कवर्धा

चिल्फी रेंज के आसपास एमपी की सीमा में हाथी दल
27-Nov-2021 6:02 PM
चिल्फी रेंज के आसपास एमपी की सीमा में हाथी दल

फसलों को पहुंचाया नुकसान, गांवों में मुनादी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बोड़ला, 27 नवंबर।
तहसील क्षेत्र के छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमा के आसपास चिल्पी रेंज के  बोककरखार क्षेत्र व तरेगांव रेंज के गाड़ा घाट क्षेत्र में हाथी पहुंच चुके हैं मध्य प्रदेश की सीमा के मोती नाला बफर जोन क्षेत्र मंगली क्षेत्र के गांव बैला लोटरा के पास फेन अभ्यारण के आसपास विस्तारित नीम पानी के जंगल में 16 हाथी पिछले दो-तीन दिनों से घूम रहे हैं।

गौरतलब है कि नीम पानी के जंगल से ही विकासखंड के ग्राम पंचायत शंभूपीपर  बोककरखार लरबक्की व पंचायत की सीमा से मिलती हैं, जहां से वे आसानी से गाड़ाघाट उतर कर इसके अलावा धवईपानी  की ओर भी आ सकते हैं तथा रानी दहरा से बैरख की ओर भी उतर सकते हैं, जहां से वे आसानी से हमारे तहसील क्षेत्र के मैदानी क्षेत्र में उतर कर उत्पात मचा सकते हैं। मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र के गांव में कोटवारों के द्वारा मुनादी कराकर हाथियों से बचने के लिए लोगों को सचेत किया जा रहा है।

वन विभाग के द्वारा जंगल जाने से लोगों को रोका जा रहा है। अभी कल ही बॉर्डर क्षेत्र के मध्यप्रदेश  के ग्राम  बैला में एक किसान के धान के तीन खरही को हाथियों द्वारा तहस नहस कर दिया गया था, कान्हा नेशनल पार्क क्षेत्र में हाथियों ने लोहे के फैसिंग को नुकसान पहुंचाया है वही हमारे विकासखंड के ग्राम धनवाही में खेतों में घुसकर काफी फसलों को नुकसान पहुंचाया गया है।

इस क्षेत्र के ज्यादातर किसान को जो कुटकी की खेती करते हैं जिन किसानों के फसल के नुकसान  हुए हैं, उनमें मोहन तिरण सवनी बाई लमतू फगनी बाई इस तरह छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश राज्य की सीमा क्षेत्र में हाथियों के पहुंचने से दोनों ही राज्यों के वन विभाग की टीम लोगों को एहतियात बरतने की हिदायत दे रहे हैं और उनका समस्त अमला हाथियों की निगरानी में लगा हुआ है।

मैदानी क्षेत्र में गन्ने की खेती प्रचुर मात्रा में की जाती है और यह सर्वविदित है कि गन्ना हाथी का प्रिय खाद्य पदार्थ है, ऐसे में यदि कहीं हाथी अपना रास्ता बदलकर मैदानी क्षेत्रों की ओर विचरण करते हुए पहुंचते हैं तो उसे संभालना वन विभाग व प्रशासन के लिए मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में समय रहते हुए हाथियों को खदेडऩे की दिशा में बड़ी प्लानिंग बनाने की जरूरत है नहीं तो मैदानी क्षेत्र में जन-धन दोनों की व्यापक हानि होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
 

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