सुनील कुमार

दुनिया में बेइंसाफी बेकाबू बढ़ते चलेगी
19-Aug-2020 12:38 PM
दुनिया में बेइंसाफी बेकाबू बढ़ते चलेगी

ब्लॉग-न्यूज18 : सुनील कुमार

सोशल मीडिया को लेकर अमरीका से हिन्दुस्तान तक एक नई बहस छिड़ गई है क्योंकि अमरीकी कंपनी फेसबुक के बारे में अमरीका के ही एक कारोबारी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने यह रिपोर्ट छापी है कि भारत में फेसबुक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी भाजपा के नेताओं द्वारा पोस्ट की गई भडक़ाऊ सामग्री को हटाने से हिचकती है क्योंकि उसे यह खतरा लगता है कि इससे केन्द्र की भाजपा-अगुवाई वाली भारत सरकार से संबंधों में तनाव खड़ा होगा। हालांकि फेसबुक ने इस रिपोर्ट के बाद यह सफाई दी है कि वह अपनी नीतियां लागू करते हुए नेताओं और पार्टियों का ख्याल नहीं करती है, और सभी पर एक तरह के नियम लागू करती है।

हो सकता है कि फेसबुक की बात सही भी हो। और यह बात भी अपनी जगह सही है कि फेसबुक कई किस्म के दूसरे गलत काम कर रही है जिसकी वजह से दुनिया के कई देशों में उस पर तरह-तरह का जुर्माना भी लगा है। वह अपने इस्तेमाल करने वाले लोगों की निजी जानकारी का कारोबारी इस्तेमाल करती है, और इसके लिए योरप में उस पर मोटा जुर्माना लगाया जा चुका है, वह अमरीका में भी तरह-तरह की सुनवाई के नोटिस पाते रहती है। कई देशों में वह संसद की कमेटियों के प्रति जवाबदेह है, कई देशों में अदालतों के कटघरे में है। कुल मिलाकर यह कि फेसबुक एक इतना बड़ा और विविधता वाला कारोबार है कि दुनिया के अलग-अलग देशों के अलग-अलग कानून से उसका कहीं न कहीं टकराव होता ही है। फेसबुक जैसा कोई कारोबार दुनिया के इतिहास में पहले नहीं था, इसलिए दुनिया में ऐसे कारोबार को नियंत्रित करने के लिए कोई कानून बने भी नहीं थे। अब जब यह धंधा बढ़ते-बढ़ते दुनिया के सबसे अधिक संख्या में लोगों की भागीदारी वाला प्लेटफॉर्म बन गया है तो अब सबको इसके बारे में अधिक नियम बनाने की जरूरत पड़ रही है।

अब अगर अमरीकी अखबार की रिपोर्ट देखें, तो यह बात जाहिर है कि फेसबुक नफरत से भरा हुआ है, हिंसा की धमकियों से भरा हुआ है, लेकिन कमोबेश ऐसा ही हाल ट्विटर का भी है। ट्विटर खबरों में कम आता है क्योंकि उसका एक बड़ा इस्तेमाल मीडिया के लोग भी करते हैं, लेकिन फेसबुक अधिक सामाजिक और कम पेशेवर लगता है जहां पर लोग नफरत को बड़े लंबे खुलासे से लिख सकते हैं, और लिखते हैं।

यह बात साफ है कि फेसबुक नफरत से भरा हुआ है। अब यहां पर दो सवाल उठते हैं कि यह नफरत कौन लोग फैला रहे हैं, पहली नजर में यह दिखता है कि हिन्दुस्तान में राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी लोगों के बीच के अधिक आक्रामक लोग इसमें अधिक लगे हैं। कम से कम हिन्दी और अंग्रेजी इन दो भाषाओं की पोस्ट में इन्हीं की बहुतायत दिखती है, और बाकी भाषाओं की पोस्ट के बारे में कुछ कहना मुनासिब नहीं होगा, क्योंकि जिस भाषा को जानते नहीं उस पर क्या कहें।

लेकिन यह बात भी बहुत साफ है कि ट्विटर पर लोग दसियों हजार की संख्या में रात-दिन एक खास सोच के हिमायती होकर उससे असहमत तमाम सोच पर अधिकतम संभव हिंसा की बातें लिखते हैं, धमकियां लिखते हैं, और न ट्विटर उन पर तुरंत कोई कार्रवाई करता, और न ही भारत सरकार ऐसी हिंसा को खत्म करने के लिए कोई कार्रवाई करते दिखती।

सरकार से, भाजपा से, आक्रामक-हिन्दुत्व से असहमत लोगों पर पूरे वक्त सिर्फ हमला करने को तैनात दिखते लोग टूट पड़ते हैं। बहुत से पत्रकार, लेखक, फिल्म कलाकार ऐसे हैं जिन्हें बलात्कार की हजार-हजार धमकियां मिलती हैं, उनके साथ-साथ उनके परिवार की और महिलाओं को भी बलात्कार की धमकी दी जाती है, बच्चियों तक से रेप की बातें पोस्ट की जाती हैं। हिन्दुस्तान की सरकार अपने सारे कड़े आईटी कानून के साथ भी ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती यह सवाल तो किसी मासूम और नासमझ बच्चे के मन में भी खड़ा हो सकता है।

फेसबुक अपने कम्प्यूटर एल्गोरिद्म के सहारे किसी विचारधारा की पोस्ट, या किसी विचारधारा के लोगों को बढ़ावा दे, किसी भी विचारधारा या उसके लोगों को पीछे दबाता चले, इसमें भी कोई हैरानी नहीं है, और ऐसे आरोप अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव के वक्त से लेकर अभी तक चलते ही रहे हैं। लेकिन यह तो फिर एक ढंकी-छुपी हरकत होगी। फेसबुक और ट्विटर पर तो नफरत और हिंसा को इतने खुले तरीके से जगह मिलती है, इतने खुले शब्दों में उन्हें लिखा जाता है कि दुनिया का कोई भी मामूली कम्प्यूटर ऐसे गिने-चुने शब्दों को सर्च करके भी ऐसी पोस्ट निकाल सकता है। फिर जब फेसबुक कोई बिना मुनाफे वाला सामाजिक संगठन न होकर, दुनिया का एक सबसे बड़ा कारोबार बन गया है, तो उसकी यह सामाजिक और कानूनी जवाबदेही भी हो गई है कि वह अपने प्लेटफॉर्म पर नफरत और हिंसा की शिनाख्त करे, उन्हें हटाए, उन्हें पोस्ट करने वाले लोगों को ब्लैकलिस्ट करे, ब्लॉक करे। यही बात ट्विटर पर भी लागू होती है, और यही बात दूसरे सोशल मीडिया या मैसेंजर सर्विसों पर भी लागू होती है जिनमें लोग एक-दूसरे को नफरत और हिंसा बढ़ाते हैं।

हिन्दुस्तान में तो बहुत से ऐसे बड़े जिम्मेदार लेखक और पत्रकार हैं जो लगातार जिम्मेदारी की बातें लिखते हैं, लेकिन जिन्हें फेसबुक पर ब्लॉक किया जाता है। उनकी लिखी पूरी तरह से अहिंसक और विवादहीन बातों पर उन्हें नोटिस मिलता है कि उनका अकाऊंट निलंबित किया जा रहा है। शायद इन सोशल मीडिया पर अगर बड़ी संख्या में लोग किसी अकाऊंट को आपत्तिजनक और विवादास्पद बताते हुए शिकायत करते हैं, तो शायद महज संख्या के आधार पर उन्हें ब्लॉक कर दिया जाता है। जिन लोगों को हम लगातार पढ़ते हैं, और जिनका हिन्दुस्तान की एकता और यहां के अमन के लिए लिखना जरूरी है, उनको भी ब्लॉक कर दिया जाता है, और अपने ही शब्दों में संभावित हत्यारे-बलात्कारी इन पर बने रहते हैं, तो फिर इनकी यह बात गले उतरना मुश्किल होता है कि इनकी नीतियां सबके लिए बराबर हैं। वैसे भी कारोबार और सरकार, महज उच्चारण में मिलते-जुलते शब्द नहीं है, इनका एक-दूसरे से गहरा घरोबा हमेशा से रहते आया है।

यह बात याद रखने की जरूरत है कि अमरीका की दर्जनों बड़ी कंपनियों ने सार्वजनिक घोषणा करके फेसबुक से अपने विज्ञापन हटाने की घोषणा की है क्योंकि वहां हिंसा और नफरत कम नहीं हो रही है। आज फेसबुक जैसी कंपनी अपने कम्प्यूटरों पर ऐसा इंतजाम आसानी से कर सकती है कि इन कंपनियों की तारीफ लोगों को न दिखे, और इन कंपनियों के खिलाफ लिखा जा रहा लोगों को बार-बार दिखे। ऐसे खतरे के बावजूद अगर अमरीका की बड़ी-बड़ी कंपनियों ने यह सामाजिक सरोकार दिखाया है कि उन्होंने ऐसी घोषणा करके इश्तहार देने बंद कर दिए हैं, तो उनसे हिन्दुस्तानी कारोबारियों को भी कुछ सीखना चाहिए जिनके इश्तहार नफरत फैलाने वालों को लगातार मिलते हैं, बस उनका टीआरपी अच्छा होना चाहिए, उनके पेज हिट्स अच्छे होने चाहिए, या जिन अखबारों का सर्कुलेशन अच्छा हो। अच्छा होना अब अक्षरों से नहीं गिनाता, संख्याओं से गिनाता है। लेकिन अमरीकी विज्ञापनदाताओं ने एक जिम्मेदारी दिखाई है, और बाकी दुनिया के कारोबारियों पर भी सामाजिक दबाव बनना चाहिए कि वे नफरत को बढ़ावा न दें।

हम महज हिन्दुस्तान की बात नहीं कर रहे, और न ही सिर्फ फेसबुक की बात कर रहे, सोशल मीडिया से लेकर परंपरागत मीडिया तक, और नए डिजिटल मीडिया तक का हाल यह है कि उन्हें बढ़ावा देने वाले विज्ञापनदाताओं के सरोकार शून्य हैं। अब इसके बाद अगर दुनिया में सोच पर काबू और असर रखने वाले अकेले सबसे बड़े माध्यम, फेसबुक, पर नफरत और हिंसा इस तरह बेकाबू रहेंगे, तो दुनिया में बेइंसाफी भी बेकाबू बढ़ते चलेगी।  (hindi.news18.com)

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