राजनीति
कोलकाता, 14 जून| पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को आरोप लगाया कि केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने हार को स्वीकार नहीं किया है और अब वह राज्य को बांटने की कोशिश कर रही है। मुख्यमंत्री की आलोचना ऐसे समय में सामने आी है, जब भाजपा के कई सांसदों और विधायकों ने केंद्र सरकार से उत्तर बंगाल को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने का अनुरोध करने का फैसला किया है।
ममता ने कहा, हमने कभी भी उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल के बीच अंतर नहीं किया है। पश्चिम बंगाल पश्चिम बंगाल है और राज्य के इन दो हिस्सों में कोई अंतर नहीं है। हमने बंगाल के दोनों हिस्सों को समान महत्व देने की कोशिश की है और उन्हें समान रूप से विकसित किया है।
बनर्जी ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, मैं यह भी कहना चाहूंगी कि कुछ मामलों में उत्तर बंगाल में दक्षिण बंगाल की तुलना में अधिक विकास हुआ है। हम केंद्र को किसी भी तरह से राज्य को विभाजित करने की अनुमति नहीं देंगे।
मुख्यमंत्री का आरोप भाजपा विधायकों और सांसदों की रविवार शाम को हुई एक बैठक के बाद सामने आया है, जिसमें केंद्र से पांच जिलों - कूच बिहार, दार्जिलिंग, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी और कलिम्पोंग को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की अपील करने का फैसला किया था।
बैठक में मौजूद एक भाजपा सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, इस क्षेत्र में चीन और बांग्लादेश से बहुत घुसपैठ हुई है और कोई भी सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि जनप्रतिनिधियों को भी इस स्थिति के कारण सुरक्षा कवच लेना पड़ता है। ऐसे में हम केंद्र से अपील करेंगे कि उत्तर बंगाल के इन जिलों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए।
इस कथित साजिश के पीछे भाजपा के केंद्रीय नेताओं का हाथ होने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, भाजपा हार स्वीकार नहीं कर सकती और इसलिए वह कूचबिहार, दार्जिलिंग, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी और कलिम्पोंग को बेचने की कोशिश कर रही है। हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे। भाजपा को बांटो और राज करो की इस नीति को बंद कर अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।
कश्मीर में भाजपा की नीति का जिक्र करते हुए बनर्जी ने कहा, उन्होंने कश्मीर में जो किया वह यहां करने की कोशिश कर रहे हैं। कश्मीर में क्या हो रहा है? क्या यह लोकतंत्र है? आप किसी को बोलने की अनुमति नहीं देते हैं। आप नेताओं को नजरबंद रखते हैं और लोगों की आवाज दबाते हैं। क्या वे यहां भी ऐसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं? हम इसकी अनुमति कभी नहीं देंगे।
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, भाजपा लंबे समय से ऐसा करने की कोशिश कर रही है और चुनाव प्रचार के दौरान भी उसने कहा था कि अगर वह सत्ता में आई तो वह उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल को बांट देगी।
टीएमसी नेता ने कहा, अब जब उन्हें लोगों ने खारिज कर दिया है, तो वे अपनी योजना को गोल चक्कर में पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह एक खतरनाक संकेत है और हम सभी को इस अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और विरोध करना चाहिए।
उन्होंने कहा, हम उत्तर बंगाल की स्थिति से डरे हुए हैं। चीन कुछ अन्य पड़ोसी देशों के साथ देश की संप्रभुता को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है और इस क्षेत्र में कोई भी सुरक्षित नहीं है।
वहीं इस मुद्दे पर उत्तर बंगाल से भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, हमारे पास 2.28 करोड़ लोगों का समर्थन है और हम एक आंदोलन शुरू करेंगे ताकि उत्तर बंगाल केंद्र शासित प्रदेश बन सके। केवल केंद्र सरकार ही लोगों को बचा सकती है और हम केंद्र से इस पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध करेंगे। (आईएएनएस)
चेन्नई, 14 जून | अन्नाद्रमुक की पार्टी मुख्यालय में हुई बैठक में पूर्व अंतरिम महासचिव वी.के. शशिकला से संपर्क करने पर पार्टी प्रवक्ता वी. पुगाझेंडी समेत 17 नेताओं को निष्कासित कर दिया गया। पूर्व मंत्री एम.आनंदन और पूर्व सांसद चिन्नास्वामी उन अन्य वरिष्ठ नेताओं में शामिल है, जिन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। बैठक में शशिकला के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें पार्टी के कुछ नेताओं से संपर्क करने के कारण उन्हें फटकार लगाई गई। प्रस्ताव में शशिकला पर पार्टी पर कब्जा करने की कोशिश करने और कुछ नेताओं से बात करके नाटक रचने और फिर बातचीत के कुछ हिस्सों को लीक करने का भी आरोप लगाया गया।
आय से अधिक संपत्ति से जुड़े एक मामले में चार साल की कैद की सजा काटने के बाद बेंगलुरु सेंट्रल जेल से रिहा होने के बाद शशिकला ने तमिलनाडु की राजनीति में धमाकेदार एंट्री करने की कोशिश की थी।
वह 7 फरवरी, 2021 को बेंगलुरु से 1000 वाहनों के काफिले में तमिलनाडु पहुंची थीं और 350 किलोमीटर के सफर, जिसमें 6 से 7 घंटे लगे, पूरे दिन उनका भव्य स्वागत किया गया था।
राज्य की राजनीति में कुछ दिनों के दबदबे के बाद, शशिकला ने अचानक घोषणा की कि वह सक्रिय राजनीति से हट रही हैं, राजनीतिक पर्यवेक्षकों और पार्टी के प्रति सहानुभूति रखने वालों के लिए यह आश्चर्य की बात थी।
हालांकि विधानसभा चुनाव के नतीजे आने और अन्नाद्रमुक के चुनाव हारने के बाद शशिकला ने पार्टी में अपना दखल फिर से शुरू कर दिया और राज्यभर में अन्नाद्रमुक के कई वरिष्ठ, मध्यम और निचले स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ अपनी चुनिंदा टेलीफोन बातचीत को उन्होंने लीक कर दिया। उन्होंने चैट के माध्यम से सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वह सक्रिय राजनीति में लौट रही हैं और समर्थक उनके प्रति बहुत आदर-भाव रखते हैं।
अन्नाद्रमुक नेता एडप्पादी के. पलानीस्वामी और ओ. पनीरसेल्वम ने उनके बयानों की खुले तौर पर निंदा की है और पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को कड़ी चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने शशिकला से संपर्क किया तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया जाएगा।(आईएएनएस)
लखनऊ, 9 जून| कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद के बुधवार को भाजपा में शामिल होने के कदम को कांग्रेस की बागी विधायक अदिति सिंह ने पार्टी की बड़ी क्षति बताया है। इसको लेकर कांग्रेस की बागी विधायक ने पार्टी को नसीहत दी है। उन्होंने कहा पार्टी को आत्ममंथन करने की जरूरत है। रायबरेली सदर से विधायक अदिति सिंह को कांग्रेस ने निलंबित कर रखा है। कांग्रेस से विधायक रहे दिवंगत बाहुबली अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह ने कहा कि वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद का पार्टी को छोड़कर जाना एक बड़ी क्षति है। अब तो पार्टी को आत्ममंथन करना चाहिए। पार्टी में सुनवाई न होने के कारण युवा नेताओं में निराशा है। जितिन प्रसाद का कांग्रेस से जाना बहुत बड़ा नुकसान है। उनका खमियाजा उन्हें 2022 के चुनाव में भुगतना पड़ेगा।
विधायक अदिति सिंह ने कहा कि हमारी समस्या शीर्ष नेतृत्व नहीं सुनता है। इसका उदाहरण समय-समय पर देखने को मिलता है। जनप्रतिनिधि की बात हाईकामान नहीं सुनता है। जबकि आपको उनकी बात सुननी पड़ेगी। अगर आप नहीं सुनते हैं तो भला आपकी पार्टी में लोग कैसे रहेंगे। इसीलिए धीरे-धीरे करके युवा कांग्रेस छोड़ रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और कुंवर जितिन प्रसाद जैसे वरिष्ठ नेता क्यों जा रहे हैं। यह तो तय हो गया है कि कांग्रेस एक परिवार की पार्टी बनती जा रही है। भाजपा में जितिन प्रसाद जी का भविष्य काफी उज्जवल होगा।
अदिति सिंह ने कहा, "जितिन प्रसाद का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए समस्या है। अब तो बड़े नेताओं को उत्तर प्रदेश में जमीन पर काम करने की जरूरत है। मंथन करें कि आखिर बड़े नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं।" उन्होंने कहा, "उत्तर प्रदेश की सियासत में जमीन पर कांग्रेस को काम करने की जरूरत है। मैं सच और साफ बोलती हूं। मेरी बात अगर किसी को बुरा लगती है तो हम इसका कुछ नहीं कर सकते। मैं प्रियंका गांधी पर कोई टिप्पणी नहीं करती, लेकिन उन्हें खुद देखने की जरूरत है।" (आईएएनएस)
भोपाल, 9 जून| मध्य प्रदेश में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की सूची में सदस्यों के नाम के आगे जाति का उल्लेख किए जाने के बाद मचे बवाल के चलते जाति के ब्यौरे को हटाना पड़ा है और नई कार्यसमिति की सूची जारी की गई है। कांग्रेस पदाधिकारियों के नाम के साथ जाति बताने पर तंज भी कसा। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने स्थायी आमंत्रित सदस्यों और कार्यसमिति सदस्यों की सूची जारी की। इस सूची में 23 स्थायी आमंत्रित सदस्य है, 162 कार्यसमिति सदस्य है और इसके अलावा 217 विशेष आमंत्रित सदस्य है। पार्टी की ओर से जारी की गई सूची में सभी की जाति का उल्लेख किया गया था। इस बात के सामने आने पर सियासी गलियारे में हलचल मचे तो पार्टी ने इसमें बदलाव किया, दूसरी सूची जारी की गई जिसमें जाति का उल्लेख नहीं है।
भाजपा की इस कार्यसमिति की सूची में स्थायी आमंत्रित सदस्य, कार्यसमिति सदस्य और विशेष आमंत्रित सदस्यों के नाम के आगे जाति का उल्लेख करने वाली सूची मंगलवार की देर रात को सोशल मीडिया पर आई, उसके कुछ देर बाद ही पार्टी को उसमें बदलाव करना पड़ा।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने भाजपा की कार्यसमिति की सूची से जाति हटाए जाने पर तंज कसा और ट्वीट किया है कि अच्छा हुआ भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारियों की सूची के आगे से जाति का कालम हटा दिया, नहीं तो वो 'भारतीय जाति पार्टी' बन गई थी।
अब से पहले किसी भी राजनीतिक दल ने पदाधिकारियों के नाम के आगे जाति का उल्लेख नहीं किया गया, ऐसा घटनाक्रम पहली बार सामने आया है, सवाल उठ रहा है कि क्या यह किसी की साजिश का हिस्सा था या किसी ने चूक कर दी है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 6 जून | भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिवों की टीम ने रविवार को प्रधानमंत्री आवास पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में पहुंची टीम के साथ प्रधानमंत्री मोदी की मीटिंग भी चली। माना जा रहा है कि इस मीटिंग में अगले साल 7 राज्यों में होने जा रहे चुनावों तैयारियों और कोरोना काल में पार्टी के सेवा कार्यों की समीक्षा हुई। वर्ष 2017 में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से पंजाब छोड़कर सभी राज्यों में भाजपा की सरकार है। लिहाजा, इन भाजपा को सत्ता पर कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है। चुनाव नजदीक आने पर भाजपा संगठन तैयारियों में जुट गया है। अब संगठनात्मक बैठकों का सिलसिला तेज हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिन के भीतर भाजपा नेताओं के साथ यह दूसरी बैठक है।
इससे पूर्व शनिवार को भाजपा के सभी मोर्चा अध्यक्षों के साथ भी प्रधानमंत्री मोदी ने मीटिंग की थी। भाजपा के एक नेता ने आईएएनएस को बताया कि पार्टी ने कोरोना काल में जरूरतमंदों की सेवा के लिए अभियान चलाया है। इस अभियान की पार्टी समीक्षा कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी को भी पूरे अभियान की सफलता की जानकारी दी जा रही है।
हालांकि, सूत्रों का कहना है कि सेवा ही संगठन नामक अभियान का मकसद जनसंपर्क का है। इससे मतदाताओं की नाराजगी की भी दूर करने की कोशिश हो रही है।(आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 7 जून| भाजपा के केरल अध्यक्ष के. सुरेंद्रन को रविवार को कोर कमेटी की बैठक में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
कोर कमेटी में सभी चार राज्य महासचिवों के साथ-साथ सभी पूर्व राज्य प्रमुखों के सदस्य हैं। राज्य में पार्टी केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन के नेतृत्व वाले गुट और पूर्व प्रमुख पी.के. कृष्णदास गुट में विभाजित है। यही वजह है कि बैठक तूफानी रही।
भाजपा सूत्रों ने बताया कि बैठक में कृष्णदास, प्रदेश महासचिव ए.एन. राधाकृष्णन और एम.टी. रमेश ने मुरलीधरन और सुरेंद्रन के खिलाफ जमकर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य नेतृत्व सभी के साथ आम सहमति बनाने में विफल रहा है और यह चुनावों में पार्टी की हार का मुख्य कारण था।
एक और आरोप यह था कि उम्मीदवार चयन प्रक्रिया अपारदर्शी थी और राज्य नेतृत्व उचित उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में विफल रहा, जिससे सफाया हो गया। भाजपा ने 2021 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई, यहां तक कि नेमोम सीट भी हार गई थी जो उसने 2016 में जीती थी।
प्रतिद्वंद्वी गुट ने बसपा उम्मीदवार के. सुंदरा द्वारा लगाए गए आरोपों को उठाया, जिन्होंने मंजेश्वर विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन वापस ले लिया था, जहां से सुरेंद्रन ने मीडिया को बताया था कि उन्हें वापस खींचने के लिए 2.5 लाख रुपये और एक स्मार्टफोन दिया गया था। उन्होंने कहा कि सुरेंद्रन के जीतने पर उन्हें कर्नाटक में 15 लाख रुपये, एक घर और एक वाइन पार्लर की भी पेशकश की गई थी।
सुरेंद्रन और मुरलीधरन ने हालांकि तर्क दिया कि पार्टी के उम्मीदवारों को पार्टी के सर्वोत्तम हित में अंतिम रूप दिया गया था।
उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्रन किसी भी तरह से धन की चोरी में शामिल नहीं थे।
राज्य भाजपा उस समय से दबाव में है जब आरएसएस कार्यकर्ता धर्मराजन ने कोडकारा पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि लोगों के एक समूह ने मतदान से कुछ दिन पहले तीन अप्रैल को उनकी कार को रोककर उन पर हमला किया था और उनसे 25 लाख रुपये लूट लिए थे।
पुलिस ने कई जाने-माने अपराधियों को गिरफ्तार किया और जांच के दौरान भाजपा की युवा शाखा के पूर्व कोषाध्यक्ष सुनील डी. नाइक का भी नाम सामने आया. नाइक सुरेंद्रन का करीबी सहयोगी था और गिरफ्तार लोगों से पूछताछ में एक करोड़ रुपये से अधिक का खुलासा होने के बाद मामला चर्चा का प्रमुख विषय बन गया।
पुलिस ने भाजपा के प्रदेश महासचिव, संगठन और आरएसएस के वरिष्ठ नेता एम. गणेशन और पार्टी के राज्य कार्यालय सचिव जी. गिरीशन से पूछताछ की। सूत्रों ने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में सुरेंद्रन के बेटे हरिकृष्णन से भी पूछताछ की जाएगी।
कोर कमेटी की बैठक से पहले रविवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन ने मीडिया से कहा कि पार्टी सुरेंद्रन को निशाना नहीं बनने देगी। (आईएएनएस)
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने शुक्रवार को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कहा कि वह भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र उप-चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार उतारने के इच्छुक नहीं हैं। चौधरी ने कहा, "टीएमसी के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी...लेकिन इस मुद्दे पर मुझे लगता है कि हमें...कोई उम्मीदवार नहीं उतारना चाहिए।" (inshorts.com)
बेंगलुरु, 28 मई | कर्नाटक के पर्यटन मंत्री सी.पी. योगेश्वर, जो मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के खिलाफ बोलते हैं, उनका अब दावा है कि राज्य में मौजूदा सरकार भाजपा की सरकार नहीं, बल्कि 'तीनों दलों का गठबंधन सेटअप है। यहां राज्य कैबिनेट की बैठक से इतर पत्रकारों को संबोधित करते हुए योगेश्वर ने कहा कि वह सरकार में हर संभव स्तर पर अपमान का सामना करते रहे हैं और यही सब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को बताने के लिए नई दिल्ली गए थे।
उन्होंने कहा, "क्या हमारे यहां एक पार्टी की सरकार है? जब हमने 2019 के मध्य में सरकार बनाने के लिए सभी कष्ट उठाए, तो हम सबने मान लिया कि हम भाजपा की सरकार बना रहे हैं, लेकिन आज हमारे पास यहां तीन दलों का गठबंधन है।"
विस्तार से पूछे जाने पर, योगेश्वर ने कहा कि वह निश्चित रूप से जद-एस और कांग्रेस से आए 17 विधायकों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन वर्तमान व्यवस्था में, यह (सरकार) भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं व नेताओं की कीमत पर सर्वोच्च शासन करने के लिए राजनीति को एडजस्ट (समायोजित) कर रही है।"
उन्होंने कहा, "मेरे अपने मामले (चन्नापटना विधानसभा सीट) में, भाजपा का मेरे कट्टर प्रतिद्वंद्वियों (जद-एस नेता, एचडी कुमारस्वामी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार) के साथ समायोजन है। अगर यह आगे भी जारी रहता है, तो क्या यह 2023 में चुनावी संभावनाओं को प्रभावित नहीं करेगा? क्या मुझे इसे दिल्ली में अपनी पार्टी के शीर्ष अधिकारियों के सामने नहीं लाना चाहिए?"
प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष और येदियुरप्पा के सबसे छोटे बेटे बी.वाई. विजयेंद्र पर परोक्ष हमला करते हुए योगेश्वर ने कहा कि मंत्री बनने के बाद उन्होंने महसूस किया कि येदियुरप्पा के नाम पर जारी किए जा रहे आदेशों के बोझ को संभालना कितना मुश्किल है। उन्होंने कहा, "कोई कब तक सभी स्तरों पर इस तरह के अपमान को सहन कर सकता है?"
एक सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा कि वह अपनी सीमाएं अच्छी तरह जानते हैं। (आईएएनएस)
पणजी, 24 मई| गोवा में कांग्रेस ने सोमवार को राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आइवरमेक्टिन की गोलियां उपलब्ध कराने में भाजपा नीत गठबंधन सरकार की विफलता पर सवाल उठाया, क्योंकि 10 मई को घोषणा की गई थी कि परजीवी को मारने वाली एक दवा है कोविड के मामलों की रोकथाम में कारगर है। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर ने सोमवार को कहा कि बताया गया था कि आइवरमेक्टिन बढ़ते कोविड मामलों से निपटने के लिए नए निवारक उपचार प्रोटोकॉल का हिस्सा है।
एक आधिकारिक बयान में, चोडनकर ने आइवरमेक्टिन टैबलेट की खरीद में घोटाले का भी आरोप लगाया।
चोडनकर ने कहा, "यह चौंकाने वाला है कि पूरे गोवा में लगभग 15 स्वास्थ्य केंद्रों के साथ हमारी पूछताछ में, उनमें से किसी को भी आज तक आइवरमेक्टिन की गोलियां नहीं मिली हैं। हमने विभिन्न गांवों के लोगों से भी पूछताछ की है, जिन्होंने हमें पुष्टि की है कि गोलियां उन तक नहीं पहुंची हैं।"
एक बड़े फैसले में, गोवा सरकार ने 10 मई को अपने कोविड उपचार प्रोटोकॉल में संशोधन किया था, जिसमें सिफारिश की गई थी कि 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी व्यक्तियों को वायरल लोड को रोकने के लिए आइवरमेक्टिन की पांच गोलियां लेनी चाहिए।
स्वास्थ्य मंत्री विश्वजी राणे ने कहा था कि सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों और महिला एवं बाल विकास अधिकारियों के साथ-साथ आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से टैबलेट मुफ्त में वितरित किए जाएंगे।
चोडनकर ने हालांकि आइवरमेक्टिन टैबलेट की खरीद में घोटाले का आरोप लगाया है और अब मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत से यह बताने का आग्रह किया है कि टैबलेट अभी भी मुफ्त वितरण के लिए उपलब्ध क्यों नहीं थे।
चोडनकर ने कहा, "मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत को गोवा के लोगों को बताना चाहिए कि लगभग 22.50 करोड़ रुपये की ये गोलियां कहां गायब हो गई हैं।" (आईएएनएस)
-राजीव पी. सिंह
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई के दावे किये जाते हैं, जिसके चलते अब सरकार के ही बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी द्वारा अपने भाई का गरीब कोटे से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति कराने के लग रहे आरोपों से हडकंप मच गया है. इस वजह से जहां एक ओर अब इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर योगी सरकार की नीति और नियत पर सवाल उठाये जा रहे हैं, तो वहीं अब समाजवादी पार्टी के साथ ही साथ कांग्रेस भी बेसिक शिक्षा मंत्री पर लगे इन आरोपों को लेकर योगी सरकार पर जमकर निशाना साधते नजर आ रही है.
न्यूज़ 18 से बात करते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि यूं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर मंच और सदन में भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई का दावा करते हैं, लेकिन अब तो योगी सरकार के ही बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने खुद आपदा में अवसर तलाशते हुए अपने भाई अरुण द्विवेदी की ईडब्ल्यूएस यानी की गरीबी कोटे से सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु के मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति कराकर एक बड़ा भ्रष्टाचार किया है. ऐसा करके बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने न सिर्फ गरीबों के हक पर डाका डाला है बल्कि उन तमाम अभ्यर्थियों के हक को भी मारा है जिन्होंने इस पद के लिये वर्षों से मेहनत की थी. ऐसे में अब देखना ये होगा कि क्या मुख्यमंत्री अपने बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी की गरीबी का प्रमाण पत्र बनाने वाले और उनकी नियुक्ति करने वालों के खिलाफ भी क्या अपनी भ्रष्टाचार जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई करेंगे या फिर ऐसा करने की सिर्फ बयानबाजी ही करेंगे?
बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने दी सफाई
हालांकि विपक्ष द्वारा लगातार इस मुद्दे को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधने के चलते बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने भी इस मामले पर अपनी सफाई दी है. उन्होंने कहा है कि एक अभ्यर्थी ने आवेदन किया और विश्वविद्यालय ने अपनी निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए साक्षात्कार के माध्यम से उसका चयन किया है. इस मामले में मेरा कोई दखल नहीं है, न ही कुछ कहना है. अगर किसी को लगता है कि मैं मंत्री हूं, विधायक हूं, तो मेरा भाई कैसे EWS (आर्थिक रूप से कमजोर) हो गया? तो क्या आपका भाई अगर 3-4 करोड़ का पैकेज पाता है, तो क्या उसका भाई उस आय का अधिकारी माना जाता है? भाई की अलग पहचान है. उसने अपने पहचान के आधार पर आवेदन किया है.प्रशासन ने प्रमाण पत्र दिया है और विश्वविद्यालय ने अपनी निर्धारित प्रक्रिया के तहत चयन किया है. जिसे आपत्ति है, वो इस मामले की जांच करा सकता है.
भोपाल, 20 मई| मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार के आवास पर एक महिला द्वारा आत्महत्या किए जाने पर पुलिस द्वारा मामला दर्ज किए जाने और गिरफ्तारी की लटकी तलवार के बीच कांग्रेस लामबंद हो चुकी है। सूत्रों की मानें तो गुरुवार को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के आवास पर 25 से ज्यादा विधायक जमा हुए और लंबी बैठक चली। इस दौरान विधायक सिंघार के मामले पर चर्चा हुई और तय हुआ कि पुलिस और सरकार की ज्यादती बर्दाश्त नहीं की जाएगी। साथ ही पुलिस आगे किसी तरह की कार्रवाई करती है तो कांग्रेस एकजुट होकर मुकाबला करेगी।
ज्ञात हो कि इससे पहले पांच विधायकों का दल पुलिस महानिदेशक से मुलाकात कर निष्पक्ष जांच की मांग कर चुका है। साथ ही पुलिस के मामला दर्ज करने पर सवाल उठा चुका है। कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि जिस महिला ने विधायक के आवास पर खुदकुशी की है, उसके बेटे और मां ने सिंघार पर किसी तरह का आरोप नहीं लगाया फिर भी पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर लिया।
हरियाणा के अंबाला की रहने वाली 39 वर्षीय सोनिया भारद्वाज की कांग्रेस विधायक सिंघार से मित्रता थी और उसका सिंघार के घर पर आना जाना था। वह पिछले कई दिनों से उनके आवास पर थी और रविवार को उसने दुपट्टे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। महिला पहले से शादीशुदा थी और उसका एक बेटा भी है। पुलिस को मौके पर सुसाइड नोट भी मिला था, जिसमें किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। हां उस पत्र में सिंघार का कई बार नाम है और लिखा है कि 'अब सहन नहीं होता, वे गुस्से में बहुत तेज हैं।'
पुलिस ने मोबाइल चैट और पूछताछ के आधार पर सिंघार के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर लिया है। वहीं सोनिया के बेटे ने सिंघार पर किसी तरह का आरेाप नहीं लगाया है। (आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 18 मई| केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने माकपा और सरकार में 'अंतिम शब्द' होने की अपनी शैली के अनुरूप, मंगलवार को अपने फैसले से सबको चौंका दिया। उन्होंने प्रशंसित स्वास्थ्य मंत्री के.के. शैलजा को अपने नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी, जबकि अपने दामाद पी.ए. मोहम्मद रियाज को मंत्री पद दिया। विजयन के 21 सदस्यीय कैबिनेट में माकपा के 12, भाकपा के चार, केरल कांग्रेस (एम), राकांपा और जनता दल (एस) के एक-एक और दो अन्य सहयोगी दलों में से एक-एक शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक के पास एक विधायक है।
लोकतांत्रिक जनता दल, एकमात्र सहयोगी दल है, जिसे कैबिनेट का पद नहीं मिला।
मंत्रिमंडल की घोषणा पार्टी में और इसके बाहर कई लोगों के लिए एक झटके के रूप में आई है। मंत्री पद न मिलने पर शैलजा ने कहा कि वह एक अनुशासित पार्टी कार्यकर्ता हैं और पार्टी के फैसले का पालन करेंगी।
अन्य सभी नाम अपेक्षित तर्ज पर थे और केवल एक ही मानदंड था और वह था विजयन के प्रति अडिग निष्ठा। नए मंत्रिमंडल में शामिल हैं पूर्व राज्यसभा सदस्य पी. राजीव और के.एन. बालगोपाल, महिलाओं में प्रोफेसर आर. बिंदु जो माकपा सचिव ए. विजयराघवन की पत्नी हैं। इनके अलावा पत्रकार व दूसरी बार विधायक बनीं वीना जॉर्ज शामिल हैं।
अन्य मंत्रियों में शामिल हैं विजयन के सबसे करीबी सहयोगी एम. गोविंदन जो कन्नूर से हैं। इसके अलावा, पूर्व राज्यमंत्री साजी चेरियन और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के. राधाकृष्णन भी मंत्री बनाए गए हैं जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित त्रिशूर निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं।
वी. शिवनकुट्टी को भी मंत्री पद दिया जाना तय था, क्योंकि उन्होंने राज्य की राजधानी की नेमोम सीट पर भाजपा के मजबूत उम्मीदवार कुम्मनम राजशेखरन को हराया है।
मंत्रिमंडल में वी. अब्दुरहीमान को भी शामिल किया गया है जो मुस्लिम बहुल मलप्पुरम जिले से हैं, हालांकि उनकी पार्टी नेशनल सेक्युलर कांफ्रें स गठबंधन में शामिल नहीं है, बल्कि उसे माकपा का समर्थन प्राप्त है।
वी.एन. वसावन माकपा के एक अन्य नेता हैं, जो विजयन के वफादार माने जाते हैं, उन्हें भी मंत्री पद दिया गया है।
दो बार के लोकसभा सदस्य एम.बी. राजेश जो पलक्कड़ से 2019 का चुनाव हार गए थे, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव जीते हैं, उन्हें सदन के अध्यक्ष पद के लिए चुना गया है।
इस बीच खबरें सामने आई हैं कि माकपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने शैलजा को नए मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर नाराजगी जताई है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 मई| भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई ने केजरीवाल सरकार पर जनता को मुफ्त राशन की योजना से वंचित करने का आरोप लगाया है। दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता ने पूछा है कि दिल्ली में केजरीवाल ने सरकार ने अब तक 'वन नेशन वन राशन कार्ड' योजना क्यों नहीं लागू की?
प्रदेश अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता ने कहा कि मोदी सरकार की ओर से मिले राशन में दिल्ली की दुकानों में हो रही भारी मिलावट को संरक्षण कौन दे रहा है? पिछले 6 सालों में केजरीवाल सरकार ने एक भी नया राशन कार्ड क्यों नहीं बनवाया? अगर मोदी सरकार दिल्ली के 72 लाख कार्डधारियों को 2 महीने के लिए मुफ्त राशन दे रही है तो दिल्ली सरकार क्या कर रही है? क्या अगले 2 महीने के लिए केजरीवाल सरकार 72 लाख कार्डधारियों के लिए मुफ्त राशन उपलब्ध करायेगी?
आदेश कुमार गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली सरकार ने प्रवासी मजदूरों को राशन और गरीब व दिहाड़ी मजदूरों को सामुदायिक राशन के माध्यम से पका हुआ भोजन क्यों नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली सरकार ने प्रवासी मजदूरों को राशन और गरीब व दिहाड़ी मजदूरों को सामुदायिक राशन के माध्यम से पका हुआ भोजन क्यों नहीं दिया?
कोलकाता, 12 मई| पश्चिम बंगाल में भाजपा के विधायकों की संख्या बुधवार को 77 से घटकर अब 75 हो गई। दो विधायकों ने पार्टी के निर्देश पर विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। ये दोनों सांसद हैं। ये विधानसभा चुनाव जीते और विधायक बने, लेकिन इनका सांसद बने रहना पार्टी के लिए ज्यादा फायदेमंद रहेगा। कूच बिहार के सांसद निशीथ प्रमाणिक जिले के दिनहाटा से विधायक चुने गए थे। इसी तरह
राणाघाट के भाजपा सांसद जगन्नाथ सरकार नदिया जिले के शांतिपुर से जीतकर विधायक बने, लेकिन दोनों ने बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
प्रमाणिक ने कहा, "हमने पार्टी के फैसले का पालन किया है। पार्टी ने फैसला किया है कि हमें अपनी विधानसभा सीटों से इस्तीफा दे देना चाहिए।"
कूच बिहार के सांसद ने राज्य में चुनाव के बाद की हिंसा के बाबत कहा, "कूच बिहार के लोगों ने तृणमूल कांग्रेस को खारिज कर दिया है, इसलिए वे (तृणमूल) हिंसा का सहारा ले रहे हैं। अब उपचुनाव होगा। भाजपा फिर जीतेगी।"
भाजपा के एक सूत्र ने कहा, "आधिकारिक घोषणा समय की बात है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उत्सुक है कि दोनों सांसद बने रहें।"
भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में चार लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारा था। प्रमाणिक और सरकार के अलावा, पार्टी ने लॉकेट चटर्जी और बाबुल सुप्रियो को मैदान में उतारा था, जबकि राज्यसभा सदस्य स्वपन दासगुप्ता पांचवें सांसद थे। दासगुप्ता ने तारकेश्वर सीट से अपना नामांकन दाखिल करने से पहले इस्तीफा दे दिया था, मगर वह विधानसभा चुनाव हार गए। लॉकेट चटर्जी और बाबुल सुप्रियो भी हार गए।
तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, "बीजेपी ने बंगाल चुनाव में चार लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सांसद को मैदान में उतारा था। उनमें से तीन चुनाव हार गए और दो जीते। इन दो विजयी विधायकों ने आज इस्तीफा भी दे दिया। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ने चुनाव में शून्य हासिल करने का विश्व रिकॉर्ड बनाया।" (आईएएनएस)
मुंबई, 13 मई | महाराष्ट्र कांग्रेस ने बुधवार को मांग की है कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को रमजान के पवित्र पवित्र महीने के अंत में यरुशलम में अल अक्सा मस्जिद पर इजरायल के हमलों की कड़ी निंदा करनी चाहिए। बड़ी संख्या में मुसलमानों की मौत हुई है और कई घायल हुए। पूर्व मंत्री और कार्यकारी अध्यक्ष नसीम खान के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की और इस आशय का एक ज्ञापन सौंपा।
खान ने कहा, "भारत सरकार को इजरायली सशस्त्र बलों द्वारा किए गए इन अत्याचारों की निंदा करनी चाहिए और एक स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि भारत फिलीस्तीनियों के पीछे मजबूती से खड़ा है।"
प्रतिनिधिमंडल में पूर्व सांसद उबैदुल्ला के. आजमी, पूर्व विधायक यूसुफ अबरहानी, रजा अकादमी के संयोजक सईद नूरी और अन्य लोगों ने राज्यपाल को बताया कि यरुशलम में जब लोग नमाज अदा कर रहे थे तो निर्दोष बच्चों और महिलाओं पर इजराइली सैनिकों द्वारा गोलों से अंधाधुंध हमले किए गए। अल अक्सा मस्जिद - मक्का और मदीना के बाद इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, वहां हमले किए गए।
प्रतिनिधिमंडल ने इन हमलों की तुलना
हिटलर के यहूदियों के नरसंहार के साथ
करते हुए कहा कि इससे भारतीय और वैश्विक मुस्लिम भाईचारे में भारी गुस्सा है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 11 मई| अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में पार्टी के नुकसान के कारणों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्षता महाराष्ट्र के लोक निर्माण विभाग के मंत्री अशोक चव्हाण करेंगे, जबकि पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी और विंसेंट पाला इसके सदस्य हैं। दूसरे सदस्य तमिलनाडु के सांसद जोति मणि हैं। समिति दो सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी।
तिवारी हैं जो उस समूह का हिस्सा थे जिसने संगठनात्मक चुनावों के लिए सोनिया गांधी को पत्र लिखा था।
इससे पहले, सोनिया गांधी ने सीडब्ल्यूसी की बैठक में कहा था, "मैं हर पहलू को देखने के लिए एक छोटा पैनल स्थापित करने का इरादा रखती हूं, जो इस तरह के उलटफेर का कारण बने और बहुत जल्दी रिपोर्ट करें। हमें स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यकता है कि हम क्यों विफल रहे।"
उन्होंने कहा, सीडब्ल्यूसी की बैठक हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के परिणामों पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी। उन्होंने कहा कि पार्टी को लगे गंभीर झटकों से सबक लेने की जरूरत है।
उन्होंने आगे कहा, "ये असुविधाजनक सबक देंगे, लेकिन अगर हम वास्तविकता का सामना नहीं करते हैं, अगर हम तथ्यों को नहीं देखते हैं, तो हम सही सबक नहीं ले पाएंगे।"
बैठक के दौरान, सभी राज्य प्रभारियों ने पार्टी के पश्चिम बंगाल प्रभारी जितिन प्रसाद के साथ कहा कि पीरजादा अब्बास सिद्दीकी द्वारा गठित भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (आईएसएफ) के साथ गठबंधन के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि सिद्दीकी ने राज्य में कांग्रेस की संभावनाओं को चौपट कर दिया।
सूत्रों ने कहा कि केरल के पार्टी प्रभारी तारिक अनवर ने सीडब्ल्यूसी को बताया कि कांग्रेस अति आत्मविश्वास में आ गई, जिस कारण राज्य में उसकी हार हुई और जब तक उसे इस बात का अहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
पार्टी के असम प्रभारी जितेंद्र सिंह ने जानकारी दी कि तरुण गोगोई के बाद कांग्रेस का राज्य में कोई बड़ा चेहरा नहीं था, जबकि रायजोर दोल जैसे छोटे दलों ने भी पार्टी के वोट में हिस्सेदारी की। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 मई | कांग्रेस ने मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र दिए जाने के तुरंत बाद भाजपा पर 'अहंकारी' होने का आरोप लगाया और कहा कि मुद्दे उठाकर सरकार को सुझाव देना विपक्षी दलों का कर्तव्य है। सोनिया गांधी को लिखे पत्र में नड्डा ने उनकी पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि महामारी के खिलाफ लड़ाई में, इसके पूर्व प्रमुख राहुल गांधी सहित कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के आचरण को 'नकल और क्षुद्रता' के लिए याद किया जाएगा।
कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि देश में स्थिति दयनीय है। सोमवार को बिहार के बक्सर जिले में गंगा नदी में लोगों के शव तैरते हुए देखे गए थे।
माकन ने कहा, सरकार इलाज, पर्याप्त टीके और ऑक्सीजन मुहैया कराने में तो विफल रही ही, यहां तक कि सम्मानजनक अंतिम संस्कार करने में भी असमर्थ है। उन्होंने सरकार से अहंकार छोड़ने और लोगों की मदद करने के लिए कहा।
पार्टी ने कहा कि भाजपा को 'राजधर्म' का पालन करना चाहिए। कांग्रेस केवल अपना कर्तव्य निभा रही है और सरकार को महामारी से निपटने में अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए और सभी के लिए मुफ्त टीकाकरण शुरू करना चाहिए। कांग्रेस ने कोविड की स्थिति पर एक सर्वदलीय बैठक की अपनी मांग भी दोहराई।
नड्डा पर हमला करते हुए, कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने एक ट्वीट में कहा, कांग्रेस को आरोपपत्र लिखने के बजाय, नड्डा को चाहिए कि देश को कोविड-19 की दूसरी लहर के नरक की आग में धकेलने के लिए भाजपा की ओर से माफीनामा लिखें।(आईएएनएस)
चेन्नई, 10 मई| तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी राज्य के अगले विपक्ष के नेता होंगे। सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में आयोजित विधायकों और वरिष्ठ नेताओं की तीन घंटे की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री को एआईएडीएमके के विधायक दल का नेता चुना गया। वह स्वाभाविक रूप से विधानसभा में विपक्ष के नेता बन जाएंगे।
पार्टी नेताओं ने पार्टी विधायकों और पदाधिकारियों की बैठक के बाद विधानसभा सचिव के.श्रीनिवास को एआईएडीएमके विधायक दल के नेता के रूप में पलानीस्वामी के नाम का प्रस्ताव पत्र सौंपा।
यह पहली बार है, जब एआईएडीएमके विधायक दल के नेता की घोषणा पार्टी के भीतर बहुत विरोध के बाद की गई।
पार्टी को विधानसभा में अपने मुख्य सचेतक और उप नेता के नाम की घोषणा करना बाकी है।
पूर्व उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पी. धनपाल के नाम का प्रस्ताव पार्टी विधायक दल के नेता के रूप में रखा था, जिसका पलानीस्वामी के समर्थक विधायकों ने विरोध किया। बाद में पलानीस्वामी के नाम पर सहमति बनी।
नवनिर्वाचित विधायक 11 मई, मंगलवार को शपथ लेंगे और विधानसभाा अध्यक्ष 12 मई को चुने जाएंगे।
अध्यक्ष को मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा चुना जाना है और विपक्ष के नेता का चयन 12 मई से पहले होना है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 10 मई | केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब केंद्र लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए हर संभव उपाय अपना रहा है, तब कोविड-19 संकट पर राजनीति की जा रही है। शाह ने ट्वीट किया, "केंद्र ने नागरिकों के जीवन की सुरक्षा के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया है। मोदी सरकार कोविड को नियंत्रित करने के लिए काफी प्रयास कर रही है, मगर विपक्षी नेता हमेशा की तरह राजनीति करना जारी रखे हुए हैं।"
गृहमंत्री ने एक ट्वीट में एक दैनिक में प्रकाशित केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के 'डिसइनफॉर्मेशन क्राइसिस' शीर्षक आलेख का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की : "प्रकाश जावड़ेकर जी का लेख पढ़ें।"
आलेख में, जावड़ेकर ने लिखा है कि कैसे जनवरी की शुरुआत में देशभर में कोविड की स्थिति में काफी सुधार हुआ था और रोजाना आने वाले नए मामलों की संख्या लगातार घट रही थी।
हालांकि, उन्होंने कहा, केरल में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े और रोजाना आने वाले नए मामलों में लगभग एक तिहाई मामलों की रिपोर्ट वहीं से आ रही थी।
6 जनवरी को, मंत्री ने आलेख में उल्लेख किया, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने केरल सरकार को लिखा था और तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया था।
"अगले दिन, एक उच्च-स्तरीय केंद्रीय टीम राज्य में भेजी गई थी। यह पिछले साल के कई उदाहरणों में से एक था - विशेष रूप से पिछले कुछ महीनों में - जो केंद्र सरकार के कठोर निगरानी प्रयासों को उजागर करता है और भारत भर में कोविड के मामलों में तेजी से वृद्धि को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की गई थी।"
जावड़ेकर ने लिखा है, "मुझे यह याद है कि इस मिथक का प्रसार किया जा रहा था कि केंद्र सरकार ने पहली लहर के बाद गेंद कोविड प्रबंधन के पाले में डाल दिया और पिछले कुछ महीनों से इसे पूरी तरह से राज्यों पर छोड़ दिया है।"
मंत्री ने कहा कि 'सच्चाई से आगे कुछ भी नहीं है', सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य का विषय होने के बावजूद, केंद्र सरकार कोविड प्रबंधन में सक्रिय रही है, क्योंकि एक महामारी को राष्ट्रीय स्तर के समन्वय और पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है।
उन्होंने लिखा, "सामने से नेतृत्व करना और राज्यों को काफी सहयोग और मार्गदर्शन प्रदान करना जारी रखा गया। फरवरी 2020 से, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय मामले के रुझानों की निगरानी कर रहा है, राज्यों की तैयारियों का मूल्यांकन कर रहा है, तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है और राज्य एवं जिला स्तर पर बनाई गईं प्रतिक्रिया रणनीतियों के अनुसार देखरेख कर रहा है।" (आईएएनएस)
-सैबाल गुप्ता
कोलकाता, 10 मई| पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा हालांकि 2016 की तुलना में 2021 में तीन से बढ़कर 77 तक पहुंच गई है। 74 सीटों की पर्याप्त वृद्धि हुई है, लेकिन बहुमत के आंकड़े 121 से नीचे रही।
पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा की सफलता नरेंद्र मोदी-अमित शाह के बैनर तले हिंदू वोटों के अत्यधिक ध्रुवीकरण का नतीजा थी, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनावों में, भगवा खेमा उस समय हिंदू समर्थन के स्तर को बनाए रखने में नाकाम रहा। पिछले आम चुनाव में अपनी अपेक्षाओं और अपने प्रदर्शन से बहुत नीचे।
राज्य में किए गए कुछ प्रमुख सर्वेक्षणों के अनुसार, पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का हिंदू वोटों का हिस्सा 2016 में 12 प्रतिशत से बढ़कर 57 प्रतिशत या कुल मिलाकर लगभग तीन-पांच प्रतिशत था, लेकिन आश्चर्यजनक रूप जब भाजपा हिंदू समर्थन हासिल करने के लिए जमकर प्रचार कर रही थी, तो यह घटकर 50 प्रतिशत रह गया - 7 प्रतिशत का पर्याप्त क्षरण, जिसने इसे अपने इच्छित लक्ष्य तक पहुंचने से रोक दिया।
दिलचस्प बात यह है कि दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस, जिसने 2016 के विधानसभा चुनावों में 43 प्रतिशत हिंदू वोट हासिल किए थे, लगभग 11 प्रतिशत का नुकसान हुआ और 2019 के लोकसभा चुनावों में 32 प्रतिशत पर आ गई, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह 39 प्रतिशत हिंदू वोटों का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहा, फिर भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।
इस 7 प्रतिशत का विधानसभा चुनाव में गणित के पीछे महत्वपूर्ण योगदान था। हिंदू वोट के समर्थन के अलावा, तृणमूल लगभग 75 प्रतिशत मुस्लिमों के समर्थन को हासिल करने में सफल रही और इसने उन्हें चुनाव में जीत दिलाई।
भाजपा खेमा हिंदू वोट के एक हिस्से की वफादारी के पीछे संभावित कारणों का पता लगाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन एक बात तय है कि एनआरसी और सीएए मुद्दे राज्य की निम्नवर्गीय हिंदू जातियों के बीच अच्छे से नहीं चल पाए।
हालांकि भाजपा सवर्णों की निष्ठा को बनाए रखने में सफल रही, लेकिन मतुआ, महिषी और आदिवासियों जैसी निचली जातियों ने भगवा खेमे से दूरी बना ली। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 मई| पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा तीन सीटों से बढ़कर 77 तक पहुंच गई, इसके बावजूद, पार्टी के कई नेताओं को लगता है कि केंद्रीय नेतृत्व जमीन पर जनता का मूड भांप नहीं पाया और स्थानीय नेतृत्व ने भी अनदेखी की, यही वजह है कि पार्टी सत्ता पाने से चूक गई। पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने में पार्टी की विफलता के कारणों को सूचीबद्ध करते हुए, जिसे केरल के साथ भगवा पार्टी द्वारा अंतिम सीमा माना गया था, पश्चिम बंगाल के नेताओं ने आईएएनएस को बताया कि निर्णय लेने में राज्य नेतृत्व की बहुत कम भागीदारी थी, वहां देश के अन्य हिस्सों से, खासकर उत्तर भारत से केंद्रीय नेताओं की बहुत अधिक तैनाती और एक विश्वसनीय और प्रभावी बंगाली नेतृत्व पेश करने में विफलता।
पश्चिम बंगाल भाजपा इकाई में एक वर्ग को लगता है कि अगर केंद्रीय नेतृत्व ने स्थानीय कैडर को सुना होता तो परिणाम बेहतर हो सकता था। भाजपा के एक नेता ने दावा किया, "स्थानीय नेता लोगों के साथ अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं और उनके मुद्दों के बारे में जानते हैं, लेकिन उनकी अनदेखी करके केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह से डिस्कनेक्ट हो गया।"
पश्चिम बंगाल के पूर्व भाजपा प्रमुख और त्रिपुरा और मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने टिकट वितरण और राज्य इकाई के मामलों के लिए केंद्रीय नेतृत्व की ओर से राज्य इकाई में नियुक्तियों की भूमिका की खुलेआम आलोचना की। रॉय ने राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय, सह प्रभारी अरविंद मेनन, शिव प्रकाश और राज्य इकाई के प्रमुख दिलीप घोष को हार के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए ट्वीट किया था, इन लोगों ने वैचारिक रूप से संचालित भाजपा कार्यकर्ताओं और धर्मनिरपेक्ष स्वयंसेवकों का हर संभव अपमान किया है जो 1980 के दशक से ही पार्टी के लिए लगातार काम कर रहे थे।
विधानसभा चुनावों में हारने वाले कुछ लोगों सहित पश्चिम बंगाल के अन्य भाजपा नेताओं ने कहा, पार्टी के चुनाव मामलों का प्रबंधन करने के लिए सौंपे गए सभी केंद्रीय नेता स्थानीय कैडर के फीडबैक की अनदेखी करते हुए अपने होमवर्क करने में विफल रहे और उन्होंने तानाशाह के रूप में काम किया।
पश्चिम बंगाल भाजपा के एक नेता ने दावा किया कि पार्टी के रणनीतिकारों ने एक विश्वसनीय स्थानीय चेहरा पेश करने में विफल रहे और इसे बंगाली (ममता बनर्जी) बनाम गैर बंगाली (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह) बना दिया। टीएमसी ने इसका इस्तेमाल किया और लगातार हम पर हमला किया और प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को पर्यटक बुलाया। मोदी, शाह और अन्य लोगों सहित अधिकांश स्टार प्रचारकों ने हिंदी में वोटरों को संबोधित किया। इससे ममता बनर्जी के कथन को बल मिला कि भाजपा एक बाहरी पार्टी है, जिसमें बंगाली पहचान और संस्कृति का कोई सम्मान नहीं है।
स्थानीय भाजपा इकाई का यह भी मानना है कि बतौर मुख्यमंत्री एक स्थानीय विश्वसनीय चेहरा पेश नहीं किए जाने से पार्टी राज्य के बुद्धिजीवियों और शहरी इलाकों में बंगाली भद्रलोक को आकर्षित करने में विफल रही। (आईएएनएस)
भोपाल, 7 मई| मध्य प्रदेश के दमोह विधानसभा में हुए उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार राहुल लोधी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इस हार की बड़ी वजह जनता में लोधी और स्थानीय भाजपा के नेताओं के खिलाफ बड़ा असंतोष माना जा रहा है। साथ ही भितरघात ने भी बड़ी भूमिका निभाई है।
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद हुए 28 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में भाजपा ने 19 स्थानों पर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस नौ स्थानों पर जीती थी। उसके बाद दमोह से कांग्रेस के तत्कालीन विधायक राहुल लोधी ने भी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया और भाजपा में शामिल हो गए, इसके चलते उपचुनाव हुआ। दलबदल करने के कारण स्थानीय लोग राहुल लोधी से खासे नाराज थे और यह बात चुनावी नतीजों में भी सामने नजर आई।
दमोह बुंदेलखंड का वह जिला है जहां से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल सांसद हैं। साथ ही यहां से छह बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड पूर्व मंत्री जयंत मलैया के नाम पर है। इतना ही नहीं भाजपा का अपना वोट बैंक भी है उसके बावजूद भाजपा के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा है।
सूत्रों की माने तो पार्टी ने दमोह क्षेत्र से हार के कारणों की रिपोर्ट भी तलब की है, साथ ही समीक्षा भी शुरू कर दी है। प्रारंभिक तौर पर पार्टी के सामने जो बातें आई हैं उनमें भितरघात के साथ नेताओं का कमजोर होता जनाधार भी है, इसलिए संभावना इस बात की जताई जा रही है कि कई नेताओं पर जहां गाज गिर सकती है, वहीं कई ताकतवर नेताओं के कद भी छोटे किए जा सकते हैं।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा में इस बात को लेकर खासी चिंता है कि सत्ता और संगठन ने चुनाव जीतने के लिए सारा जोर लगाया और जनमानस के मन को टटोलने की हर संभव कोशिश की। उसके बाद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है।
इस हार के लिए दमोह जिले के तमाम कददावर नेताओं की निष्क्रियता, जातिवादी राजनीति और जनमानस में घटते उनके प्रभाव को माना जा रहा है। पार्टी भी दमोह के जरिए यह संदेश देने की कोशिश कर सकती है कि जो नेता भी जनता से दूरी बढ़ाएंगे और उनके खिलाफ असंतोष होगा ऐसों का कद कम किया जाएगा चाहे वह कितना भी ताकतवर और प्रभावशाली नेता क्यों न हो। (आईएएनएस)
साईबाल गुप्ता
कोलकाता, 6 मई| पश्चिम बंगाल में हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में चुनाव लड़ने वाले 292 उम्मीदवारों में से सात भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है।
अपमानजनक हार झेलने वाले भगवा पार्टी के सात उम्मीदवार भागावंगोला, लालगोला, रघुनाथगंज, कैनिंग ईस्ट, भांगर, हरिहरपारा और सुजापुर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदार थे।
निर्वाचन डिपॉजिट उम्मीदवार द्वारा अपना नामांकन जमा करते समय जमा की गई राशि होती है। चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, राज्य विधानसभा चुनावों के लिए यह राशि 10,000 रुपये होती है। हालांकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए यह राशि 5,000 रुपये निर्धारित है।
मुर्शिदाबाद जिले के भागावंगोला विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार महबूब आलम को भारी हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि वह अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार से 137,088 मतों के अंतर से हार गए। तृणमूल के इदरीस अली को आलम के 16,707 मतों के मुकाबले 153,795 वोट मिले, जो कुल वोटों का महज 7.2 प्रतिशत है।
इसके अलावा मालदा जिले के सुजापुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार एस. के. जियाउद्दीन को तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मोहम्मद अब्दुल गनी के खिलाफ भारी हार का सामना करना पड़ा। गनी को जियाउद्दीन के 14,789 वोटों के मुकाबले 152,445 वोट मिले, जो कि कुल वोटों का मात्र 7.1 प्रतिशत है।
वहीं दक्षिण 24 परगना जिले के कैनिंग ईस्ट से तृणमूल उम्मीदवार सोकाट मोल्ला ने भाजपा के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कालीपदा नस्कर को 87,059 मतों के अंतर से हराया। मोल्ला को जहां 121,562 वोट मिले, वहीं नस्कर को 34,503 वोटों से ही संतोष करना पड़ा और उन्हें कुल वोटों का महज 14.5 प्रतिशत ही मिल पाया।
इसी तरह मुर्शिदाबाद जिले के रघुनाथगंज विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी को कुल मतों के केवल 14.9 प्रतिशत मत ही हासिल हो सके। जहां बीजेपी के गोलम मुदस्सुर को 28,251 वोट मिले, वहीं तृणमूल के उम्मीदवार अक्रुज्जमन को 126,343 वोटों प्राप्त हुए।
दक्षिण 24 परगना जिले के मेटियाब्रुज विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल के उम्मीदवार अब्दुल कहलके मोल्ला ने भाजपा के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी रामजीत प्रसाद को 84,282 मतों के अंतर से हराया। मोल्ला को प्रसाद के 31,357 मतों के मुकाबले 102,660 वोट मिले, जो कुल वोटों का 16 प्रतिशत है।
इसी तरह, मुर्शिदाबाद जिले के लालगोला से भाजपा उम्मीदवार अपने तृणमूल प्रतिद्वंद्वी से 78,363 मतों के अंतर से हार गए और वह वोट शेयर का केवल 15.4 प्रतिशत ही पा सके।
दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार सोमी हती तीसरे स्थान पर चली गईं और उन्हें आईएसएफ के जीते हुए उम्मीदवार नौशाद सिद्दीकी के 109,063 मतों के मुकाबले केवल 38,726 वोट मिले। (आईएएनएस)
-दिलनवाज़ पाशा
"पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी की जनता ने अगले पाँच साल के लिए अपना जनमत दे दिया है. हम इन चुनाव परिणामों को पूरी विनम्रता और ज़िम्मेदारी से स्वीकार करते हैं."
चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के चुनावी नतीजों में मिली बुरी हार के बाद कांग्रेस ने ये बयान जारी करके अपनी हार को एक बार फिर स्वीकार कर लिया है.
हाल के सालों में पार्टी को इस तरह का बयान कई बार जारी करना पड़ा है. बिहार में हार के बाद भी पार्टी ने नतीजों को 'विनम्रता से स्वीकार' कर लिया था.
इन विधानसभा चुनावों में सबसे अहम रहा पश्चिम बंगाल, जहाँ कांग्रेस गठबंधन का खाता तक नहीं खुल सका. कांग्रेस ने वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया था, जिसे महाजोट कहा जा रहा था.
बंगाल ने नहीं माना विकल्प
SANJAY DAS/BBC
माना जा रहा था कि मुशर्दिबाद और मालदा ज़िलों की सीटों पर परंपरागत रूप से कांग्रेस और कुछ दूसरे इलाक़ों में वामपंथियों को वोट मिल सकते हैं और उनका एक साथ आना उन्हें कुछ सीटें दिला सकता है, लेकिन परिणाम दिखा रहे हैं कि बंगाल की जनता ने इस महाजोट को विकल्प माना ही नहीं.
राजनीतिक विश्लेषक उर्मिलेश कहते हैं, "लेफ़्ट और कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में विशाल रैली की थी, लेकिन बावजूद इन्हें एक भी सीट नहीं मिली. लेफ़्ट और कांग्रेस दोनों ही ग़ायब हो गए. पश्चिम बंगाल के लिए कहा जा सकता है कि जो लड़ाई में थे वही नतीजों में हैं. यहाँ टीएमसी और बीजेपी के बीच आमने-सामने की लड़ाई थी. जो किसी भी कारण से बीजेपी के ख़िलाफ़ थे वो तृणमूल कांग्रेस के साथ हो गए."
कांग्रेस गठबंधन की बुरी हार को ही बीजेपी ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत की वजह बता रही है. बीजेपी के सोशल मीडिया प्रमुख अमित मालवीय ने एक टिप्पणी में कहा, "कांग्रेस और लेफ़्ट के सफ़ाए ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी को सत्ता में आने से रोक दिया है."
पिछले विधानसभा चुनावों में लेफ़्ट और कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में कुल मिलाकर 76 सीटें मिली थीं. इस बार शून्य मिला है. पार्टी की यहाँ चुनाव लड़ने में कितनी दिलचस्पी रही ये इससे ही पता चलता है कि राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में सिर्फ़ दो विधानसभा क्षेत्रों में रैलियाँ की.
विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के करिश्मा करने की उम्मीद भी नहीं थी. यहाँ चुनाव अभियान बेहद विभाजनकारी रहा और चुनाव दो दलों तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रह गया.
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी को सिर्फ़ 3.02 प्रतिशत वोट ही मिल सके, जबकि पिछले चुनावों में पार्टी को यहाँ 12.25 प्रतिशत वोट मिले थे.
कांग्रेस पर नज़र रखने वालीं राजनीतिक विश्लेषक अपर्णा द्विवेदी कहती हैं, "कांग्रेस पश्चिम बंगाल में कुछ कर पाएगी, ऐसी उम्मीद किसी ने नहीं की थी. ख़ुद कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता मान चुके थे कि पार्टी यहाँ लड़ाई में नहीं है. पार्टी ने एक और ग़लती गठबंधन में चुनाव लड़कर की. कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करके अपनी रही-सही ज़मीन भी गँवा रही है, ऐसा पहले भी देखा गया है."
असम में नहीं बनी बात
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कांग्रेस को सबसे ज़्यादा उम्मीदें असम और केरल से थीं. असम में प्रियंका गांधी ने धुआंधार चुनाव प्रचार किया और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ़ से गठबंधन भी किया था.
2016 में असम में कांग्रेस को 26 सीटें मिली थीं, इस बार पार्टी को 29 सीटें मिली हैं, लेकिन पिछले चुनावों के मुक़ाबले पार्टी का वोट शेयर कम हुआ है. 2016 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 31 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इस बार 30 प्रतिशत वोट ही मिले हैं.
बीजेपी गठबंधन ने असम में 75 सीटें जीतीं. यह राज्य में बीजेपी का दूसरा कार्यकाल होगा, यानी बीजेपी की एंटी इन्कम्बेंसी का फ़ायदा कांग्रेस नहीं उठा पाई और बीजेपी ने 126 सीटों वाली विधानसभा में अपने साझीदारों के साथ मिलकर आसानी से बहुमत का आँकड़ा पार कर लिया.
कांग्रेस ने असम चुनावों में पूरी ताक़त झोंक दी थी, गठबंधन सहयोगियों ने भी पूरी मेहनत की थी लेकिन कांग्रेस इस बार कुछ सीटें तो बढ़ा सकी लेकिन बहुमत तक नहीं पहुँच सकी.
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राजनीतिक विश्लेषक इसे पार्टी के लिए बड़े झटके के तौर पर देख रहे हैं. उर्मिलेश कहते हैं, "असम में कांग्रेस इससे बहुत बेहतर कर सकती थी. सीटें बढ़ने के बावजूद इसे कांग्रेस पार्टी की नाकामी और हार की तरह ही देखा जाना चाहिए."
वहीं अपर्णा द्विवेदी मानती हैं कि असम बीजेपी का मज़बूत गढ़ बन चुका है, ऐसे में कांग्रेस के लिए रास्ते वहाँ आसान नहीं थे. अपर्णा कहती हैं, "जिन-जिन राज्यों को कांग्रेस हार जाती है वहाँ उसकी वापसी मुश्किल हो जाती है. असम में भी यही हुआ है. कांग्रेस का जनाधार यहाँ ख़त्म हो गया है. शायद कांग्रेस ये समझ नहीं पा रही है कि उसकी ज़मीन खिसक गई है."
अपर्णा कहती हैं, "बीजेपी जानती थी कि वह असम में मज़बूत है इसलिए ही पार्टी ने अपना पूरा फ़ोकस पश्चिम बंगाल पर किया. कांग्रेस के पास असम में बहुत ज़्यादा अवसर नहीं थे. प्रियंका गांधी ने ज़रूर मेहनत की, लेकिन उसके भी वांछित नतीजे नहीं मिल सके."
विजयन के आगे बेदम
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कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती केरल में सत्ता में वापसी करने की थी. केरल का अभी तक का इतिहास है कि हर पाँच साल बाद वहाँ परिवर्तन होता है लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की अगुवाई में एलडीएफ़ लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करने में कामयाब रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि केरल में कांग्रेस की हार पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में उम्मीदों को भी झटका है. सबसे बड़ा झटका राहुल गांधी के लिए है जो अमेठी में चुनाव हारने के बाद अब केरल के वायनाड से सांसद हैं. उन्होंने पिछले कुछ महीनों में दक्षिण भारत में, और ख़ास तौर पर केरल में, उत्तर भारत की तुलना में राजनीतिक तौर पर सक्रियता दिखाई थी.
अपर्णा कहती हैं, "अमेठी में हारने के बाद राहुल गांधी ने केरल को ही अपना गढ़ बनाया है, ऐसे में केरल में जीतना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती थी. कांग्रेस ने चुनाव अभियान के दौरान अपनी पूरी ताक़त केरल में लगा दी थी. ये राहुल गांधी के लिए अपना सियासी रास्ता मज़बूत करने का भी अवसर था. ऐसे में कांग्रेस की यहाँ हार बेहद निराशाजनक है."
केरल में 140 सदस्यों वाली विधानसभा में लेफ़्ट गठबंधन (एलडीएफ़) को 93 सीटें मिली हैं, दरअसल एलडीएफ़ ने न सिर्फ़ अपनी सत्ता क़ायम रखी है, बल्कि 2016 के मुक़ाबले उसने दो सीटों की बढ़त हासिल की है. वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन (यूडीएफ़) को 40 सीटें मिली हैं जो पिछले चुनावों से छह कम हैं. कांग्रेस की अपनी एक सीट कम हुई है.
कोविड महामारी के बीच एलडीएफ़ ने केरल में सत्ता में वापसी की है. ये अपने-आप में एक इतिहास भी है क्योंकि केरल में जनता हर पाँच साल में सत्ताधारी पार्टी को बदल देती है.
अपर्णा द्विवेदी मानती हैं कि हाल के सालों में कांग्रेस के लिए राजनीति में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है और इसकी एक बड़ी वजह ये है कि पार्टी ने अपने खोए हुए ज़मीनी जनाधार को हासिल करने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की है.
अपर्णा कहती हैं, "पिछले सात सालों से राजनीति कांग्रेस के हित में नहीं जा रही है. कांग्रेस जितनी जल्दी ये समझ ले उतना उसके लिए बेहतर होगा. इसका कारण ये है कि कांग्रेस ज़मीनी स्तर पर ख़त्म होती जा रही है. गठबंधन कर-करके कांग्रेस ने दूसरे दलों को अपनी ताक़त दे दी है, लेकिन दूसरों से उसे कहीं कुछ हासिल नहीं हुआ है."
तमिलनाडु और पुड्डुचेरी
जिन पाँच राज्यों में चुनाव हुए हैं, वहाँ सिर्फ़ तमिलनाडु में ही कांग्रेस सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रहेगी. यहाँ कांग्रेस को 16 सीटें मिली हैं जो पिछले चुनावों के मुक़ाबले दोगुनी हैं, 2016 में आठ सीटें ही मिल पाई थीं.
वहीं केंद्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी में भी कांग्रेस ने सत्ता गँवा दी है. वहाँ पार्टी को सिर्फ़ आठ सीटें मिली हैं पिछले चुनावों में जीती हुई नौ सीटें पार्टी ने गँवा दी है.
यानी कांग्रेस को हर जगह हार ही हार देखने को मिली है, उसके लिए मामूली राहत की बात ये हो सकती है कि तमिलनाडु और असम में उसकी सीटों की तादाद बढ़ी है, लेकिन उसका कोई ठोस राजनीतिक लाभ उसे नहीं मिलने जा रहा है.
इन चुनावों में कांग्रेस के लिए एक राहत की बात ये भी है कि उसने मध्य प्रदेश के दमोह उप-चुनाव को जीत लिया है.
बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दमोह उप-चुनाव को अपनी नाक का मुद्दा बना लिया था. यहाँ जीत हासिल करके टूटी हुई कांग्रेस को राज्य में ज़रूर कुछ मनोबल मिलेगा. (bbc.com/hindi)
दिलीप कुमार शर्मा
गुवाहाटी से, 3 मई : असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस और मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) के गठबंधन को पछाड़कर नया रिकॉर्ड बनाते हुए सत्ता में वापसी की है.
दरअसल बीजेपी असम में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने वाली पहली ग़ैर कांग्रेस पार्टी है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम में अपनी पार्टी की जीत पर एक ट्वीट कर कहा, "असम के लोगों ने एनडीए के विकास एजेंडे और राज्य में लोक समर्थक ट्रैक रिकॉर्ड वाली हमारी सरकार को फिर से आशीर्वाद दिया है. मैं असम के लोगों को इस आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देता हूँ. मैं एनडीए के कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत और लोगों की सेवा में उनके अथक प्रयासों की सराहना करता हूँ."
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने भी असमिया भाषा में एक ट्वीट कर शांति, सुशासन और विकास की राजनीति को फिर चुनने के लिए असम की जनता का हृदय से आभार व्यक्त किया.
लेकिन क्या सही में इस बार असम का विधानसभा चुनाव विकास की राजनीति के इर्द गिर्द रहा या फिर सामने आए चुनावी नतीजे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण ज़्यादा प्रभावित हुए?
असल में इस बार के असम विधानसभा चुनाव में एनआरसी, नागरिकता संशोधन क़ानून, चाय श्रमिकों की मज़दूरी, छह जनजातियों के जनजातिकरण से लेकर बेरोज़गारी जैसे कई अहम मुद्दे थे, लेकिन इन सबसे बीजेपी के प्रदर्शन पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
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हिमंत बिस्वा सरमा
क्या रहे कारण?
वैसे तो इन चुनावी नतीजों को लेकर राजनीतिक समीक्षक कई अलग-अलग कारण बता रहे हैं, लेकिन इनमें अधिकतर लोगों का यह मानना है कि कांग्रेस के लिए मौलाना बदरुद्दीन अजमल को साथ लेना बहुत महंगा साबित हुआ.
असम के वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी की मानें, तो कांग्रेस-एआईयूडीएफ़ के गठबंधन के सहारे बीजेपी को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का अच्छा मौक़ा मिल गया.
असम में बीजेपी की इस जीत पर गोस्वामी ने बीबीसी से कहा, "इस बार के चुनाव में सीएए-एनआरसी, जनजातिकरण, चाय श्रमिकों की मज़दूरी जैसे मुद्दों को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि बीजेपी के लिए इस बार का चुनाव बेहद कठिन होगा. लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में जो महागठबंधन बना, उसमें बदरुद्दीन अजमल की पार्टी को साथ लेने से बीजेपी के लिए हिंदू वोटरों को एकजुट करना आसान हो गया. "
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"बीजेपी नेताओं ने अपनी चुनावी रैलियों में इस गठबंधन को लेकर आक्रामक रवैया अपनाया. लोगों से यह कहा गया कि अगर महागठबंधन की जीत होती है तो बदरुद्दीन अजमल राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएँगे और असम में घुसपैठियों का बोलबाला हो जाएगा. राज्य में हर तरफ़ मस्जिदों का निर्माण किया जाएगा. लिहाज़ा चुनावी रैलियों में आए मतदाता ख़ासकर ग्रामीण मतदाता सीएए जैसे मुद्दे भूल गए."
"सामने आए चुनावी नतीजों से यह बात अच्छी तरह समझी जा सकती है कि ऊपरी असम की जिन 60-62 सीटों पर बीजेपी को नुक़सान होने का अनुमान लगाया जा रहा था, वहां पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन कर दिखाया. क्योंकि सीएए का सबसे ज़्यादा विरोध ऊपरी असम में ही हुआ था. लेकिन इसके बाद भी वहाँ लोगों ने बीजेपी को ही वोट डाला."
गोस्वामी कहते है, "इसके अलावा प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस यहाँ के मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने में नाकाम रही कि राज्य में वह बीजेपी का विकल्प है. प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के बीच जो आपसी मतभेद थे वो जनता के सामने आ गए थे. "
"दूसरी तरफ बीजेपी सरकार की कुछ प्रमुख योजनाओं में महिला मतदाताओं को काफी फायदा दिया गया. ओरुनोदोई योजना में महिलाएँ लाभार्थी काफ़ी थी, वो वोट भी पार्टी के पक्ष में गया. इसके अलावा पिछली बार बोडोलैंड में 12 सीटें जीतने वाली बीपीएफ़ पार्टी बीजेपी से अलग होने के बाद महागठबंधन में तो शामिल हुई, लेकिन उसके खराब प्रदर्शन के कारण महागठबंधन को कोई फ़ायदा नहीं हुआ. बीपीएफ़ बोडोलैंड में आधी सीट भी नहीं ला सकी."
महिलाओं का समर्थन
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बीजेपी सरकार ने परिवार की प्राथमिक देखभाल करने वाली महिलाओं को ओरुनोदोई योजना के तहत 830 रुपए प्रतिमाह बतौर वित्तीय सहायता देने की योजना शुरू की थी, जिसका फायदा करीब 17 लाख परिवार को पहुँचाया गया था. आँकड़े बताते है कि इस योजना का फ़ायदा मुसलमान महिलाओं को भी मिला. लिहाज़ा इस बार बड़ी संख्या में महिलाओं ने बीजेपी को वोट किया.
गोस्वामी की मानें, तो सीएए के विरोध के बाद राज्य में बने दो राजनीतिक दल असम जातीय परिषद और राइजोर दल ने भी महागठबंधन को काफ़ी नुकसान पहुँचाया. इन दो पार्टियों ने जो किया वही काम असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी कई राज्यों के चुनावों में करती रही है.
एक नई क्षेत्रीय पार्टी होने के बावजूद असम जातीय परिषद ने सत्तारूढ़ बीजेपी के बराबर 92 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. इससे महागठबंधन के उम्मीदवारों के वोट बँट गए.
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण
असम की राजनीति को लंबे समय कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार नव कुमार ठाकुरिया बीजेपी की जीत के पीछे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को सबसे बड़ा कारण मानते है.
वो कहते है, "कांग्रेस-एआईयूडीएफ़ के एक साथ आने से असम के निचले इलाक़े के मुसलमान वोटर एक साथ आ गए. ठीक उसी तरह ऊपरी असम में इसके ख़िलाफ़ हिंदू वोटर भी एकजुट हो गए. "
"एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने केवल इस चुनाव में ही नुक़सान नहीं उठाया है, बल्कि आगे भी पार्टी को नुक़सान उठाना पड़ेगा. क्योंकि कांग्रेस में अब इस बात को लेकर काफी घमासान होने वाला है और हो सकता है कि पार्टी में जो ग़ैर-मुसलमान विधायक और नेता है वो बीजेपी में चले जाएँ."
लेकिन क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद (एजीपी) के इस अच्छे प्रदर्शन के पीछे क्या कारण है?
इस सवाल का जवाब देते हुए पत्रकार ठाकुरिया कहते है, "असम गण परिषद के अच्छे प्रदर्शन का कारण बीजेपी का एलायंस पार्टनर होना है. असमिया क़ौमपरस्ती और भारतीय राष्ट्रवाद दोनों साथ में है लिहाजा जो वोटर क्षेत्रीयतावादी पार्टी के लिए वोट डाल रहा है वो खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा है. वह कांग्रेस के महागठबंधन में इसलिए नहीं गया क्योंकि उसके वोट का फायदा अजमल की पार्टी को मिलेगा."
ठाकुरिया की मानें तो सीएए विरोध से बने नए राजनीतिक दलों से कांग्रेस महागठबंधन को कोई ख़ास नुक़सान नहीं हुआ. क्योंकि असम आंदोलन के बाद जब 1985 में एजीपी ने सरकार बनाई थी उस समय भी पार्टी ने 126 सीटें नहीं जीती थी.
वो कहते हैं कि, "किसी भी पार्टी के लिए लोगों का सेंटीमेंट जरूर होता है लेकिन ऐसा नहीं है कि पूरा बहुमत किसी एक पार्टी को ही मिल जाए. सीएए का विरोध करने वाले जो वोटर थे वो भी बँट जरूर गए और उसका कुछ हिस्सा नई पार्टियों को गया होगा."
लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 2021 के विधानसभा चुनाव राज्य की राजनीति को एक तरह से बदल दिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि अब राज्य में प्रमुख मुक़ाबला बीजेपी और एआईयूडीएफ़ के बीच ही होगा जो पूरी तरह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए लड़ा जाएगा. (bbc.com/hindi)