कोरबा

पुलिस को दोस्त बना लिया ग्रामीणों ने, खुलकर कर रहे बात, ऑन स्पाट समस्याओं का निदान
25-Apr-2022 4:45 PM
पुलिस को दोस्त बना लिया ग्रामीणों ने, खुलकर कर रहे बात, ऑन स्पाट समस्याओं का निदान

कोरबा एसपी कम्युनिटी पुलिसिंग का दायरा बढ़ाकर शासन की योजनाओं का दिला रहे लाभ, स्कूलों में भी दी जा रही दस्तक

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोरबा 25 अप्रैल।
गांव पहुंचकर पुलिस जब किसी का दरवाजा खटखटाती है, तब डर और अनहोनी की आशंका से ग्रामीण दूर भागता है। वह चिंता में पड़ जाता है कि पता नहीं उसने कौन सा जुर्म कर दिया है और अपनी बेगुनाही कैसे साबित करेगा।

मगर कोरबा जिले की पुलिस ने इस धारणा को बदल दिया है। लोग पुलिस के पहुंचते ही उनके पास समस्याएं, शिकायत लेकर खुद ही पहुंचते हैं। वैसे तो हर जिले में पुलिस आम जनता से जुडऩे के लिए कम्युनिटी पुलिसिंग का अभियान चलाती है पर कोरबा जिले में जनता का विश्वास जीतने के लिए पुलिस दो कदम आगे बढक़र काम कर रही है।

यहां के पुलिस कप्तान 2013 बैच के आईपीएस भोजराम पटेल ने अपने कैरियर की शुरुआत गांव के स्कूल में शिक्षक के रूप में की थी। जुलाई 2021 में कोरबा पुलिस प्रमुख का काम संभालने के बाद उन्होंने विशिष्ट जन केंद्रित कार्यक्रमों को धरातल पर उतार दिया है और पुलिस के कर्तव्यों को विस्तृत रूप दिया है। गांवों में कैंप लगाए जा रहे हैं और ग्रामीणों की शिकायतों का त्वरित निराकरण का प्रयास किया जाता है। पुलिस पीडि़त व्यक्तियों के घरों तक भी दस्तक दे रही है जो प्राय: नहीं देखा गया है।

बांकीमोंगरा के थाना प्रभारी परेश कुर्रे बताते हैं कि हम डोर टू डोर जाकर ग्रामीणों की शिकायत सुनते हैं और उनकी समस्याओं को समझने के लिए बहुआयामी संवाद की प्रक्रिया अपनाते हैं।

कोरबा पुलिस ने तीन मोबाइल वाहन जिले के ग्रामीण क्षेत्रों को कवर करने के लिए लगाया है। जहां तक संभव हो मौके पर ही समस्याओं और शिकायतों का निदान किया जाता है।

एसपी पटेल कहते हैं कि पुलिस स्टेशन आने वाले लोगों की शिकायतों को हल करने में समय लगता है। कई बार शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होते हैं। इसलिए पुलिस टीम लंबित शिकायतों को साथ लेकर क्षेत्र का दौरा करती है और ग्रामीणों से मुलाकात कर मौके पर ही संबंधित लोगों से पूछताछ करती है। इन वाहनों में स्थानीय पुलिस अधिकारी के साथ सहायता के लिए अन्य जवान एक साथ निकलते हैं।

कई ऐसी समस्याओं को भी पुलिस के सामने कई बार रखा जाता है जिनका विभाग से सीधा संबंध नहीं होता है पर पुलिस अधिकारी इसके लिए भी प्रयास कर राहत दिलाने की कोशिश करते हैं। पुलिस ने एक मुआवजा प्रकोष्ठ बनाया है जिसमें तीन सदस्य हैं। मानव निर्मित या प्राकृतिक आपदाओं के कारण ग्रामीणों को शासन की नीति के तहत दी जाने वाली वित्तीय सहायता समय पर मिले इसके लिए पुलिस पहल करती है। 11वीं कक्षा के छात्र गणपत साहू बताते हैं उसके पिता कि सांप काटने के कारण मृत्यु हो गई, जो परिवार में एक मात्र कमाने वाले सदस्य थे। पुलिस की कोशिश से ही परिवार को 4 लाख रुपए का मुआवजा जल्दी मिल सका। फसल खराब होने पर कई किसानों को भी पुलिस ने मुआवजा दिलाया है।

पुलिस ने स्कूलों के लिए भी एक कार्यक्रम ‘खाकी के रंग स्कूल के संग’ शुरू किया है। पुलिस टीम सप्ताह में कम से कम 2 स्कूलों में जाती है। बच्चों को आत्मरक्षा के तरीके बताए जाते हैं। उन्हें यातायात के नियम और बुनियादी कानूनों की जानकारी भी दी जाती है।

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