राजनांदगांव
सांसारिक जीवन छोडक़र अब कहलाएंगे साधु, वरगोडा कार्यक्रम में उमड़ी भीड़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 27 नवंबर। शहर के युवा मयंक लोढ़ा अगले माह 2 दिसंबर को जैन धर्म के रिवाजों का पालन करते हुए राजस्थान के मालपुरा तीर्थ में विधिवत रूप से दीक्षा लेंगे। 27 वर्षीय मयंक ने अध्यात्म की राह चुनकर तमाम सांसारिक जीवन को त्याग कर दिया है। पिछले 5 दिनों से शहर में जैन समाज संयम, सौंदर्य उत्सव का आयोजन कर रहा है। इसी कड़ी में शनिवार सुबह वरगोड़ा कार्यक्रम के जरिये मयंक का ऐतिहासिक अभिनंदन किया गया।
शहर को इस अवसर पर पूरी तरह से सजाया गया। समाज के लोगों का मानना है कि यह एक पवित्र अवसर है, जिसमें शहर और समाज का एक युवा मोहमाया छोडक़र अध्यात्म की राह पर निकला है। यह समाज के लिए गौरवान्वित करने वाला विषय है। सकल जैन समाज के अध्यक्ष नरेश डाकलिया ने कहा कि मयंक लोढ़ा ने समाज का मान बढ़ाया है। दीक्षा की राह पर कठिन तप करते हुए वह अब आगे जाएंगे। उनके अभिनंदन के बाद समाज उनका भविष्य में वंदन करेगा। यानी वह एक साधु कहलाएंगे। इससे पहले शहर में ऐतिहासिक भीड़ के साथ मयंक का शानदार अभिनंदन स्वागत किया गया। स्वागत के लिए सभी वर्ग ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
मिली जानकारी के मुताबिक 50 से अधिक संस्थाओं ने इस अवसर में अपनी सहभागिता दिखाई है। मयंक का अभिनंदन करने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, जितेन्द्र मुदलियार, कुलबीर छाबड़ा, समेत अलग-अलग दलों के और समाज के लोग शामिल थे।
सुपुत्र के तौर पर आखिरी बार छूए माता-पिता के चरण
मुमुक्षु मयंक लोढ़ा के लिए शुक्रवार और शनिवार का दिन रिश्ते नाते के लिहाज से काफी दर्द भरा रहा। माता-पिता के लिए भी अपने सुपुत्र को सांसारिक जीवन में जाने से पूर्व आखिरी बार देखने विस्मरणीय रहा, यानी संतान के तौर पर मयंक ने अपनी माता ललिता लोढ़ा और पिता संतोष लोढ़ा के पैर छुए। दीक्षा ग्रहण करने के बाद जब भी मयंक का आगमन होगा, उस दौरान माता-पिता उनसे साधु के तौर पर मिलेंगे। जैन समाज में तप का एक अलग ही धार्मिक महत्व है। भगवान महावीर के सिद्धांतों में तप और साधना को ईश्वर से जुडऩे का एक अहम जरिया माना गया है। मयंक ने भी भोग विलासिता के जीवन को छोडक़र आध्यात्मिक दुनिया में जाने का निर्णय लिया है। माता-पिता के पैर छूने के दौरान भावनाएं आंसुओं के रूप में सामने आई। यह एक यादगार और स्वर्णिम अवसर रहा।