नारायणपुर

जंगल जमीन हमारा के नारे से गुंजा कलेक्टोरेट, झूमाझटकी के बाद पुलिस ने बरसाई लाठियां
01-Apr-2022 9:41 PM
जंगल जमीन हमारा के नारे से गुंजा कलेक्टोरेट, झूमाझटकी के बाद पुलिस ने बरसाई लाठियां

  रावघाट खदान एरिया के ग्रामीणों ने कलेक्टर दफ्तर घेरा   

20 सूत्रीय मांगों को लेकर रावघाट संघर्ष समिति का आंदोलन

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नारायणपुर, 1 अप्रैल।
20 सूत्रीय मांगों को लेकर रावघाट संघर्ष समिति के बैनर तले ग्रामीणों का समूह शुक्रवार को कलेक्टर कार्यालय का घेराव करने पहुंचा। सुबह से ही ग्रामीण बिजली गांव में एकत्रित होने लगे। दोपहर 12 बजे ग्रामीणों का समूह रैली के शक्ल में जिला मुख्यालय की ओर कूच किया।

इस दौरान पुलिस के द्वारा ग्रामीणों को रोकने के लिए माहका में ब्रेकेट्स लगाकर रोकने का प्रयास किया गया। यहां झूमाझटकी के बाद ग्रामीण पुलिस के बेरिकेट्स को तोडक़र आगे निकल आए। इसके बाद जनपद पंचायत के पास दो बेरिकेट्स को तोडक़र ग्रामीणों का समूह आगे बढ़ रहा था इस दौरान पुलिस ने लाठी भांज दिया। जिसमें कई ग्रामीणों को चोट पहुँची। यहाँ से निकलने के बाद ग्रामीण कलेक्टर कार्यालय के मुख्य गेट तक पहुँच गए। यहाँ कलेक्टर के खिलाफ जमकर नारेबाजी कर ग्रामीणों ने जिला प्रशासन के खिलाफ आक्रोश जताया। कलेक्टर कार्यालय के गेट के सामने नारेबाजी कर ग्रामीण कलेक्टर को गेट में बुलाकर चर्चा करना चाह रहे थे। इस दौरान एसपी सदानंद कुमार मौके पर पहुँचे और ग्रामीणों से संवाद कर स्थिति को संभालने का प्रयास किया। एसपी की समझाइए के बाद भी ग्रामीण कलेक्टर को चेंबर से बाहर गेट पर बुलाकर बात करने के बात पर अड़े रहे।

इस दौरान रावघाट संघर्ष समिति के एक प्रति निधिमंडल को  कलेक्टर ऋतुराज रघुवंशी से मिलने के लिए भेजा गया। इधर पौने दो घण्टे तक कलेक्टर का इंजतार करने के बाद ग्रामीणों का गुस्सा सातवें आसमान में पहुँच गया और ग्रामीण नारेबाजी करते हुए पुलिस को धक्का मारते हुए गेट खोलकर कलेक्टर कार्यालय के अंदर घुस गए। इस दौरान कई पुलिस कर्मियों को चोट पहुँची। वक्त की नज़ाकत को देखते हुए पुलिस ने बेकाबू हुए ग्रामीणों पर लाठी भांजना शुरू कर दिया। 15 मिनट तक आंदोलनरत ग्रामीणों पर लाठियां चलाने के बाद मामला शांत हुआ। जिसके बाद आंदोलन के दौरान उपद्रव मचाने वाले युवकों को कलेक्टर कार्यालय के अंदर से बाहर निकाला गया। इसके बाद कलेक्टर ऋतुराज रघुवंशी चेंबर से निकलकर गेट के पास पहुंचे और ग्रामीणों से कहा कि ज्ञापन शासन को भेजा जा रहा है। नियम के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।  इसके बाद कलेक्टर वापस लौट गए। इस दौरान ग्रामीणों के द्वारा शोर-शराबा किया गया। जिसके बाद एसपी सदानंद कुमार ने ग्रामीणों को समझा-बुझाकर शांत करवा दिया। आंदोलन में 23 पंचायत के ग्रामीण पहुँचे थे। झूमाझटकी में ग्रामीणों के साथ पुलिस के कुछ जवानों को भी चोट पहुँची है।

राज्यपाल के नाम सौंपा ज्ञापन, खदान बंद करने की मांग
रावघाट माइंस को बंद करने रावघाट खदान से प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों ने रावघाट माइनिंग को बंद करने की मांग करते ज्ञापन सौंपा। जिसमें बताया गया कि रावघाट में पूर्वज काल से राजाराव बाबा जिसको हम देवता के रूप में मानते हैं जिसके कारण पूरे माइनिंग क्षेत्र के पहाड़ को ही देवता के रूप में मानते आ रहे हैं और भविष्य में हम मानते रहेंगे इसलिए देव स्थल का किसी भी कीमत में सौदा नहीं करेंगे न ही क्षति होने देंगे और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हमारा मौलिक अधिकार है।

वहीं  हमारे क्षेत्र के लोगों के जीवनयापन का एकमात्र साधन रावघाट पहाड़ी का लघु वनोपज है जिससे हमारे पूर्वज लोग एवं हम लोग जुड़े हुए हैं जिसमे महुआ, टोरा, आंवला, चार, चिरौंजी, तेंदू , कई प्रकार के कंदमूल आदि का संग्रहण कर आसानी से जीवनयापन किया जा रहा है। रावघाट माइनिंग खुलने के कारण हमारे जीवनयापन का सारा साधन छीन जायेगा। इसलिए हम इसका विरोध करते हैं। तीसरे बिंदु में लघु वनोपज के साथ पहाड़ों में कई प्रकार की औषधियों का भंडार है जिसके कारण हमारे क्षेत्र में कई बिमारियों का इलाज़ वन औषधि के माध्यम से अभी भी किया जाता है। बहुत सारे रोगों का इलाज हमारे • ग्राम स्तर से हो जाता है।

रावघाट माइनिंग की शुरुआत किये जाने की स्थिति में सम्पूर्ण औषधि नष्ट हो जायेगा और हम यह नहीं होने देंगे। हमारे रावघाट क्षेत्र में आदिवासी लोग पहाड़ के ऊपर स्थित मैदानी क्षेत्र में खेती एवं कृषि कार्य करते है और घर का निर्माण भी करते हैं और पहले से ही कई गाँव बसे हुए हैं । रावघाट माइनिंग से ये सभी खेती और मकान नष्ट हो जायेंगे और लोग गाँव छोडऩे के लिए मजबूर हो जायेंगे । उदाहरण- हमारे समुदाय के ग्राम अन्जरेल , पल्लाकसा और अन्य गाँव पहाड़ के ऊपर बसे हुए हैं , ये सभी माइनिंग से प्रभावित होंगे।

रावघाट माइनिंग शुरू की जाएगी तो हमारे क्षेत्र का वातावरण प्रदूषित हो जायेगा जिसके कारण प्रभावित क्षेत्र के लोगों को कई प्रकार की गंभीर बीमारियाँ होंगी जैसे अस्थमा , कैंसर एवं सांस की कई गंभीर बीमारियाँ , तथा नदी नालो में गन्दगी होगी जिसके कारण हमारे क्षेत्र के लोगों को बहुत परेशानियाँ होंगी। यही अनुभव हमारे आसपास संचालित माइनिंग प्रभावित क्षेत्रों का भी है । इसलिए हम इसका विरोध करते हैं। रावघाट माइंस से 22 गोद ग्राम के अतिरिक्त भी बहुत बड़ा क्षेत्र प्रभावित होगा। खनन से सम्बंधित प्रक्रियाओं के परिणामों के कारण आर्थिक , सामाजिक  और पर्यावरणीय रूप से एक विशाल स्थानीय आबादी प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी।
 
यहाँ की जल, मिटटी और वायु की गुणवत्ता में गिरावट, जलधारा प्रवाह में कमी, और खनन के कारण भू जल में गिरावट भी होगी। जनसंख्या में वृद्धि और खनिज परिवहन के प्रदूषण के कारण विद्यमान अधोसंरचना और संसाधनों पर अधिक बोझ होगा। इन नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए हम इस माइंस का विरोध करते हैं।

वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के अंतर्गत इस क्षेत्र के निवासियों को कई वनाधिकार प्राप्त हैं जैसे कि जंगलों में निस्तार, गौण वन उत्पादों का संग्रहण, चारागाही का और जलाशयों में मछली पकडऩा, सामुदायिक वन संसाधनों का संरक्षण, पुनर्जीवन और प्रबंधन, जैव विविधत तक पहुँच, सांस्कृतिक विविधता से सम्बंधित बौद्धिक सम्पदा और अन्य पारंपरिक अधिकार प्राप्त है। परन्तु यहाँ के गांवों में सामुदायिक वन अधिकार, सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के दावा एवं सत्यापन की प्रक्रिया अपूर्ण है। इस स्थिति में रावघाट माइंस का चालू होना गैरकानूनी है। लौह अयस्क परिवहन के लिए रोड निर्माण किया जा रहा है जिससे हम लोग प्रभावित हो रहे हैं। हमारे घर, खेत एवं बाड़ी इस निर्माण कार्य से प्रभावित हो चुके हैं।  

जब परिवहन शुरू होगा तब हमारे घर, खेत, बाड़ी जो सडक़ से एकदम लगे हैं वे नष्ट हो जायेंगे। हमारे बच्चे उसी रस्ते से आते जाते हैं जिसके कारण गंभीर हादसे होने का डर है। उपरोक्त करणवश हमारी ग्राम सभाओं ने अभी तक रावघाट माइंस परियोजना को सहमति नहीं दी है और आज भी उनका भरपूर विरोध कर रहे है । पांचवी अनुसूची के अंतर्गत इस क्षेत्र में ग्राम सभाओं के अनुमति के बिना माइंस संचालित करना गैरकानूनी है।

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