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रायपुर, 10 दिसंबर। शपथ ग्रहण की तैयारी को लेकर विधायक , प्रदेश महामंत्री विजय शर्मा, ओपी चौधरी, विधायक सुशांत शुक्ला ,भूपेंद्र सवन्नी, साइंस कॉलेज मैदान पहुंचे। भाजपा की चौथी सरकार का शपथ समारोह 13 दिसंबर को होगा। इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं । इस शपथ समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत राष्ट्रीय नेता , भाजपा शासित राज्यों के सीएम ,मंत्री शामिल होंगे । भाजपा की पहली सरकार ने भी पुलिस परेड ग्राउंड में शपथ लिया था और उसके बाद तीन बार सरकार बनी।
नयी दिल्ली, 10 दिसंबर। विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) की राष्ट्रीय राजधानी में 19 दिसंबर को होने वाली अगली बैठक में एक ‘‘मुख्य सकारात्मक एजेंडा’’ बनाना, सीटों के बंटवारे और संयुक्त रैलियां आयोजित करने के कार्यक्रम को लेकर चर्चा हो सकती है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने रविवार को ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘ विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ के नेताओं की चौथी बैठक मंगलवार, 19 दिसंबर 2023 को अपराह्न तीन बजे नई दिल्ली में होगी।’’
यह बैठक हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में होगी। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कहना है कि लोगों ने ‘‘मोदी की गारंटियों’’ में विश्वास जताया है और लोग 2024 में फिर से उनकी सरकार चुनेंगे।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों का इरादा एकजुटता बनाये रखते हुए ‘‘मैं नहीं, हम’’ नारे के साथ आगे बढ़ने का है।
उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों के सामने अब चुनौती अगले आम चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने के लिए वैकल्पिक सकारात्मक एजेंडे के साथ सामने आने की है।
उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव नतीजे उन मुद्दों की अस्वीकृति नहीं हैं, जो इस चुनाव प्रचार अभियान में उठाए गए थे।’’ उन्होंने हालांकि स्वीकार किया कि पार्टी 2024 में भाजपा से मुकाबला करने के लिए लीक से हटकर सोचेगी।
उन्होंने कहा कि ‘‘मैं नहीं, हम’’ संभावित नारा है, जिस पर विपक्षी दल मोदी का मुकाबला करने के लिए काम करेंगे।
पार्टी नेता ने कहा कि ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए मुख्य सकारात्मक एजेंडा बनाना विपक्षी दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जो उन्हें भाजपा से मुकाबला करने में मदद करेगा।
सूत्रों ने बताया कि बैठक के दौरान विपक्षी दल सीट बंटवारे, संयुक्त चुनावी रैलियां आयोजित करने की योजना बनायेंगे और उनके लिए एक साझा कार्यक्रम तैयार करेंगे।
सूत्रों का कहना है कि ‘इंडिया’ गठबंधन जाति आधारित गणना, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी और श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों को आगे बढ़ा सकता है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की प्रमुख ममता बनर्जी 17 से 19 दिसंबर तक राष्ट्रीय राजधानी में रहेंगी और बैठक में भाग लेने की संभावना है।
सूत्रों ने बताया कि अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने पर काम जारी है। (भाषा)
बेंगलुरु, 10 दिसंबर। कर्नाटक के कोडागू इलाके में स्थित एक रिजॉर्ट में केरल के एक दंपति ने कथित तौर पर पहले तो अपनी 11 साल की बेटी की हत्या की और बाद में उन दोनों ने भी आत्महत्या कर ली। पुलिस ने रविवार को यह जानकारी दी।
पुलिस ने बताया कि कग्गोडलु गांव स्थित रिजॉर्ट में केरल के कोल्लम निवासी विनोद बाबूसेनन (43), उनकी पत्नी जुबी अब्राहम(38) और उनकी बेटी मृत मिले।
पुलिस ने बताया कि मौके से मिले एक सुसाइड नोट से पता चला है कि इस कदम के पीछे आर्थिक तंगी थी। परिवार शुक्रवार शाम को रिजॉर्ट में रहने आया था।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि दंपति ने रिजॉर्ट के कर्मचारियों को सूचित किया था कि वे शनिवार सुबह 10 बजे वापस जाएंगे, लेकिन जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो कर्मचारी कमरे की जांच करने गए, परंतु किसी ने दरवाजा नहीं खोला।
उन्होंने बताया कि कुछ देर बाद कर्मचारी दोबारा गए फिर भी दरवाजा नहीं खुलने पर उन्हें संदेह हुआ और उन्होंने खिड़की से झांककर देखा तो दंपति फंदे से लटके मिले। (भाषा)
रायपुर, 10 दिसंबर। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख आदिवासी चेहरे विष्णु देव साय राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। उन्हें रविवार को यहां पार्टी के 54 नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक के दौरान विधायक दल का नेता चुना गया।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले महीने कुनकुरी निर्वाचन क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मतदाताओं से विष्णु देव साय को विधायक चुनने का आग्रह किया था और वादा किया था कि अगर पार्टी राज्य में सत्ता में आती है तो साय को "बड़ा आदमी" बना दिया जाएगा।
हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 90 सदस्यीय विधानसभा में 54 सीट जीती हैं। कांग्रेस ने 2018 के पिछले चुनाव में 68 सीट जीती थी , इस बार वह 35 सीट पर सिमट गई।
साल 2018 में भाजपा को आदिवासी बहुल सीट पर भारी झटका लगा था, लेकिन पार्टी ने इस बार अच्छा प्रदर्शन करते हुए अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित 29 में 17 सीट जीत लीं।
भाजपा ने आदिवासी बहुल सरगुजा क्षेत्र में सभी 14 विधानसभा क्षेत्रों और एक अन्य आदिवासी क्षेत्र बस्तर में 12 में से आठ सीट पर जीत हासिल की है।
दो आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की व्यापक विजय ने विधानसभा चुनावों में उसकी शानदार जीत और पांच साल के अंतराल के बाद राज्य में सत्ता में वापसी में योगदान दिया।
विष्णु देव साय ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत एक गांव के सरपंच के रूप में की थी। उन्होंने पार्टी में महत्वपूर्ण संगठनात्मक पदों को प्राप्त करते हुए केंद्रीय मंत्री और लोकसभा सांसद भी बने।
राज्य की आबादी में आदिवासियों की संख्या लगभग 32 फीसदी है तथा सरगुजा क्षेत्र के जशपुर जिले से आने वाले विष्णु देव साय भाजपा की कार्ययोजना में बिल्कुल फिट बैठते हैं। आदिवासी राज्य में ओबीसी के बाद दूसरा सबसे प्रभावशाली सामाजिक समूह है।
अपने परिवार की समृद्ध राजनीतिक विरासत और केंद्रीय मंत्री रहते हुए महत्वपूर्ण विभागों को संभालने के बावजूद, 59 वर्षीय आदिवासी नेता विष्णु देव साय अपनी विनम्रता, सरल स्वभाव, काम के प्रति समर्पण और लक्ष्यों को प्राप्त करने के दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते हैं।
विष्णु देव साय ने तीन बार भाजपा की छत्तीसगढ़ इकाई का नेतृत्व किया है, जो उनके संगठनात्मक कौशल में केंद्रीय नेतृत्व के विश्वास को दर्शाता है।
एक गुमनाम गांव के सरपंच के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले विष्णु देव साय तेजी से आगे बढ़े और 2014 में केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली मंत्रिपरिषद के सदस्य बने।
विष्णु देव साय आदिवासी बहुल जशपुर जिले के एक छोटे से गांव बगिया के एक किसान परिवार से हैं तथा राजनीति उन्हें विरासत में मिली है।
विष्णु देव साय के दादा स्वर्गीय बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनीत विधायक थे। उनके 'बड़े पिता जी' (उनके पिता के बड़े भाई) स्वर्गीय नरहरि प्रसाद साय जनसंघ (भाजपा के पूर्ववर्ती) के सदस्य थे। वह (नरहरि प्रसाद साय) दो बार (1962-67 और 1972-77) विधायक रहे तथा सांसद (1977-79) के रूप में चुने गए। उन्होंने जनता पार्टी सरकार में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था।
विष्णु देव साय के पिता के एक अन्य बड़े भाई केदारनाथ साय भी जनसंघ के सदस्य थे और तपकारा से विधायक (1967-72) चुने गए थे।
विष्णु देव साय ने कुनकुरी के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और स्नातक की पढ़ाई के लिए अंबिकापुर चले गए। लेकिन उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और 1988 में अपने गांव लौट आए। 1989 में उन्हें बगिया ग्राम पंचायत के 'पंच' के रूप में चुना गया और अगले साल वह निर्विरोध सरपंच बन गए।
ऐसा कहा जाता है कि भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव ने उन्हें 1990 में चुनावी राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया था। उसी वर्ष, विष्णु देव साय अविभाजित मध्य प्रदेश में तपकरा (जशपुर जिले में) से भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए थे। साल 1993 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने यह सीट बरकरार रखी।
साल 1998 में उन्होंने निकटवर्ती पत्थलगांव सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे।
बाद में, वह लगातार चार बार - 1999, 2004, 2009 और 2014 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए।
सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा ने विष्णुदेव साय को 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में पत्थलगांव सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वह दोनों बार हार गए।
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद विष्णु देव साय को इस्पात और खनन राज्य मंत्री बनाया गया था।
वह छत्तीसगढ़ के उन 10 मौजूदा भाजपा सांसदों में से थे, जिन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए टिकट देने से इनकार कर दिया गया था।
इन आदिवासी राजनेता ने 2006 से 2010 तक और फिर जनवरी-अगस्त 2014 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
साल 2018 में राज्य में भाजपा की हार के बाद उन्हें 2020 में फिर से छत्तीसगढ़ में पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई।
विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 2022 में उनकी जगह ओबीसी नेता अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
इस साल नवंबर माह में चुनावों से पहले, साय को जुलाई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नामित किया गया था। चुनाव में उन्हें कुनकुरी (जशपुर जिला) से मैदान में उतारा गया, जहां उन्होंने कांग्रेस के मौजूदा विधायक यू डी मिंज को 25,541 वोट के अंतर से हराकर जीत हासिल की।
राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपे जाने के बाद विष्णुदेव साय ने उन पर भरोसा जताने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी के अन्य नेताओं को धन्यवाद दिया।
मुख्यमंत्री पद के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने रविवार को संवाददाताओं से कहा, "मुख्यमंत्री के रूप में, मैं सरकार के माध्यम से पीएम मोदी की गारंटी (भाजपा के चुनाव पूर्व वादे) को पूरा करने का प्रयास करूंगा।" (भाषा)
जयपुर, 10 दिसंबर। राजस्थान पुलिस और दिल्ली पुलिस ने संयुक्त अभियान में राजपूत नेता सुखदेव सिंह गोगामेड़ी हत्याकांड में शामिल दो शूटरों सहित तीन लोगों को चंडीगढ़ में पकड़े जाने के बाद गिरफ्तार किया है।
शनिवार रात चंडीगढ़ के एक होटल के बाहर से पकड़े गए आरोपियों को दिल्ली और राजस्थान पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच जयपुर लाया गया और उन्हें सोडाला थाने ले जाया गया।
जयपुर के पुलिस आयुक्त बीजू जॉर्ज जोसेफ ने रविवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि शूटर नितिन फौजी और रोहित राठौड़ को उनके साथी उधम सिंह के साथ कल रात चंडीगढ़ के सेक्टर 22 में हिरासत में लिया गया था।
हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले नितिन फौजी भारतीय सेना में लांस नायक हैं। यह संयुक्त अभियान दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा और राजस्थान पुलिस के विशेष पुलिस दल (एसआईटी) ने किया था।
नितिन फौजी, रोहित राठौड़ और नवीन शेखावत पांच दिसंबर को जयपुर के श्याम नगर इलाके में श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के प्रमुख सुखदेव सिंह गोगामेड़ी के घर गये थे। कुछ मिनटों तक गोगामेडी के साथ बात करने के बाद, उन्होंने उनपर गोलियां चला दीं, जिससे उनकी मौत हो गयी। दोनों निशानेबाजों ने नवीन शेखावत की भी गोली मारकर हत्या कर दी थी।
इस घटना में गोगामेडी का निजी सुरक्षा गार्ड गोली लगने से घायल हो गया था। आरोपी वहां एक एसयूवी कार से गए थे जिसे नवीन शेखावत चला रहे थे। भागते समय आरोपियों ने एक स्कूटी चालक को गोली मार दी ।
पुलिस आयुक्त ने बताया कि हत्या के बाद दोनों राजस्थान रोडवेज की बस से डीडवाना पहुंचे और फिर उन्होंने सुजानगढ़ के लिए टैक्सी ली, वहां से वे धारूहेड़ा (हरियाणा) पहुंचे। उन्होंने बताया कि दोनों टैक्सी से धारूहेड़ा से रेवाडी पहुंचे और फिर ट्रेन पकड़ कर हिसार पहुंचे जहां उनकी मुलाकात उदम सिंह से हुई।
उन्होंने बताया कि तीनों टैक्सी से मनाली पहुंचे और चंडीगढ़ जाने से पहले दो दिन तक एक होटल में रुके।
उन्होंने कहा कि हरियाणा पुलिस और दिल्ली पुलिस ने तलाशी अभियान में राजस्थान पुलिस की मदद की। उनके अनुसार साथ ही पंजाब पुलिस के साथ भी इनपुट का आदान-प्रदान किया गया।
लॉरेंस बिश्नोई गिरोह से जुड़े गैंगस्टर रोहित गोदारा ने एक फेसबुक पोस्ट में जिम्मेदारी लेते हुए कहा था कि गोगामेड़ी उसके दुश्मनों का समर्थन कर रहा है।
हत्या के मकसद के बारे में पूछे जाने पर पुलिस आयुक्त ने कहा कि मकसद पर कोई स्पष्टता नहीं है और आरोपी से पूछताछ के बाद ही कुछ ठोस कहा जा सकता है।
उन्होंने कहा,“मैं अभी मकसद पर टिप्पणी नहीं कर सकता। निशानेबाजों को कल रात पकड़ लिया गया और उनसे पूछताछ की जाएगी।'
नवीन शेखावत की की भूमिका पर जोसेफ ने कहा कि वह भी अपराध में समान रूप से शामिल था।
कल, जयपुर पुलिस ने जयपुर में नितिन फौजी की मदद करने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। उसे एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया । मजिस्ट्रेट ने उसे पुलिस हिरासत में भेज दिया।
पुलिस आयुक्त ने कहा, “पहले चरण में निशानेबाजों (शूटरों) और उनकी मदद करने वालों को गिरफ्तार किया गया है। अगला चरण हत्या के मास्टरमाइंड और साजिशकर्ताओं तक पहुंचने के बारे में है।”
जोसेफ ने कहा कि मामला एनआईए को सौंपे जाने से पहले राजस्थान पुलिस यह काम पूरा कर लेगी।
जब जयपुर पुलिस आयुक्त से पूछा गया कि हमले के बारे में खुफिया जानकारी और गोगामेड़ी द्वारा सुरक्षा की मांग करने वाले पत्रों के बावजूद उन्हें सुरक्षा क्यों प्रदान नहीं की गई, तो उन्होंने कहा कि इस संबंध में पुलिस मुख्यालय द्वारा पहले ही न्यायिक जांच का आदेश दिया जा चुका है।
जयपुर पुलिस आयुक्तालय द्वारा जारी एक प्रेस नोट में कहा गया है कि घटना के दौरान, नितिन फौजी के पास दो पिस्तौल एवं कई मैगजीन थे, जबकि रोहित राठौड़ के पास एक पिस्तौल एवं एक मैगजीन थे।
नितिन फौजी सात नवंबर को दो दिन की छुट्टी पर अपने घर महेंद्रगढ़ (हरियाणा) गया था।
वहां रहने के दौरान, वह अपने दो दोस्तों भवानी सिंह और राहुल कोठाल के साथ खुडाना पुलिस में अनुपम सोनी और अन्य लोगों के साथ हाथापाई में शामिल हो गया।
भवानी का अनुपम सोनी और नितिन फौजी से पुराना विवाद था। समझौता कराने के लिए भवानी और राहुल गए थे, जहां हाथापाई हो गई और पुलिस पहुंच गई।
हरियाणा पुलिस पर गोलियां चलाने के बाद तीनों मौके से भाग गए जिसके बाद महेंद्रगढ़ के सदर थाने में मामला दर्ज किया गया।
इस बीच आरोपी गिरफ्तारी से बचने के लिए हिसार पहुंचे और वहां उनके लिए व्यवस्था उधम सिंह ने की।
भवानी सिंह पहले से ही रोहित गोदारा के संपर्क में था। उसने फोन पर नितिन फौजी को रोहित गोदारा से मिलवाया और उसे जयपुर में (गोगामेडी की) हत्या को अंजाम देने के लिए तैयार किया।
पुलिस आयुक्त ने बताया कि शूटरों को हथियार का इंतजाम करने वाले गिरोह की पहचान कर ली गई है और अलग से जांच की जा रही है।
राजस्थान पुलिस ने प्रत्येक आरोपी की गिरफ्तारी के लिए सूचना देने वाले को पांच लाख रुपये के नकद इनाम की घोषणा की थी।
दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने रविवार को कहा कि अपराध शाखा की एक टीम ने राजस्थान पुलिस के साथ एक संयुक्त अभियान में दोनों अपराधियों को चंडीगढ़ के सेक्टर 22 से पकड़ा। सूत्रों के अनुसार उनके साथ एक सहयोगी उधम सिंह भी था, जिसे भी पकड़ लिया गया। (भाषा)
प्रतापगढ़ (उप्र), 10 दिसंबर। प्रतापगढ़ जिले के आसपुर देवसरा क्षेत्र में शादी की खुशी में चलाई गई गोली लग जाने से 16 वर्षीय एक दलित लड़के की मौत हो गई।
पुलिस सूत्रों ने रविवार को बताया कि आसपुर देवसरा क्षेत्र के कोटिया पूरेधनी में फूलचंद्र दुबे की बेटी की शादी के सिलसिले में शुक्रवार को 'हल्दी' समारोह था और उसी दौरान दुबे के भतीजे पिंटू ने अपनी लाइसेंसी पिस्तौल से खुशी में गोली चलाई जो वहां टेंट लगा रहे दलित किशोर अजय कुमार (16) को लग गयी।
सूत्रों के अनुसार अजय कुमार को गंभीर हालत में प्रयागराज ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान शनिवार को उसकी मौत हो गई।
सूत्रों के मुताबिक अजय कुमार के पिता सुरेश की शिकायत के आधार पर पिंटू के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की सुसंगत धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। अपराध में इस्तेमाल की गई पिस्तौल भी बरामद कर ली गई है।
पुलिस ने बताया कि मृतक का पोस्टमार्टम प्रयागराज में कराया गया है। (भाषा)
रांची, 10 दिसंबर। कांग्रेस के झारखंड प्रभारी अविनाश पांडेय ने रविवार को कहा कि सांसद धीरज साहू से उनसे जुड़े परिसरों से बड़ी मात्रा में मिली नकदी को लेकर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
पांडेय ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि धीरज साहू का यह निजी मामला है और पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीं है।
रांची के बिरसा मुंडा हवाई अड्डे पर संवाददाताओं से बातचीत में पांडेय ने कहा, ‘‘वह कांग्रेस के सांसद हैं। उन्हें आधिकारिक बयान देकर बताना चाहिए कि इतनी बड़ी राशि उनके पास कैसे आई।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी का रुख स्पष्ट है कि यह धीरज साहू का निजी मामला है जिसका कांग्रेस पार्टी से कोई लेना देना नहीं है।’’
अधिकारियों ने बताया कि ओडिशा स्थित बौद्ध डिस्टिलरी प्राइवेट लिमिटेड और उससे जुड़ी संस्थाओं के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा की गई छापेमारी में अब तक भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई है। उनके मुताबिक छापेमारी के दौरान साहू से जुड़े परिसरों की भी तलाशी ली गई।
आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार को कहा कि जब्त की गई रकम 290 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, यह किसी भी एजेंसी द्वारा एक ही अभियान में ‘अब तक की सबसे अधिक’ नकद बरामदगी होगी।
पांडेय ने कहा कि आयकर विभाग ने छापेमारी और बरामदगी को लेकर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन जिस तरह से पार्टी से जोड़कर आरोप लगाये जा रहे हैं, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने कहा, ‘‘जिस परिवार का 100 वर्षों से अधिक समय से व्यापारिक प्रतिष्ठान है और यह परिवार का संयुक्त व्यवसाय है। धीरज साहू तो बस कारोबार का एक हिस्सा हैं। लेकिन, साहू को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इतनी बड़ी रकम उनके पास कैसे आई।’’
कांग्रेस मुख्यालय में पांडेय ने आरोप लगाया कि देश में विपक्षी दलों को बदनाम करने की साजिश की जा रही है।
उन्होंने कहा, ‘‘ जिस दिन से झारखंड में बहुमत गठबंधन की सरकार सत्ता में आई है, तभी से भाजपा इसे अस्थिर करने की साजिश रच रही है। ऐसा सिर्फ झारखंड में ही नहीं, बल्कि देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी गई सभी गैर-भाजपा सरकारों के खिलाफ ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत साजिश की जा रही है। भाजपा किसी भी संवैधानिक मूल्यों की परवाह किए बिना खुलेआम ऐसा कर रही है।’’
पांडेय के बयान पर पलटवार करते हुए भाजपा नेता और रांची से विधायक सी.पी.सिंह ने कहा, ‘‘कांग्रेस साहू से पीछा छुड़ाना चाहती है ताकि अपने बॉस को बचा सके। कांग्रेस सांसद साहू क्या निर्दलीय हैं। अगर वह निर्दलीय उम्मीदवार होते तो कह सकते थे, कि पार्टी का कोई लेना देना नहीं है।’’ (भाषा)
हैदराबाद, 10 दिसंबर। केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी ने रविवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पूछा कि वह अपनी पार्टी के सांसद धीरज प्रसाद साहू से कथित तौर पर जुड़े परिसरों में आयकर विभाग की हालिया छापेमारी के दौरान करोड़ों रुपये जब्त होने पर चुप क्यों हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष रेड्डी ने यहां संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए संदेह जताया कि छापेमारी के दौरान जब्त किया गया धन आगामी लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल के लिए रखा गया होगा।
केंद्रीय मंत्री ने झारखंड से सांसद साहू को “काले धन का हीरो” बताया और कहा कि वह (राहुल) गांधी के करीबी हैं और उन्होंने पिछले साल कांग्रेस नेता की भारत जोड़ो यात्रा की सभी जरूरतें पूरी की थीं।
रेड्डी ने कहा, “कांग्रेस के नेताओं ने किस तरह देश को लूटा है, यह उसकी एक मिसाल है। हम मांग करते हैं कि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी जनता को स्पष्टीकरण दें कि पार्टी ने उन्हें तीन बार राज्यसभा सदस्य क्यों बनाया।”
गौरतलब है कि ओडिशा स्थित बौध डिस्टिलरी प्राइवेट लिमिटेड और उससे जुड़ी संस्थाओं के खिलाफ आयकर विभाग की छापेमारी में अब तक भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई है।
आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार को कहा कि जब्त की गई राशि 290 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसके साथ ही यह किसी भी एजेंसी की छापेमारी में जब्त किया गया “अब तक का सबसे अधिक” काला धन बन जाएगा। (भाषा)
रायपुर, 10 दिसंबर। पूर्व आईपीएस जीपी सिंह कि माता सरदारनी सुरिंदर कौर प्लाहा (91) का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार कल 11 बजे न्यू राजेन्द्र नगर मुक्ति धाम में किया जाएगा।
मोदी, शाह भी आएंगे
रायपुर, 10 दिसंबर। भाजपा की चौथी सरकार का शपथ समारोह 13 दिसंबर को पुलिस परेड ग्राउंड में होगा। इसके लिए पुलिस परेड ग्राउंड में तैयारियां शुरू कर दी गई हैं । इस शपथ समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत राष्ट्रीय नेता, भाजपा शासित राज्यों के सीएम, मंत्री शामिल होंगे। भाजपा की पहली सरकार ने भी पुलिस परेड ग्राउंड में शपथ लिया था और उसके बाद तीन बार सरकार बनी।
रायपुर। छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के प्रांतीय संयोजक कमल वर्मा,सचिव राजेश चटर्जी एवं प्रवक्ता चंद्रशेखर तिवारी ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी कर विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाये जाने पर हर्ष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि संघर्षशील व्यक्ति ही संघर्ष को समझ सकता है।
फेडरेशन सदैव कर्मचारी हित को सर्वोपरि मानकर मौलिक अधिकार के लिए संघर्षरत रहा है। राज्य के उन्नति तथा अधोसंरचना के निर्माण में कर्मचारियों ने अहम भूमिका निभाई है। फेडरेशन को उम्मीद है कि राज्य के कर्मचारी-अधिकारी के मुद्दों पर त्वरित समाधान होगा।
उन्होंने बताया कि फेडरेशन राज्य के मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय से मिलकर कर्मचारियों के भावनाओं से अवगत करायेंगे। राज्य का कर्मचारी राज्य के विकास रथ का ध्वज वाहक है। राज्य का सर्वांगीण विकास के लिए कर्मचारी एवं उनके परिवार का वर्तमान एवं भविष्य को सुरक्षित रखना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने आशा व्यक्त किया है कि राज्य के कर्मचारियों के लिए के किये गए घोषणाओं का सफल क्रियान्वयन होगा।
फेडरेशन ने कहा है कि राज्य के कर्मचारी-अधिकारी सरकार के नीति-निर्धारण एवं जमीनी क्रियान्वयन के दिशा में कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे।
रायपुर, 10 दिसंबर। राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन को आज यहां राजभवन में छत्तीसगढ़ राज्य भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री अरूण साव ने वर्ष 2023 की छत्तीसगढ़ राज्य नव गठित विधानसभा के अपनेे नव निर्वाचित विधायकों की सर्वसम्मति से प्रदेश विधायक दल का नेता श्री विष्णुदेव साय को चयनित किये जाने संबंधित पत्र सौंपा और नई सरकार बनाने के लिए अपना दावा प्रस्तुत किया।
राज्यपाल श्री हरिचंदन ने श्री विष्णुदेव साय को बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। उन्होंने भारत के संविधान की धारा 164 के तहत श्री विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री नियुक्त करने संबंधित पत्र प्रदान किया और केबिनेट गठन के लिए आमंत्रित किया।
इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा, श्री सर्वानंद सोनोवाल, श्री मनसुख मांडविया, श्री ओम माथुर सहित नवनिर्वाचित विधायक, पदाधिकारीगण एवं वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारीगण उपस्थित थे।
रायपुर, 10 दिसंबर। कबीर नगर के सोनडोंगरी स्थित सूने मकान में कल रात लाखों रूपये की चोरी करने वाले युवक और एक नाबालिग को गिरफ्तार किया गया है। बी.एस.यू.पी. कालोनी सोनडोंगरी निवासी चेतन कुमार ने थाना कबीर नगर में रिपोर्ट दर्ज कराया था। शनिवार की रात चेतन घर का ताला बंद कर सपरिवार विवाह कार्यक्रम में गया था। आज प्रातः 07ः00 उसके पड़ोसी ने फोन कर बताया कि घर का ताला टूटा हुआ है। घर आकर देखा तो कमरे का सामान बिखरा हुआ था तथा बैग में रखा सोने चांदी के जेवरात नहीं थे। चेतन की इस रिपोर्ट पर थाना कबीर नगर पुलिस धारा 457, 380 भादवि. का अपराध दर्ज कर आरोपियों की पतासाजी शुरू की। पुलिस टीम घटना स्थल तथा उसके आस-पास लगे सी.सी.टी.व्ही. फुटेज देखने के साथ-साथ मुखबीर भी लगाया था। इसी दौरान मिली जानकारी पर रितेश कुमार साहू को पकड़ कड़ाई से पूछताछ करने पर उसने आरोपी द्वारा अपने एक नाबालिग साथी के साथ मिलकर चोरी स्वीकारी।पुलिस ने बालक को भी पकड़ा। और दोनों से चोरी की सोने एवं चांदी के जेवरात जुमला कीमती लगभग 2.50लाख रूपए जप्त कर दोनों के विरूद्ध कार्यवाही किया गया।
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 10 दिसम्बर। पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह स्पीकर होंगे। जबकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरूण साव, और कवर्धा विधायक विजय शर्मा को डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा है।
रायपुर, 10 दिसंबर। पिछले सप्ताह डी.डी.नगर इलाके के रायपुरा स्थित मकान में चोरी करने वाले आरोपी शेख जफर को गिरफ्तार किया है।कुम्हारपारा महादेवघाट रोड, रायपुरा निवासी खेमराज चक्रधारी ने रिपोर्ट दर्ज कराया था। पुलिस के मुताबिक 6 दिसंबर को रात्रि करीबन 11.00 बजे खेमराज अपनी पत्नि व बच्चों के साथ घर में सोया था। वह तड़के 04.00 बजे उठा तो देखा कि कमरे में रखी हुई आलमारी खुली, सारा सामान बिखरा पडा था। वह बाहर निकलने के लिए दरवाजा खोलने की कोशिश किया तो बाहर से दरवाजा बंद था। अलमारी को चेक किया तो उसमें से जेवरात नहीं थे। खेमराज की इस रिपोर्ट पर डीडी नगर पुलिस धारा 457, 380 भादवि. का अपराध दर्ज कर आरोपियों की पतासाजी शुरू की। मुखबीर की सूचना पर आरोपी शेख जफरशेख जफर पिता शेख जब्बार उम्र 19 साल निवासी ईदगाहभाठा आजाद चौक को गिरफ्तार कर उसके कब्जे से चोरी किए जेवरात कुल कीमत 70,000/- रूपए जप्त किया । जफर पूर्व में भी चोरी सहित अन्य प्रकरणों में जेल निरूद्ध रह चुका है।
रायपुर, 10 दिसंबर। विधायक दल की बैठक में सीएम चुने गए नेता विष्णु देव साय सरकार गठन का दावा पेश करने जब राजभवन के लिए निकले।
और 18 लाख आवास निर्माण को मंजूरी भी
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 10 दिसंबर। भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और विधायक विष्णुदेव साय ने खुशी जतायी है। दल की बैठक में केंद्रीय पर्यवेक्षकों और पूर्व सीएम रमन सिंह ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, लता उसेंडी ने समर्थन किया। बैठक में केवल सीएम ही चुना गया। डिप्टी सीएम पर कोई चर्चा नहीं हुई।
नेता चुने जाने के बाद साय ने मीडिया से चर्चा में कहा कि सीएम का दायित्व ग्रहण करने के बाद सबके विश्वास पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे। साय ने पीएम नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ को पांच वर्ष से त्रस्त सरकार से छुटकारा मिला है। साय ने, बघेल सरकार पर कहा कि कांग्रेस ने राज्य का खजाना खोखला कर दिया है। लेकिन हम मोदी जी की गारंटी को प्राथमिकता से अगले पांच वर्ष में पूरा करेंगे। साय ने कहा कि अटलजी की जयंती के मौके पर किसानों को दो साल का बोनस दे दिया जाएगा। और 18 लाख घरों को मंजूरी पहला काम होगा। मोदी की गारंटी को प्राथमिकता से पूरा करने की दिशा में काम किया जाएगा।
रायपुर, 10 दिसंबर। 54 सदस्यीय विधायक दल में साजा से नवनिर्वाचित ईश्वर साहू सीएम, पूर्व सीएम द्वय के बाद सर्वाधिक सुरक्षा वाले विधायक होंगे। पूर्व सीएम रमन सिंह को ब्लैक कैट कमांडो, निवृतमान सीएम बघेल को जेड प्लस की सुरक्षा रहेगी। वहीं ईश्वर साहू को जेड सुरक्षा दी गई हैं। साहू ने दिग्गज नेता रविंद्र चौबे को पराजित किया है। ईश्वर को दी गई इस सुरक्षा के पीछे उन्हें और परिवार पर थ्रेट को कारण बताया जा रहा है । साजा के बिरनपुर में कुछ महीने पहले ईश्वर के पुत्र की कुछ मुस्लिम युवकों ने हत्या कर दी थी। उसके बाद से परिवार दहशत धमकियों में दिन गुजार रहा है।
रायपुर, 10 दिसंबर। भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद विष्णु देव साय ने राजभवन जाकर राज्यपाल हरिचंदन के समक्ष सरकार गठन का दावा पेश किया। विधायक दल ने ,साय को नेता चुने जाने का पत्र सौंपा । इसके बाद हरिचंदन, औपचारिक रूप से पत्र भेजकर साय को सरकार गठन के लिए आमंत्रित करेंगे।
राजभवन से निकलने पर वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने बताया कि राज्यपाल का वह पत्र मिलने के बाद सीएम, शपथ समारोह के लिए तिथि से अवगत कराएंगे। कैबिनेट, डिप्टी सीएम कौन होगा यह पूछने पर अग्रवाल ने कहा कि आगे आगे देखिए, यह निर्णय केंद्रीय नेतृत्व करेगा। सूचित कर दिया जाएगा।
राजभवन से निकल कर साय,प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के साथ राज्य अतिथि गृह पहुना पहुंचे। जिसे वैकल्पिक रूप से सीएम हाउस बनाया गया है । निवृतमान सीएम बघेल के खाली करने के बाद सिविल लाइंस स्थित अधिकृत भवन में प्रवेश करेंगे।
अभी इस वक्त जब हम यह लिख रहे हैं, छत्तीसगढ़ में भाजपा के दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षक पहुंचे हुए हैं, और जब तक यह लिखना पूरा होगा तब तक उनकी विधायकों के साथ बैठक शुरू हो चुकी होगी। विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच इस बात को लेकर आत्ममंथन चल रहा है कि कांग्रेस की ऐसी हार, और भाजपा की ऐसी जीत कैसे हुई? दोनों ही उम्मीद से अधिक रहीं, इसलिए यह चर्चा अखबारों के पन्नों पर भी बिखरी हुई है, और कैमरों के सामने भी। हम भी लगातार इस मुद्दे पर सोच रहे हैं, और लिख-बोल रहे हैं। लेकिन जिस तरह चुनाव के पहले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा जनधारणा प्रबंधन किया था, और तमाम ओपिनियन पोल से लेकर एक्जिट पोल तक एक ही चर्चा थी कि कांग्रेस बड़े वोटों से जीतकर आ रही है, उसी तरह आज ऐसा लगता है कि एक यह जनधारणा बन रही है, या बनाई जा रही है कि कांग्रेस की ऐसी बुरी हार पार्टी के भीतर नेताओं के एक-दूसरे को हराने की कोशिशों से हुई है। अभी यह साफ नहीं है कि ऐसी जनधारणा अगर सचमुच बनाई जा रही है, तो उसके पीछे क्या मकसद है? लेकिन ऐसा लगता है कि ये आरोप तो कांग्रेस के भीतर चल ही रहे थे, जब वोट भी नहीं डले थे, नतीजे निकलना तो दूर की बात थी, तब भी ये आरोप हवा में थे कि कुछ बड़े नेताओं के खिलाफ उनके विधानसभा क्षेत्र में उनके वोट खराब करने कुछ लोगों को खड़ा किया गया था, कुछ लोगों को अंधाधुंध बड़ी रकमें भेजी गई थीं। इसलिए इस शिकायत में कुछ नया नहीं है। और अगर आज भी ऐसी शिकायतों की खबरों को हवा दी जा रही है, तो यह सोचने का मौका है कि क्या यह किसी और मुद्दे की तरफ से ध्यान हटाने के लिए की जा रही सायास कोशिश है?
आज छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की ऐसी हार के पीछे एक बड़ी वजह भूपेश बघेल सरकार के तौर-तरीके थे। जिस अंदाज में वह सरकार चली, जिसे कि बोलचाल की जुबान में बैड गवर्नेंस कहते हैं, वह चर्चा से गायब दिख रही है। भ्रष्टाचार के कुछ मामलों की चर्चा भाजपा जरूर कर रही है कि कांग्रेस को इस वजह से भी खारिज किया है, लेकिन सरकार चलाने के गलत तौर-तरीकों पर बात नहीं हो रही है। पता नहीं कल दिल्ली में हुई कांग्रेस की समीक्षा बैठक में खरगे-राहुल जैसे लोगों ने हकीकत जानने की कोशिश की, या टकराव को टालने की, यह तो बाहर पता नहीं चल पाया है, लेकिन छत्तीसगढ़ में पांच बरस सरकार चलाने में जो गलत तौर-तरीके थे, उनकी बात की जानी चाहिए, लेकिन उस पर अखबारों और टीवी पर भी बात होते नहीं दिख रही है।
कल कोरबा के विधायक रहे, और भूपेश मंत्रिमंडल के एक सबसे मुखर मंत्री, जयसिंह अग्रवाल ने जरूर कैमरे के सामने इस बात को खुलकर कहा कि उनके जिले में कलेक्टर और एसपी जैसे अफसर जिस तरह के भेजे गए, और उन्होंने जिस तरह से सत्तारूढ़ पार्टी की संभावनाओं को खत्म किया, वह हार की अकेली वजह थी। उन्होंने यह भी कहा कि मंत्रियों को कोई अधिकार नहीं दिए गए थे, और सारे अधिकार एक जगह (जयसिंह ने सीएम का नाम लेने से परहेज किया, लेकिन उनकी बात का मतलब किसी भी कोने से छिपा हुआ नहीं था) एक जगह केन्द्रित हो गए थे। यह बात पांच बरस हर मंत्री बोलते रहे, सार्वजनिक रूप से तो कम लोगों ने कहा, लेकिन बंद कमरे की आपसी बातचीत में हर किसी का दुखड़ा यही था। तमाम लोगों का यही कहना था कि प्रदेश में हाऊस (मुख्यमंत्री निवास) ही हर फैसला लेता है, और प्रदेश के हर महत्वपूर्ण ओहदे पर बैठे हुए अफसर भी हर बात के लिए हाऊस की तरफ देखते थे। जब पूरी की पूरी सत्ता एक जगह केन्द्रित थी, तो सरकार के अच्छे कामों के लिए भी उसी को शोहरत मिलनी थी, और तमाम बुरे कामों के लिए भी बदनामी की वही अकेली हकदार थी। इस तरह प्रदेश की पूरी सरकार, शासन-प्रशासन के सारे काम, एक हाऊस में सीमित हो गए थे, और कलेक्टर-एसपी जैसे पुलिस-प्रशासन के जिला-मुखिया भी अपने प्रशासनिक अफसरों के प्रति जवाबदेह नहीं रह गए थे। आज जब हम जनता के फैसले को देखते हैं, तो लगता है कि मुख्य सचिव से लेकर पटवारी तक के बीच मजबूती से जमी हुई यह धारणा सरकारी अमले से निकलकर बाहर भी चारों तरफ फैली, सत्तारूढ़ विधायकों और मंत्रियों को भी एक मामूली अफसर के रहमोकरम पर रहना पड़ा, और यह बात शासन-प्रशासन और सत्तारूढ़ संगठन सभी का मनोबल तोडऩे के लिए काफी थी।
आज चूंकि इस पहलू से कांग्रेस की हार को जोडक़र नहीं देखा जा रहा है, इसलिए इस पर चर्चा जरूरी है। कांग्रेस पार्टी को अगर देश-प्रदेश में कहीं भी अपना कोई भविष्य बनाना है, और बनाना तो दूर रहा, बचाना है, तो उसे पार्टी से परे की किसी पेशेवर संस्था की सेवाएं लेनी चाहिए, और उसे गोपनीय तरीके से अपने हारे हुए इन तीन राज्यों में कुछ महीने अध्ययन करने भेजना चाहिए, और उनकी रिपोर्ट पर बंद कमरे में खुलकर विचार करना चाहिए। हमारा मानना है कि कोई गैरराजनीतिक संस्था ऐसे काम को बेहतर तरीके से कर सकती है कि सरकार कैसे-कैसे नहीं चलाई जानी चाहिए थी। कम से कम जो तीन राज्य कांग्रेस अभी बुरी तरह हारी है, उस पर ऐसी रिपोर्ट कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के वक्त भी काम आ सकती है। इससे भी पार्टी सबक ले सकती है कि किसी भी प्रदेश में पार्टी और उसकी सरकार की लीडरशिप के एक व्यक्ति में ही सीमित हो जाने का क्या नुकसान हो सकता है, उसके क्या खतरे हो सकते हैं? छत्तीसगढ़ इसकी एक शानदार मिसाल है कि जब किसी राज्य को किसी एक व्यक्ति को लीज पर दे दिया जाता है, तो उससे पूरी सरकार, और पूरा पार्टी संगठन कैसे खत्म होता है। इस राज्य में कांग्रेस को दो बार ऐसा करने का मौका मिला, 2000 में उसने जोगी को इस राज्य का पट्टा लिख दिया था, और इस बार भूपेश बघेल को। ऐसे निर्बाध एकाधिकार का क्या नतीजा निकलता है, यह पार्टी के सामने है। उसके पास अब इन प्रदेशों में राज्य के स्तर पर खोने के लिए कुछ नहीं बचा है, लेकिन पूरे देश के स्तर पर यह सबक लेने का मौका अभी बाकी है कि उसे अपना संगठन कैसे नहीं चलाना चाहिए। किसी एक व्यक्ति को ही ईश्वरीय सत्ता सौंप देने पर पार्टी के बाकी लोग किस तरह हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाने को मजबूर रहते हैं, छत्तीसगढ़ अपनी दो कांग्रेस सरकारों में इसकी एक शानदार मिसाल रहा है, और दोनों ही मौकों पर कांग्रेस हाईकमान का रूख एक सरीखा रहा है, फिर चाहे वजहें अलग-अलग क्यों न रही हों। लेकिन नतीजा एक ही रहा जब तानाशाही के अंदाज में चली सरकारें लोगों के बीच में एक मुजरिम-गिरोह की तरह मानी गईं, और चुनावी हार से परे भी कांग्रेस साख की इस नुकसान से उबर नहीं पाई। जोगी के बाद कांग्रेस 15 बरस सत्ता के बाहर रही, और इस बार मंत्रालय से उसका वनवास कितना लंबा होगा, यह इस पर भी निर्भर करेगा कि वह अपनी पार्टी के लिए अब कौन सा तौर-तरीका तय करती है।
खुद कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए यह एक आत्ममंथन का मौका हो सकता है कि राजनीतिक और सरकारी फैसले लेने में जब लोगों की भागीदारी खत्म कर दी जाती है, और अपने इर्द-गिर्द हासिल अकेली राय पर प्रदेश चलाया जाता है, तो उसके क्या नुकसान होते हैं। कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले दसियों हजार करोड़ रूपए के वायदे मतदाताओं से किए थे, इनमें से बहुत सीधे-सीधे नगद फायदा पहुंचाने वाले कुछ वायदे तो ऐसे थे जिनसे तमाम दो करोड़ वोटर जुड़े हुए थे, लेकिन जिस अंदाज में उन्होंने कांग्रेस को खारिज किया है उससे कांग्रेस को बहुत कुछ समझना और सीखना चाहिए। यह पार्टी घर तो बैठने वाली नहीं है, लेकिन यह मौका पार्टी संगठन को एक बेहतर भागीदारी वाली संस्था बनाने का भी है। कोई भी व्यक्ति चाहे वे कितने ही काबिल और कितने ही जनकल्याणकारी क्यों न हों, लोकतंत्र कभी व्यक्तितंत्र नहीं हो सकता। जब कभी लोकतंत्र में भागीदारी खत्म की जाती है, वह उसे तानाशाही की तरफ ले जाती है। छत्तीसगढ़ में लोग यह कहने में कतरा जरूर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को इस प्रदेश में अपने घर की पड़ताल करवाना चाहिए कि हम सैद्धांतिक रूप से जो बात कह रहे हैं, क्या वह छत्तीसगढ़ में उसकी सरकार, और उसकी पार्टी पर लागू नहीं हो रही थी?
कांग्रेस को यह भी समझने की जरूरत है कि देश में अपना संगठन चलाने के लिए, प्रदेशों में चुनाव करवाने के लिए उसे जो रकम लगती है, क्या उसके एवज में किसी प्रदेश को किसी एक नेता को लीज या ठेके पर दे देना ठीक है?
इससे परे हम कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन को यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ में इन पांच बरसों में सत्ता और संगठन (अब इन दोनों को क्या अलग-अलग लिखा जाए) ने पार्टी के सबसे बुनियादी मूल्यों को किस तरह खत्म किया है। धर्मनिरपेक्षता गांधी के वक्त से कांग्रेस की रीढ़ की हड्डी बनी हुई थी, उसकी आत्मा बनी हुई थी, इस एक शब्द के बिना कांग्रेस की कोई शिनाख्त नहीं थी, और इसके बड़े-बड़े नेता दिल्ली में बैठकर यह देखते रहे कि किस तरह कांग्रेस ने हिन्दुत्व की ए टीम बनने के लिए छत्तीसगढ़ में पार्टी के तन-मन से रीढ़ की हड्डी और आत्मा को निकालकर बाहर कर दिया था, ताकि बहुसंख्यक हिन्दू आबादी के सामने यह साबित किया जा सके कि उसका अल्पसंख्यकों से कोई भी लेना-देना नहीं है। यह बात हम पिछले आधे बरस में दो दर्जन बार लिख और बोल चुके हैं, और इसका चुनावी नतीजों से कोई लेना-देना नहीं है। चुनावी नतीजों ने सरकार के बारे में वोटरों की सोच का नया पहलू जरूर सामने रखा है, लेकिन सरकार का घोड़े पर सवार हिन्दुत्व इन पांच बरस भगवा झंडा लेकर प्रदेश में दौड़ते रहा, और किनारे पड़े जख्मी अल्पसंख्यकों को झंडे के डंडे से किनारे करते भी रहा। ऐसा भी नहीं कि सोनिया-परिवार को यह दिख न रहा हो, और अगर बीते बरसों में यह न दिखा हो, तो अब प्रदेश भर के चुनावी नतीजों से तो दिख जाना चाहिए।
कांग्रेस को छत्तीसगढ़ के पिछले पांच बरस के मॉडल से यह सबक लेने की जरूरत है कि उसे अपना संगठन, और अपनी सरकार किस तरह नहीं चलानी चाहिए, उसे यह भी सबक लेने की जरूरत है कि कोई नेता चाहे कितने ही कामयाब न हों, वे पूरे संगठन के, तमाम नेताओं के अकेले विकल्प नहीं बन सकते। अगर ऐसा हो सकता तो फिर सोनिया परिवार के तीन लोगों से परे देश में किसी पार्टी संगठन की जरूरत ही क्या रहती? छत्तीसगढ़ में इस पार्टी ने पांच बरस जो किया है, जो देखा है, और नतीजे में जो पाया है, वह भी अगर इस पार्टी के लिए सबक नहीं बन सकेगा, तो इसके लिए फिर दुनिया में और कोई सबक नहीं है।
देश के पांच राज्यों में हुए चुनाव के बाद अभी सरकारें बनने का सिलसिला चल रहा है, सैकड़ों नए विधायक चुनकर आए हैं, और ऐसे में विधायक ही सबसे अधिक खबरों में हैं। लोगों को यह पता नहीं होगा कि देश के अलग-अलग राज्यों में विधायकों को कितना मेहनताना मिलता है? यह तनख्वाह की शक्ल में भी है, सहूलियतों की शक्ल में भी, और पेंशन के भी अलग-अलग इंतजाम हैं। देश में तेलंगाना, जहां कि अभी चुनाव हुआ है और सरकार बनी है, वहां किसी भी दूसरे राज्य के मुकाबले विधायक की तनख्वाह अधिक है, जो कि ढाई लाख रूपए महीने हैं। दूसरी तरफ मेघालय में 28 हजार से कम तनख्वाह है, और त्रिपुरा में देश की सबसे कम तनख्वाह, 26 हजार से कम है। त्रिपुरा में शायद ऐसा इसलिए भी होगा कि वहां वामपंथी सरकार लंबे समय तक रही है, और नेताओं को जनता के पैसों पर अधिक सहूलियत देने की संस्कृति नहीं रही। शायद इसीलिए बंगाल में भी यह तनख्वाह कुल 52 हजार रूपए महीने है, और इन राज्यों में तनख्वाह जरा भी बढऩे पर उसका बड़ा विरोध होता है। वामपंथी शासन में लंबे समय तक रहने वाले केरल में तनख्वाह बंगाल से भी कम, 44 हजार से कम है। अलग-अलग राज्यों में मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों की तनख्वाह भी बहुत अधिक कम या अधिक है। भारत में निर्वाचित नेताओं में प्रधानमंत्री को करीब दो लाख रूपए तनख्वाह और कुछ भत्ते मिलते हैं। जबकि कम से कम तेलंगाना में ही मुख्यमंत्री की तनख्वाह इससे दोगुनी से अधिक है।
तमाम राज्यों के आंकड़े अलग-अलग गिनाना आज का मकसद नहीं है, लेकिन यह सोचने की जरूरत है कि विधायकों और सांसदों की तनख्वाह आखिर कितनी होनी चाहिए? उनके कौन से खर्च जनता उठाए, उनके परिवारों को किस दर्जे की जिंदगी जनता के पैसों से दी जाए? अगर हम हिन्दुस्तान को बुनियादी तौर पर एक बेईमान देश मानकर यह मानकर चलें कि नेता तो करोड़ों की कमाई कर ही लेते हैं, उन्हें कोई अच्छी तनख्वाह देना जरूरी क्यों है, तो एक पुरानी कहावत याद रखनी चाहिए कि सस्ता रोए बार-बार, महंगा रोए एक बार। देश और प्रदेश को चलाने के लिए जिन सांसदों और विधायकों की जरूरत है, उन्हें सस्ता ढूंढने का मतलब काबिल लोगों को इस काम में आने से रोकना है। जनसेवा की बात और सोच तो ठीक है, लेकिन यह हकीकत अपनी जगह बनी रहती है कि जनप्रतिनिधियों के भी परिवार रहते हैं, और उनकी अपनी जरूरतें भी होती हैं, और महत्वाकाक्षाएं भी रहती हैं। आज के वक्त हर किसी से त्याग की ऐसी उम्मीद करना नाजायज होगा कि हर सांसद और विधायक वामपंथियों की तरह की गरीब जिंदगी गुजार लें, और अपनी तनख्वाह पार्टी ऑफिस में जमा करके उसके एक छोटे से हिस्से को पाकर उससे अपना घर चलाएं। ऐसा समर्पण किसी एक पार्टी में हो सकता है, या कि देश में आजादी की लड़ाई के दौरान था, लेकिन अब ऐसा समर्पण स्थाई रूप से नहीं हो सकता, और जब देश को आजाद कराने जैसा बड़ा मकसद न हो, तब तो बिल्कुल नहीं हो सकता। आज जब सांसद और विधायक बनते ही लोगों को 50-50 लाख की गाडिय़ां सूझने लगती हैं, और वे उसके इंतजाम करने में लग जाते हैं, या कि पहले दिन से ही कुछ लोग पूंजीनिवेश की तरह उनके लिए इंतजाम कर देते हैं, तब जनता को यह सोचना चाहिए कि अगर कोई सांसद या विधायक ईमानदार बने रहना चाहते हैं, तो जनता भी उसमें मदद करे। अपने लोगों को बेईमानी की तरफ धकेलकर सरकारी खजाने के पैसे को बचाना कोई समझदारी नहीं है।
हम पहले भी इसी विचार के रहे हैं कि सांसद और विधायक से यह उम्मीद नाजायज है कि वे बिना तनख्वाह, या बहुत कम तनख्वाह पर जनसेवा करें। ऐसी चुनावी राजनीति में आने वाले अधिकतर लोग जिंदगी भर के लिए अपने किसी पेशे या कारोबार से बाहर सरीखे भी हो जाते हैं। और अगर उनके लिए कार्यकाल में बेहतर तनख्वाह और बाद में ठीकठाक पेंशन रहे, तो उनमें से कम से कम कुछ लोग तो ईमानदार बने रहना पसंद कर सकते हैं। हमारा ख्याल है कि देश में सांसदों की तनख्वाह केन्द्र सरकार को कम से कम सीनियर आईएएस की तनख्वाह के बराबर तय करना चाहिए, और राज्य अपनी आर्थिक क्षमता के आधार पर विधायकों की तनख्वाह तय कर सकते हैं, वो भी हमारे हिसाब से ऐसी ही तनख्वाह के आसपास होनी चाहिए। जनप्रतिनिधियों को परिवार की जरूरतों से बेफिक्र होने का एक मौका मिलना चाहिए, उन पर सामाजिकता निभाते हुए पडऩे वाले शिष्टाचार के बोझ को भी समझने की जरूरत है। आज हिन्दुस्तान में किसी सांसद या विधायक के घर जाने पर अगर वहां कोई पानी पिलाने को न रहें, तो यह सामाजिक शिष्टाचार के भी खिलाफ रहेगा। बहुत से सांसद और विधायक बरसों तक मेहनत के बाद इस जगह पहुंचते हैं, और पांच-दस बरस के भीतर वे भूतपूर्व भी हो जाते हैं। इसलिए जिंदगी के बहुत से हिस्से को पूंजीनिवेश की तरह लगाना पड़ता है, तब जाकर लोग संसद और विधानसभाओं तक पहुंच पाते हैं। जनता के एक बड़े हिस्से के बीच यह सोच बनाई जाती है कि सांसदों और विधायकों को अधिक तनख्वाह नहीं मिलनी चाहिए, और यह जनता पर बोझ रहता है। हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि किसी भी राज्य में इनकी गिनती बड़ी सीमित रहती है, और राज्य को चलाने, वहां के विकास से जुड़ी हुई जिम्मेदारियां इन पर बहुत रहती हैं, इनके बेईमान हो जाने के खतरे भी बहुत रहते हैं। इसलिए इन्हें पर्याप्त तनख्वाह देना एक किस्म से बचत होगी, फिजूलखर्ची नहीं होगी।
मुख्यधारा में लौटने अफसर बेताब
कांग्रेस सरकार में लूप लाईन में रहे पुलिस के कई अफसर सूबे में भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने पर मुख्यधारा में लौटने के लिए बेताब हैं। कांग्रेस के कार्यकाल में पुलिस महकमे के अफसरों को मुख्यधारा में काम करने का सरकार ने मौका नहीं दिया। सरकार बदलते ही इन अफसरों ने फील्ड में तैनाती की उम्मीद पाल रखी है। कांग्रेस सरकार ने एक खास विचारधारा के प्रति झुकाव रखने के कारण पीएचक्यू और बटालियन में ऐसे अफसरों को चुन-चुनकर तैनात कर दिया था।
चर्चा है कि सरकार के गठन होते ही डॉ. संजीव शुक्ला, मयंक श्रीवास्तव, शशिमोहन सिंह, अजातशत्रु बहादुर, सूरज सिंह परिहार जैसे कुछ काबिल अफसरों को फील्ड में काम करने का मौका मिल सकता है। इनमें मयंक श्रीवास्तव हाल ही में कोर्ट में लंबी लड़ाई जीतकर डीआईजी पद पर प्रमोट हुए। उन पर झीरम घाटी नक्सल हमले में कोताही बरतने का आरोप था। शशिमोहन सिंह के नाम पर भी कांग्रेस सरकार को सख्त ऐतराज था। उनके सहित अजातशत्रु बहादुर सिंह को बटालियन में पदस्थ कर दिया गया था। एकमात्र जिला जीपीएम में चुनिंदा महीनों के लिए पदस्थ रहे सूरज सिंह परिहार भी पुरानी सरकार से तालमेल नहीं बिठा पाए। बताते हैं कि उनके परिवार का आरएसएस से गहरा नाता है। इस वजह से कांग्रेस सरकार ने उन्हें लूप लाईन में पदस्थ कर दिया था। कांग्रेस सरकार की विदाई के साथ ही इनकी वापसी का रास्ता भी खुल गया है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में इन अफसरों का खासा दबदबा था।
चर्चा है कि ये अफसर अपने संपर्कों का उपयोग कर पोस्टिंग के लिए जोर लगा रहे हैं। कांग्रेस सरकार में इन अफसरों की तुलना में उनके जूनियर अफसरों को तरजीह मिली थी। यह बात इन अफसरों को आज तक चुभती है। सत्ता परिवर्तन के बाद अब इन अफसरों को फील्ड में काम करते देखा जा सकता है।
जनता सब देखती है...
ओडिशा में शराब कारोबारी के यहां छापेमारी में 290 करोड़ तो कैश ही मिले हैं, बेनामी जायदाद बेहिसाब पाई गई है। वहां बीजू जनता दल की सरकार है जिसने हर आड़े मौके पर केंद्र की भाजपा सरकार का साथ दिया है। इस छापे की उनके नेताओं ने शिकायत नहीं की, स्वागत किया है। अपने यहां भाजपा प्रवक्ता विधायक केदार कश्यप ने खुला आरोप लगाया है कि इसमें छत्तीसगढ़ का भी पैसा है। छत्तीसगढ़ में भी शराब कारोबारियों के यहां ईडी के छापे पड़े थे। कई अफसर कोयला लेवी मामले में जेल में हैं। पीएससी में अफसरों और कांग्रेस नेताओं के परिजन चुने गए। भूपेश बघेल ने सामने आकर इन सब का बचाव किया। मगर अदालतों से इनके आरोपियों को जमानत नहीं मिल रही है। जरूर कुछ मजबूत सबूत होंगे। अभी पीएससी में जॉइनिंग नहीं कर पाए 15 सलेक्टेड टॉप लोगों की पोस्टिंग भी हाईकोर्ट ने रोक दी है। चलिये महादेव सटोरियों को छोड़ दें, मगर कोयला, शराब और पीएससी में गड़बड़ी हुई या नहीं लोग तो देख-समझ रहे हैं। डॉ रमन सिंह के शब्दों में- बच्चा-बच्चा जानता है कि कोयले पर प्रति टन 25 रुपये की वसूली हो रही थी। लोग भी देख रहे थे, समझ भी रहे थे। मगर, उनको जानबूझकर अनदेखा करने का मतलब क्या था? मौका था, नीयत साफ रखने और जांच के लिए रजामंद होने का, मगर आज हाथ खाली है। जो जेल में हैं उनको वीआईपी सुविधा भी नहीं मिलेगी, बाहर भी बड़ी मुश्किल से निकल पाएंगे।
इतना भी मत सताओ रेलवे...
विधानसभा चुनाव के ठीक बाद ट्रेनों के कैंसिलेशन का आंकड़ा 60 तक पहुंच गया है। पूरे दिसंबर तकलीफ है। रायपुर से हावड़ा रूट, मुंबई रूट, विशाखापट्टनम रूट, बिलासपुर से कटनी और दिल्ली रूट, ज्यादातर रद्द, रद्द, रद्द। पहले सुधार कार्य भी होते थे और यात्री ट्रेनें भी चलती थीं। रेलवे के प्रेस नोट में बताया जाता है कि इन सुधार कार्यों के चलते भविष्य में यातायात और सुगम होगा। पर यह सुगम यातायात कोरोना महामारी के बाद देखने को ही नहीं मिल रहा है। इन्ही दिनों में रेलवे कोयले के रिकॉर्ड परिवहन का आंकड़ा देती है, आशय यह है कि ट्रैक हैं पर सिर्फ मालगाडिय़ों को चलाने के लिए, पैसेंजर्स के लिए नहीं। रेलवे को जरा भी दर्द नहीं है कि दो-दो महीने पहले बुक कराई गई टिकटों को वह अचानक कैंसिल कर मेसैज में माफी मांग छुटकारा पा लेता है।
ढह गई भ्रष्टाचार की इमारत..
यह जांजगीर के जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय की तस्वीर है। एक महिला कर्मचारी छज्जा गिरने से घायल भी हो गई। बाकी लोगों ने भाग कर जान बचाई। भवन कुछ साल पहले ही बना था। पीडब्ल्यूडी ने बनाया था। मान सकते हैं कि इंजीनियर और ठेकेदार ने भ्रष्टाचार किया होगा, पर उन बेचारों ने भी पता नहीं कहां-कहां पैसा पहुंचाने के लिए ऐसा किया हो।