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बैगा जनजाति के युवक-युवतियों ने किया करमा नृत्य प्राचीन परंपरा को जीवंत रखने का प्रयास
10-Jan-2022 6:22 PM
 बैगा जनजाति के युवक-युवतियों ने किया करमा नृत्य प्राचीन परंपरा को जीवंत रखने का प्रयास

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बोड़ला, 10 जनवरी। बोड़ला विकासखंड के सुदूर वनांचल में बैगा जनजाति के युवक-युवतियों द्वारा करमा नाच की प्राचीन परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है। सतपुड़ा के मैकल श्रेणी में  स्थित बैगा बाहुल्य ग्राम दलदली कुर्की बाकी मुंडादादर केसमरदा तरेगांव आमनारा, लरबक्की,बोक्करखार शंभू पीपर, आमा पानी, सरोधा दादर, चिल्फी, झलमला, बहना खोदरा शीतल पानी, खिलाही व अनेक सैकड़ों गांव में निवासरत बैगा जनजाति के द्वारा कुंवार से माघ माह के आखरी तक पारंपरिक रीति रिवाज के पालन करते हुए करमा नाच किया जाता है।

इस विषय में ग्राम खिलाही के बैगा विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पूसु राम बैगा एवं बैगा जनजाति के बीच में रहकर काम करने वाले समाजसेवी ग्राम बेंदा के हरीश यादव ने जानकारी देते हुए बताया की दशहरा के दिन से करमा नाच की शुरुआत होती है और इसे माघ माह के आखिरी तक किया जाता है। पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार बैगा जनजाति के द्वारा विजयदशमी के दिन  से ग्राम देवी ठाकुरदेव या स्थानीय भाषा में खेरमाई को फूल भेंट कर उनके आंगन में पांच करमा गीत गाया जाता है। उसके बाद ग्राम पटेल को मां शीतला मंदिर से लाइव फूल को भेंट कर उनके आंगन में करमा नाच किया जाता है। उसके बाद से फिर यह परंपरा चालू हो जाती है, इसमें प्रत्येक गांव से लडक़ा या लडक़ी की टोली अलग-अलग गांव में रात में प्रवेश करते हैं गांव के छड़ीदार (सामाजिक पद) दूसरे गांव के लडक़ा या लडक़ी को जगाते हैं और ग्राम पटेल के आंगन में रात भर कर्मा नाचते हैं।  रातभर नाचने के बाद सुबह 8 बजे के बाद वह दल गांव के नदी किनारे अपने साथ लाये सूखा राशन लाए का भोजन पकाते हैं और फिर भोजन करने के बाद 2 से 3 बजे के बाद पारंपरिक श्रंगार में सज धज कर ग्राम पटेल के आंगन में या गांव के मुखियाओं के आंगन में रात के 8से 9 बजे तक करमा नाच किया जाता है। इस दौरान शाम के खाने की व्यवस्था ग्राम वासियों के द्वारा किया जाता है ।

करमा नाच के मान्यता के विषय में जानकारी देते हुए आगे वे बताते हैं कि बैगा जनजाति की ऐसी मान्यता है कि विजयादशमी के दिन बजाएं गए पहले ढोल से जंगल में स्थित जड़ी बूटी संजीवनी में परिवर्तित हो जाते हैं। स्थानीय भाषा में से जाग जाता है कहते हैं या कहें जंगली जड़ी बूटियों की मारक क्षमता बढ़ जाती है।

दशहरा के ढोल के बाद जड़ी-बूटी में शक्ति आ जाने की मान्यता है जिसे लेकर करमा नृत्य किया जाता है। इसके अलावा सामाजिक संस्कृति को बचाए जाने के लिए भी करमा नृत्य किए जाने की परंपरा बनी हुई है।

 करमा नाच के दौरान ही बैगा जनजाति के लडक़ा लडक़ी एक दूसरे को पसंद कर सकते हैं, इसके अलावा बैगा जनजाति समाज के एक परिवार से दूसरे परिवार के साथ जुड़ाव भी हो जाता है। इस तरह इसका सामाजिक व पारंपरिक महत्व है इस तरह प्रत्येक साल बैगा जनजाति के युवक व युवतियों के द्वारा पुरानी संस्कृति व परंपरा को बचाने के लिए मांदर व ठिसकी वाद्य यंत्र के साथ घास के वीरन मोर पंख छीट के कपड़ा जिसे दुपट्टा कहा जाता है, इन पारंपरिक परिधानों व वाद्यों के साथ करमा नाचा जाता है।

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