चेतावनी
प्रयागराज में पिछले कई दिन से छात्र रेलवे की भर्ती परीक्षा यानी आरआरबी एनटीपीसी के रिजल्ट में व्यापक पैमाने पर धांधली का आरोप लगाते हुए आंदोलन कर रहे हैं. पिछले दिनों भी आंदोलन कर रहे कई छात्रों को हिरासत में लिया गया था.
इससे पहले छात्रों के विरोध और उनके तमाम आरोपों को खारिज करते हुए मंगलवार को रेलवे ने एक धमकी भरा नोटिफिकेशन जारी किया था. इस में कहा गया है कि विरोध करने वाले छात्रों को भविष्य में रेलवे की किसी भी परीक्षा में बैठने से वंचित किया जा सकता है.
रेलवे के नोटिफिकेशन में लिखा था, "संज्ञान में ये बात आई है कि रेलवे की नौकरी के आकांक्षी उम्मीदवार गैरकानूनी गतिविधियों जैसे कि रेल की पटरी पर विरोध प्रदर्शन, ट्रेन संचालन में व्यवधान उत्पन्न करने और रेल की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की गतिविधियों में शामिल हैं. ऐसी गतिविधियां अनुशासनहीनता का उच्चतम स्तर है. विशेष एजेंसियों की सहायता से ऐसी गतिविधियों से संबंधित वीडियो की जांच की जाएगी. गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल उम्मीदवारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की जाएगी, साथ ही उन्हें रेलवे की नौकरी प्राप्त करने के संबंध में आजीवन प्रतिबंधित भी किया जा सकता है.”
प्रतियोगी छात्रों की समस्या
प्रयागराज, दिल्ली, पटना जैसी जगहों पर लाखों की संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र रहते हैं. इनमें कुछ सिविल सेवाओं की और कुछ ग्रुप सी और डी की नौकरियों की तैयारी करते हैं. जब रेलवे और बैंकिंग जैसी बड़ी संख्या में नौकरी देने वाली संस्थाओं की वैकेंसी नहीं आती तो छात्रों के कई साल परीक्षा के इंतजार में ही चले जाते हैं. छात्र जिस परीक्षा को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, उसका विज्ञापन साल 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आया था.
छात्रों की समस्याओं और परीक्षाओं में होने वाली धांधली के खिलाफ आवाज मुखर करने वाली संस्था युवा हल्ला बोल से जुड़े गोविंद मिश्र कहते हैं, "सरकार की प्राथमिकताओं में रोजगार देना है ही नहीं. चुनावी एजेंडे में ही रहता है यह. छात्र परीक्षाओं का इंतजार ही करता रहता है. उसे लगता है कि परीक्षा देंगे तब पता चलेगा कि वो योग्य है या नहीं लेकिन यहां तो परीक्षा ही कई-कई साल नहीं हो रही है.
पांच साल तो उसे परीक्षा देने में लग जा रहे हैं, उसमें भी यदि एक बार असफल हो गया तो अगली परीक्षा के लिए फिर कई साल का इंतजार करना पड़ता है. बड़े शहरों में हजारों कोचिंग और तमाम लोगों के रोजगार इन्हीं छात्रों की बदौलत फल-फूल रहे हैं लेकिन सरकारी नौकरी की चाहत में छात्र और उनके अभिभावक आखिरकार खुद को ठगे हुए ही पाते हैं.” (dw.com)