राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 18 जनवरी | कुछ हालिया साबुन विज्ञापनों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, जिसमें उन्होंने कुछ सवाल उठाए हैं, जिसमें पूछा गया है कि क्या मानव त्वचा के लिए कोई सही पीएच उत्पाद है? एक अच्छे साबुन को कौन सी विशेषताएं परिभाषित करती हैं? चलिए शुरू से शुरुआत करते हैं। पीएच (पोटेंशियल हाइड्रोजन) को एक कंसन्ट्रेशन में हाइड्रोजन आयनों की सांद्रता के रूप में परिभाषित किया गया है। पीएच मान 0 से 14 के बीच होता है। 7 न्यूट्रल प्वॉइंट हैं, 0 सबसे अम्लीय है और 14 सबसे क्षारीय है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि आपकी त्वचा बिल्कुल पीएच 5.5 नहीं है। यह हर किसी के शरीर के अंग, उम्र, आनुवंशिकी, जातीयता, पर्यावरण की स्थिति के रूप में विविधता के आधार पर 4.0 से 7.0 के बीच की सीमा में आता है।
तो, क्या पीएच 5.5 पर तैयार उत्पाद त्वचा के लिए एकदम सही हैं? इसका छोटा सा जवाब है: नहीं। सबसे पहले तो सर्फेक्टेंट, बनावट और अन्य अवयवों जैसे पैरामीटर एक क्लीन्जर की गुणवत्ता को इंगित करते हैं, जो अकेले पीएच से बहुत बेहतर है।
दूसरा यह कि, त्वचा का पीएच सादे पानी से भी साफ करने के तुरंत बाद थोड़ा बढ़ जाता है, यह एक घंटे में अपने हल्के अम्लीय पीएच को बदल देता है। स्वस्थ त्वचा जल्दी से 'एसिड मेंटल' को पुनर्जीवित करती है, त्वचा पर एक सुरक्षात्मक परत और क्लींजर के पीएच द्वारा लंबे समय तक अप्रभावित रहती है। त्वचा पीएच को नियंत्रित करती है, जिससे त्वचा उत्पाद न केवल विभिन्न पीएच स्तर पर, बल्कि समग्र सूत्र के संयोजन में भी कार्य करते हैं। तो मार्केट क्यों पीएच 5.5 उत्पादों को 'सही' बता रहा है? खैर, कुछ प्रकार की त्वचा के लिए (जैसे तैलीय त्वचा) और कुछ त्वचा की स्थिति (जैसे मुंहासे), पीएच में वृद्धि इन त्वचा स्थितियों को बढ़ा सकती है। इनकी बेहतर सफाई के लिए 5.5 पीएच पर होने वाले उत्पाद की उचित व्याख्या हो सकती है।"
भारतीय मानक ब्यूरो के साबुन के लिए अनिवार्य दिशानिर्देश में भी पीएच को बाहर रखा गया है, यह दर्शाता है कि संरचना सुरक्षा और सौम्यता के लिए अधिक प्रासंगिक है। यहां तक कि बीआईएस बच्चे की त्वचा के लिए एक ऐसे साबुन के उपयोग को भी मंजूरी दे देता है, जो सामान्य उपयोग की शर्तों के तहत उनकी सुरक्षा को कम करता है।
इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए डॉ. अपर्णा संथानम (एमडी, डीएनबी) परामर्श त्वचा विशेषज्ञ, सलाहकार और लेखिका ने कहा, "हाल के वैज्ञानिक प्रगति ने त्वचा के स्वास्थ्य में एसिड मेंटल के महत्व को पेश किया है। हालांकि, एक उत्पाद का पीएच त्वचा को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से सिर्फ एक है। पहले से मौजूद त्वचा की स्थिति, पानी की गुणवत्ता, सही उपयोग और संपर्क समय सहित कई अन्य कारक हैं, जो एक उत्पाद का उपयोग करने के बाद एसिड मेंटल में योगदान करते हैं। त्वचा भी इन सभी या किसी भी कारक के संपर्क में आने के बाद पीएच को शारीरिक स्तर पर लाने के लिए मरम्मत और रिस्टोरेटिव मैकेनिज्म करती है। इस तरह इन सभी कारकों को समझना महत्वपूर्ण है, बजाय उनमें से सिर्फ एक के।"
देश भर के स्किनकेयर विशेषज्ञों ने पीएच के मुद्दे पर कई कारकों के अनुसार उत्पाद सुरक्षा और एसिड मेंटल संरक्षण के एकमात्र पैमाने पर फैसला व्यक्त करने को लेकर संदेह व्यक्त किया है, क्योंकि सादा पानी तक इसमें योगदान दे सकते हैं, जो इनके कई कारकों में शामिल है। तो, क्या हम इस आदर्श पीएच को एक सफाई उत्पाद के एकमात्र आदर्श माप के रूप में देख सकते हैं? इसका जवाब है, मात्र पीएच से आगे बढ़कर देखना चाहिए। (आईएएनएस)
आगरा, 19 जनवरी | एक 90 वर्षीय महिला माया देवी को 60 वर्षीय बहू ने कथित तौर पर बाह क्षेत्र में झाड़ू से पीटा क्योंकि वृद्ध महिला किसी को बताए बिना घर से बाहर चली गई थी। घटना का एक वीडियो, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था, कथित तौर पर माया देवी रोती हुई एक खाट पर लेटी हुई दिखाई देती है और मदद की गुहार लगा रही होती है क्योंकि उनकी बहू मुन्नी देवी उसे पीट रही होती है।
वीडियो का संज्ञान लेते हुए, आगरा पुलिस ने अब सीआरपीसी की धारा 151 (सं™ोय अपराधोंको रोकने के लिए गिरफ्तारी) के तहत मुन्नी देवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।
महिला को सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) की अदालत में पेश किया गया था और बाद में सोमवार को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
के. वेंकट अशोक, पुलिस अधीक्षक (पूर्व) ने संवाददाताओं को बताया कि पीड़िता और आरोपी दोनों विधवा हैं और भाउपुरा गांव में एक साथ रहती हैं।
मुन्नी देवी ने पुलिस को बताया कि वह परेशान थी क्योंकि उसकी सास को बिना बताए बाहर जाने की आदत है और फिर उसे पूरे गांव में उन्हें खोजना पड़ता है।
एसपी ने कहा कि मुन्नी देवी को निर्देश दिया गया है कि वह अपनी सास के साथ दुर्व्यवहार न करें और उसका सम्मान करें। पुलिस ने माया देवी को खिलाया-पिलाया और भविष्य में उनकी मदद का आश्वासन दिया। (आईएएनएस)
महोबा (उत्तर प्रदेश), 19 जनवरी | एक दलित लड़की का दुष्कर्म करने और उसकी हत्या करने के आरोप में तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। लड़की का शव एक पेड़ से लटका हुआ पाया गया। सर्कल अधिकारी रामप्रवेश राय ने कहा, "18 वर्षीय युवती रविवार दोपहर को सब्जियां खरीदने के लिए घर से निकली थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। बाद में उसके परिवार के सदस्यों ने उसका शव बेलाताल इलाके में एक पेड़ से लटका पाया।"
पीड़िता की मां ने शिकायत दर्ज की और दलित किशोरी के साथ दुष्कर्म करने और उसे मारने के लिए सोमवार को तीन पुरुषों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
कुलपहाड़ थाना प्रभारी, रविंद्र तिवारी ने कहा कि रोहित, भूपेंद्र और तरुण के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या के आरोप और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
मामले की जांच की जा रही है लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है।
मृतक की चाची ने पुलिस को बताया कि उनके इलाके में एक व्यक्ति द्वारा उसे परेशान किया जा रहा था, जो पिछले एक महीने से उसे फोन कर रहे थे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 19 जनवरी | पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, पुड्डुचेरी और केरल के मतदाताओं का मानना है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए 'सबसे उपयुक्त' व्यक्ति हैं। ये खुलासा आईएएनएस सी-वोटर के सर्वेक्षण से हुआ है। सर्वेक्षण के अनुसार, पुड्डुचेरी में 50.67 प्रतिशत लोग, पश्चिम बंगाल में 54.53 प्रतिशत, तमिलनाडु में 25.59 प्रतिशत, केरल में 36. 51 प्रतिशत और असम में 45.52 प्रतिशत लोगों ने मोदी को पीएम पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार माना है।
दिलचस्प बात यह है कि तमिलनाडु में 48 फीसदी मतदाता पूर्व कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड निर्वाचन क्षेत्र से सांसद के रूप में चुने गए थे।
सर्वेक्षण में पांच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 45,000 लोगों को शामिल किया गया।
पुडुचेरी में 57.97 फीसदी मतदाता, पश्चिम बंगाल में 62.19 फीसदी, तमिलनाडु में 26.62 फीसदी, केरल में 36.84 फीसदी और असम में 43.62 फीसदी लोग मोदी को सीधे प्रधानमंत्री के रूप में चुनना चाहते हैं।
पश्चिम बंगाल में कोई भी यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भारत का प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहता। हालांकि, पुडुचेरी में 1.11 फीसदी मतदाताओं को लगता है कि वह एक प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं। तमिलनाडु में कुल 9.89 प्रतिशत मतदाताओं ने इसी तरह की राय साझा की, जबकि केरल में 3.61 प्रतिशत और असम में 2.51 प्रतिशत ने इस विचार का समर्थन किया।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पीएम के पद के लिए पुडुचेरी में 10.56 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 5.4 प्रतिशत, तमिलनाडु में 1.85 प्रतिशत, केरल में 4.1 प्रतिशत और असम में 2.51 प्रतिशत मतदाताओं की पसंद हैं। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पूर्णिया, 19 जनवरी (आईएएनएस)| एक ओर जहां प्रतिदिन मानवता को शर्मसार करने वाली घटना प्रकाश में आती रहती है, वहीं बिहार के पूर्णिया में एक कुत्ते के मरने के बाद वफादारी की कीमत मिली, जब उसकी मनुष्य की तरह पूरे विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उसके अंतिम यात्रा में शामिल लोगों ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से उसे अंतिम विदाई दी।
अपने पालतू जानवर के प्रति प्रेम और मानवता की अनूठी मिसाल की चर्चा इस क्षेत्र में चारों ओर है। लोग इस कार्य के लिए हिमकर मिश्र की प्रशंसा कर रहे हैं।
पूर्णिया जिले के केनगर प्रखंड के कुंवारा पंचायत के रामनगर में समर शैल नेशनल पार्क के संस्थापक हिमकर मिश्रा ने फार्म के संरक्षण के लिए अनेक नस्ल के कुत्ते पाल रखे हैं। हिमकर मिश्र का सबसे चहेता कुत्ता ब्राउनी था, जिसकी रविवार को मौत हो गई।
मिश्र ने आईएएनएस को बताया कि ब्राउनी इंडियन शीप ब्रीड का डॉग था और हमारे परिवार के एक सदस्य के जैसा था।
उन्होंने बताया, जब मैं मध्य प्रदेश में था तब उस समय 2006 में ब्राउनी को पुणे से एक जानवरों के लिए काम करने वाली संस्था से लाया था तब से आज तक यह मेरे परिवार को सदस्य की तरह रहा।
उन्होंने कहा कि बाद में ब्राउनी को पूर्णिया के फॉर्म हाउस की सुरक्षा की जिम्मेदारी ब्राउनी को दे दी गई। उन्होंने बताया कि वृद्ध होने की वजह से ब्राउनी की रविवार को मौत हो गई और उसका अंतिम संस्कार सोमवार को किया गया।
ब्राउनी की मौत के बाद हिमकर मिश्रा परिवार और फॉर्म के सभी लोगों ने अपने चहेते कुत्ते का अंतिम संस्कार रीति रिवाज से करने का निर्णय लिया और उसकी अंतिम यात्रा निकाली।
हिमकर मिश्रा ने बताया कि जिस जगह ब्राउनी को दफनाया गया है, उस जगह उसकी याद में 'ब्राउनी स्मृति स्मारक' बनाया जाएगा।
हिमकर ने बताया कि ब्राउनी सिर्फ कुत्ता नहीं बल्कि उनके फार्म का रक्षक भी था। वह हम सभी की जिंदगी का एक हिस्सा था, जिसने पूरी वफादारी और ईमानदारी से फार्म की रक्षा की।
उन्होंने बताया कि ब्राउनी स्मारक स्थल को रंग बिरंगे फूलों से सजाकर ब्राउनी पार्क का नाम दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जो भी लोग यहां आएंगे उन्हें यह स्मारक दिखाया जाएगा।
इधर, फॉर्म के प्रबंधक सुबेाध कुमार कहते हैं कि ब्राउनी का जाना बहुत दुखदायी है। उन्होंने अपने जीवनपयर्ंत वफादारी से कार्य किया और फार्म की रक्षा की। उन्होंने कहा कि ब्राउनी फार्म का एक सदस्य बन गया है। बा्रउनी से बच्चे भी काफी प्यार करते हैं।
मिश्र के इस पशु प्रेम की सर्वत्र चर्चा हो रही है तथा पशु प्रमियों का कहना है कि लोगों को मिश्र से आज सीखने की जरूरत है।
नई दिल्ली, 19 जनवरी | केरल में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) को इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक वोट मिलने का अनुमान है। ये खुलासा आईएएनएस सी-वोटर के राज्यों के सर्वेक्षण से हुआ है। सर्वेक्षण में केरल के सभी 140 विधानसभा क्षेत्रों के 6,000 उत्तरदाताओं को शामिल किया गया।
सर्वे के अनुसार, एलडीएफ को 42.6 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है, जो पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में 1.9 फीसदी कम है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को आगामी विधानसभा चुनावों में 34.6 प्रतिशत वोट शेयर रहने का अनुमान है, जो पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में 4.2 प्रतिशत अधिक है।
भाजपा, जिसे 2016 के विधानसभा चुनावों में 14.9 प्रतिशत वोट मिले थे, उसे 15.3 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है, जो 0.4 प्रतिशत अधिक है।
सर्वेक्षण के अनुसार, अन्य पार्टियों को 8.5 प्रतिशत वोट मिलेंगे, पिछले चुनावों की तुलना में 5.7 प्रतिशत अधिक।
सर्वेक्षण ने बताया है कि एलडीएफ गठबंधन को आगामी विधानसभा में 85 सीटें मिलेंगी, 2016 में प्रबंधित 91 की तुलना में छह कम।
यूडीएफ गठबंधन, जिसने 2016 में 47 सीटें हासिल की थीं, को इस बार 53 सीटें मिलने का अनुमान है। बीजेपी गठबंधन को एक सीट जीतने का अनुमान है। (आईएएनएस)
-ललित मौर्य
एक तरफ जहां कॉफी व्यापार से जुड़ी बड़ी कंपनियां अरबों डॉलर कमा रही हैं, वहीं दूसरी ओर इसकी खेती कर रहे किसान दिन प्रतिदिन और गरीब होते जा रहे हैं। यह जानकारी हाल ही में जारी कॉफी बैरोमीटर रिपोर्ट 2020 में सामने आई है। जिसने इन किसानों पर बढ़ते जलवायु परिवर्तन के खतरे को भी उजागर किया है।
2020 में यह अपनी प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरने में पूरी तरह विफल रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार न तो यह कंपनियां पर्यावरण पर ध्यान दे रही हैं। न ही इन्होने किसानों और खेती की दशा में सुधार लाने के लिए कोई खास प्रयास किए हैं। इन कंपनियों की लिस्ट में नेस्ले, स्टारबक्स, लवाज़्ज़ा, यूसीसी और स्ट्रॉस जैसे नाम शामिल हैं।
पूरी दुनिया में 1.25 करोड़ खेतों में कॉफी उगाई जाती है। इनमें से 95 फीसदी फार्म 5 हेक्टेयर से छोटे हैं जबकि 84 फीसदी का आकार 2 हेक्टेयर से भी कम है| इन छोटे खेतों में दुनिया की करीब 73 फीसदी कॉफी उगती है| हालांकि इन लाखों फार्म्स के बावजूद इनके द्वारा उगाई करीब आधी कॉफी केवल 5 कंपनियों द्वारा निर्यात की जाती है। जिन्हें इसके बाद भूनने के लिए बड़ी कंपनियों द्वारा आयात किया जाता है।
35 फीसदी कॉफी को केवल 10 कंपनियों द्वारा किया जाता है तैयार
विश्व में केवल 10 कंपनियों द्वारा 35 फीसदी कॉफी को रोस्ट किया जाता है| 2019 के आंकड़ों को देखें तो इन कंपनियों ने करीब 4,03,299 करोड़ रुपय (5,500करोड़ डॉलर) कमाए थे। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस तैयार कॉफी को बेचने से जो आय होती है उसका 10 फीसदी से भी कम इन कॉफी उगाने वाले देशों को मिलता है| उसमें से भी काट छांटकर जो बचता है वो वहां के किसानों की जेबों तक पहुंचता है| ऐसे में उनका गरीब होना स्वाभाविक ही है।
कॉफी से जुड़ी अनेक समस्याओं में से किसानों को उपज की मिलने वाली कम कीमत भी है। जबकि यदि कॉफी उत्पादन के खर्च को देखा जाए तो उसका करीब 60 फीसदी उससे जुड़ी मजदूरी में जाता है। पहले ही इसकी खेती कर रहे किसान गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं। ऐसे में न तो यह किसान अपने खेतों पर निवेश कर पाते हैं, न ही अपनी उपज को पर्यावरण अनुकूल बना पाते हैं| उनकी छोटी सी आय में जहां घर चलाना मुश्किल हो जाता है वहां पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन पर निवेश की बात करना तो बेमानी ही लगता है| ऊपर से बाढ़, सूखा, तूफान, कीट और बीमारियां उनकी आय में कमी और खर्चों में इजाफा कर रही हैं| ऐसे में केन्या, अल साल्वाडोर और मेक्सिको जैसे देशों में जहां बेहतरीन कॉफी पैदा होती है, वहां इसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है| जिस तरह से कॉफी की मांग बढ़ रही है उसके चलते भूमि पर दबाव बढ़ रहा है और मांग को पूरा करने के लिए तेजी से जंगलों को काटा जा रहा है।
यह कॉफी उत्पादक देश और बड़ी कंपनियां आपस में मिलकर पर्यावरण और समाज से जुड़ी कई समस्याओं को हल करने में मदद कर सकती है| लेकिन अपने निजी स्वार्थ, नीतियों और योजनाओं के चलते यह स्थानीय मुद्दों से बहुत दूर हो जाते हैं| रिपोर्ट से पता चला है कि इन रोस्टरों और व्यापारियों में से 15 प्रमुख कंपनियां ऐसी हैं जो एसडीजी में अपना कोई सार्थक योगदान नहीं दे रही हैं| न ही पर्यावरण संरक्षण और न ही किसानों और उससे जुड़े लोगों के विकास पर ध्यान दे रही हैं| हालांकि कुछ कंपनियों ने इस विषय पर व्यापक नीतियां बनाई हैं, लेकिन वो अपनी प्रतिबद्धताओं और वादों पर खरी नहीं हैं।
ऐसे में क्या यह उन कंपनियों की जिम्मेवारी नहीं है कि वो कॉफी उत्पादन में लगे किसानों के हितों का भी ध्यान रखें साथ ही साथ ही कॉफी उत्पादन से लेकर उसकी पूरी सप्लाई चेन को दुरुस्त करें जिससे वो पर्यावरण पर कम से कम असर डालें| (downtoearth.org.in)
-शरद पाण्डेय
नई दिल्ली. इंटरस्टेट ट्रांसपोर्ट की तरह अब पड़ोसी देशों में पैसेंजर Passenger और गुड्स Goods वाहन चल सकेंगे. सड़क परिवहन मंत्रालय ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है, जो तत्काल प्रभावी हो गया है. अब वाहन चलाने से पूर्व दोनों देशों को केवल एक एमओयू साइन करना होगा. मंत्रालय ने यह फैसला लगातार मिल रहे सुझाव के आधार पर लिया है.अभी तक पड़ोसी देशों neighbouring countries
में वाहन चलाने से पूर्व कई तरह औपचारिकताएं पूरी करनी होती थीं. इसके तहत कई मंत्रालयों और विभागों क्लीयरेंस लेनी होती थी, जिसमें समय लगता था और कागजी कार्रवाई भी अधिक होती थी. इस संबंध में सड़क परिवहन मंत्रालय के पास सुझाव आ रहे थे. नए नियम के बाद अब किसी पड़ोसी देश में ट्रांसपोर्ट शुरू करना हो, तो दोनों देश आपस में एमओयू साइन कर तुरंत वाहन चला सकेंगे. सड़क परिवहन मंत्रालय ने पिछले सप्ताह नोटिफिकेशन जारी कर चुका है. इस संबंध में बस एंड कार ऑपरेटर्स कंफडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष गुरमीत सिंह तनेजा ने कहा कि सरकार के इस फैसले से काफी राहत मिलेगी.अभी जिस तरह एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बसों का संचालन होता है. इसमें केवल दो प्रदेश के बीच सहमति की जरूरत होती है, भविष्य में पड़ोसी देशों के बीच भी बसों का संचालन भी इसी तरह हो सकेगा.
पड़ोसी देशों में चल चुकी हैं बस
नई दिल्ली और लाहौर वर्ष 2000 में
कोलकाता और ढाका वर्ष 2000 में
अमृतसर और लाहौर वर्ष 2006 में
अमृतसर और नानकसर वर्ष 2006 में
अगर आप भी उन कर्मचारियों में से हैं जो कोरोना काल में घर से काम यानी वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं तो आपकी सैलरी कट सकती है. जी हां ऐसा संभव है. दरअसल लेबर मिनिस्ट्री वर्क फ्रॉम होम कॉन्सेप्ट को लेकर एक ड्राफ्ट तैयार कर रही है, जिसमें लोगों से सुझाव भी मांगे गए है. लेबर मिनिस्ट्री के पास आने वाले सुझावों में से कुछ सुझाव ऐसे भी है जिनमें घर से काम करने वालों की सैलरी कट सकती है.
सर्विस सेक्टर, आईटी प्रोफेशनल्स के ऐसे कर्मचारियों को सैलरी पर गाज गिर सकती है. जो कोरोना के दौरान महानगरों को छोड़कर छोटे शहरों में अपने घर जाकर शिफ्ट हो गए हैं और वहीं से काम कर रहे हैं. क्योंकि कंपनियों का मानना है कि इस दौरान कई तरह के भत्तो का उपयोग नहीं हो सका है.
कंपनियां कर रही विचार
कई सेकटर की कंपनियां ऐसे कर्मचारियों की सैलरी कट करने का विचार कर रही है. इन सेक्टर्स में सर्विस, आईटी, आईटीएस, फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे सेक्टर शामिल हैं. दरअसल सुझाव दिया गया है कि ऐसे कर्मचारी जो छोटे शहरों में शिफ्ट हो चुके हैं उनका खर्च घट गया है. लिहाजा उनका भत्ता कम किया जाए. क्योंकि कई कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए फर्नीचर, हाई स्पीड इंटरनेट समेत कई तरह के अलाउंस दिए है.
क्या कहता है लेबर मिनिस्ट्री का ड्राफ्ट
लेबर मिनिस्ट्री का ड्राफ्ट तैयार होने के बाद अगर नया नियम होता है कंपनियों को छोटे शहरों में घर से काम करने वाले प्रत्येक कर्मचारी की कॉस्ट पर 20 से 25 फीसदी तक बचत हो सकती है. यहां तक की कई कंपनियों के एचआर प्रोफेशनल ने ऐसे कर्मचारियों की सैलरी में कटौती करने पर विचार शुरू कर दिया है.
1 अप्रैल से लागू होंगे नए नियम
वर्क फ्रॉम होम कॉन्सेप्ट में बदवाल करने के लिए लेबर मिनिस्ट्री ड्राफ्ट पर तेजी से काम कर रही है. माना जा रहा है कि नए नियम 1 अप्रैल 2021 से लागू हो जाएंगे. वहीं बजट में भी वर्क फ्रॉम होम वाले कर्मचारियों को लेकर कुठ घोषणाएं हो सकती हैं. वहीं जहां तक सैलरी में कटौती की बात है तो कई कंपनियां ट्रांसपोर्ट जैसे भत्तों को हटाने की बात कर रही है. क्योंकि कोरोना के दौरान कर्मचारियों को ऑफिस नहीं आना पड़ा है. लिहाजा इस भत्ते का उपयोग नहीं रह जाता. (tv9hindi.com)
-सरोज सिंह
भारत में कोरोना का टीकाकरण शुरू हुए तीन दिन हो चुके हैं. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ अब तक 3 लाख 81 हज़ार से ज़्यादा लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है.
इसी बीच अब तक 580 लोगों को टीका लगने के बाद 'एडवर्स इफ़ेक्ट' (प्रतिकूल प्रभाव) देखने को मिला है. ये कुल लोगों को लगे टीके का मात्र 0.2 फ़ीसदी ही है. यानी कुल मिलाकर देखें तो 0.2 फ़ीसदी लोगों में टीका लगने के बाद परेशानी देखी गई.
फिर भी भारत सरकार पहले दो दिन में अपने टीकाकरण अभियान के लक्ष्य को केवल 64 फ़ीसदी ही हासिल कर पाई है. पहले दो दिन में सरकार तक़रीबन 3 लाख 16 हज़ार लोगों को कोरोना का टीका लगाना चाहती थी, लेकिन केवल 2 लाख 24 हज़ार लोगों को ही टीका लग पाया.
कई राज्यों में टीका लगवाने वाले लोग पहले दिन टीकाकरण केंद्र पर नहीं पहुँचे. दिल्ली की बात करें तो तय लोगों में से केवल 54 फ़ीसदी लोगों को ही टीका लगा.
तो क्या टीका लगने के बाद लोगों में एडवर्स इफ़ेक्ट दिखने की वजह से कम लोग टीका लगवा रहे हैं? या वजह कुछ और है?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. मनोहर अगनानी ने टीकाकरण के बाद होने वाले इस तरह के इफे़क्ट के बारे में विस्तार से समझाया.
उनके मुताबिक़, "टीका लगने के बाद उस इंसान में किसी भी तरह के अनपेक्षित मेडिकल परेशानियों को एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन कहा जाता है. ये दिक़्क़त वैक्सीन की वजह से भी हो सकती है, वैक्सीनेशन प्रक्रिया की वजह से भी हो सकती है या फिर किसी दूसरे कारण से भी हो सकती है. ये अमूमन तीन प्रकार के होते हैं- मामूली, गंभीर और बहुत गंभीर."
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उन्होंने बताया कि ज़्यादातर ये दिक़्क़तें मामूली होती हैं, जिन्हें माइनर एडवर्स इफ़ेक्ट कहा जाता है. ऐसे मामलों में किसी तरह का दर्द, इंजेक्शन लगने की जगह पर सूजन, हल्का बुख़ार, बदन में दर्द, घबराहट, एलर्जी और रैशेज़ जैसी दिक़्क़त देखने को मिलती है."
लेकिन कुछ दिक़्क़तें गंभीर भी होती हैं, जिन्हें सीवियर केस माना जाता है. ऐसे मामलों में टीका लगवाने वाले को बहुत तेज़ बुखार आ सकता है या फिर ऐनफ़लैक्सिस की शिकायत हो सकती है. इस सूरत में भी जीवन भर भुगतने वाले परिणाम नहीं होते. ऐसे गंभीर मामले में भी अस्पताल में दाख़िले की ज़रूरत नहीं पड़ती है.
लेकिन बहुत गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट में टीका लगने वाले व्यक्ति को अस्पताल में दाख़िल कराने की नौबत आती है. इन्हें सीरियस केस माना जाता है. ऐसी सूरत में जान भी जा सकती है या फिर व्यक्ति को आजीवन किसी तरह की दिक़्क़त झेलनी पड़ सकती है. बहुत गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट के मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं. लेकिन इसका असर पूरे टीकाकरण अभियान पर पड़ता है.
भारत में हुए अब तक के टीककारण अभियान के बाद केवल तीन लोगों को अस्पताल में दाख़िले की ज़रूरत पड़ी है, जिनमें से दो को छुट्टी दी जा चुकी है.
दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल के मेडिकल डॉयरेक्टर डॉ. बीएल शेरवाल के मुताबिक़, हर टीकाकरण अभियान में इस तरह के कुछ एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को मिलते हैं. पूरे टीकाकरण अभियान में 5 से 10 फ़ीसदी तक इस तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट का मिलना सामान्य बात है.
ऐनफ़लैक्सिस क्या है?
बीबीसी से बातचीत में डॉ. बीएल शेरवाल ने बताया कि जब टीकाकरण के बाद किसी व्यक्ति में गंभीर एलर्जी के रिएक्शन देखने को मिलते हैं तो उस स्थिति को ऐनफ़लैक्सिस कहा जाता है. इसकी वजह टीकाकरण नहीं होता है. किसी ड्रग से एलर्जी होने पर भी इस तरह की दिक़्क़त व्यक्ति में देखने को मिलती है.
ऐसी अवस्था के लिए एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन किट में इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है. वैसे ऐसी ज़रूरत ना के बराबर ही पड़ती है. ये सीवियर केस एडवर्स इफ़ेक्ट के अंतर्गत आते हैं.
एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन प्रक्रिया में क्या होता है?
एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन से जुड़े तमाम मुद्दों के बारे में हमने बात की एम्स में ह्यूमन ट्रायल के प्रमुख डॉ. संजय राय से.
उन्होंने बताया कि एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन के लिए बाक़ायदा पहले से प्रोटोकॉल तय किए जाते हैं. ऐसे एडवर्स इफ़ेक्ट की सूरत में टीकाकरण केंद्र पर मौजूद डॉक्टर और स्टाफ़ को आपात स्थिति से निपटने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है.
उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति को टीका लगने के बाद 30 मिनट तक टीकाकरण केंद्र पर इंतज़ार करने के लिए कहा जाता है, ताकि किसी भी तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट को मॉनिटर किया जा सके. हर टीकाकरण केंद्र में इसके लिए एक किट तैयार कर रखने की बात की गई है, जिसमें ऐनफ़लैक्सिस की अवस्था से निपटने के लिए कुछ इंजेक्शन, पानी चढ़ाने वाली ड्रिप और बाक़ी ज़रूरी समान का होना अनिवार्य बताया गया है.
किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए किसी नज़दीकी अस्पताल में ख़बर करनी है और किस तरह से उसके बारे में Co-WIN ऐप में पूरी विस्तृत जानकारी को भरना है, ये भी बताया गया है.
ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए ज़रूरी है कि टीके को सही तरह से सुरक्षित रखा जाए, व्यक्ति को टीका लगाने के पहले उसकी मेडिकल हिस्ट्री की पूरी जानकारी ली जाए. किसी ड्रग से एलर्जी की सूरत में भारत सरकार के नियमों के मुताबिक़ उन्हें कोरोना का टीका नहीं लगाया जा सकता.
टीका लगाने से पहले व्यक्ति को टीके के बाद होने वाली दिक़्क़तों के बारे में पहले से बताया जाए. सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक़ हर व्यक्ति को टीका लगाते वक़्त ऐसी तमाम जानकारियाँ दी जा रही हैं.
सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट
इतना ही नहीं, अगर बहुत गंभीर यानी सीरीयस एडवर्स इफ़ेक्ट होने पर किसी की मौत हो जाती है, तो इसके लिए नेशनल एईएफ़आई (AEFI) गाइडलाइन के हिसाब से जाँच की जाएगी, जिसके लिए बाक़ायदा डॉक्टरों का एक पैनल है.
अगर सीरीयस मामले में टीकाकरण के बाद व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया था, तो मामले में परिवार की रज़ामंदी से पोस्टमॉर्टम कराने की बात कही गई है. अगर परिवार इसके लिए राज़ी ना हो, तो भी एक अलग फ़ॉर्म भरने और जाँच की ज़रूरत होती है.
टीकाकरण होने के बाद सीरियस एडवर्स इफे़क्ट के कारण अस्पताल में भर्ती होने पर मौत होती है, तो गाइडलाइन के मुताबिक़ पूरी प्रक्रिया की विस्तृत जाँच की जानी चाहिए. जाँच द्वारा ये स्थापित होता है कि ये एडवर्स इफ़ेक्ट वैक्सीन में इस्तेमाल किसी ड्रग की वजह से हुआ है या फिर वैक्सीन की क्वालिटी में दिक़्क़त की वजह से, या टीका लगाने के दौरान हुई गड़बड़ी की वजह से या ये किसी और तरह के संयोग की वजह से हुआ है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ हर एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन में गड़बड़ी की वजह को जल्द से जल्द सूचित किया जाना बेहद ज़रूरी है.
एडवर्स इफ़ेक्ट क्या होंगे ये कैसे तय होता है?
एम्स में ह्यूमन ट्रायल के प्रमुख डॉ. संजय राय के मुताबिक़, "फ़िलहाल एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन के जो भी प्रोटोकॉल तय किए गए हैं, वो अब तक के ट्रायल डेटा के आधार पर हैं. लॉन्ग टर्म ट्रायल डेटा के आधार पर आमतौर पर ऐसे प्रोटोकॉल तैयार किए जाते हैं. लेकिन भारत में कोरोना के जो टीके लगाए जा रहे हैं, उनके बारे में लॉन्ग टर्म स्टडी डेटा का अभाव है. इसलिए फ़िलहाल जितनी जानकारी उपलब्ध है, उसी के आधार पर ये एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन प्रोटोकॉल तैयार किया गया है."
क्या हर टीकाकरण अभियान में एक जैसा ही एडवर्स इफ़ेक्ट होता है?
ऐसा नहीं है कि हर वैक्सीन के बाद एक ही तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को मिले. कई बार लक्षण अलग-अलग भी होते हैं. ये इस बात पर निर्भर करता है कि वैक्सीन बनाने का तरीक़ा क्या है और जिसको लगाया जा रहा है उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कैसी है.
जैसे बीसीजी का टीका देने के बाद उस जगह पर छाला जैसा उभार देखने को मिलता है. उसी तरह से डीपीटी के टीके के बाद कुछ बच्चों को हल्का बुख़ार होता है. ओरल पोलियो ड्रॉप देने पर किसी तरह का एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को नहीं मिलता है. इसी तरह से कोरोना का टीका - कोविशील्ड और कोवैक्सीन के एडवर्स इफ़ेक्ट भी एक जैसे नहीं भी हो सकते हैं.
कोवैक्सीन और कोविशील्ड के एडवर्स इफ़ेक्ट क्या हैं?
कोवैक्सीन की ट्रायल प्रक्रिया को ख़ुद डॉ संजय राय काफ़ी नज़दीक से देखा है. उनके मुताबिक़ कोवैक्सीन में किसी तरह के गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट तीनों चरणों के ट्रायल में देखने को नहीं मिले हैं. हालांकि इसके तीसरे चरण में अभी पूरा डेटा नहीं आया है. तीसरे चरण में 25 हज़ार लोगों को ये वैक्सीन लगाया जा चुका है.
कोवैक्सीन के दौरान जो हल्के लक्षण देखने को मिले वो हैं- दर्द, इंजेक्शन लगने की जगह पर सूजन, हल्का बुख़ार, बदन में दर्द और रैशेज़ जैसी मामूली दिक़्क़तें. ऐसे लोगों की संख्या ट्रायल के दौरान 10 फ़ीसदी थी. 90 फ़ीसदी लोगों में कोई दिक़्क़त देखने को नहीं मिली थी.
भारत सरकार दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाती है, जिनमें देशभर के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को टीका लगाया जाता है. पोलियो टीकाकरण अभियान के दौरान तो भारत में तीन दिन में एक करोड़ बच्चों का टीकाकरण किया जाता है. अगर इतना बड़ा अभियान सालों से भारत चला पा रहा है, इसका मतलब है कि एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन का प्रोटोकॉल भारत में अच्छे से पालन किया जा रहा है.
एक भी एडवर्स इफ़ेक्ट होने का बुरा असर टीकाकरण अभियान पर ज़रूर पड़ता है.
क्या एडवर्स इफ़ेक्ट होने से लोग वैक्सीन लेने से घबराने लगते हैं? वैक्सीन हेज़िटेंसी के लिए ये एक कारण है?
अभी तक टीकाकरण की पूरी प्रक्रिया में केवल तीन ही मामले ऐसे आए हैं, जिनमें एडवर्स इफ़ेक्ट में व्यक्ति को अस्पताल में दाख़िल कराने की ज़रूरत पड़ी है.
वैसे वैक्सीन हेज़िटेंसी का सीधा एडवर्स इफ़ेक्ट से संबंध नहीं होता है. वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट के कई कारण होते हैं. लोगों को वैक्सीन के बारे में सही जानकारी का पता ना होना इनमें से सबसे महत्वपूर्ण कारण माना जाता है.
वैक्सीन की सेफ़्टी और एफ़िकेसी से जुड़े सवाल हों तो भी लोग टीका लगाने से हिचकते हैं. अक्सर वैक्सीन लगने की शुरुआत होने पर ये हिचक लोगों में देखने को मिलती है, फिर बीतते समय के साथ ये कम होते जाती है. लेकिन अगर एडवर्स इफ़ेक्ट में कोई गंभीर बात सामने आती है, तो लोग टीका लगवाने से परहेज़ कर सकते हैं, वर्ना ये मामूली दिक़्क़तें सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा होती हैं.
लोकल सर्कल्स नाम की एक संस्था पिछले कुछ समय से भारत में लोगों में वैक्सीन हेज़िटेंसी कितनी है, इसे लेकर ऑनलाइन सर्वे कर रही है. 3 जनवरी के आँकड़ों के मुताबिक़, भारत में 69 फ़ीसदी जनता को कोरोना वैक्सीन को लगाने को लेकर हिचकिचाहट है.
आंकड़े
ये सर्वे भारत के 224 ज़िलों के 18000 लोगों की ऑन-लाइन प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार किया गया है. इस संस्था के सर्वे के मुताबिक़, हर बीतते महीने के साथ भारत में लोगों में ये हिचकिचाहट बढ़ती जा रही है. लेकिन टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद लोगों में क्या ये हिचक बढ़ी है, इसके बारे में अभी कोई अध्यन नहीं हुआ है.
पूरी दुनिया में इस वक़्त कोरोना की नौ वैक्सीन्स को अलग-अलग देशों की सरकार ने मंज़ूरी दी है. इनमें से दो फ़ाइज़र और मोडर्ना वैक्सीन mRNA वैक्सीन हैं. इस तकनीक से निर्मित वैक्सीन का इस्तेमाल पहली बार इंसान पर किया जा रहा है. डॉ. संजय के मुताबिक़ इनके टीकाकरण के बाद कुछ गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट रिपोर्ट किए गए हैं.
बाक़ी चार वैक्सीन ऐसी हैं, जो वायरस को इन-एक्टीवेट कर बनाई गई हैं, जिनमें भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन और चीन वाली वैक्सीन शामिल हैं.
बाक़ी दो वैक्सीन ऑक्सफ़ोर्ड एस्ट्राज़ेनेका (कोविशील्ड) और स्पूतनिक हैं, उन्हें वैक्टर वैक्सीन कहा जा रहा है. mRNA वैक्सीन के अलावा किसी और वैक्सीन के इस्तेमाल में कोई सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट सामने नहीं आए हैं. (bbc.com)
मणिपुर पुलिस ने स्थानीय न्यूज़ पोर्टल के जिन दो संपादकों को रविवार की सुबह हिरासत में लिया था उन्हें सोमवार की दोपहर क़रीब साढ़े तीन बजे ज़मानत पर छोड़ दिया गया.
इस दौरान दोनों पत्रकारों ने पुलिस को लिखित में दिया है कि वे ऐसी ग़लती दोबारा नहीं करेंगे.
दरअसल पुलिस ने इन दोनों पत्रकारों को राज्य के विद्रोही आंदोलन से जुड़े एक लेख के प्रकाशन को लेकर पकड़ा था.
पुलिस हिरासत में रहे पत्रकार पाओजेल चाओबा ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल 'द फ्रंटियर मणिपुर' के कार्यकारी संपादक हैं. वहीं धीरेन सदोकपम पोर्टल के संपादक है.
पुलिस ने कहा यूएपीए की धाराएं नहीं लगाईं
सोमवार सुबह इंडियन एक्सप्रेस समेत कई प्रमुख मीडिया में प्रकाशित हुई खबरों मे पुलिस द्वारा दोनों पत्रकारों पर इस मामले को लेकर 'अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट' यानी यूएपीए की धारा 39 (आतंकवादी संगठन का समर्थन) और राजद्रोह की धारा 124-ए लगाने की बात सामने आई थी.
इसके साथ ही दोनों पत्रकारों पर आपराधिक साज़िश के लिए 120 बी और राज्य के ख़िलाफ़ अपराध को प्रेरित करने के लिए धारा 505 बी का उपयोग करने की बात भी कही जा रही थी लेकिन अब पुलिस ने अपनी एफ़आईआर में ऐसी कोई भी धारा नहीं लगाने की बात कही है.
इस मामले को देख रहे इम्फ़ाल वेस्ट के पुलिस अधीक्षक के. मेघाचंद्र सिंह ने बीबीसी से कहा, "हमने एक ग़लत लेख प्रकाशित करने के मामले में दोनों पत्रकारों को हिरासत में लिया था और वेरिफ़ाइड किया है. लेकिन अब दोनों को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है. इन पत्रकारों का 'द फ्रंटियर मणिपुर' नाम से एक फ़ेसबुक वेब पेज है जो अभी तक पंजीकृत नहीं है और न ही इसका यहां कोई ऑफ़िस है. इन लोगों ने किसी अज्ञात व्यक्ति से व्हाट्सऐप पर प्राप्त एक आर्टिकल को अपने वेब पोर्टल पर योगदानकर्ता के किसी भी प्रमाणीकरण के बिना प्रकाशित कर दिया."
"उस लेख में मणिपुर के विद्रोही संगठन से जुड़ी कई सारी ग़लत जानकारियाँ थीं. लेख में ऐसा कहा गया कि मणिपुर में विद्रोही आंदोलन भयावह हो रहा है और इस तरह से लोगों में एक ग़लत संदेश गया. क्योंकि ऐसे बहुत से विद्रोही हैं जो मुख्यधारा में लौटे हैं. लेकिन बाद में राज्य के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने सरकार से इस मामले में कुछ सहानुभूति दिखाने की अपील की. चूंकि ऐसी ग़लती पहली दफ़ा हुई है और सभी बातों पर दिए गए क्लेरिफ़िकेशन को ध्यान में रखते हुए उन्हें रिहा किया गया है."
एक सवाल का जवाब देते हुए एसपी सिंह ने कहा, "हमने दोनों को बॉन्ड पर रिहा किया है और इस मामले में जो धाराएं पहले लगाने की सोच रहे थे वो अब नहीं लगाई गई हैं. हमने इस मामले में उनके इरादों को ग़लत नहीं पाया है क्योंकि दोनों पत्रकारों ने वायदा किया है कि वे फिर से इस तरह की भूल नहीं करेंगे. हालांकि हमने एक एफ़आईआर ज़रूर दर्ज की है."
मुख्यमंत्री से पत्रकारों ने की थी मुलाक़ात
अपनी रिहाई को लेकर दोनों पत्रकारों ने ऐसा फिर से नहीं करने को लेकर एसपी को लिखित में एक पत्र दिया है. इसके अलावा ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह से भी मुलाक़ात की.
इस मामले में दोनों पत्रकारों की तरफ़ से कोर्ट पहुंचे वकील चोंगथम विक्टर पुलिस की रिहाई करने की इस प्रक्रिया से आश्चर्यचकित हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "पुलिस पहले राजद्रोह का मामला दर्ज करने वाली थी और मैं यहां उनका कोर्ट में इंतज़ार करता रहा. अब पता चला कि पुलिस स्टेशन से ही उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है. 24 घंटे से ज़्यादा हिरासत में रखने के बाद क़ानून के अनुसार उन लोगों को कोर्ट से रिहा होना चाहिए था. पत्रकारों के संगठन ने इस मामले में मुख्यमंत्री से भी मुलाक़ात की है."
एसपी को लिखा गया पत्र
क्या इस लेख को प्रकाशित कर इन लोगों ने बहुत बड़ी ग़लती की है? इस सवाल का जवाब देते हुए वकील विक्टर कहते हैं, "यह लेख इन लोगों के प्रकाशित करने से पहले यहां के दो अख़बारों में छप चुका है. यह पिछले साल अक्टूबर में छपा था और इस जनवरी में भी प्रकाशित हुआ है. लेकिन जब 'द फ्रंटियर मणिपुर' के पत्रकारों ने इसे छापा तो उन लोगों को पकड़ लिया गया."
"मणिपुर में पत्रकारों को पकड़ने की घटना पहली बार नहीं हुई है, ऐसा पहले कई बार हो चुका है. ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के लोगों ने ही यह सबकुछ किया है. जब पहले दो अख़बारों ने इस लेख को प्रकाशित किया था तब सब लोग चुप थे लेकिन अब इन दोनों को पकड़ लिया."
'एक बेतरतीब रिवोल्यूशनरी यात्रा' नामक यह लेख एम जोय लुवांग के नाम से 8 जनवरी को प्रकाशित हुआ था जिसके बाद मणिपुर पुलिस ने मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए लेखक और संपादक के नाम पर एक मामला दर्ज किया था.
बीजेपी सरकार पर लगते आरोप
हाल के दिनों में मणिपुर में सत्तारुढ़ बीजेपी की तरफ़ से मीडिया हाउस, पत्रकार और कई लोगों पर अलग-अलग मामले दर्ज कराने की ख़बरें सामने आई हैं.
पिछले साल जुलाई में सामाजिक कार्यकर्ता एरेन्द्रो लीचोम्बम पर एक फ़ेसबुक पोस्ट को लेकर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.
इससे पहले 2018 में एक स्थानीय पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम पर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को लेकर कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगा दिया गया जिसके बाद उन्हें साढ़े चार महीनों तक जेल में रहना पड़ा.
इम्फ़ाल से निकलने वाले एक अख़बार के संपादक ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया कि मणिपुर में मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ कुछ भी लिखने से पहले एक बार सोचना पड़ता है. जिन दो पत्रकारों ने अपने न्यूज़ पोर्टल में इस लेख को प्रकाशित किया था उनका ना कोई पंजीयन है और न ही यहां कोई कार्यालय है. लिहाज़ा उनकी इन कमियों के कारण यह कार्रवाई हुई है. (bbc)
नई दिल्ली, 19 जनवरी | पेट्रोल और डीजल के दाम में मंगलवार को लगातार दूसरे दिन बढ़ोतरी दर्ज की गई। देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल का भाव 85 रुपये प्रति लीटर के उपर चला गया है और अन्य महानगरों में भी पेट्रोल का दाम नई ऊंचाई पर है। दिल्ली में लगातार दो दिनों में पेट्रोल और डीजल के दाम में 50 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि हुई है। उधर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में लगातार तीन सत्रों की नरमी के बाद तकरीबन स्थिरता बनी हुई थी।
तेल विपणन कंपनियों ने मंगलवार को पेट्रोल के दाम में दिल्ली में 25 पैसे, कोलकाता और मुंबई में 24 पैसे जबकि चेन्नई में 22 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की। वहीं, डीजल के दाम दिल्ली और कोलकाता में 25 पैसे प्रति लीटर जबकि मुंबई में 26 पैसे और चेन्नई में 24 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई है।
इंडियन ऑयल की वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में पेट्रोल की कीमतें बढ़कर क्रमश: 85.20 रुपये, 86.63 रुपये, 91.80 रुपये और 87.85 रुपये प्रति लीटर हो गई हैं।
डीजल की कीमतें भी बढ़कर दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में क्रमश: 75.38 रुपये, 78.97 रुपये, 82.13 रुपये और 80.67 रुपये प्रति लीटर हो गई हैं।
अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर बेंचमार्क कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड के मार्च डिलीवरी अनुबंध में बीते सत्र में 0.48 फीसदी की बढ़त के साथ 54.99 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था
न्यूयार्क मर्के टाइल एक्सचेंज (नायमैक्स) पर वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के मार्च अनुबंध में 0.15 फीसदी की गिरावट के साथ 52.34 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 19 जनवरी | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बेंगलुरु में 19 और 20 मार्च को होने जा रही महत्वपूर्ण बैठक के बाद संगठन में बड़ा परिवर्तन होने की संभावना जताई जा रही है। संघ के इतिहास में पहली पर नागपुर से बाहर होने जा रही यह चुनावी बैठक इसलिए भी अहम है कि इसमें संघ में नंबर दो के पद यानी सरकार्यवाह का चुनाव होना है।
संकेत मिल रहे हैं कि लगातार 12 वर्षो से सरकार्यवाह (महासचिव) की जिम्मेदारी देख रहे भैय्याजी जोशी की जगह किसी नए चेहरे को मौका मिल सकता है।
सूत्रों का कहना है कि भैय्याजी जोशी यूं तो तीन साल पहले वर्ष 2018 में भी यह जिम्मेदारी छोड़ने की इच्छा जता चुके थे, हालांकि सांगठनिक कुशलता के कारण जरूरत को देखते हुए उन्हें एक और विस्तार दिया गया था।
सूत्रों का यह भी कहना है कि भैय्याजी जोशी को नई भूमिका में संघ परिवार के सभी संगठनों के बीच समन्वय की जिम्मेदारी मिल सकती है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद कई प्रचारकों और शीर्ष पदाधिकारियों को प्रमोशन देकर बड़ी जिम्मेदारियां देने की तैयारी है। कुछ नए चेहरे सह-सरकार्यवाह बन सकते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में हर तीन वर्ष पर सर कार्यवाह पद का चुनाव होता है। यह संगठन में कार्यकारी पद होता है, जबकि सरसंघचालक का पद मार्गदर्शक का होता है। संघ के नियमित कार्यों के संचालन की जिम्मेदारी सरकार्यवाह की होती है। आमबोल चाल की भाषा में जिसे महासचिव कहते हैं, उसे संघ की भाषा में सर कार्यवाह कहा जाता है। जबकि सह-सरकार्यवाह ज्वाइंट जनरल सेक्रेटरी होते हैं।
सुरेश भैय्याजी जोशी वर्ष 2009 से लगातार सर कार्यवाह पद(महासचिव) की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। संघ सूत्रों का कहना है कि उनकी उम्र करीब 73 वर्ष हो चुकी है। वर्ष 2018 में अस्वस्थता के कारण वह खुद यह जिम्मेदारी छोड़ने की इच्छा जता चुके हैं। हालांकि सांगठनिक कुशलता के कारण वर्ष 2018 की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में उन्हें तीन साल के लिए और कार्यविस्तार देने का निर्णय सर्वसम्मति से हुआ था। लेकिन इस बार उनके जिम्मेदारी छोड़ने की प्रबल संभावना है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि संघ में सरकार्यवाह पद का चुनाव हमेशा सर्वसम्मति से होता है। संघ में किसी सरकार्यवाह की जिम्मेदारी मिलेगी, यह देश के सभी प्रांतों के करीब 1400 प्रतिनिधि सर्वसम्मति से तय करते हैं।
नागपुर के संघ विचारक दिलीप देवधर ने आईएएनएस को बताया, "अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह के पद पर सर्वसम्मति से चुनाव होना है। सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी को विस्तार मिलेगा या किसी नए चेहरे को मौका मिलेगा, यह 19-20 को करीब 1400 प्रतिनिधि सर्वसम्मति से निर्णय करेंगे। मुझे लगता है कि इस बार आधे दर्जन सह-सरकार्यवाह में से किसी एक को प्रमोशन देकर इस पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। दत्तात्रेय होसबोले का नाम सर्वाधिक चर्चा में है।"
संघ विचारक दिलीप देवधर ने बताया कि संघ में सरकार्यवाह पद का चुनाव आगामी दो घटनाओं की ²ष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। पहला 2024 का चुनाव और वर्ष 2025 में संघ के सौ साल पूरे होने पर जन्मशताब्दी वर्ष। इन दो महत्वपूर्ण अवसरों को देखते हुए नए सरकार्यवाह का चुनाव महत्वपूर्ण है।
दत्तात्रेय होसबोले बन सकते हैं सर कार्यवाह
सूत्रों का कहना कि अगर भैय्याजी जोशी को फिर से विस्तार नहीं मिला तो फिर सरकार्यवाह पद की जिम्मेदारी वर्तमान में सह- सर कार्यवाह (ज्वाइंट जनरल सेकेट्ररी) दत्तात्रेय होसबोले को यह जिम्मेदारी मिल सकती है। वजह कि संघ कार्य की ²ष्टि से वह अन्य सह -सरकार्यवाह से वरिष्ठ माने जाते हैं। दत्तात्रेय होसबोले अभी 65 वर्ष के हैं। ऐसे में वह आगे 71 वर्ष की उम्र होने तक सरकार्यवाह का दो कार्यकाल पूरा कर सकते हैं। इन दो कार्यकाल में वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव और संघ का जन्मशताब्दी वर्ष संपन्न हो जाएगा। इस प्रकार उम्र भी उनके पक्ष में है।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि संघ का दक्षिण पर फोकस है। दक्षिण भारत के कई राज्यों में आगामी समय चुनाव है। दक्षिण से ताल्लुक नजर रखने वाले होसबोले इसमें मददगार हो सकते हैं। एबीवीपी में लंबे समय तक रहने के दौरान दत्तात्रेय के पास सांगठनिक कौशल भी है। हालांकि, डॉ. कृष्ण गोपाल, मनमोहन वैद्य का भी नाम सरकार्यवाह पद के लिए चर्चा में है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 19 जनवरी | पश्चिम बंगाल में दो बार शासन करने वाली तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी अभी भी राज्य का नेतृत्व करने के लिए लोगों की पहली पसंद बनी हुई हैं। एक सर्वेक्षण में सोमवार को यह बात सामने आई। वहीं बीसीसीआई प्रमुख और पूर्व भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान सौरव गांगुली, जिन्होंने अभी तक अपने राजनीतिक करियर की घोषणा भी नहीं की है, उन्हें भी राज्य के काफी लोग मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाह रहे हैं।
राज्य की 294 सदस्यीय विधानसभा के सभी क्षेत्रों में 18,000 से अधिक लोगों पर किए गए आईएएनएस सी-वोटर सर्वेक्षण के नतीजों में यह आंकड़े सामने आए हैं। सर्वे में शामिल 48.8 प्रतिशत लोग ममता बनर्जी (दीदी) को फिर से मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाह रहे हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री के तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख दिलीप घोष को 18.7 प्रतिशत लोगों ने अपना समर्थन दिया है।
इस बीच सौरव गागुली, जिन्होंने अभी तक अपने राजनीतिक करियर की घोषणा भी नहीं की है, उन्हें तीसरे नंबर पर राज्य में शीर्ष पद के लिए पंसद किया गया है। सर्वेक्षण में शामिल 13.4 प्रतिशत लोग गांगुली को सबसे उपयुक्त मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने वाले हैं, जहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बाद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरती दिखाई दे रही है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि मुकुल रॉय, जो टीएमसी से भाजपा में आए थे, मुख्यमंत्री की दौड़ में बनर्जी से काफी पीछे हैं, क्योंकि केवल 6.9 प्रतिशत लोग ही उन्हें शीर्ष पद के सबसे उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में देखते हैं।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल के 4.1 प्रतिशत लोग मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सुजन चक्रवर्ती को मुख्यमंत्री के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं। इसके बाद कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी का नंबर आता हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, महज 2.5 प्रतिशत लोग चौधरी को सबसे उपयुक्त मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखते हैं।
सर्वेक्षण में सामने आया कि राज्य के 2.1 प्रतिशत लोग सुवेंदु अधिकारी को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं, जो पिछले महीने टीएमसी से भाजपा में आए हैं। वहीं केवल 1.3 प्रतिशत आसनसोल से भाजपा सांसद बाबुल सुप्रीयो को शीर्ष पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में देखते हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 19 जनवरी | द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) प्रमुख एम. के. स्टालिन आगामी तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में लोगों के बीच मुख्यमंत्री के तौर पर पहली पसंद बने हुए हैं। स्टालिन के बाद राज्य की जनता मुख्यमंत्री और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) नेता ई.के. पलानीस्वामी को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनते देखना चाहती है। एक सर्वेक्षण में सोमवार को यह बात सामने आई।
राज्य के सभी 234 विधानसभा क्षेत्रों में 15,000 से अधिक लोगों पर किए गए आईएएनएस सी-वोटर सर्वेक्षण में यह आंकड़े सामने आए हैं। सर्वे में यह भी सामने आया कि सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हसन मुख्यमंत्री की दौड़ में काफी दूर हैं।
सर्वेक्षण में लोगों से की गई बातचीत के आधार पर निकले निष्कर्ष में पता चला है कि तमिलनाडु में 36.4 प्रतिशत लोग स्टालिन को मुख्यमंत्री के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में देखते हैं और उसके बाद पलानीस्वामी को 25.5 प्रतिशत इस पद के लिए उपयुक्त मानते हैं।
एआईएडीएमके के ओ. पनीरसेल्वम, जो वर्तमान में राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं, उन्हें शीर्ष पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में 10.9 प्रतिशत लोगों ने वोट दी हैं।
पनीरसेल्वम ने तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है।
सर्वेक्षण में यह भी सामने आया है कि एएमएमके से वी.के. शशिकला को 10.6 प्रतिशत लोग मुख्यमंत्री के लिए उपयुक्त उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं। शशिकला पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके नेता दिवंगत जे. जयललिता की करीबी सहयोगी रहीं हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि दक्षिणी फिल्मों के साथ ही बॉलीवुड सुपरस्टार रजनीकांत, जिन्होंने राज्य के चुनाव में नहीं लड़ने की घोषणा की है, उन्हें मुख्यमंत्री के लिए 4.3 प्रतिशत लोग उपयुक्त उम्मीदवार मानते हैं। हालांकि 29 दिसंबर, 2020 को रजनीकांत ने कोविड-19 महामारी का हवाला देते हुए स्वास्थ्य कारणों से तमिलनाडु की राजनीति में नहीं आने के अपने फैसले की घोषणा की थी।
इसी तरह दक्षिणी फिल्मों के साथ ही बॉलीवुड में एक अलग मुकाम हासिल करने के बाद राजनीति में कदम रखने वाले कमल हसन को 3.6 प्रतिशत लोग मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं।
तमिलनाडु में 1967 से ही द्रमुक और एआईएडीएमके ने शासन किया गया है। 234 सदस्यीय विधासभा के लिए इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 19 जनवरी | केरल के मौजूदा मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन इस साल होने वाले अगले विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बने हुए हैं। यह बात सोमवार को आईएएनएस सी-वोटर सर्वेक्षण में सामने आई है। सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 46.7 प्रतिशत लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए विजयन को पसंद किया है। इस पद के लिए केरल में किसी भी राजनीतिक दल का कोई अन्य नेता विजयन के पास भी नहीं है।
विजयन के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी को मुख्यमंत्री पद के लिए 22.3 प्रतिशत लोगों के वोट हासिल हुए हैं, जबकि राज्य के आठ अन्य राजनीतिक नेता सर्वेक्षण में कुल वोटों के 10 प्रतिशत हिस्से को भी सुरक्षित नहीं कर पाए।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) से के. के. शैलजा, जो शैलजा टीचर के रूप में लोकप्रिय हैं और वर्तमान में केरल सरकार में स्वास्थ्य एवं समाज कल्याण विभाग मंत्री हैं, उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए केवल 6.3 प्रतिशत लोगों के वोट मिले हैं।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला और भाजपा नेता के. सुरेंद्रन में से प्रत्येक को राज्य का नेतृत्व करने के लिए 4.1 प्रतिशत वोट मिले हैं।
वहीं केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के लोकसभा सांसद शशि थरूर को मुख्यमंत्री के तौर पर महज 3.7 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया है, जबकि वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी को केरल के मुख्यमंत्री पद पर 3.6 प्रतिशत लोग देखना चाह रहे हैं।
सर्वेक्षण केरल की सभी 140 विधानसभा सीटों से 6000 से अधिक प्रतिभागियों से बातचीत पर आधारित है।
--आईएएनएस
भारत बायोटेक ने अपनी वैक्सीन को लेकर कुछ शर्तें जारी की हैं. भारत बायोटेक की कोविड-19 वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है. कंपनी ने अपनी वेबासाइट पर एक बयान अपलोड कर बताया है कि किन लोगों को कोवैक्सीन नहीं लगानी है.
बयान के अनुसार एलर्जी पीड़ित, बुख़ार और ब्लीडिंग डिसऑर्डर वाले, वो लोग जो ख़ून पतला करने की दवाई लेते हैं और वो लोग जो इम्युनिटी को लेकर दवाई लेते हैं, उन्हें भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन न लगाने की सलाह दी.
इसके साथ ही गर्भवती महिलाएं और जो स्तनपान कराती हैं उन्हें भी इस वैक्सीन लगाने से मना किया गया है. अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिन्दू' ने इस ख़बर को पहले पन्ने की लीड बनाई है.
कंपनी ने अपने बयान में कहा है, "कोवैक्सीन गंभीर एलर्जिक रिएक्शन की वजह बन सकती है. इसके कारण सांस लेने में दिक़्क़त, चेहरे या गर्दन पर सूजन, तेज़ धड़कन, शरीर पर रैश, चक्कर और कमज़ोरी जैसी समस्या हो सकती है."
भारत बायोटेक ने अब फैक्टशीट जारी की है, जिसमें वैक्सीन के संभावित दुष्प्रभावों की जानकारी दी गई है.
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार कोवैक्सीन की क्लिनिकल एफिकेसी दर अभी नहीं बताई गई है. अब भी वैक्सीन के फ़ेज थ्री के क्लिनिकल ट्रायल की स्टडी चल ही रही है. कंपनी ने ये भी कहा है कि वैक्सीन लगाने का मतलब ये नहीं है कि कोविड-19 को रोकने के लिए परहेजों का पालन नहीं करना है.
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय के एक आदेश के अनुसार लोग ये तय नहीं कर सकते कि उन्हें कौन-सी वैक्सीन मिलेगी, हालांकि वैक्सीन लगवाना या न लगवाना स्वैच्छिक है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ और इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमए) की ओर से इसके लिए ज़ोर-शोर से जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.
अख़बार कहता है कि वैक्सीन लगाने के बाद 447 लोगों में इसके साइड इफेक्ट दिखे हैं. इनमें से तीन लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. ऐसे में वैक्सीन को लेकर जागरूकता फैलाने पर ज़ोर दिया जा रहा है.
द हिन्दू से स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा है कि टीकाकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति की सेहत के बारे में पूरी जानकारी लेना और वैक्सीन लगाने के बाद उसकी निगरानी करना शामिल है. (बीबीसी)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | राजस्थान के भवेश शेखावत और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की आकांक्षा बंसल ने सोमवार को यहां डॉ. कर्णी सिंह रेंज में आयोजित टी2 25 मीटर रेपिड फायर पिस्टल ट्रायल्स के आखिरी दिन जीत अपने नाम कर ली। भवेश ने फाइनल्स में 32 अंक किए और उन्होंने दिल्ली के अर्पित गोयल (27 अंक) को पीछे छोड़ा। हरियाणा के आदर्श सिंह 23 अंक के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
सेना के निशानेबाज और ट्रायल एक के विजेता गुरप्रीत सिंह ने क्वालीफाईंग राउंड में 580 का स्कोर बनाकर पहला स्थान हासिल किया। भवेश ने 576 अंकों के साथ छठे स्थान पर रहते हुए क्वालीफाई किया।
महिलाओं वर्ग में आकांक्षा ने 548 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया। उत्तर प्रदेश की अरुणिमा गौड़ (544) दूसरे और हरियाणा की तेजस्वी (542) तीसरे स्थान पर रहीं।(आईएएनएस)
गुरुग्राम, 18 जनवरी | गुरुग्राम में द्वारका एक्सप्रेसवे पर ट्रेलर ट्रक और कार में जोरदार भिड़त हो गई, जिससे कार में सवार 40 वर्षीय प्राइवेट एयरप्लेन पायलट की मौत हो गई। इसकी जानकारी पुलिस ने सोमवार को दी। पुलिस के मुताबिक, अनमोल वर्मा रविवार को करीब 1.30 बजे दिल्ली से गुरुग्राम स्थित अपने घर जा रहे थे। जब वह सेक्टर-114 के पास द्वारका एक्सप्रेसवे पर पहुंचे, तो गलत दिशा से आ रही एक ट्रेलर ट्रक ने सामने से जोरदार टक्कर मार दी है।
टक्कर में, पायलट को गंभीर चोटें लगीं और इलाज के लिए एक निजी अस्पताल ले जाया गया। स्थानीय लोगों ने उनके दोस्त पंकज कौशल को भी सूचित किया है, जो एक अन्य निजी एयरलाइन के पायलट हैं।
पुलिस ने बताया कि घायल पायलट की इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई।
ट्रक चालक अपने वाहन को मौके पर छोड़कर मौके से फरार हो गया।
बजघेरा थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) संदीप कुमार ने कहा, "हमने उस ट्रक को जब्त कर लिया है, जिसमें हरियाणा का रजिस्ट्रेशन नंबर है। हम फरार ट्रक ड्राइवर के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। मृतक का शव सोमवार को परीक्षण के बाद उसके परिजनों को सौंप दिया गया है।" (आईएएनएस)
मुंबई, 18 जनवरी | बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि 'मीडिया ट्रायल' जांच को प्रभावित करता है, कानूनों का उल्लंघन करता है और अदालत की अवमानना के साथ ही न्यायिक प्रशासन में बाधा उत्पन्न करता है। जून 2020 में बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में आईपीएस अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा दायर जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायाधीश जी. एस. कुलकर्णी की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा, "मीडिया ट्रायल केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत कार्यक्रम कोड का उल्लंघन करता है।"
अदालत ने कहा कि चूंकि वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास अपने दिशानिर्देश नहीं हैं, इसलिए प्रिंट मीडिया के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशानिर्देश इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी लागू होंगे। (आईएएनएस)
रजनीश सिंह
नई दिल्ली, 18 जनवरी | स्वदेशी रूप से विकसीत एक बाइक एम्बुलेंस 'रक्षिता' सोमवार से नक्सल प्रभावित राज्यों या उग्रवाद प्रभावित पूर्वोत्तर क्षेत्रों के दूरदराज और दुर्गम इलाकों में तैनात सीआरपीएफ कर्मियों के जीवन को बचाएगी।
आपातकालीन निकासी की जरूरतों के लिए सावधानी से कस्टम बनाया गया है। 'रक्षिता' एक रॉयल एनफील्ड क्लासिक 350सीसी बाइक पर बनाया गया है।
यह एक त्वरित फिट और कैजुअल्टी निकासी सीट (सीएसई) के साथ आता है, जिसमें ड्राइवर के लिए निगरानी क्षमता और ऑटो चेतावनी प्रणाली के साथ कस्टमाइजिंग डिजाइन रीक्लाइनिंग, हैंड इमोबिलाइजर और हार्नेस जैकेट, फिजियोलॉजिकल पैरामीटर माप उपकरण होते हैं।
सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मापदंडों, एयर स्प्लिंट मेडिकल और ऑक्सीजन किट, सैलाइन और ऑक्सीजन एडमिनिस्ट्रेशन जैसे महत्वपूर्ण पैरामीटर के लिए डैशबोर्ड माउंटेड एलसीडी आदि विशेषताओं से यह लैस है।
सीआरपीएफ के उप महानिरीक्षक एम. दिनाकरन ने आईएएनएस को बताया कि ये उपकरण रक्षिता को ऑन स्पॉट मेडिकल केयर और इंजर्ड ट्रांसपोर्च सिस्टम बनाते हैं। जो न केवल स्वदेशी और लागत प्रभावी है, बल्कि संकरी गलियों, भीड़भाड़ और अनचाही सड़कों का पता लगाकर दुर्गम या दूरस्थ स्थानों तक भी पहुंच सकती है, जहां पारंपरिक चार पहिया वाले एंबुलेंस का पहुंचना मुश्किल होता है। बाइक एम्बुलेंस को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलाइड साइंसेज (इनमास) द्वारा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के सहयोग से विकसित किया गया है।
इसी तरह की 21 'रक्षिता' बाइक एंबुलेंस को सोमवार को 3.5 लाख बल के सीआरपीएफ में शामिल किया गया। ये बाइक एम्बुलेंस सीआरपीएफ मुख्यालय में सीआरपीएफ के महानिदेशक ए.पी. माहेश्वरी और ए.के. सिंह, डीएस और डीजी (एलएस), डीआरडीओ की मौजूदगी में लॉन्च किए गए। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | सीबीएसई बोर्ड परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार ने दसवीं-बारहवीं कक्षा के छात्रों के लिए स्कूलों को फिर से खोलने का निर्णय लिया है। कई स्कूलों में इस मौके पर छात्रों और शिक्षकों को हैंड सैनिटाइजर और एन 95 मास्क उपलब्ध कराए गए। मार्च 2020 के बाद पहली बार स्कूल खुलने पर 10वीं-12वीं के छात्र पहली बार स्कूल पहुंचे हैं। आम आदमी पार्टी के विधायक राघव चड्ढा ने कहा कि, "लॉकडाउन के बाद स्कूल खुलने पर सभी सुरक्षा उपाय किए गए हैं। छात्रों-शिक्षकों को एन 95 मास्क और हैंड सैनिटाइजर दिए गए हैं। पढ़ाई दोबारा से बंद न हो यह सुनिश्चित करने के लिए हमें हर संभव प्रयास करना है।"
राघव चड्ढा ने सोमवार को दिल्ली के कई स्कूलों का दौरा किया। इस दौरान छात्र व शिक्षकों दोनों को ही कोरोना से बचाव के उपयुक्त संसाधन भी मुहैया कराए गए।
युवा छात्रों से बातचीत के दौरान राजेंद्र नगर विधायक राघव चड्ढा ने सभी को मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और नियमित रूप से हाथों को साफ करने संबंधी कोविड 19 सुरक्षा उपायों को लेकर प्रेरित किया।
कक्षा दसवीं-बारहवीं के छात्रों के लिए बोर्ड परीक्षाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। छात्रों को इस स्तर पर परीक्षा में बैठने से पहले सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी। छात्र मार्च 2020 के बाद पहली बार स्कूल आ रहे हैं। पिछला साल सभी के लिए बेहद कठिन रहा है।
दिल्ली में स्कूल मार्च 2020 में बंद कर दिए गए थे, ताकि कोविड 19 के प्रसार को नियंत्रित किया जा सके। ऐसे में शिक्षा को जारी रखने के लिए पढ़ाई ऑनलाइन कक्षाओं में तब्दील हो गई। अब कक्षा दसवीं और बारहवीं के छात्रों के लिए स्कूल फिर से खोल दिए गए हैं। हालांकि शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। छात्र अपने माता-पिता की सहमति से ही स्कूल आ सकते हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | कोरोनावायरस टीकाकरण को लेकर लोगों में कई तरह की आशंकाएं बनी हुई हैं। इस बीच एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने सोमवार को भरोसा दिया कि वैक्सीन से किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं होगी। राष्ट्रव्यापी कोविड टीकाकरण अभियान 16 जनवरी को शुरू हुआ था और पहले दो दिनों के दौरान टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रतिक्रिया (एईएफआई) के 447 मामले सामने आए हैं, जिसमें से अधिकांश तो मामूली साइड इफेक्ट थे, जबकि तीन रोगियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
वैक्सीन लगाने के बाद साइड इफेक्ट और एलर्जी पर चर्चा करते हुए डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि मामूली साइड इफेक्ट से हमें डरने की जरूरत नहीं है, अगर आप कोई भी दवाई लेते हैं, तो कुछ एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है और ऐसा रिएक्शन क्रोसिन, पैरासिटामोल जैसी साधारण दवाई से भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसका कोई ऐसा साइड-इफेक्ट नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप मौत हो जाए।
एम्स निदेशक डॉ. गुलेरिया ने कहा कि इसके साधारण साइड इफेक्ट में शरीर में दर्द, जहां टीका लगा है, वहां पर हल्का दर्द और हल्का बुखार हो सकता है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि अगर गंभीर साइड इफेक्ट की बात करें तो शरीर पर चकत्ते निकल सकते हैं, मगर साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ये साइड इफेक्ट 10 प्रतिशत से भी कम लोगों को होते हैं।
डॉ. गुलेरिया ने लोगों से वैक्सीन लगवाने की अपील की। उन्होंने कहा कि अगर अगर हमें को कोविड संक्रमण से बाहर निकलना है, मौत की दर को कम करना है, अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लानी है, तो हमें बिना झिझक वैक्सीन लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में हमें स्कूल शुरू करने हैं, जिंदगी को साधारण करना है तो सभी को आगे आकर कोविड वैक्सीन लगवानी चाहिए। तभी हम आगे बढ़ पाएंगे और तभी देश पहले की तरह पटरी पर लौट पाएगा।
16 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश भर में टीकाकरण अभियान शुरू करने के कुछ ही क्षणों के बाद डॉ. गुलेरिया को भी वैक्सीन दी गई थी।
एम्स के निदेशक ने वैक्सीन लगवाने के बाद सोमवार को अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा, "वैक्सीन का मुझ पर कोई साइड इफेक्ट नहीं है और मैं पूरी तरह से ठीक महसूस कर रहा हूं।" (आईएएनएस)
'लाहौर, 18 जनवरी | पुलिस ने लाहौर में साल 2020 में 279 अप्राकृतिक मौतों की जांच शुरू की है। यह जानकारी सोमवार को एक मीडिया रिपोर्ट से मिली। डॉन न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है, "पुलिस ने 279 अप्राकृतिक मौतों में लंबित पूछताछ को ऑपरेशन विंग से जांच में शिफ्ट कर दिया है।"
रिपोर्ट में आगे कहा गया, "राजधानी शहर के पुलिस अधिकारी (सीसीपीओ) द्वारा पुलिस की दोनों शाखाओं के डीआईजी की सिफारिशों पर आत्महत्या, आकस्मिक, अप्राकृतिक और संदिग्ध मौतों की जांच के लिए एक निर्देश जारी किया गया है।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल लाहौर जिले में ऐसी परिस्थितियों में 279 लोग मारे गए थे।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने डॉन को बताया कि, यह पहल यह पता लगाने के लिए शुरू की गई है कि 279 लोग की मौत कैसे हुई थी, आत्महत्या, दुर्घटना या हत्या के कारण ये मारे गए थे।
उन्होंने कहा, "अप्राकृतिक मौत के मामले में परिस्थितियों को समझने और जांचने की जरूरत है, जिससे उन्हें न्याय मिल सके।"
डॉन के साथ उपलब्ध आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, 279 पीड़ितों में से 251 पुरुष, 23 महिलाएं और 5 बच्चे थे।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, पंचायत राज तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने का साहस दिखाया और उन्होंने नए कृषि कानून बनाए। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए ये कानून लाभकारी साबित होंगे। केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साहसपूर्वक नए कृषि सुधार कानून बनाए हैं। भारत सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार किसानों के लिए काफी मददगार साबित होंगे और इनसे उनका जीवन स्तर ऊंचा उठेगा।"
भारत सरकार द्वारा किए गए ऐतिहासिक कृषि सुधारों पर वैकुंठ मेहता राष्ट्रीय सहकारी प्रबंध संस्थान द्वारा ग्रामीण स्वयंसेवी संस्थाओं के परिसंघ के सहयोग से आयोजित नेशनल कॉन्फ्रें स को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि कृषि देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार है और संकट की घड़ी में ग्रामीण अर्थव्यवस्था से देश को मजबूती मिलती रही है।
उन्होंने कहा, "कोविड संकट में भारत सरकार ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अनेक कदम उठाए गए हैं।"
तोमर ने कहा, "खाद्यान्न में हमारा देश सरप्लस देश है, लेकिन कृषि क्षेत्र में असंतुलन भी है। बड़े व छोटे किसानों की परिस्थितियां भिन्न-भिन्न हैं, इसीलिए छोटे किसानों को सरकारी योजनाओं, सब्सिडी, एमएसपी, टेक्नोलॉजी, मार्केट लिंक आदि का लाभ देने के लिए सरकार ने अनेक उपाय किए हैं। कृषि सुधारों को लेकर लंबे समय तक कृषि विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, किसान संगठनों व अन्य विद्वानों ने काफी मंथन किया है।"
उन्होंने कहा कि डॉ. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में कमेटी भी बनी और काफी विचार-विमर्श के बाद कृषि क्षेत्र में कानूनी बदलाव लाने की जरूरत महसूस करते हुए ये नए कानून लाए गए हैं।
तोमर ने कहा, "ये कानून पहले भी अपेक्षित थे, लेकिन पहले की सरकार दबाव-प्रभाव में आगे नहीं बढ़ पाई। मोदी जी ने साहसपूर्वक कदम उठाया और दो नए कानून बनाए एवं एक कानून में संशोधन किया, जिन्हें संसद के दोनों सदनों ने मंजूरी दी।"
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ये कानून किसानों की दशा-दिशा बदलने वाले, उन्हें बंधनों से मुक्ति देने वाले, फसल का वाजिब दाम दिलाने वाले, महंगी फसल की ओर आकर्षित करने वाले, एफपीओ व फूड प्रोसिंसिग से जोड़ने वाले हैं।
उन्होंने कहा, "ये कानून किसानों के लिए काफी मददगार सिद्ध होंगे। जब भी कोई अच्छी चीज होती है तो उसमें बाधाएं आती हैं। देशभर में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि एमएसपी खत्म होने जा रही है, लेकिन सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि एमएसपी जारी रहेगी, बल्कि एमएसपी पर खरीद भी बढ़ाई गई है।"
उन्होंने कहा, "देश के कृषि बजट को 5 गुना से ज्यादा बढ़ाया गया है। वर्ष 2013-14 में कृषि बजट लगभग 27 हजार करोड़ रुपये था, जिसे चालू वित्तीय वर्ष में बढ़ाकर 1.34 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। आत्मनिर्भर भारत अभियान में घोषित एक लाख करोड़ रुपये के कृषि इंफ्रास्ट्रक्च र फंड से गांव-गांव पूंजी निवेश होगा, जिससे किसानों को काफी सहूलियत होगी, वे आत्मनिर्भर बन सकेंगे।"
कार्यक्रम को वैकुंठ मेहता राष्ट्रीय सहकारी प्रबंध संस्थान के निदेशक डॉ. के.के. त्रिपाठी, फिक्की के पदाधिकारी आर.जी. अग्रवाल, कृषि विशेषज्ञ डॉ. अमिताभ कुंडू, डॉ. प्रवीण त्रिपाठी व रवींद्र धारिया, कॉन्फेडरेशन ऑफ हार्टिकल्चर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमेन डॉ. एच.पी. सिंह, ग्रामीण स्वयंसेवी संस्थाओं के परिसंघ के महासचिव बिनोद आनंद और प्रोफेसर डॉ. स्नेहा कुमारी ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में सैकड़ों संस्थाओं के पदाधिकारी वर्चुअल माध्यम से जुड़े थे। (आईएएनएस)