सुनील कुमार

एक ऐसा अनोखा सुपरमैन आया, सारे जहाँ का दर्द जिसके जिगर में है...
30-Jul-2020 2:21 PM
 एक ऐसा अनोखा सुपरमैन आया, सारे जहाँ का दर्द जिसके जिगर में है...

ट्विटर पर ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब लोग अपने परिवार के गंभीर बीमार के इलाज के लिए उनसे मदद न मांगें, और सोनू सूद हर मुमकिन-नामुमकिन मदद का पूरा भरोसा न दिलाएं.

पिछले कुछ महीनों में हिन्दुस्तान में एक ऐसा जननायक देखा जो न राजनीति से निकलकर आया, और न ही किसी सामाजिक आंदोलन से। उसके एजेंडा में कोई धर्म, मंदिर-मस्जिद, या जाति का आरक्षण भी नहीं था। उसके नारों में महिला अधिकारों की बात भी नहीं थी, पशुओं के हक की लड़ाई भी नहीं थी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी नहीं थी, और न ही लोकतंत्र को साफ-सुथरा बनाने जैसा कोई सपना वह बेच रहा था। फिर भी वह बिना किसी इतिहास के, और बिना जाहिर तौर पर दिखती भविष्य की किसी साजिश के भी जननायक बन गया। 

बात थोड़ी सी अटपटी है। उसके साथ न आयुर्वेद और योग के जादुई करिश्मे के दावों की ताकत थी, न अन्ना हजारे सरीखे चौथाई सदी लंबे आंदोलन का इतिहास था। फिर भी आज वह हिन्दुस्तान में करोड़ों लोगों के लिए एक आदर्श बन गया है, और देश-विदेश में बसे और फंसे हुए हिन्दुस्तानी उसकी तरफ टकटकी लगाकर उम्मीद से देख रहे हैं। 

अभी दो महीने पहले ही जब मुम्बई में फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने घर लौटने की हसरत रखने वाले प्रवासी मजदूरों की वापिसी के इंतजाम का सिलसिला शुरू किया, तो लोगों को लगता था कि दो-चार बस रवाना करने के बाद यह सिलसिला बस हो जाएगा। लेकिन हैरानी की बात यह है कि यह सिलसिला गजब की रफ्तार से जारी है, और अब जब तकरीबन तमाम वे मजदूर घर पहुंचाए जा चुके हैं जो कि घर जाना चाहते थे, तो अब सोनू सूद दुनिया के दूसरे देशों में फंसे हुए हिन्दुस्तानी छात्र-छात्राओं को विमान से वापिस लाने की मशक्कत में जुट गए हैं। और यह मेहनत महज एक चेक काटकर अक्षय कुमार की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निजी-सार्वजनिक खाते में डालकर बंद हो गई, न ही कुछ और फिल्मी सितारों की तरह कुछ हजार लोगों के घर महीने-दो महीने का राशन भेजने जैसी मदद तक सीमित रही। सोनू सूद का कोई बहुत लंबा सार्वजनिक इतिहास याद नहीं पड़ता सिवाय इसके कि वे फिल्मों में काम करते आए हैं, और उनके नामुमकिन से गंठे हुए बदन को स्टेज और टीवी पर जगह-जगह दिखाने का मुकाबला चलते रहता है। वे इतने बड़े, इतने महंगे, और शायद इतने रईस फिल्म एक्टर नहीं रहे कि आज मुम्बई में सबसे बड़ा सामाजिक-खर्च करना उनकी एक नैतिक जिम्मेदारी होती। फिर खर्च से परे देखें तो कोरोना की दहशत के बीच बस अड्डों पर, रेलवे स्टेशनों पर, और हवाई अड्डे पर वे जिस तरह जाते हुए मजदूरों, मरीजों, और दूसरे लोगों को बिदा करते रहे, वह हिन्दुस्तान के इतिहास में एक अभूतपूर्व हौसले की बात रही। जिसने आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है, और जिसकी जनता के प्रति ऐसी कोई सार्वजनिक जवाबदेही बनती है, वह कोरोना से बचने का मास्क लगाए हुए सैकड़ों लोगों को हर दिन बिदा करते हुए, उनकी बसों में चढक़र उनसे वापिसी का वायदा लेते हुए जिस तरह दिखा, वह पूरी तरह अनोखी बात थी, और बड़ी अटपटी बात भी थी। बहुत से लोगों को इतनी भलमनसाहत पर एक बड़ा जायज सा शक होता है कि इसके पीछे कौन सी बदनीयत छुपी हुई है, और इस पूंजीनिवेश के एवज में यह आदमी आगे जाकर क्या मांगेगा? 

कुछ लोगों का यह मानना है कि बिहार में चुनाव होने वाला है, और मुम्बई से रवानगी में यूपी-बिहार के मजदूर ही सबसे अधिक थे, इसलिए आने वाले चुनाव में सोनू सूद का कोई पार्टी चुनाव प्रचार में इस्तेमाल कर सकती है। पल भर के लिए बहस को यह मान भी लें कि यह चुनाव प्रचार के लिए एक नायक तैयार करने की कोशिश है, और सोनू सूद के पीछे कोई संपन्न राजनीतिक दल दसियों करोड़ खर्च कर रहा है, तो इसमें भी न तो कुछ अलोकतांत्रिक है, और न ही कुछ अभूतपूर्व। हिन्दुस्तान के चुनावी इतिहास में सैकड़ों फिल्मी सितारों को अब तक उम्मीदवार बनाया जा चुका है, और हजारों को प्रचार में इस्तेमाल किया जा चुका है। दक्षिण भारत में कई ऐसे राज्य रहे हैं जहां फिल्मी सितारे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे, और देश में कई फिल्मी सितारे केन्द्रीय मंत्री बने, अनगिनत मंत्रिमंडलों में, संसद और विधानसभाओं में फिल्मी सितारों को जगह मिली है। ऐसे में अगर सोनू सूद के इस हैरतअंगेज सामाजिक योगदान के पीछे उनकी अपनी या किसी राजनीतिक दल की चुनावी नीयत है, तो वह रहे। ऐसी नीयत के साथ भी देश में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने मुसीबतजदा लोगों की मदद करने के लिए सेहत पर खतरा उठाकर अनजानों को गले लगाया, दिन-दिन भर खड़े रहकर बसों को रवाना किया, और इन सबसे भी ऊपर ट्विटर पर आई हर अपील का जवाब दिया, हर जरूरत पर मदद का भरोसा दिलाया, और मदद के इस काम में कोई सीमा नहीं मानी। 

अब हालत यह है कि ट्विटर पर ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब लोग अपने परिवार के गंभीर बीमार के इलाज के लिए उनसे मदद न मांगें, और सोनू सूद हर मुमकिन-नामुमकिन मदद का पूरा भरोसा न दिलाएं। दो दिन पहले की ही बात है कि सोनू सूद ने खुद होकर यह लिखा है- अब है रोजगार की बारी, एक सोनू-सूद-पहल, अब इंडिया बनेगा कामयाब।

इस नई मुनादी के आगे की जानकारी अभी आना बाकी है, लेकिन अगर सोनू सूद के ट्विटर अकाऊंट पर लोगों की जरूरतों को देखें, और उनमें से हर किसी को पूरा करने की उनकी नीयत, कोशिश और उनका वायदा देखें, तो आंखें भर आती हैं, और भरोसा भी नहीं होता है कि कोई इतना भला कैसे हो सकता है, और खासकर, क्यों हो सकता है? 

दसियों हजार अपीलों में से सामने-सामने की दो-चार अगर देखें, और उन पर सोनू सूद का वायदा देखें, तो यह अद्भुत लगता है, और इस दुनिया के बाहर का लगता है। अभी किसी छोटी सी गरीब बच्ची ने मुम्बई के मलाड इलाके से हाथ जोडक़र एक वीडियो बनाकर भेजा है और सोनू सूद अंकल से अपील की है कि उसके घर में बहुत ज्यादा टपकने वाले पानी को रोकने में मदद करें, उनकी कोई मदद नहीं करता है। 

इस पर सोनू सूद का जवाब 9 मिनट के भीतर ही पोस्ट होता है- आज के बाद आपकी छत से कभी पानी नहीं आएगा। 

एक किसी ने पोस्ट किया- आप मूवी लेकर आएं, मैं आपकी मूवी 10 लोगों को दिखाऊंगा और उनसे बोलूंगा कि वो भी यही करें। अपना अकाऊंट नंबर दें, कुछ आर्थिक सहयोग देना चाहता हूं आपके पुण्य यज्ञ में। 

मिनटों के भीतर सोनू सूद का जवाब पोस्ट होता है- धन्यवाद भाई। बस उस राशि से किसी गरीब परिवार को राशन और स्कूल की फीस भर देना, समझ लेना आपका सहयोग मुझे मिल गया। 

कोई अस्पताल में बिस्तर नहीं पा रहे हैं तो सोनू सूद उसका इंतजाम कर रहे हैं, एक गरीब बच्चा बुरी तरह झुलस गया है, तो सोनू सूद उसके इलाज के लिए वायदा कर रहे हैं कि यह मान लो कि इसका इलाज हो गया है। उस बच्चे का पूरा हाथ प्लास्टिक सर्जरी के लायक दिख रहा है, और धनबाद के एक गांव के बच्चे से सोनू सूद का यह वायदा है। अभी दो ही दिन पहले एक खबर आई कि किस तरह उत्तर भारत में एक गरीब किसान को अपने बच्चों की ऑनलाईन पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन खरीदने को अपनी गाय बेचनी पड़ी। यह खबर पाते ही सोनू सूद ने खुद होकर लोगों से बार-बार अपील की कि इस आदमी की जानकारी भेजो, इसे इसकी गाय वापिस दिलाते हैं। जबकि लोगों ने इस अखबारी कतरन को मोदीजी के नाम टैग किया था, जिनकी सरकार और जिनकी पार्टी की तरफ से उस पर कोई जवाब देखने नहीं मिला। अब एक पहाड़ी गांव में गाय वापिस दिलवाने का जिम्मा भी सोनू सूद ने उठाना चाहा, खुद होकर। 

अब ऐसे किस्से दसियों हजार हैं, और एक किसी ने भी कहीं यह नहीं लिखा है कि उससे किया गया वायदा पूरा नहीं हुआ। इसलिए यह मानने की ठोस वजह है कि वे लोगों के काम आ रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या देश के सबसे संपन्न प्रदेश महाराष्ट्र की राजधानी, और देश की सबसे संपन्न महानगरी मुम्बई मजदूरों को घर भेजने से लेकर टपकती छत सुधरवाने तक के लिए एक अकेले इंसान के आसरे रहे? सोनू सूद की नीयत को 24 कैरेट खरा सोना मान लें तो भी सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र में जो सरकारों की बुनियादी जिम्मेदारी  है, उसे सरकार से परे के एक इंसान के निजी दम-खम पर इस तरह छोड़ देना ठीक है? हैरत तो तब होती है जब कुछ प्रदेशों के मंत्री-मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से ट्विटर पर सोनू सूद का शुक्रिया अदा करते दिखते हैं कि उन्होंने उनके प्रदेश के मजदूरों को बस-ट्रेन या प्लेन से वापिस भिजवाया। यह शुक्रिया अदा करने की बात है, या शर्म से डूब मरने की कि जो सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी थी उसे दूसरे के भरोसे छोड़ दिया, और खुद एक धन्यवाद देने की वेटलिफ्टिंग जैसी जिम्मेदारी उठा रहे हैं? 

कोई जादूगर धरती की तमाम दिक्कतों को दूर कर दे, कोई ईश्वर पल भर में कोरोना को मार दे, गरीबी खत्म कर दे, तो क्या निर्वाचित-लोकतांत्रिक और तथाकथित जनकल्याणकारी सरकारें उसके भरोसे पर बैठना अपना पूरा काम मान लें? यह याद रखना चाहिए कि सोनू सूद का अपने इंतजाम से मजदूरों को पूरे देश वापिस भेजने का सिलसिला दो सरकारों की नाकामयाबी की वजह से जरूरी हुआ था। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार अपने प्रदेश में काम करने आए मजदूरों को जिंदा रहने का इंतजाम नहीं कर पाई, और केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने मजदूरों की जरूरत को समझे बिना रेलगाडिय़ों को बंद कर दिया। 
लोकतंत्र में कोई समाजसेवी सरकार की जिम्मेदारियों का विकल्प अगर बन रहे हैं, तो यह सरकारों की परले दर्जे की नाकामी हैं। सोनू सूद की तारीफ में कसीदे गढऩे वाली सरकारों पर धिक्कार है कि उनका काम एक अकेला इंसान कर रहा है। और यह काम बंद होते भी नहीं दिख रहा है, यह काम मजदूरों की घरवापिसी से परे विदेशों में पढ़ रहे छात्रों की देशवापिसी तक, और इलाज से लेकर छत तक फैलते जा रहा है। यह कहां तक जाएगा, यह अंदाज लगाने का कोई जरिया नहीं है, इसका अंग्रेजी की एक मशहूर कॉमिक स्ट्रिप के नाम से बखान किया जा सकता है- रिप्लेज बिलीव इट ऑर नॉट।
 
एक सांस में इस मुद्दे पर इससे अधिक लिखना मुमकिन नहीं है, लेकिन जिन लोगों का इंसानियत पर से भरोसा उठ गया है, उन्हें ट्विटर पर जाकर सोनू सूद का पेज देखना चाहिए जहां देश भर से दसियों हजार लोग उन्हें दुआ भेज रहे हैं, उनकी तस्वीरें और पेंटिंग बनाकर पोस्ट कर रहे हैं, और उन्हें देश का एक ऐसा नायक मान रहे हैं जो कि सरकारों और राजनीति में नहीं है। (hindi.news18.com)

-सुनील कुमार

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