जनगणना ना सिर्फ लंबी और पेचीदा प्रक्रिया है बल्कि अक्सर लोगों को दो बार गिनने की गलती भी की जा सकती है. भारत सरकार डिजिटल टूल्स के जरिए ना सिर्फ इन चुनौतियों से निपटना चाहती है बल्कि इस प्रक्रिया को आसान बनाना चाहती है
डॉयचे वैले पर आयुष यादव का लिखा-
16 जून को भारत सरकार ने बताया कि अगली जनगणना 2027 में कराई जाएगी. पिछली जनगणना 2021 में हो जानी चाहिए थी लेकिन कोविड की वजह से टल गई. दो चरणों में होने वाली जनगणना में इस बार, जातियों के आंकड़े भी जमा किए जाएंगे.
भारत में साल 1881 से हर दस साल पर होती आयी जनगणना जानकारियों का अहम स्रोत है. इससे शिक्षा, अर्थिक हालात, धर्म जैसे कई जरूरी मुद्दों पर जरूरी जानकारी मिलती है.
कैसे होती है शुरूआत
जनगणना दो चरणों में की जाती है. पहले चरण में मकानों की सूची बनाने और गिनती करने का काम किया जाता है. दूसरे चरण में लोगों के घर-घर जाकर उनकी गिनती की जाती है. पहले चरण के दौरान, अधिकारी घर-घर जाकर सभी मकानों और परिवारों की पहचान करते हैं और सवाल पूछकर जवाब इकट्ठा करते हैं. ये सवाल घर के प्रकार, मौजूद संपत्तियों और सुविधाओं से जुड़े होते हैं.
दूसरे चरण में निजी जानकारियों से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं. इसमें आपके परिवार, वैवाहिक स्थिति, पहचान, साक्षरता जैसे कई सवाल होते हैं.
बेघर लोगों को गिनना चुनौती
जनगणना लंबी प्रक्रिया है जिसे पूरा करने में लाखों लोग काम करते हैं. घर-घर जाकर लोगों की गिनती करने के लिए ही इस बार 30 लाख से ज्यादा लोगों को नियुक्त किए जाने का अनुमान है. इसके अलावा जिला स्तर पर 1.20 लाख अन्य लोग और करीब 46,000 ट्रेनरों की जरूरत पड़ेगी.
घर-घर जाकर जनगणना की जिम्मेदारी फील्ड स्टाफ और सुपरवाइजरों की होती है. इस काम में मुख्य रूप से स्थानीय स्कूलों के शिक्षक, केंद्र और राज्य/केंद्र शासित सरकारों के अधिकारी और स्थानीय निकायों यानी पंचायतों और नगर पालिकाओं के सदस्य शामिल होते हैं. 2011 की जनगणना के दौरान 27 लाख कर्मचारियों को 54,000 मास्टर ट्रेनरों ने अलग-अलग तरीकों से ट्रेन किया था.
जनगणना के दौरान हर उस शख्स की गिनती की जाती है जो देश में मौजूद हों. इसीलिए उन लोगों को गिनना भी जरूरी हो जाता है जो बेघर हैं. लेकिन बेघर लोगों को गिनना आसान काम नहीं है. बतौर मास्टर ट्रेनर साल 2001 की जनगणना में सेवा दे चुके शिक्षाविद डॉक्टर विजेंदर सिंह चौहान भी यही मानते हैं.
उन्होंने डीडब्ल्यू हिन्दी को बताया, "बेघर लोगों को गिनना सबसे पेचीदा काम है क्योंकि उन्हें दो बार गिनने की गलती की जा सकती है. बेघर लोगों को गिनने में गलती ना हो इसीलिए पूरे देश में एक ही दिन उनकी गिनती की जाती है और यह काम तड़के ही शुरू हो जाता है और सुबह तक चलता है.”
कैसे होती है तैयारी
जनगणना लगभग साल भर चलने वाली प्रक्रिया है जिसकी तैयारी सालों पहले ही शुरू कर दी जाती है. इसकी शुरूआत राज्यों को सर्कुलर जारी करने से होती है जो जनगणना से कई साल पहले जारी कर दिया जाता है.
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विकास कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया, "सेंसस की प्लानिंग के दौरान ही पहला सर्कुलर जारी कर दिया जाता है. 2011 की जनगणना के लिए पहला सर्कुलर साल 2007 में ही भेज दिया गया था. आखिरी सर्कुलर जारी करने के साथ ही ये आदेश दिया जाता है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अब किसी भी तरह के नाम या सीमाओं में बदलाव नहीं कर पाएंगे.”
नक्शे की जगह लेगा जीपीएस
इस जनगणना में डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल होगा. ऐप के अलावा जीपीएस टैगिंग और जियोफेंसिंग जैसी तकनीक की मदद ली जाएगी. भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में जनगणना के लिए नक्शों की जरूरत पड़ती है. जनगणना समिति अलग-अलग राज्यों से जिलेवार नक्शे इकट्ठा करती है और उन्हें अपडेट करने के बाद डिजिटली अपलोड कर दिया जाता है. लेकिन इस बार ना केवल नक्शों की जगह जीपीएस तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा बल्कि गणना के लिए मोबाइल और टैबलेट का भी इस्तेमाल होगा.
डेटा इकट्ठा करने और जानकारियों की सटीकता के लिए इस बार कोडिंग प्रणाली का इस्तेमाल किया जाएगा. हाथ से लिखी जाने वाली जानकारियों में वर्तनी समेत अन्य तरीके की गलतियां होने की गुंजाइश रहती है लेकिन इस बार कोडिंग के जरिए गलतियों से बपचने का रास्ता निकाला गया है.
जनगणना के डिजिटलीकरण के पक्षकार और जनसंख्या मुद्दों पर काम करने वाली समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य मनु गौड़ मानते हैं कि डिजिटल माध्यमों का उपयोग करने से ना सिर्फ समय बचेगा बल्कि सरकारी खर्च भी कम होगा.
वहीं लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉपुलेशन स्टडीज विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गरिमा सिंह कहती हैं, "डिजिटल माध्यम की अपनी चुनौतियां भी हैं क्योंकि पहली बार इसका इस्तेमाल किया जा रहा है इसलिए हमें नहीं पता कि इसके साथ कैसी समस्याएं आएंगी.”
सवाल तैयार करना
जनगणना के दौरान पूछे जाने वाले सवालों को तैयार करने की जिम्मेदारी जनगणना समिति की होती है. जनगणना के दौरान पूछे जाने वाले सवालों की संख्या हमेशा बदलती रही है. 2011 की जनगणना के दौरान जहां कुल 29 सवाल पूछे गए थे तो 2001 में इनकी संख्या 23 थी.
तैयार किए गए सवालों का जनगणना अधिकारियों के साथ परीक्षण किया जाता है ताकि वे सवालों को बेहतर ढंग से समझ और पूछ सकें. कई राष्ट्रीय बैठकों के बाद इन सवालों पर मुहर लगाई जाती है.
प्रोफेसर विकास कुमार कहते हैं, "एक बार सवाल तैयार हो जाने के बाद उन्हें बदला नहीं जा सकता क्योंकि उसकी वजह से खर्च और समय दोनों बढ़ जाएगा लेकिन इस बार जनगणना डिजिटल माध्यम में की जाएगी तो नए सावल जोड़ने का विकल्प आसान रहेगा लेकिन फिर भी प्री-टेस्टिंग की जरूरत होगी.”