रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 26 नवम्बर। हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की मांग हो रही है। सामाजिक कार्यकर्ता, और अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने कहा है कि पर्यावरण सुरक्षा, मानव हाथी संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित करना जरूरी है।
श्रीवास्तव ने बताया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन होने से उत्तर छत्तीसगढ़ की जैव विविधता को भारी नुकसान हो रहा है। केन्द्र सरकार ने मानव हाथी संघर्ष में भारी वृद्धि के खतरे को देखते हुये 2010 में सूरजपुर , सरगुजा , कोरबा जिले के घने जंगलो को कोयला खनन के लिये नो गो एरिया घोषित किया गया था।
उन्होंने बताया कि उद्योगपतियों के दबाव में नो गो क्षेत्र होने के बावजूद परसा इस्ट केते बसान (पीईकेबी) कोल ब्लॉक जोकि राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित था वहां 2012 में तब के राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मांग पर तत्कालीन सीएम डॉ . रमन सिंह ने केन्द्र सरकार पर दबाव बनाकर अनुमति दिलाई थी। इस पीईकेबी खदान के लिए राजस्थान विद्युत निगम का लाइफ टाइम एग्रीमेंट अडानी कम्पनी के साथ है।
श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों के बीच के समझौते के अनुसार राजस्थान की कम्पनी को अपने ही ब्लॉक का कोयला बाजार दर या अधिक पर मिल पा रहा है। जबकि खनन का पूरा लाभ और रिजेक्ट के नाम पर 15 से 20 प्रतिशत कोयला अडानी कम्पनी रख ले रही है , जोकि बाजार में बेचा भी जा रहा है। इस समझौते के कारण राजस्थान में उपभोक्ताओं को बिजली महंगी पड़ रही है।
उन्होंने कहा कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के बीच मध्यप्रदेश में कई कोल ब्लॉक है जो किसी को आवंटित नहीं है यदि राजस्थान छत्तीसगढ़ के बजाए मध्यप्रदेश में कोयला ब्लॉक आवंटित करने की मांग करें तो केवल रेल भाड़े में ही उसे प्रति टन लगभग 4 सौ रूपये की बचत होगी। इसके बावजूद अडानी कम्पनी के प्रभाव में राजस्थान के मुख्यमंत्री चाहते है कि पीईकेबी खदान के दाए और बाए ओर स्थित परसा और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक में छत्तीसगढ़ कोयला खनन की अनुमति दे ।
श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि पूरा क्षेत्र अनुसूची 5 का आदिवासी क्षेत्र है और हसदेव नदी के जल ग्रहण वाले घने जंगल से युक्त है। यहा पर खनन की अनुमति देने से जैव विविधता को भारी नुकसान होगा ही, वही मानव हाथी संघर्ष बढ़ेगा एवं हसदेव नदी के सतह जल प्रवाह के साथ-साथ क्षेत्र की वर्षा में भी कमी आयेगी । कोयला खनन खुली खदानों होने के कारण पूरे क्षेत्र से मिट्टी तेजी से बहते हुये हसदेव नदी में नीचे स्थित हसदेव बांगो बांध में जमा होगी और इससे बांध की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।