राजनांदगांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 19 नवंबर। केंद्र सरकार के तीन किसान बिल को वापस लिए जाने के निर्णय पर नांदगांव किसान संघ ने देर से उठाया गया फैसला करार देते कहा कि बिल वापसी के लिए देशभर के 800 किसानों ने शहादत दी है। इस कानून को वापस लेने के लिए किसानों ने जनवादी तंत्र से संघर्ष के साथ लड़ाई की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों बिल वापस लेने की घोषणा की। जिसके प्रतिक्रिया में जिला किसान संघ संयोजक सुदेश टीकम ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि करीब सालभर बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है। इस निर्णय के राजनीतिक मायने भी हैं। उत्तर प्रदेश 2022 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा को दृष्टिगत रखकर यह निर्णय लिया गया है। प्रधानमंत्री का यह निर्णय साफ दर्शाता है कि किसानों के वोटों को साधने के लिए बिल वापस लिए गए हैं।
श्री टीकम ने कहा कि पंूजीपतियों और जनवादियों के विरुद्ध किसानों ने देशभर में प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि यह फैसला तब तक अधूरा माना जाएगा, जब तक प्रधानमंत्री देश की जनता से माफी नहीं मांगेंगे। किसान संघ ने पूरे फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। इधर कृषि कानूनों के खिलाफ राजनांदगांव किसान संघ ने लंबी लड़ाई की है। पूरे सालभर जगह-जगह मोर्चे निकालकर विरोध प्रदर्शन किए गए। किसानों ने कई आंदोलनों में सीधे गिरफ्तारियां भी दी। जिला किसान संघ टीकम की अगुवाई में राष्ट्रीय किसान संघ के समकक्ष लड़ाई की गई। इस लड़ाई में किसान संघ ने अपनी पूरी ताकत झोंकी। इस बीच केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन करते हुए जिलेभर के किसानों ने जिला मुख्यालय से लेकर ब्लॉकों में भी जर्बदस्त प्रदर्शन किया। उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री के निर्णय पर किसान संघ खुशी जाहिर करेगा, लेकिन किसान संघ सालभर तक लड़ई को इस निर्णय के कमतर मान रहा है।
बिल वापसी के निर्णय से किसान होंगे प्रभावित - मधुसूदन
भाजपा जिलाध्यक्ष मधुसूदन यादव ने कहा कि बिल वापसी के निर्णय से किसानों को होने वाला फायदा एक तरह से नुकसानदायक है। कुछ कतिपय लोगों के शह पर हुए इस सरकार विरोधी आंदोलन ने किसानों को भविष्य में होने वाले बड़े मुनाफे से वंचित कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों को आर्थिक संबलता मुहैया कराने के इरादे से बिल लाया था जिसे किसानों को बरगलाकर वापस दिलाया गया। श्री यादव ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के हित में यथासंभव कार्य कर रही है, लेकिन कुछ लोगों के इशारे पर किसानों को आंदोलन के जरिये भटकाने का प्रयास किया गया।