बस्तर

एड़समेटा हत्याकांड में दोषियों को तुरंत गिरफ्तार कर सजा दो
26-Sep-2021 9:04 PM
एड़समेटा हत्याकांड में दोषियों को तुरंत गिरफ्तार कर सजा दो

  पश्चिम बस्तर डिविजनल कमेटी, दंडकारण्य ने जारी किया प्रेसनोट  

जगदलपुर, 26 सितंबर। पश्चिम बस्तर डिविजनल कमेटी, दंडकारण्य ने प्रेसनोट जारी कर कहा है कि एड़समेटा हत्याकांड में दोषियों को तुरंत गिरफ्तार कर सजा दो। प्रेसनोट में यह भी कहा कि बस्तर संभाग में तैनात सभी सशस्त्र बलों को हटाओ।

नक्सल प्रेसनोट में कहा कि ‘‘बीजापुर जिले के एड़समेटा में 17 मई 2013 की रात जब सभी आदिवासी बीज पंडुम कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे, तब उन पर सशस्त्र बलों ने फायरिंग की, जिसमें 4 नाबालिगों सहित 8 की मौत हुई। पुलिस की गोलियों का शिकार हुए आदिवासी निहत्थे ग्रामीण थे, नक्सली तो बिल्कुल नहीं थे। पुलिस जवानों की गलत धारणा और घबराहट के चलते यह घटना हुई।’’ यह थी घटना के आठ साल बाद राज्य मंत्रिमंडल को सौंपी गई जस्टिस वी.के. अग्रवाल कमेटी के जांच रिपोर्ट की निष्कर्ष।

 इस रिपोर्ट में निष्कर्ष निकला है कि मारे गए लोगों में से कोई भी नक्सली नहीं था, यानी पूरी मुठभेड़ ही फ र्जी निकली। इससे पहले सारकेगुड़ा में हुई कथित मुठभेड़ की जांच भी इसी आयोग ने की थी और उस रिपोर्ट में मुठभेड़ को फ र्जी बताया गया। सारकेगुड़ा में भी लोग जून 2012 में बीज पंडुम समारोह के लिए एकत्र हुए थे, वहां सत्रह लोगों की मौत हुई। जस्टिस अग्रवाल की सारकेगुड़ा रिपोर्ट अभी भी राज्य के कानून विभाग के पास लंबित है। अगर जनता सब जागरूक होकर इन नरसंहारों के दोषियों को सजा देने आवाज न उठाए, तो इस रिपोर्ट का भी वही हाल होगा, जो सारकेगुड़ा का हुआ।

 भाकपा (माओवादी), पश्चिम बस्तर डिविजनल कमेटी एडसमेटा हत्याकांड में दोषी सशस्त्र बलों के जवानों-अधिकारियों को तुरंत गिरफ्तार कर सजा देने की मांग करती है। इस मांग से बघेल सरकार को घेर कर उग्र आंदोलन करने जनता को आह्वान करती है।

1947 से पहले उपनिवेश काल में अपने जल-जंगल-जमीन को लूटने से बचाने के लिए लड़ते रहे आदिवासियों को दबाने के लिए ब्रिटिश साम्रज्यवादियों द्वारा कई नरसंहारों को अंजाम दिया गया। 1947 के बाद भी साम्राज्यवादियों के हितों की रक्षा में मग्न सरकारें जन आंदोलनों को कुचलने के लिए उसी विरासत को अपनाए हैं, तो आदिवासी भी उनके खिलाफ  लडऩे की अपनी विरासत को बरकरार रखे हैं। इन आंदोलनों को कुचलने के लिए बस्तर संभाग में तैनात सभी तरह के सरकारी सशस्त्र बलों ने विगत 4 दशकों में कई फर्जी मुठभेड़ों में नरसंहारों को अंजाम दिए। आदिवासियों को देख सशस्त्र बलों के घबराने से ऐसी घटनाएं नहीं होती। साम्राज्य वादियों के गुलाम बने केंद्र-राज्य सरकारों द्वारा सोची-समझी साजिशों से सुनियोजित ढंग से इन घटनाओं को अंजाम दी जा रही है।

शोषण और लूट के खिलाफ आंदोलनरत बस्तर के आदिवासी-गैर आदिवासी जनता क्रांतिकारी जनताना सरकारें स्थापित कर अपने बल-बूते पर विकसित होते हुए दुनिया के सामने संप्रभुता का जो मिसाल पेश कर रहे हैं, उससे लुटेरे शासक वर्गों के बुनियादें हिल रही हैं, इसलिए इनको ध्वस्त करने के लक्ष्य से सलवा जुडुम, जनजागरण अभियानों में सैकड़ों आदिवासियों की हत्या की गई।
 
2009 से 2017 तक जारी रही ग्रीनहंट दमन अभियान के समय बस्तर संभाग में कारपेट सेक्यूरिटी को विस्तार कर आदोलनरत आदिवासियों में दहशत फैलाने, उन्हें जंगलों से खदेडऩे के लिए नरसंहार के कई घटनाओं को अंजाम दी गई।

2012 में सानकेनगुड़ा नरसंहार में 17 जन, 2013 में एडसमेटा नरसंहार में 8 जन, सिंगारम हत्याकांड, नुल्कातोंग नरसंहार में 15 जन. ताड़बल्ला नरसंहार में 10 जन आदिवासियों की हत्या की गई। इन सभी घटनाओं में मानवाधिकार संगठनों द्वारा, कुछ घटनाओं में जांच कमेटियों द्वारा सशस्त्र बलों द्वारा नरसंहार होने की पुष्टि होने पर भी कभी दोषी जवानों को या अधिकारियों को सजा नहीं हुई। 2017 मई से सरकारों द्वारा रणनीतिक समाधान हमला शुरू हुई, जिसमें कारपेट सेक्यूरिटी को विस्तार करते हुए अंदरूनी आदिवासी गांवों में नए कैंप बिठा कर भीषण दमन अभियानें चला रहे हैं। फर्जी मुठभेड़ों में आदिवासियों की हत्याएं थमा ही नहीं।

2021, मई 12 को सिलंगेर में कैंप बिठाने के विरुद्ध संघर्षरत जनता पर मई 17 को अंधाधुंध फायरिंग किया गया। इस हत्याकांड में 5 आदिवासी मारे गए, जिनमें एक गर्भवती महिला भी शामिल थीं। सिलगेर हत्याकांड का सैकड़ों ग्रामीण साक्षी हैं, इसके बावजूद दोषी जवनों-अधिकारियों को सजा नहीं मिली। जनता की जायज आंदोलनों को कुचल कर कसाम्राज्यवादी, सामंतवादी, दलाल पूंजीपतियों के हितों के रक्षा करने के लिए लाखों सशस्त्र बलों को आंदोलनरत इलाकों में तैनात कर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इन हत्याओं के खिलाफ  उभरे जनआक्रोश से बचने के लिए, उसे ठंडा करने के लिए कई बार जांच कमेटियों द्वारा न्यायिक जांच की गई, सशस्त्रों बलों को दोषी होने की पुष्टि करते हुए रिपोर्ट सौंपी गई, लेकिन जनता को कभी न्याय नहीं मिला। यह सब जन विरोधी शासक वर्गों की वर्ग स्वभाव को दर्शाती है।

वर्तमान में कारपेट सेक्युरिटी को विस्तार कर अंदरूनी गांवों में नए नए पुलिस कैंप खोलकर दमन अभियानें चला रहे हैं। आदिवासी जनता अपने जल, जंगल, जमीन, अस्मिता, अस्तित्व, आत्मसम्मान को बचाने अपनी जान दांव पर लगा कर इस भीषण दमन का सामना कर रही है। आदिवासियों की इस जायज संघर्ष में उनके साथ खड़े होने आदिवासी संगठनों, आदिवासी हितैषियों, प्रगतिशील ताकतों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार संगठनों, किसान-मजदूर, छात्र-नवजवान, कर्मचारियों, पत्रकारों को भाकपा (माओवादी) पार्टी अपील करती है।

एड़समेटा हत्याकांड में जिम्मेदार सशस्त्र बलों के जवानों-अधिकारियों को तुरंत गिरफ्तार कर सजा देने की मांग करते हुए उग्र आंदोलन करने की आह्वान करती है। आदिवासी गांवों में आकर सच्चाइयों को उजागर करने की अपील करती है। सारकेगुड़ा सहित कथित मुठभेड़ों के नाम से हुए नरसंहार की सभी घटनाओं में दोषी सशस्त्र बलों के जवानों-अधिकारियों को सजा देने की मांग से राज्य भर में संघर्ष खड़ा करें। सरकारी सशस्त्र बलों के अत्याचारों से, लूट-पाट से, हत्याओं से अपने गावों को बचाने के लिए कैंपों के खिलाफ  संघर्षरत आदिवासी जनता के समर्थन में खड़े होवें। बस्तर संभाग के सभी जिलों से पुलिस कैंपों को तुरंत हटाने की मांग से आंदोलन तेज करें। साम्राज्यवादियों ओर उनके दलालों के हितों के लिए अपने ही जनता को हत्या करने पर उतारू केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ  संघर्ष करें।

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