राष्ट्रीय
-अनुराग द्वारी
मुरैना: कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे आंदोलन के बीच केंद्र सरकार अपने इन कानूनों की वकालत के लिए कई तरीके अपना रही है. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इन कानूनों पर बातचीत के लिए कई सम्मेलन कर रहे हैं. इसी क्रम में वो मध्य प्रदेश के मुरैना में एक सम्मेलन हिस्सा लेने आए थे, हालांकि, मुरैना पहुंचने से पहले का उनका एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वो सिख समुदाय के कुछ लोगों के साथ भोजन करते देखे गए.
दरअसल, नरेंद्र सिंह तोमर रविवार को दिल्ली से रेल मार्ग से मुरैना आ रहे थे. इसी दौरान उन्होंने ट्रेन में सिख समुदाय के कुछ लोगों के साथ लंगर का खाना खाया. यह वीडियो उनके फेसबुक अकाउंट पर शेयर किया गया है.
कृषि मंत्री ने वीडियो पर सवाल किए जाने पर तो कुछ जवाब नहीं दिया लेकिन मोदी सरकार की कृषि क्षेत्र में किए गए योगदानों का जरूर उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि सरकार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में किसानों के लिये अभूतपूर्व कार्य किए हैं और सरकार इन किसान कानूनों को वापस नहीं लेगी.
उन्होंने कहा कि सरकार आंदोलनरत किसानों के सुझावों पर बदलाव के लिए नौ चरणों की चर्चा कर चुकी है और उन्होंने संभवत: 19 जनवरी को दसवें चरण की चर्चा में किसानों से विकल्प और प्रावधानों पर चर्चा के साथ समाधान की ओर आगे बढ़ने का भरोसा जताया. उन्होंने किसान बिल को किसानों के जीवन में बदलाव लाने वाला बताते हुए कहा कि भारत सरकार किसानों के उत्थान के प्रति प्रतिबद्ध है.
बता दें कि बड़ी संख्या में किसान संगठन और पंजाब, हरियाणा समेत कई दूसरे राज्यों के किसान हजारों की संख्या में नवंबर से ही दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठा होकर प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग मोदी सरकार द्वारा सितंबर में सदन से पारित तीन नए कृषि सुधार कानूनों को वापस लिए जाने की है. सरकार किसानों से नौ चरणों में बात कर चुकी है, जिसका कोई हल नहीं निकला है. इस बीच किसान संगठनों ने 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालने की चेतावनी दी है. कृषि मंत्रालय इन कानूनों पर किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए इनपर सम्मेलन भी कर रहा है.
शिवसेना को गढ़ कोकण में बीजेपी बड़ी जीत की ओर
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनावों के नतीजों से शिवसेना गदगद
चंद्रकांत पाटिल ने शिवसेना को दी चेतावनी, अलग-अलग होकर लड़ो चुनाव
कांटे की टक्कर, BJP 388 सीटों पर तो शिवसेना 371 सीटों पर आगे
पराली में 7 में 6 सीटों पर एनसीपी का कब्जा, 1 बीजेपी के पास
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके पृथ्वीराज चव्हाण को लगा तगड़ा झटका
BJP अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील के गांव में शिवसेना का दबदबा
औरंगाबाद के ढाकेफल गांव में महिलाओं ने बनाया रिकॉर्ड
राधाकृष्ण विखे पाटिल को महाराष्ट्र पंचायत चुनाव में लगा बड़ा झटका
331 ग्राम पंचायतों पर शिवसेना तो 266 पर BJP आगे
14 गांवों ने अपनी मांगों लेकर ग्राम पंचायत चुनावों का बहिष्कार किया
जनलीक्षा पार्टी ने पडली ग्राम पंचायत पर पर हासिल की जीत
शिवसेना 323 सीटों पर आगे, बीजेपी ने 261 सीटों पर बना रखी है बढ़त
पहले 1,566 ग्राम पंचायतों में 31 मार्च 2020 को चुनाव होने वाले थे
महाराष्ट्र सरकार के सामने आज सबसे बड़ी चुनावी चुनौती का दिन
महाराष्ट्र सरकार के सामने आज सबसे बड़ी चुनावी चुनौती का दिन
महाराष्ट्र पंचायत की 1,25,709 सीटों के लिए मतदान हुआ
14 गांवों ने महाराष्ट्र में हुए ग्राम पंचायत चुनाव का बहिष्कार किया
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनाव में 79 फीसदी वोटिंग हुई थी
बीजेपी और शिवसेना के बीच कांटे की टक्कड़ जारी है. कभी बीजेपी आगे निकल रही है तो कभी शिवसेना आगे निकल रही है. अभी तक के चुनाव परिणा पर नजर दौड़ाएं तो बीजेपी के खाते में 502 सीट गई है तो शिवसेना के खाते में 532 सीटें जाती दिखाई दे रही हैं. एनसीपी के खाते में 372, कांग्रेस के खाते में 360 जबकि अन्य के खाते में 645 सीट जा चुकी हैं.
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनाव में इस बार कई बड़े उलटफेर देखने को मिल रहे हैं. कोकण क्षेत्र से बीजेपी को बड़ी जीत मिलती दिखाई दे रही है. बता दें कि कोकण को शिवसेना का गढ़ माना जाता है.कोकण के मालवण में 5 ग्राम पंचायतों में BJP को बड़ी जीत हासिल हुई है.
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनाव में बीजेपी और शिवसेना के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है. बीजेपी को अब तक 456 सीटें हासिल हुई हैं तो शिवसेना के खाते में 435 सीटें आई हैं. एनसीपी को इस चुनाव में 323 जबकि कांग्रेस को 331 सीटें मिलती दिख रही हैं. अन्य के खाते में अभी तक 620 सीट जाती दिखाई दे रही है.
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनाव के अब तक के नतीजों ने शिवसेना को गदगद कर दिया है. इस चुनाव परिणाम ने साबित कर दिया है कि शिवसेना को अब केवल अर्बन पार्टी नहीं समझा जा सकता है. पहले शिवसेना की पहुंच केवल मुंबई और कोकण क्षेत्र तक ही मानी जाती थी लेकिन ग्राम पंचायत चुनाव के नतीजों ने बता दिया है कि शिवसेना की पैठ अब गांव तक भी है.
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनाव के नतीजों ने चंद्रकांत पाटिल और बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. चंद्रकांत पाटिल के क्षेत्र से शिवसेना ने 9 में से 6 सीटों पर जीत दर्ज की है. बीजेपी की हार पर चंद्रकांत पाटिल ने शिवसेना को चेतावनी देते हए कहा कि अलग-अलग होकर लड़ो फिर अपनी ताकत दिखाओ. तीनों एक हो गए BJP अकेली पड़ गई.
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनाव के नतीजों में बीजेपी और शिवसेना के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. अभी तक के चुनाव नतीजों पर गौर करें तो बीजेपी 388 सीटों पर आगे है जबकि शिवसेना 371 सीटों पर आगे चल रही है. एनसीपी को अभी 279 जबकि कांग्रेस के पास 258 सीट मिली हैं. इस चुनाव में अन्य के खाते में अब तक 556 सीटें गई हैं.
पराली में एनसीपी ने 7 में से 6 सीटों पर दर्ज की जीत, एक पर बीजेपी का कब्जा. इस ग्राम पंचायत पर इस लिए हर किसी की नजर थी क्योंकि यहां पर एक ही परिवार के पकंजा मुंडे और धनंजय मुंडे के बीच वर्चस्व की लड़ाई थी. एनसीपी की जीत ने धनंजय मुंडे की साख को बढ़ा दिया है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके पृथ्वीराज चव्हाण के गढ़ कराड में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. चुनाव परिणों पर नजर डालें तो शेनोली शेरे और कार्वे गांव में BJP ने बाजी मार ली है जबकि उत्तरी कराड में NCP से कैबिनेट मंत्री बालासाहेब पाटील का पैनल विजयी हुआ है. यहां से NCP ने 10 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की है.
महाराष्ट्र पंचायत चुनाव में इस बार कई तरह के बड़े फेरबदल देखने को मिल रहे हैं. बीजेपी से अलग होने के बाद शिवसेना ग्राम पंचायत चुनाव में काफी अच्छा प्रदर्शन करते हुए दिखाई दे रही है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील के गांव कोल्हापुर के खानापुर से शिवसेना आगे चल रही है. शिवसेना का इस तरह से आगे बढ़ना BJP के साथ-साथ चंद्रकांत पाटील के लिए भी एक करारा झटका है.
महाराष्ट्र पंचायत चुनाव के इस बार के चुनाव में कई बड़े दिग्गजों को बड़ा झटका लगा है. इन दिग्गजों में BJP से चंद्रकांत पाटील, नारायण राणे, राधाकृष्ण विखे पाटील के नाम हैं. वहीं कांग्रेस पार्टी के पृथ्वीराज चव्हाण को भी पंचायत चुनाव में निराशा हाथ लगी है.
महाराष्ट्र ग्राम पंचायत चुनाव के परिणाम आने शुरू हो गए हैं. परिणाम आने के साथ ही औरंगाबाद जिले के ढाकेफल गांव में महिलाओं ने रिकॉर्ड बना दिया है. यहां 9 में से 9 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को जीत दर्ज की है. बता दें कि महाराष्ट्र के 34 जिलों के 12,711 ग्राम पंचायतों में 15 जनवरी को वोटिंग हुई थी.
अहमदनगर जिले के सीनियर लीडर राधाकृष्ण विखे पाटिल को बड़ा झटका लगा है. लोणी खुर्द गांव में 20 साल के बाद उनकी सत्ता चली गई है. 17 में से 13 सीटों पर परिवर्तन पैनल को जीत हासिल हुई है. राधाकृष्ण विखे पाटिल 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए थे.
महाराष्ट्र पंचायत चुनाव के परिणाम आने शुरू हो गए हैं. अभी तक के रुझान को देखें तो शिवसेना 331, बीजेपी 266, एनसीपी 221 और कांग्रेस 147 सीटों पर आगे चल रही है.
पिछले साल अप्रैल से जून के बीच राज्य की 1,566 ग्राम पंचायतों में 31 मार्च 2020 को चुनाव होने वाले थे, लेकिन कोरोना की वजह से 17 मार्च 2020 को चुनाव कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया. इसके बाद चुनाव कार्यक्रम पूरी तरह रद्द कर दिया गया.
14 गांवों ने अपनी मांगों लेकर ग्राम पंचायत चुनावों का बहिष्कार किया है. ये लोग अपने क्षेत्र को नवी मुंबई नगर निगम का हिस्सा बनाने की मांग कर रहे हैं. जिले में 5 ग्राम पंचायतों में शुक्रवार को मतदान नहीं हुआ. अधिकारी ने बताया कि इन गांवों के निवासी पिछले 15 साल से आंदोलन कर रहे हैं और पिछले दो आम चुनावों में भी मतदान का बहिष्कार कर चुके हैं. इनकी मांगों को लेकर एक कमेटी बनाई गई है. इस संबंध में जिला प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपा गया है.
5 सीट पर मनसे के उम्मीदवार आगे हैं. पहला परिणाम हतनकंगल ग्राम पंचायत से आया है. यहां जनलीक्षा पार्टी ने पडली ग्राम पंचायत पर झंडा फहराया है. विनय कोरे ने जीत हासिल की है.
अब तक रुझानों के मुताबिक, शिवसेना और बीजेपी में कड़ी टक्कर हो रही है. शिवसेना 323 सीट पर आगे चल रही है, बीजेपी ने भी 261 सीटों पर बढ़त बना रखी है. एनसीपी के खाते में 218, तो कांग्रेस को 136 सीट मिलती दिख रही है.
पिछले साल अप्रैल से जून के बीच राज्य की 1,566 ग्राम पंचायतों में 31 मार्च 2020 को चुनाव होने वाले थे, लेकिन कोरोना की वजह से 17 मार्च 2020 को चुनाव कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया. इसके बाद चुनाव कार्यक्रम पूरी तरह रद्द कर दिया गया.
महाराष्ट्र पंचायत चुनाव: सरपंच पद की हो रही नीलामी, EC ने 2 ग्राम पंचायत के चुनाव किए रद्द
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई में 15 महीने पहले सत्ता संभालने के बाद शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस महागठबंधन सरकार के सामने ये पहली बड़ी चुनावी चुनौती है.
महाराष्ट्र की राजनीति में आज का दिन अहम है. राज्य की 14,234 ग्राम पंचायतों में पर 12,711 सीटों पर 15 जनवरी को हुए चुनाव की मतगणना हो रही है. बाकी 1523 सीटों पर प्रत्याशी निर्विरोध विजयी हुए हैं. अब तक रुझानों के मुताबिक, शिवसेना और बीजेपी में कड़ी टक्कर हो रही है. फिलहाल शिवसेना 323 सीट पर आगे चल रही है. बीजेपी के प्रत्याशी 261 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं.
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई में 15 महीने पहले सत्ता संभालने के बाद शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस महागठबंधन सरकार के सामने ये पहली बड़ी चुनावी चुनौती है.सभी प्रमुख राष्ट्रीय दलों, राज्य दलों, क्षेत्रीय दलों और स्थानीय दलों के उम्मीदवारों के अलावा निर्दलीय भी इस महत्वपूर्ण चुनाव के लिए मैदान में थे.
लखनऊ, 18 जनवरी | वेब सीरीज तांडव में आपत्तिजनक दृश्यों तथा डायलॉग को लेकर मचे बवाल के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने भी धार्मिक व जातीय भावना को आहत करने वाले कुछ दृश्यों को हटाने की अपील की है। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने सोमवार को ट्वीट कर लिखा कि, ताण्डव वेब सीरीज में धार्मिक व जातीय आदि भावना को आहत करने वाले कुछ ²श्यों को लेकर विरोध दर्ज किए जा रहे हैं, जिसके सम्बंध में जो भी आपत्तिजनक है उन्हें हटा दिया जाना उचित होगा ताकि देश में कहीं भी शान्ति, सौहार्द व आपसी भाईचारे का वातावरण खराब न हो।
इससे पहले रविवार रात लखनऊ के हजरतगंज कोतवाली में वेब सीरीज तांडव के निर्देशक अली अब्बास जाफर, प्रोड्यूसर हिमांशु कृष्ण मेहरा, लेखक गौरव सोलंकी और हेड इंडिया ओरिजिनल कंटेंट अमेजन के अपर्णा पुरोहित के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई है। यहां पर वरिष्ठ उपनिरीक्षक अमरनाथ यादव ने रिपोर्ट दर्ज कराई है। आरोप है ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजॉन प्राइम वीडियो पर 16 जनवरी को रिलीज हुई वेब सीरीज तांडव के विरोध में काफी आक्रोश भरे लेख आ रहे हैं। इस वेब सीरीज की फुटेज भी लोग पोस्ट कर आपत्ति जता रहे हैं।
ज्ञात हो कि वेब सीरीज के पहले एपिसोड पर लोगो ने आपत्ति जतायी है। 17 वें मिनट पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का काम किया गया है। इसके अलावा निम्न स्तर की भाषा का इस्तेमाल भी किया गया है, जिससे लोगों में आक्रोश है। वेब सीरीज में राजनीतिक वर्चस्व को पाने के लिए अत्यंत निम्न स्तर से फिल्म का चित्रण किया गया है। इस मामले में समुदाय विशेष की धार्मिक भावनाओं को भड़काने का प्रयास हुआ है। मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने वेब सीरीज के निमार्ता निर्देशक, लेखक व प्रोड्यूसर समेत अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। (आईएएनएस)
कटनी, 18 जनवरी | मध्य प्रदेश के कटनी जिले में एक शिक्षक ने महिला और बालिका सम्मान की अनूठी मिसाल पेश की है। यह शिक्षक बीते 20 साल से अधिक समय से बालिकाओं की पूजा और चरण पूजन के बाद ही अध्यापन का कार्य शुरु करते हैं। कटनी जिले के लोहरवारा में है प्राथमिक पाठशाला। यहां पढ़ने आने वाली बालिकाओं का प्रभारी भैया लाल सोनी प्रार्थना से पहले उनके पैरों को बगैर किसी भेदभाव के गंगा जल से धोते हैं और पूजन करने के बाद ही अध्यापन का कार्य शुरु करते हैं। यह क्रम बीते 23 सालों से निरंतर जारी है। कोरोना महामारी के दौर में विद्यालय बंद रहे और हमारा घर हमारा विद्यालय के तहत संचालित मोहल्ला क्लास में भी कन्याओं का पूजन करना नही भूलते।
भैया लाल सोनी बताते हैं कि एक पवित्र सोच के साथ नमामि जननी अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान का मकसद बच्चियों और महिलाओं का सम्मान है। नियमित तौर पर प्रार्थना से पहले बालिकाओं के पैर गंगाजल से धोए जाते हैं और नवरात्र में बालिकाओं का जिस तरह से पूजन होता है, वैसा ही पूजन नियमित तौर पर किया जाता है।
मध्य प्रदेश की शिवराज सिह चौहान सरकार ने 25 जनवरी को सुशासन दिवस के मौके पर यह तय किया है कि सभी सरकारी कार्यक्रम कन्या पूजन के साथ शुरु होंगे। शिक्षक सोनी ने सरकार के इस निर्णय की सराहना करते हुए कहा है कि एक तरफ जहां उनके विद्यालय में कन्या और महिला सम्मान के लिए नमामि जननी अभियान चलाया जा रहा है, वहीं स्वच्छता का संदेश देने और छुआछूत को भी दूर करने के प्रयास जारी हैं।
सोनी से जब पूछा गया कि यह विचार उनके मन में कैसे आया तो उनका कहना था कि यह प्रेरणा तो परिवार से मिली। वहीं यह भी दिखा कि महिलाओं को समाज में वह स्थान नहीं मिलता जिसकी वे हकदार हैं, उनसे हमेशा भेदभाव किया जाता है। लोगों की सोच बदले इसे ध्यान में रखकर यह कार्यक्रम शुरु किया। तय किया है कि जीवन भर बेटियों का सम्मान करुंगा, ताकि लोगों में नैतिकता का वातावरण निर्मित हो और जो अनैतिक कार्य होते है उन पर रोक भी लगेगी।
गांव के पूर्व सरपंच सुखराज सिंह बताते है कि विद्यालय में बालिकाओं के सम्मान का क्रम वर्षों से जारी है। यह काम बालिका और महिलाओं के सम्मान में एक अच्छी पहल है। प्रार्थना के पहले यहां का नजारा अलग हेाता है, बालिकाओं का पूजन किया जाता है। इसकी हर कोई सराहना भी करता है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे को शिक्षक राजा भैया ने सही अथोर्ं में सार्थक किया है। शिक्षक द्वारा कन्या पूजन से न केवल स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों में उत्साह का संचार है, बल्कि लोंगों में भी जागरूकता देखी जा सकती है। यही कारण है कि लोग शिक्षक राजा भैया के अनुकरणीय कार्य की सराहना करते हैं। राजा भैया स्थानीय, जिला स्तर से लेकर प्रदेश देश स्तर पर सम्मानित हो चुके हैं। उन्हें इंडिया व एशिया बुक रिकॉर्डस में भी शामिल किया जा चुका है । (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का निर्यात फिलहाल मार्च या अप्रैल तक अवरुद्ध है, क्योंकि आगामी महीनों में भारत (चीन के साथ) इस क्षेत्र में वितरण के प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। मूडीज एनालिटिक्स ने यह जानकारी दी। इसने कहा कि टीकाकरण के प्रति भारत की प्रगति इस क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत ने पिछले सप्ताह आपातकालीन उपयोग के लिए स्वीकृत दो टीकों को मंजूरी दे दी है - एक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित किया गया है जबकि दूसरा भारत बायोटेक और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित किया गया है।
मूडीज एनालिटिक्स ने कहा कि 16 जनवरी से भारत सरकार की योजना लगभग 30 करोड़ उच्च-प्राथमिकता वाले लोगों को टीका लगाना है, जिनमें स्वास्थ्यकर्मी, बुजुर्ग और अगस्त तक उच्च कोमॉरबिडिटिज वाले लोग शामिल हैं।
इसने कहा, "यह एक महत्वपूर्ण कदम है। जैसा कि अमेरिका के बाद भारत दुनिया में दूसरा सबसे अधिक प्रभावित देश है, स्थानीय टीकाकरण की आवश्यकता महत्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक लागतों को शामिल करने के लिए सर्वोपरि है, और इस मोर्चे पर आगे बढ़ने में देश की सफलता से अंतत: महामारी की गंभीरता कम हो जाएगी।"
इसने आगे कहा कि इसके अलावा, दुनिया में टीकों के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में, वैश्विक हिस्सेदारी के 60 प्रतिशत के साथ, भारत अपने घरेलू निर्माण को पूरा करने के अलावा अन्य देशों के लिए बड़े पैमाने पर टीके के उत्पादन और वितरण जरूरतों में योगदान देने के लिए अपनी मौजूदा विनिर्माण क्षमताओं का उपयोग करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। (आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
ग्वालियर, 18 जनवरी | मध्यप्रदेश में भाजपा की सत्ता में वापसी कराने में राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की बड़ी भूमिका रही है, मगर ग्वालियर-चंबल इलाके में सिंधिया की बढ़ती सक्रियता से सियासी घमासान के आसार बनने लगे हैं। इतना ही नहीं संकेत तो यह भी मिलने लगे हैं कि सिंधिया की केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से दूरी खाई में बदलने लगी है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का अभी हाल में ही हुआ ग्वालियर-चंबल इलाके का दौरा नई सियासी कहानी की शुरूआत तो कर ही गया है। मुरैना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का संसदीय क्षेत्र है और यहां के दो गांव में जहरीली शराब पीने से 25 लोगों की मौत हुई है, सिंधिया ने इन गांव में पहुंचकर पीड़ितों का न केवल दर्द बांटा बल्कि प्रभावितों के परिवारों को अपनी तरफ से 50-50 हजार की आर्थिक सहायता भी दी।
सिंधिया ने प्रभावितों के बीच पहुंचकर भरोसा दिलाया कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई राज्य सरकार करेगी। साथ ही कहा कि वे लोगों के सुख में भले खड़े न हो मगर संकट के समय उनके साथ हैं।
सिंधिया के मुरैना और ग्वालियर प्रवास के दौरान भाजपा का कोई बड़ा नेता तो उनके साथ नजर नहीं आया मगर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए तमाम बड़े नेता जिनमें राज्य सरकार के मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर, सुरेश राठखेड़ा, ओ पी एस भदौरिया आदि मौजूद रहे। संगठन से जुड़े लोग और मंत्री भारत सिंह कुशवाहा जो तोमर के करीबी माने जाते हैं उन्होंने सिंधिया के दौरे से दूरी बनाए रखी।
सिंधिया के दौरे के अगले दिन ही केंद्रीय मंत्री तोमर शराब कांड प्रभावित परिवारों के बीच पहुंचे और उनकी पीड़ा को सुना। तोमर के इस प्रवास के दौरान सिंधिया का समर्थक कोई भी मंत्री नजर नहीं आया। तोमर ने कहा कि घटना वाले दिन मैंने मुख्यमंत्री से चर्चा की और मैं लगातार दूरभाष पर संपर्क में रहा। जो भी दोषी है, उन पर कठोर कार्रवाई की जरूरत है। इस दुख की घड़ी में हम सबको दुख बांटने की जरूरत है। इस घटना से लोग सबक लेंगे और इस प्रकार की पुनरावृत्ति न हो।
भाजपा सूत्रों की मानें तो सिंधिया और तोमर के बीच दूरियां बढ़ने की शुरूआत तो उपचुनाव के दौरान ही हो चली थी और नतीजे आने के बाद यह दूरी साफ नजर आने लगी। मुरैना शराब कांड ने तो साफ कर दिया है कि दोनों नेताओं के रिश्ते वैसे नहीं रहे जैसे पहले हुआ करते थे।
एक तरफ जहां सिंधिया और तोमर के बीच दूरी बढ़ रही है तो दूसरी ओर भोपाल में प्रदेश कार्यसमिति के पदाधिकारियों के आयोजित पदभार ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने सिंधिया की खुलकर सराहना की, साथ ही नहीं राज्य में भाजपा की सरकार बनने का श्रेय भी सिंधिया को दिया।
राजनीतिक विश्लेशक देव श्रीमाली का मानना है कि सिंधिया की अपनी कार्यशैली है तो वहीं भाजपा में एक व्यवस्था के तहत काम चलता है, उनका एक अपना संगठन का ढांचा है और उसके लिए नियम प्रक्रिया निर्धारित है। सिंधिया के लिए भाजपा मैं पूरी तरह घुल मिल पाना आसान नहीं लगता। यही कारण है कि उनके प्रवास के दौरान भाजपा के पुराने नेता और कार्यकर्ता नजर नहीं आते, सिर्फ वही लोग नजर आते हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं। (आईएएनएस)
लखनऊ, 18 जनवरी | उप्र के मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला ने ममता बनर्जी को 'इस्लामिक आतंकवादी' बताया और दावा किया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को अपने राज्य में विधानसभा चुनाव होने पर पड़ोसी बांग्लादेश में शरण लेनी होगी। संसदीय मामलों के राज्य मंत्री शुक्ला ने यह भी आरोप लगाया है कि बनर्जी भारतीय होने में विश्वास नहीं करती हैं और उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया है।
मंत्री ने रविवार को पत्रकारों के एक समूह से कहा, "वह एक इस्लामिक आतंकवादी हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल में मंदिरों और देवी-देवताओं को तोड़ने का काम किया है। वह बांग्लादेश के इशारे पर काम कर रही है।"
शुक्ला ने पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों का हवाला देते हुए कहा, "ममता बनर्जी विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से हार जाएंगी, जिसके बाद उन्हें बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ेगी।"
मंत्री ने कहा कि देश में 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' कहने वाले मुसलमान सम्मान के हकदार हैं।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अप्रैल में होने वाले हैं और भाजपा राज्य में सत्ता हासिल करने की कोशिश में है। (आईएएनएस)
गाजीपुर बॉर्डर, 18 जनवरी | नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन 55वे दिन भी जारी है। किसान संगठनों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर मार्च निकालने का ऐलान किया है। वहीं सोमवार को दिल्ली पुलिस की याचिकाओं पर सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दिल्ली पुलिस को तय करना है कि किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने की अनुमति दी जाए या नहीं। शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय लेने का अधिकार दिल्ली पुलिस का है ना कि सुप्रीम कोर्ट का। इस पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है, अच्छी बात है कानून व्यवस्था पुलिस को देखनी चाहिए। वहीं हम कह चुके हैं कि आउटर रिंग रोड पर परेड करेंगे, पुलिस आए बात करे और रास्ता दे।
टिकैत ने आगे कहा कि, गणतंत्र दिवस मनाने से देश के नागरिक को संविधानिक संस्थान या पुलिस रोक नहीं सकती। हम झगड़ा करने थोड़े ही जा रहे हैं। हम दिल्ली में गण का उत्सव मनाएंगे, पहले हम इसे खेत और गांव में मनाते थे। क्योंकि हम दिल्ली में हैं तो दिल्ली में ही मनाएंगे।
उन्होंने आगे कहा, हम देखना चाहेंगे कि हम देश प्रेमी हैं या हमें रोकने वाले देश के गद्दार।
ट्रैक्टर मार्च पर रोक लगाने को लेकर दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। दिल्ली पुलिस ने इसके लिए कानून-व्यवस्था का हवाला दिया था।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में प्रवेश का सवाल कानून-व्यवस्था का विषय है और दिल्ली में कौन आएगा या नहीं, इसे दिल्ली पुलिस को तय करना है। प्रशासन को क्या करना है और क्या नहीं करना है, यह कोर्ट नहीं तय करेगा।
हालांकि किसान संगठनों की तरफ से साफ कर दिया गया है कि, 26 जनवरी की परेड आउटर रिंग रोड पर होगी। परेड में वाहनों में झांकियां शामिल होंगी जो ऐतिहासिक क्षेत्रीय और अन्य आंदोलनों के प्रदर्शन के अलावा विभिन्न राज्यों की कृषि वास्तविकता को दशार्एंगी।
किसान वाहनों पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज को फहराएंगे और इसमें किसान संगठन के झंडे भी होंगे। वहीं किसी भी राजनीतिक पार्टी के झंडे को अनुमति नहीं दी जाएगी।
परेड में आंदोलन के शहीद किसानों के परिवारों, रक्षा सेवा कर्मियों, सम्मानित खिलाड़ियों, महिला किसानों आदि की भागीदारी होगी। परेड में कई राज्यों का प्रतिनिधित्व होने की उम्मीद जताई जा रही है।
गणतंत्र दिवस पर जो किसान परेड में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली नहीं आ सकते, वे अनुशासन और शांति के साथ समान मानदंडों के साथ राज्य की राजधानियों और जिला मुख्यालयों पर परेड का आयोजन करेंगे। (आईएएनएस)
लखनऊ, 18 जनवरी | उत्तर प्रदेश की 12 सीटों पर होने वाले विधान परिषद चुनाव के लिए भाजपा के सभी 10 उम्मीदवारों ने सोमवार को नामांकन दाखिल कर दिया। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित पार्टी के कई पदाधिकारी व कार्यकर्ता मौजूद रहे। भाजपा प्रत्याशियों में उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, अरविंद कुमार शर्मा, लक्ष्मण आचार्य, गोविंद नारायण शुक्ला, कुंवर मानवेंद्र सिंह, सलिल विश्नोई, अश्वनी त्यागी, धर्मवीर प्रजापति और सुरेंद्र चौधरी शामिल हैं।
इस दौरान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी मौजूद थे। इससे पहले भाजपा के प्रदेश कार्यालय से बड़ी संख्या में विधायकों तथा कार्यकर्ता के साथ भाजपा के विधान परिषद प्रत्याशी विधान भवन में पहुंचे थे।
भारतीय जनता पार्टी के दस प्रत्याशियों में सबसे पहले उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। इसके बाद स्वतंत्रदेव सिंह ने पर्चा दाखिल किया। नामांकन दाखिल करने से पहले भाजपा के सभी प्रत्याशी पार्टी के राज्य मुख्यालय में एकत्रित हुए।
गौरलतब है कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश विधान मंडल के उच्च सदन में यानी विधान परिषद में भी अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी है। इसी क्रम में विधान परिषद की 12 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में भाजपा ने अपने दस प्रत्याशी उतारे हैं। इन सभी की जीत तय है। विधायकों के संख्याबल के हिसाब से भाजपा की दसों सीट पर जीत पक्की है। विधान परिषद चुनाव के लिए मतदान 28 जनवरी को होना है। आज नामांकन का अंतिम दिन है। बसपा तथा कांग्रेस के साथ ही किसी निर्दलीय के नामांकन न दाखिल करने की स्थिति में नाम वापसी के दिन यानी 21 जनवरी को ही भाजपा के दस तथा सपा के दो प्रत्याशियों अहमद हसन तथा राजेंद्र चौधरी को निर्वाचन का प्रमाण पत्र भी मिल जाएगा।(आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम/दिल्ली, 18 जनवरी | कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केरल के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके ए.के. एंटनी आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान का नेतृत्व करेंगे। यह निर्णय सोमवार सुबह नई दिल्ली में राज्य कांग्रेस नेताओं और पार्टी आलाकमान के बीच हुई बैठक में लिया गया। राज्य कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं, केरल इकाई के प्रमुख मुल्लापल्ली रामचंद्रन, पूर्व मुख्यमंत्री और सीडब्ल्यूसी सदस्य ओमन चांडी और विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राज्य के महासचिव प्रभारी तारिक अनवर, सचिव (संगठन) के.सी. वेणुगोपाल और सीडब्ल्यूसी सदस्य ए.के. एंटनी से मुलाकात की।
बैठक में फैसला लिया गया कि ओमान चांडी और रमेश चेन्निथला दोनों चुनाव लड़ेंगे, और कांग्रेस की कार्यशैली के अनुसार चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री उम्मीदवार को पार्टी और यूडीएफ द्वारा तय किया जाएगा।
केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मनाकाडू सुरेश ने आईएएनएस को बताया, "अभियान में मुख्य भूमिका निभाने वाले एंटनी राज्य में कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत गुडविल लाएंगे। आलाकमान के साथ एक सामूहिक नेतृत्व और निर्णय पर अपने हाथों में चुनावी बागडोर संभालने वाली हाई कमान पार्टी को बड़ी ऊंचाइयों पर ले जाएगी।"
कांग्रेस में उच्च पदस्थ सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि एंटनी 15 फरवरी के बाद राज्य में आने वाले हैं और चुनाव खत्म होने तक राज्य में रहेंगे।
ए.के. एंटनी ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "मैं हमेशा की तरह चुनाव के दौरान केरल में रहूंगा लेकिन चुनावों में कांग्रेस पार्टी के लिए एक अभियान समिति के अध्यक्ष होंगे। मैं संसद के बजट सत्र के बाद राज्य में रहूंगा।" (आईएएनएस)
इटावा (उत्तर प्रदेश), 18 जनवरी | इटावा जिले के जसवंतनगर क्षेत्र में तमेरा की मडैया गांव के पास दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर तेज रफ्तार के साथ आ रही राजधानी एक्सप्रेस से टकराने के बाद आठ गायों की मौत हो गई है, जबकि छह अन्य घायल हो गए हैं। यह घटना रविवार को जसवंतनगर और बलराई रेलवे स्टेशनों के बीच हुई।
गांववालों का कहना है कि जिस वक्त राजधानी एक्सप्रेस मवेशियों से टकराई, उस वक्त ये पटरी के पास चर रहे थे।
आठ गायों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि छह को गंभीर चोटें आई हैं।
गेटमैन और ग्रामीणों ने जसवंतनगर की ज्योत्सना बंधु सहित जिले के अधिकारियों को सूचना दी, जो मौके पर तुरंत पहुंचे।
पुलिस ने कहा कि एसडीएम ने गायों को बचाए जाने के काम पर गौर फरमाया और इसी के मद्देनजर छह घायल मवेशियों को इलाज के लिए पास की गौशाला में स्थानांतरित कर दिया।
एसडीएम ने कहा, "हमने घायल गायों को इलाज के लिए नजदीकी गौशाला में भेज दिया है। ऐसा लग रहा है कि यह हादसा घने कोहरे की वजह से हुई होगी। इस संबंध में आगे की जांच जारी है।" (आईएएनएस)
दीपिका भान
श्रीनगर, 18 जनवरी | न्याय मिलना क्यों मुश्किल है? यह एक ऐसा सवाल है जो कश्मीरी पंडितों के छोटे समुदाय को बार-बार कचोटता है। प्रत्येक वर्ष 19 जनवरी उस त्रासदी की याद दिलाता है जिसका सामना तीन दशक पहले इस समुदाय को करना पड़ा था, जब आतंकवाद ने पहली बार कश्मीर पर हमला किया था। यह इस कड़वे सच्चाई की भी याद दिलाता है कि राजनीतिक ताने-बाने ने एक समुदाय को विफल कर दिया है।
यह 19-20 जनवरी, 1990 की मध्यरात्रि थी, जब कश्मीरी पंडितों का पहला सामूहिक पलायन कश्मीर से शुरू हुआ था।
यह दिन लगभग 7,00,000 समुदाय सदस्यों में से प्रत्येक के दर्द को बयां करता है, जिन्होंने घाटी में आतंकवाद के अत्याचार का सामना किया।
यह उस समुदाय की पीड़ा भी दिखाता है, जो न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है, या उसके सैकड़ों सदस्यों की हत्याओं के अलावा, अपहरण, बेहिसाब संख्या में महिलाओं के साथ दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म की यातनाओं, सैकड़ों मंदिरों को ध्वस्त करने, समुदाय की संपत्तियों को लूटने और जलाने और अतिक्रमण के लिए, समुदाय के उत्पीड़न के लिए प्रेरित और लक्षित उत्पीड़न और संवैधानिक अधिकारों के हनन के लिए इंसाफ पाने की राह तक रहा है।
समुदाय के लिए, यह दिन उस अपराध की याद दिलाने वाला भी है जिसमें न्याय नहीं किया गया है।
यह इस तथ्य की भी याद दिलाता है कि जिन संस्थानों को न्याय दिलाना चाहिए था, वे विफल रहे हैं। लगातार आई सरकारें, न्यायपालिका और यहां तक कि मानवाधिकार चैंपियन भी समुदाय को न्याय दिलाने में मदद नहीं कर पाए।
लेकिन इन सबसे ऊपर, यह घाटी बहुसंख्यक लोग थे जो समुदाय के लिए खड़ा होने में विफल रहे।
संस्थानों की विफलता
1995 में, भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अपने पूर्ण आयोग के फैसले में भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एम. एम. वेंकटचलैया की अगुवाई में 'आतंकवादियों द्वारा नरसंहार के एक कृत्य के रूप में कश्मीरी पंडितों की व्यवस्थित जातीय सफाई' आयोजित की।
इससे सरकार को नरसंहार या जातीय सफाई की जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन करने के लिए प्रेरित होना चाहिए था। लेकिन आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
30 साल से कश्मीरी पंडित उच्चस्तरीय जांच आयोग की नियुक्ति की मांग कर रहे हैं, लेकिन केंद्र या राज्य की किसी भी सरकार ने इस पर कुछ नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई, 2017 को जम्मू-कश्मीर में 1990 और 2000 के दशक के शुरुआती दिनों में सैकड़ों पंडितों की हत्या की जांच की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि "27 साल से अधिक समय बीत चुका है। कोई भी सार्थक उद्देश्य सामने नहीं आएगा क्योंकि देरी की वजह से सबूत उपलब्ध होने की संभावना नहीं है।"
यह आदेश उस समुदाय के लिए एक झटके की तरह रहा जो अब यह विश्वास करने लगा है कि न्याय कभी नहीं मिलेगा। एक पूरे समुदाय को उसके धर्म और जातीयता के एकमात्र आधार पर निशाना बनाया गया था। किसी भी मानव और नागरिक अधिकार संस्था ने कभी इस मामले को नहीं उठाया।
भाजपा चुनावों के दौरान समुदाय की दुर्दशा दिखाती रही है और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व राहुल गांधी भी समुदाय से संबंधित होने का दावा करते हैं। लेकिन इस राजनीतिक नौटंकी से परे, इस समुदाय की दुर्दशा को उठाने और इन्हें इनका अधिकार दिलाने को लेकर कुछ नहीं किया जाता है।
कश्मीर में बहुसंख्यक चुप रहा
यदि संस्थाएं विफल हो गईं, तो कश्मीर घाटी में मेजोरिटी कभी भी खुले तौर पर लक्षित आतंक के खिलाफ खड़ा नहीं हुआ। समुदाय के खिलाफ जघन्य अपराध किए जा रहे थे और मेजोरिटी या तो चुप रहा या इसे नजरअंदाज करता रहा। यह दिखाने के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं कि पलायन कभी नहीं हुआ, लोगों ने अपने घरों और जमीन को अपनी इच्छा से छोड़ दिया।
1989 के बाद से कश्मीर में समुदाय के खिलाफ सैकड़ों हत्याओं, दुष्कर्म, अपहरण, आगजनी और लूट की घटनाओं के लिए शायद ही कोई एफआईआर दर्ज की गई हो। यहां तक अगर कुछ एफआईआर दर्ज हुए भी तो कोई कार्रवाई नहीं की गई।
राज्य में कोई भी नेता चाहे वह अब्दुल्ला हों, मुफ्ती या अन्य, किसी ने कभी भी कश्मीर के अल्पसंख्यक, कश्मीरी पंडितों का मामला नहीं उठाया।
पलायन के साथ जीने, गुजर-बसर का खतरा
19 जनवरी के भयावह दिन से 31 साल बाद, समुदाय आज खुद को विलुप्त होने की दहलीज पर पा रहा है। अपनी जड़ों से कट जाना, समुदाय अपनी जातीयता और जनसंख्या के क्रमिक लुप्त होने का गवाह बन रहा है। पलायन के बाद, यह समुदाय पूरी दुनिया में बिखर गया, और जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया इसकी संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज, मंदिर धीरे-धीरे दूर होते जा रहे हैं। समुदाय स्वदेशी का दर्जा देने की मांग कर रहा है ताकि कश्मीर की 5,000 साल पुरानी ऐतिहासिक कड़ी की रक्षा की जा सके, जैसा कि राजतरंगिणी में लिखा गया है।
दुष्प्राय न्याय की राजनीति
इनके खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए न्याय पाने का संघर्ष समुदाय के लिए कभी खत्म नहीं होता मालूम पड़ रहा है, जो महसूस करता है कि चुनावी ताकत की कमी उनकी उपेक्षा का मुख्य कारण है। वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में, यह एक समुदाय की ताकत का प्रदर्शन करने की क्षमता है जो आवश्यक ध्यान और महत्व प्राप्त करने में मदद करता है। न्याय के लिए सामूहिक रूप से उठने और पैरवी करने में सक्षम नहीं होने के कारण जो समुदाय न्याय पाने में असफल हो रहा है।
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद भी, केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने घाटी में उन्हें फिर से बसाने के लिए कोई योजना नहीं बनाई है।
तीन दशक से अधिक समय से कश्मीरी पंडितों को न्याय से वंचित रखा गया है। और 19 जनवरी समुदाय के लिए सिर्फ सर्वनाश का दिन नहीं है यह देश के लोकतांत्रिक संस्थानों की अपने लोगों को सुरक्षित रखने में विफलता की याद दिलाता है। स्वतंत्र भारत में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्याय पाने के लिए उत्पीड़न और असफलता का सामना करना पड़ता है, जहां संज्ञान लेने के लिए समर्पित संस्थान हैं, जो समुदाय को चकित करता है और त्रासदी में शामिल हो गया है। (आईएएनएस)
शुरैह नियाज़ी
मध्य प्रदेश के उमरिया में एक नाबालिग़ लड़की के साथ गैंगरेप का मामला सामने आया है.
इस मामले में नौ लोगों पर गैंगरेप का आरोप है. इस दौरान लड़की को बंधक बना कर रखा गया था. पुलिस ने इस मामले में सात लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है और दो लोगों की तलाश की जा रही है.
पुलिस के मुताबिक़ इस नाबालिग़ लड़की की उम्र 13 साल है. लड़की की माँ ने पहली बार लड़की के साथ बलात्कार की रिपोर्ट 14 जनवरी को दर्ज कराई थी. पहले अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ अपहरण का मामला दर्ज कराया गया था.
जब लड़की लौट कर आई, तो पता चला कि उसके साथ दो बार गैंगरेप किया गया. पुलिस ने बताया कि पहली बार चार जनवरी को लड़की को बहला फुसलाकर उसके जानने वाले ले गए थे. इन पर रेप का आरोप है. पाँच जनवरी को लड़की को छोड़ देने की बात कही जा रही है.
पुलिस के मुताबिक़, उस वक़्त लड़की बहुत डरी हुई थी, तो उसने किसी के भी ख़िलाफ कोई रिपोर्ट नहीं की, क्योंकि उसे जान से मार देने की भी धमकी दी गई थी.
आरोप है कि 11 जनवरी को लड़की का उन्हीं लोगों ने फिर अपहरण कर लिया. ये भी आरोप है कि लड़की को फिर से एक अज्ञात स्थान पर ले जाकर गैंररेप किया गया. जिन नौ लोगों पर रेप का आरोप है, उन्हीं में तीन लोगों पर दोबारा रेप करने के आरोप हैं. रेप में दो ट्रक ड्राइवरों के भी शामिल होने की बात कही जा रही है.
गिरफ़्तारी
S NIAZI
इस लड़की ने पूछताछ में बताया कि वह 11 जनवरी को घरेलू काम से शहर की सब्ज़ी मंडी गई हुई थी. बयान के अनुसार इसी दौरान उसे दो लड़के बहला फुसलाकर ले गए.
पुलिस महानिरीक्षक शहडोल, जी जनार्दन ने बताया, "पुलिस ने दो अलग-अलग मामले दर्ज किए हैं. पहली घटना में कुल सात अभियुक्त थे और दूसरी घटना में पाँच. इस तरह से कुल नौ अभियुक्त हैं."
उन्होंने आगे बताया, "पुलिस ने 7 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है और दो का पता लगाया जा रहा है.''
वही ज़िला प्रशासन ने इस मामलें में लिप्त दो लोगों के ढाबों को रविवार को गिरा दिया है. मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों में महिलाओं के साथ लगातार कई ऐसे मामलें सामने आए हैं. इससे पहले सीधी ज़िले में 48 साल की एक महिला के साथ बलात्कार करने का मामला सामने आया था. (bbc.com)
श्रीनगर, 18 जनवरी | जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में सोमवार को हाड़ कंपा देने वाली ठंड रही। मौसम विभाग का अनुमान है कि यहां 24 जनवरी को एक बार फिर हल्की से मध्यम बर्फबारी और बारिश हो सकती है। मौसम विभाग के अधिकारी ने कहा, "जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में 22 जनवरी तक शीतलहर की स्थिति रहेगी। इसके बाद 24 जनवरी को हल्की से मध्यम बर्फबारी और बारिश होगी।"
40 दिनों की भीषण ठंड की अवधि 'चिल्लई कलां' 31 जनवरी तक रहेगी। इस सख्त ठंड के चलते घाटी में झीलों और नालों समेत अधिकांश जलाशय जमे हुए हैं। अधिकारियों ने लोगों को चेतावनी दी है कि वे झीलों और अन्य जमे हुए जलाशयों की जमी सतहों पर न जाएं क्योंकि यह उनकी जिंदगी के लिए खतरनाक है।
वहीं इस दौरान श्रीनगर में न्यूनतम तापमान माइनस 6.4 डिग्री सेल्सियस रहा, जबकि पहलगाम में माइनस 6.8 डिग्री और गुलमर्ग में माइनस 6 डिग्री रहा।
लद्दाख के लेह शहर में रात का न्यूनतम तापमान माइनस 11.3, कारगिल में माइनस 18.8 और द्रास में माइनस 22.1 दर्ज किया गया।
जम्मू शहर में न्यूनतम तापमान 8.4, कटरा 6.7, बटोटे में 2.3, बेनिहाल में माइनस 0.6 और भद्रवाह में 0.5 रहा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन 55वें दिन भी जारी है। कृषि सुधार पर तकरार के बीच आंदोलन की राह पकड़े किसानों की अगुवाई करने वाले यूनियन और सरकार में नौ दौर की वार्ता हो चुकी है, फिर भी मन नहीं मिला है। ऐसे में अन्नदाता 18 जनवरी (सोमवार) को महिला किसान दिवस के रूप में मना रहे हैं। आज के दिन कृषि में महिलाओं की अतुलनीय भूमिका और विरोध प्रदर्शन और हर क्षेत्र में महिला एजेंसी का सम्मान करने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
सोमवार को महिलाओं द्वारा ही मंच का प्रबंधन किया जाएगा और इस दिन सभी वक्ता महिलाएं होंगी। समाज में महिलाओं के योगदान को प्रदर्शित करते हुए अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगें।
दरअसल नये कृषि कानूनों को लेकर किसानों के मन में पैदा हुई आशंकाओं का समाधान तलाशने के लिए किसान यूनियनों के नेताओं ने सरकार से कई दौर की वार्ता की, लेकिन सभी बातचीत विफल रही। अब 19 जनवरी को फिर अगले दौर की वार्ता होगी।
कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार लाने के मकसद से केंद्र सरकार ने कोरोना काल में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 लाए।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है और मसले के समाधान के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया है।
किसान यूनियन सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के पास जाने को तैयार नहीं है और सरकार के साथ वार्ता के जरिए ही समाधान चाहते हैं। ऐसे में वार्ताओं का दौर जारी रहने के इस क्रम में सरकार और किसान यूनियन का मन मिलने का इंतजार है। (आईएएनएस)
कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ रहा है. बीमा कंपनियों के आंकड़े बताते हैं तनाव की वजह से वे बीमार हो रहे हैं. काम का बोझ घटाने के कई उपायों पर काम चल रहा है. उनमें एक सॉफ्टवेयर भी है जो तनाव की निगरानी करता है.
भविष्य में शायद कर्मचारियों को उतना ही काम देना संभव होगा, जितना वे करने की स्थिति में हों. एक सॉफ्टवेयर इस बात का हिसाब रखेगा कि किस पर काम का कितना बोझ दिया जा सकता है. इसके लिए कर्मचारियों को पल्स मीटर पहनना होगा जो दिल की धड़कन पर नजर रखता है और एक कैमरा चेहरे के भावों को कैद करता रहेगा. इस सेट अप से कर्मचारियों के मूड का अंदाजा लगाया जाएगा. इसके जरिए सॉफ्टवेयर बताएगा कि कब वे काम के बोझ के कारण परेशान होने लगे हैं और वे कितना काम संभालने की हालत में हैं.
सॉफ्टवेयर की मदद से काम
टावनी कंपनी के मार्को मायर इस सॉफ्टवेयर को तैयार करने वाली टीम में हैं. वे चेडली के डाटा के विश्लेषण से जानेंगे कि उनके साथी काम के दौरान कैसा महसूस कर रहे थे और उनकी भावनात्मक स्थिति क्या थी. वे बताते हैं कि सॉफ्टवेयर ये जानकारी उपलब्ध कराता है कि क्या काम कर्मचारियों के लिए मुश्किल था या आसान. इससे यह पता किया जा सकेगा कि क्या वे काम का दबाव सहने की हालत में हैं. लेकिन कंप्यूटर यह तभी पता कर सकता है जब वह चेहरे के भावों को पढ़ पाए.
कर्मचारियों के स्ट्रेस टेस्ट में उन्हें अलग अलग टेक्स्ट टाइप करना होता है. लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि टेक्स्ट धीरे धीरे मुश्किल होता जाएगा. पहले उन्हें बच्चों की कहानी दी जाती है और फिर मुश्किल केमिकल फॉर्मूला वाला टेक्स्ट आता है. डिवाइस अपना काम करता रहता है और बताता रहता है कि दवाब का क्या असर हो रहा है. कैमरा उनके चेहरे की मांसपेशियों को कैप्चर करता है और उनकी भावनाओं के बारे में बताता है. जैसे कि मुंह के छोर की प्रतिक्रिया या फिर आंखों पर उभरने वाली लकीरें.
मार्को मायर बताते हैं कि डिवाइस चेहरों की भंगिमा को रजिस्टर कर एक ओर काम के दबाव के बारे में बताता है तो दूसरी ओर दिल की धड़कन भी मापता है. चिकित्सा विज्ञान और मनोविज्ञान के आधार पर तनाव, कर्मचारियों को दिए गए काम और उन्हें मिलने वाले आराम के बारे में निष्कर्ष निकाले जाते हैं. हो सकता है कि उनके चेहरे के भाव तटस्थ दिखें, लेकिन अंदर से वे तनाव में हो सकते हैं.
निजता के सख्त कानून
जर्मनी में कर्मचारियों की सहमति के बिना उनकी निगरानी गैरकानूनी है. लेकिन क्या उनके पास इसे मना करने का कोई विकल्प है? मायर कहते हैं कि वह ना तो कर्मचारियों की निगरानी करना चाहते हैं, ना उनका डाटा जमा करना चाहते हैं, बल्कि इस टेस्ट के जरिए वह तो काम का ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जो हर किसी के लिए मुनासिब हो. जैसे कि जब ध्यान लगाकर काम कर रहे हों तो परेशान करने वाली कॉल फॉरवर्ड हो जाएं.
बहुत से लोग मानते हैं कि तेजी से डेवलप हो रही टेक्नोलॉजी उन्हें बहुत डिस्टर्ब भी कर रही है. कम्युनिकेशन के बहुत सारे चैनल आ गए हैं, ईमेल, मेसैंजर, सोशल मीडिया. खास तौर से काम के दौरान किसी चीज पर लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. इसलिए काम की लय में आ पाना मुश्किल होता जा रहा है, एकाग्रता से काम करना मुश्किल होता जा रहा है.
मार्को मायर कहते हैं, "उस स्थिति को आप बोरियत और काम के बोझ तथा तनाव के बीच एक बढ़िया संतुलन के तौर पर समझ सकते हैं. इसके बीच में ही कहीं वो जगह है जहां काम आपको चुनौती लगता है. लेकिन आप उसे कर सकते हैं. यही काम की लय है." इसी लय के दौरान हमारा शरीर खुशी वाले हार्मोन छोड़ता है. हमारा दिल अच्छी तरह धड़कता है और त्वचा भी सहज रहती है. मायर हमारी इन्हीं प्रतिक्रियाओं के जरिए कंप्यूटर को सिखाना चाहते हैं.
रिपोर्ट: अलेक्जांड्रा फान डे पोल
-शेख कयूम
श्रीनगर, 18 जनवरी | घाटी के कश्मीरी पंडित समुदाय के साथ जो हुआ उसमें और हिटलर द्वारा यहूदियों के साथ किए गए उत्पीड़न में एक भयावह समानता है।
उनके लिये 1990 में हुई हत्याओं से खुद को अलग रखने के लिए यह वैसा ही था जैसे 'वे यहूदियों को मार रहे थे लेकिन मैं यहूदी नहीं था', लिहाजा मुझे कुछ नहीं होगा।
स्थानीय पंडितों की हत्या की शुरूआत 14 सितंबर, 1989 को टीका लाल तपलू की दिन-दहाड़े हुई हत्या के साथ शुरू हुई थी। उन्हें श्रीनगर शहर में उनके घर में ही आतंकवादियों ने मार डाला था। तपलू की हत्या ने चौंका तो दिया था, लेकिन स्थानीय पंडितों को गहरा आघात नहीं पहुंचाया था। बल्कि उन्होंने यह कहकर एक-दूसरे को सांत्वना देने की कोशिश की थी कि तपलू को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह कश्मीर में भाजपा के नेता थे।
इस हत्या के बाद 4 नवंबर 1989 को पूर्व न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। वे श्रीनगर के व्यस्त हरि सिंह हाई स्ट्रीट बाजार में जम्मू-कश्मीर बैंक की शाखा से अपनी पेंशन लेने गए थे, उसी समय आतंकवादियों ने उन पर हमला किया और मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी।
गंजू वही जज थे जिन्होंने जेकेएलएफ के संस्थापक मकबूल भट को फांसी की सजा सुनाई थी। कश्मीरी पंडितों ने फिर तर्क दिया कि यह हत्या बदला लेने के लिए की गई।
वर्तमान में जम्मू में रहने वाले राजिंदर सप्रू (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "इन 2 हत्याओं के बाद मैं इसी भरोसे में था कि 'वे यहूदियों को मार रहे थे और मैं यहूदी नहीं था'। आतंकवादियों की 'आजादी' की मुहिम को रोकने में मेरी कोई भूमिका नहीं थी। ऐसे में वे मुझे नुकसान पहुंचाकर उन्हें क्या हासिल होगा? 1990 की शुरूआत तक मैं यही सोचता रहा।"
इसके बाद भी दूरसंचार विभाग के एक कर्मचारी और बाद में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के सहायक निदेशक की हत्या कर दी गई। ये सप्रू के समुदाय के थे लेकिन तब भी उन्हें लगा कि उनकी जान को खतरा नहीं है। लेकिन 1990 की शुरूआत से गंभीर और परेशान करने वाली खबरें सामने आने लगीं।
सशस्त्र कट्टरपंथी लोग ऐसे इस्लामिक राज्य की स्थापना की लड़ाई में व्यस्त थे, जहां गैर-मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं थी। हालांकि स्थानीय मुसलमानों ने अपने पंडित पड़ोसियों को निशाना बनाए जाने का विरोध किया, लेकिन वे मुस्लिम सशस्त्र आतंकवादियों के कट्टरपंथी विश्वास के आगे असहाय थे।
वैसे तो कश्मीर पंडितों का पलायन पहले ही शुरू हो गया था, जब श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की स्टाफ नर्स सरला भट का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी। उनके शव को श्रीनगर के करन नगर इलाके में सड़क पर फेंक दिया गया था, साथ ही उसके साथ एक सूचना लिखकर रखी गई कि वह एक पुलिस मुखबिर थी। नर्स के परिजनों ने कहा कि उसकी हत्या होने से पहले उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। यह कश्मीर पंडित के लिए स्पष्ट संदेश था कि इस धर्म के लोग यहां से चले जाएं।
सरकार उनकी रक्षा करने में असमर्थ थी। वह यहां अपना अधिकार जमाने के लिए जूझ रही थी क्योंकि आतंकियों ने वहां हालात बिगाड़ रखे थे।
सप्रू कहते हैं, "हमारी तुलना में शहरों में रहने वाले पंडितों के लिए यह तुलनात्मक रूप से आसान था कि वे अपना सामान पैक करें और कश्मीर छोड़ दें। लेकिन हम ग्रामीण इलाकों में रहने वाले पंडितों के पास मवेशी थे, खेती की जमीन और बाग थे। सब कुछ इतनी जल्दी नहीं छोड़ा जा सकता था। मेरे मुस्लिम पड़ोसियों ने मेरी मदद करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे बंदूक की नोंक पर रखे युवाओं के आगे असहाय थे। मैंने अपनी संपत्ति पड़ोसी को सौंप दी और अपनी पत्नी, दो बेटियों और एक बेटे के साथ गांव छोड़ दिया।"
कश्मीर के एक गांव में रहने वाले अवतार कृष्ण रैना कहते हैं, "हम जम्मू शहर में प्रवासी पंडितों के लिए बने शिविर में से एक में एक तम्बू में रहते थे। मेरे घर में 10 कमरे थे, जबकि जिस तम्बू में हम रह रहे थे उसमें हमारे पैर फैलाने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं थी।"
कश्मीर यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र पढ़ाने वाली डॉ. फराह कहती हैं, "प्रवासी पंडितों की पहली पीढ़ी और उनके बाद की पीढ़ी के लोगों में अपनी मातृभूमि पर वापस लौटने को लेकर विचार अलग हैं। जिस पंडित ने चोट सही, अपना घर छोड़ा वह आज भी स्थानीय मुसलमानों और पंडितों के बीच के सौहार्द को समझता है। लेकिन पंडितों की युवा पीढ़ी वहां पर्यटकों की तरह जा सकती है, वहां के निवासी की तरह नहीं।"
खैर घर लौटने का इंतजार कर रहे अधिकतर कश्मीरी और उनके दोस्त-पड़ोसी अब उस उम्र के पार हो गए हैं, जिसमें वे एक-दूसरे को शायद ही पहचान सकें। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन 55वें दिन भी जारी है। कृषि सुधार पर तकरार के बीच आंदोलन की राह पकड़े किसानों की अगुवाई करने वाले यूनियन और सरकार में नौ दौर की वार्ता हो चुकी है, फिर भी मन नहीं मिला है। ऐसे में अन्नदाता 18 जनवरी (सोमवार) को महिला किसान दिवस के रूप में मना रहे हैं। आज के दिन कृषि में महिलाओं की अतुलनीय भूमिका और विरोध प्रदर्शन और हर क्षेत्र में महिला एजेंसी का सम्मान करने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
सोमवार को महिलाओं द्वारा ही मंच का प्रबंधन किया जाएगा और इस दिन सभी वक्ता महिलाएं होंगी। समाज में महिलाओं के योगदान को प्रदर्शित करते हुए अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगें।
दरअसल नये कृषि कानूनों को लेकर किसानों के मन में पैदा हुई आशंकाओं का समाधान तलाशने के लिए किसान यूनियनों के नेताओं ने सरकार से कई दौर की वार्ता की, लेकिन सभी बातचीत विफल रही। अब 19 जनवरी को फिर अगले दौर की वार्ता होगी।
कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार लाने के मकसद से केंद्र सरकार ने कोरोना काल में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 लाए।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है और मसले के समाधान के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया है।
किसान यूनियन सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के पास जाने को तैयार नहीं है और सरकार के साथ वार्ता के जरिए ही समाधान चाहते हैं। ऐसे में वार्ताओं का दौर जारी रहने के इस क्रम में सरकार और किसान यूनियन का मन मिलने का इंतजार है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी : किसानों द्वारा 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मने कहा कि दिल्ली में प्रवेश का मामला कानून और व्यवस्था का है, इसका निर्धारण पुलिस करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आज सुनवाई टाल रहे है.आप कानून के हिसाब से कार्रवाई करें. CJI ने ए पी सिंह को कहा कि दिल्ली में कौन आएगा कौन नही ये पुलिस तय करेगी. हम पहली अथॉरिटी नहीं हैं. बताते चलें कि ए पी सिंह ने रामलीला मैदान में प्रदर्शन की इजाजत मांगी थी.
वहीं चीफ जस्टिस ने AG को कहा कि आप ये क्यों चाहते है कि आपको कोर्ट से आदेश मिले. आप अपने अधिकारों का इस्तेमाल करें. उन्होंने कहा हम बुधवार को मामले की सुनवाई करेंगे. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने ए पी सिंह से पूछा दूसरे किसान संगठन कहां हैं. दवे के बताया कि वो पेश हो रहे है. इस पर सीजेआई ने कहा कि मामले पर बुधवार को सुनवाई करेंगे.
जम्मू, 18 जनवरी | 65 वर्षीय प्यारे लाल रैना की ख्वाहिश वापस कश्मीर में लौटने की है, ये वह जगह है जहां उन्होंने जन्म लिया था, अपनी जिंदगी के कुछ बेहतर साल गुजारे थे।
रैना का परिवार उन्हीं 4,000 से अधिक परिवारों में शामिल है, जिन्हें सन 1989 में घाटी में हुई हिंसा के बाद जम्मू से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जगती की ओर पलायन करना पड़ा था, जहां कश्मीरी पंडितों की बस्ती थी।
जम्मू में रैना के परिवार जैसे तमाम परिवारों के लिए गुजर-बसर करना काफी मुश्किल हो गया था। आठ साल पहले जगती में अच्छे से बसने से पहले इन्हें कई मशक्कतें करनी पड़ी, कई जगह किराए के मकानों में रहना पड़ा।
जगती में उन्हें रहने के लिए दो कमरे मिले, जहां उन्हें आराम से रहने का एक मौका मिला, लेकिन कश्मीरी पंडितों की इस कॉलोनी को लोगों द्वारा उपेक्षा की नजरों से देखा जाता था। मकान टूटे-फूटे थे, पाइपों से पानी रिसने की वजह से घरों की दीवारें हमेशा नम रहा करती थीं।
रैना कहते हैं, "जगती में कश्मीरी पंडितों के कुछ घरों की स्थिति तो बहुत ही खराब थी क्योंकि यहां पानी के रिसने की एक समस्या थी। हमें साफ पानी नहीं मिलता था। इन्हें ठीक करने में हमारी कोई मदद भी नहीं की गई थी।"
घाटी में उग्रवादी हिंसाओं के बाद सन 1990 के दशक की शुरूआत में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने यहां से पलायन किया था। इनमें से कुछ तो मजबूरन जम्मू में पंडितों के लिए बनाए गए शिविरों में रहने लगे थे, जहां लोगों की काफी भीड़ थी। हालांकि रैना को सिर्फ रहने की जगह की ही चिंता नहीं सता रही थी। अपनी पत्नी के बीमार पड़ने के बाद उन्होंने तीन साल पहले अपना काम भी रोक दिया। उनकी दोनों बेटियां अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी कर ली हैं, लेकिन बेरोजगार हैं।
उन्होंने आगे कहा, "हम अब थक चुके हैं। सरकार हमारे लिए कुछ भी नहीं कर रही है। मैंने सारी उम्मीदें गंवा दी है। मेरी एक बेटी ने एमबीए की पढ़ाई की है और दूसरी बेटी ने एमसीए किया है, लेकिन दोनों के पास काम नहीं है।"
रैना का कहना है कि वह एक ऐसे दिन का ख्वाब देखते हैं, जब पंडित कश्मीर में वापस से लौट सके, लेकिन इसके लिए सरकार को गंभीर होना पड़ेगा और उनकी वापसी के लिए कदम उठाने होंगे।
वह आगे कहते हैं, "हम जब से जम्मू से वापस आए हैं, तब से लेकर अब तक हालात कुछ खास नहीं बदले हैं, कोई विकास नहीं हुआ है। हम तीस साल से अपनी वापसी की बात सुन रहे हैं। हम लौटने को पूरी तरह से तैयार भी हैं, लेकिन सरकार इसे लेकर कुछ भी नहीं कर रही है।"
रैना के घर से कुछ ही दूरी पर पिंटूजी का घर है, जो जगती में रहने वाले एक अन्य कश्मीरी पंडित हैं। उनका कहना है कि घाटी से पलायन के बाद से सरकार उनकी उम्मीदों को पूरा करने में विफल रही है और अब समुदाय के सदस्यों को उनके लौटने की योजना पर काम करना चाहिए।
वह कहते हैं, "सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर गंभीर नहीं है। पंडितों की वापसी के लिए एक ठोस नीति बनाए जाने की जरूरत है और इस पर कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों के विचारों को भी शामिल किया जाना आवश्यक है।"
कश्मीर के बाहर बसे कश्मीरी पंडितों को अब बस इसी बात की उम्मीद है कि उनकी समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो और उन्हें अपनी घर वापसी का मौका मिले।
--आईएएनएस
श्रीनगर, 18 जनवरी | कश्मीरी पंडितों के जेहन से 19 जनवरी 1990 का दिन कभी नहीं निकल सकता, यह वही दिन है, जब घाटी में बढ़ती उग्रवाद से अपनी जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा था। अपने क्षेत्र से निकले समुदाय के लिए सबसे बड़ी चिंता उनके प्रवास के बाद उनकी पहचान को बचाना था, हालांकि जम्मू में एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन ने इन बिखरे हुए कश्मीरी पंडितों को जोड़ने में मदद की और आज भी कर रहा है।
एक सरकारी सर्वेक्षण द्वारा देश में नंबर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन के रूप में 'रेडियो शारदा' को विस्थापित समुदाय के लिए एक कड़ी की तरह माना जाता है। पूरी तरह से कश्मीरियों द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक रेडियो स्टेशन के माध्यम से वह अपने समुदाय के सदस्यों के साथ संपर्क में है और अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर रहा है।
कश्मीरी पंडित प्रवासी रमेश हंगलू को सामुदायिक रेडियो स्टेशन की स्थापना का विचार लंदन में एक मुस्लिम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर प्रवासी से आया था, उन्होंने ब्रिटेन में बसे पीओके के मीरपुरी समुदाय के लिए लंदन में एक ऐसा ही रेडियो स्टेशन स्थापित किया था।
जम्मू एवं कश्मीर का पहला सामुदायिक रेडियो स्टेशन रेडियो शारदा दुनिया भर में बिखरे कश्मीरी समुदाय को अपनी जड़ों से जोड़ने और कश्मीरी भाषा और संस्कृति को बनाए रखने में मदद करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
हंगलू ने कहा, "रेडियो शारदा ऐसे सभी कश्मीरी भाषी लोगों के लिए है, जहां कश्मीरी लोग रहते हैं। हमें उन 112 देशों का फीडबैक मिला है जहां रेडियो शारदा को सुना जाता है।"
गौरतलब है कि साल 1990 में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने घाटी में उग्रवाद के बाद अपना घर-बार छोड़ दिया था। अपनी जमीन, संपत्तियों को पीछे छोड़ कर वे जम्मू में प्रवासी शिविरों में बस गए।
कश्मीरी भाषा में अपने पूरे कंटेंट के साथ सामुदायिक रेडियो स्टेशन जम्मू में एक बस्ती कॉलोनी से पंडित समुदाय के सदस्यों द्वारा निर्मित, संचालित और प्रस्तुत की जाती है। इसके लॉन्च होने के छह साल बाद इंटरनेट पर उपलब्ध सामुदायिक रेडियो स्टेशन को भारत सरकार के सूचना और प्रसारण सर्वेक्षण द्वारा देश के नंबर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन का स्थान दिया गया है। रेडियो शारदा ने 2019 में दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते हैं।
घाटी से पलायन करने के तीन दशक बाद कश्मीरी पंडित पूरी दुनिया में बिखरे हुए हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक दिन वे कश्मीर लौटेंगे। इस बीच वे अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर रहे हैं, और रेडियो शारदा इसके लिए एक ऐसी ही पहल है।
रेडियो शारदा में प्रोग्रामर मंजू रैना ने कहा, "हमारे पास भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक मंच नहीं था, लेकिन अब हमारे पास एक मंच है। हमारे बच्चों के लिए भाषा सीखना महत्वपूर्ण है।"
--आईएएनएस
जम्मू, 18 जनवरी | जनवरी 1990 में उस भयानक रात के बाद श्रीनगर में अपना घर छोड़ने के बाद 70 साल के अवतार कृष्ण रैना के लिए दुनिया पहले जैसी नहीं रही।
उन दिनों को याद करते हुए रैना कहते हैं, "मुझे नहीं लगता था कि पुराने घाव कभी इतने लंबे समय तक इतनी गहरी चोट पहुंचा सकते हैं। मैं अब भी अक्सर नींद में झटके से जाग उठता हूं जैसे उस रात के वो भयानक नारे अब भी मेरे घर के बाहर लग रहे हैं। हम श्रीनगर के आली कदल इलाके में अपने मुस्लिम पड़ोसियों के बीच शांति से रहते थे। मैं अपने सबसे अच्छे दोस्त अफजल के साथ बड़ा हुआ था, जो मेरी मां के साथ ऐसे बैठता था, जैसे वो उनका दूसरा बेटा हो। मां भी उसे अपने दूसरा बेटा मानती थी।"
रैना अब जम्मू शहर में रहते हैं। वहीं उनके बच्चे बड़े हुए। उनकी बेटी डॉक्टर है और बेटा मुंबई में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। अपने जैसे सैंकड़ों अन्य कश्मीरी पंडितों के साथ दूसरी जगह शरण लेने के 2 साल बाद ही रैना ने अपनी पत्नी को खो दिया था।
उस खौफ को याद कर नम आंखों से रैना कहते हैं, "मेरी त्रासदी यह है कि मैंने न केवल अपने घर और दोस्तों को खो दिया। बल्कि मैंने इंसान की भलाई करने की बात से ही विश्वास खो दिया।"
कश्मीरी पंडितों के पलायन ने स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को नुकसान पहुंचाया। क्योंकि वह ऐसी जगह थी जहां दोनों भाईचारे से रहते थे और ईद हो या महा शिवरात्रि उन दोनों के त्योहार थे। पुराने श्रीनगर शहर में हरि पर्बत पहाड़ी के ऊपर शेख हमजा मखदूम के धार्मिक स्थल के पड़ोस में शारिका देवी का मंदिर इस बात की गवाही देता है। जहां मुसलमानों और स्थानीय पंडितों ने इन दोनों जगहों पर प्रार्थनाएं कीं। यही वजह है कि 1990 से पहले तक इन समुदायों के लिए एक-दूसरे के बिना जीवन जीने की कल्पना करना भी असंभव था।
फिर इसके बाद जनवरी 1990 में जो हुआ उसने 'आजादी' के नारे लगाने का मकसद तो हासिल कर लिया लेकिन कश्मीरी पंडितों ने अपना घर और चूल्हा खो दिया, वहीं स्थानीय मुसलमानों ने अपनी बेगुनाही खो दी। इसके बाद आम कश्मीरी के लिए फिर चाहे वो हिंदू हों या मुस्लिम, उनके लिए दुनिया फिर कभी पहले जैसी नहीं रही।
स्थानीय मुसलमानों को उन लोगों ने दुख पहुंचाया जो उनकी उदात्त परंपराओं और धार्मिक सहिष्णुता के आदशरें से नफरत करते थे। वहीं स्थानीय हिंदू तो अपने ही देश में शरणार्थी बनने पर मजबूर हो गए।
रैना कहते हैं, "हमने अपनी मातृभूमि खो दी। अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में रहने की त्रासदी केवल कश्मीरी पंडित ही समझ सकते हैं। भले ही मेरे बच्चों का भविष्य सुरक्षित है, लेकिन उन्होंने अपनी जड़ें खो दी हैं।"
क्या कश्मीर कभी वैसा हो पाएगा जैसा जनवरी 1990 से पहले था? यह हो सकता है, लेकिन उन लोगों के दिलों और दिमागों के घाव शायद कभी ठीक न हो पाएं क्योंकि कुछ घाव कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं होते हैं।
--आईएएनएस
चंडीगढ़, 18 जनवरी | हरियाणा पुलिस की क्राइम ब्रांच ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के घोटालेबाजों के खिलाफ एक समन्वित कार्रवाई में रविवार को 89 लोगों को गिरफ्तार किया। पुलिस के मुताबिक, फर्जी चालान बिल घोटाले में शामिल फर्जी फर्मो के पंजीकरण से संबंधित चार बड़े गिरोहों का भंडाफोड़ किया, जिन्होंने सरकारी खजाने को 464.12 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की।
जालसाजों का गठजोड़ हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सक्रिय था।
जीएसटी फर्जी चालान घोटाले पर कार्रवाई से 112 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली और फर्जी जीएसटी आइडेंटिफिकेशन नंबर (जीएसटीइंशन) का पदार्फाश भी हुआ है।
अब तक कुल 72 पुलिस केस दर्ज किए गए हैं, जिनमें 89 आरोपियों को क्राइमब्रांच ने गिरफ्तार किया है। कुल गिरफ्तारी के अलावा गोविंद शर्मा, गौरव, अनुपम सिंगला और राकेश अरोड़ा पर 40 मामले दर्ज हैं।
पुलिस महानिदेशक मनोज यादव ने कहा कि इन व्यक्तियों ने धोखाधड़ी ई-वे बिलों (माल के परिवहन के लिए जीएसटी से संबंधित चालान) के माध्यम से माल की वास्तविक आपूर्ति के बिना कई फर्मों और कंपनियों को धोखाधड़ी चालान जारी किए और जीएसटीआर-3बी फॉर्म के माध्यम से जीएसटी पोर्टल पर फर्जी आयकर ऋण पात्रता की सुविधा दी।
यह भी पता चला है कि फर्जी जीएसटी चालान, ई-वे बिल और फर्जी बैंक ट्रांजेक्शन की मदद से इन गिरोहों द्वारा करोड़ों रुपये के फर्जी आयकर क्रेडिट पास किए गए हैं।
पानीपत और आसपास के इलाकों में सक्रिय गोविंद गैंग से संबंधित फर्जी फर्मों के खिलाफ कुल 21 एफआईआर 2019 में दर्ज की गई थी जबकि 2018 से 2019 के बीच जीएसटी चोरी में शामिल अन्य तीन गिरोहों पर मुकदमा दर्ज किया गया था।
पुलिस अब तक इन गिरोहों के आयकर ऋण को 80 करोड़ रुपये से अधिक के लिए अवरुद्ध कर चुकी है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 18 जनवरी | देश के अधिकांश वरिष्ठ नागरिकों का मानना है कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति उन सबसे बड़े मुद्दों में शामिल है, जिनका भारत को तुरंत समाधान करने की जरूरत है। मैक्स समूह इकाई अंतरा द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, दूसरी शीर्ष चिंता बेरोजगारी है।
इसके अलावा, कोरोनावायरस संक्रमण और सामाजिक अलगाव का डर लॉकडाउन के दौरान वरिष्ठ नागरिकों के लिए दो बड़ी चिंताएं थीं।
सर्वे में आधे से ज्यादा बुजुर्गो ने कहा कि भारत ने कोविड-19 महामारी को संभालने की पूरी कोशिश की है।
दुनिया भर में एक स्थापित और स्वीकार्य उद्योग होने के बावजूद, वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल सेवाएं अभी भी भारत में एक प्रारंभिक चरण में हैं।
अंतरा के एमडी और सीईओ रजित मेहता ने कहा, उनकी (वरिष्ठ भारतीयों) की जरूरतें और आकांक्षाएं काफी आगे आ गई हैं। वे अब अर्थव्यवस्था में सक्रिय योगदानकर्ता बनना चाहते हैं, गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।
--आईएएनएस
विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने रिपब्लिक टीवी के अर्नब गोस्वामी और व्यूअरशिप रेटिंग एजेंसी, ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के बीच हुई कथित बातचीत को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने मुंबई पुलिस की चार्जशीट का हवाला देते हुए लिखा है कि इन दोनों की बातचीत वॉट्सऐप चैट के रूप में लीक हुई है. रविवार को विपक्षी नेताओं ने कहा कि इस बातचीत से कई तरह की चिंताएं सामने आई हैं और इनकी विस्तृत जाँच की जानी चाहिए.
रविवार को कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, "मुंबई पुलिस की चार्जशीट में जो वॉट्सऐप चैट सामने आई है उससे अपने आप में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. किस प्रकार से वित्तीय धोखाधड़ी हुई, उसमें देश के बड़े से बड़े पदों पर बैठे कौन से लोग शामिल थे, कैसे जजों को ख़रीदने की बात हुई और मंत्रिमंडल में कौन सा पद किसको मिलेगा उसका निर्णय पत्रकारों द्वारा किया गया ये सारी बातें हैं. मुंबई पुलिस का आरोपपत्र एक हज़ार पन्नों का है और हम इसका अध्ययन कर रहे हैं. हम इस पर विस्तार से प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे."
वहीं पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने पूरे मामले की जांच जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की है. मनीष तिवारी ने कहा है कि अगर मीडिया रिपोर्टिंग में आ रही बातें सही हैं तो बालाकोट एयर स्ट्राइक और 2019 के आम चुनाव के बीच ज़रूर कोई संबंध है.
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी इस मामले में ट्वीट कर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से पूछा है, "क्या असल स्ट्राइक से तीन दिन पहले एक पत्रकार (और उसके दोस्त) को बालाकोट में जवाबी हमले के बारे में पता था? यदि हाँ, तो इस बात की क्या गारंटी है कि उनके स्रोतों ने पाकिस्तान के साथ काम करने वाले जासूसों या मुखबिरों सहित अन्य लोगों के साथ भी जानकारी साझा नहीं की होगी? राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी गोपनीय निर्णय की जानकारी सरकार-समर्थक पत्रकार को कैसे मिली?" (बीबीसी)