रायपुर
लीलाराम साहू
नवापारा राजिम, (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता) 26 जून। जब मां ठान ले तो दुनिया की बड़ी से बड़ी मुश्किल भी घुटने टेक देती है। नवापारा की प्रमिला साहू की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने मुफलिसी को मात देकर अपने बेटे को उसी अस्पताल में डॉक्टर बना दिया, जिसमें वह स्टाफ नर्स का काम करती थीं। वहीं आज उसका बेटा तेजेंद्र कुमार साहू डॉक्टर बन कर चिकित्सा अधिकारी के रूप में जिम्मेदारी सम्हालते हुए अपने मां के साथ काम कर रहे है।
डॉ. तेजेंद्र कहते है कि जब मां अस्पताल जाती थी, उस दिन अच्छा लगता था। मां के हास्पिटल जाने का इंतजार करता था, मेरा स्कूल जाने के कारण मां के साथ हास्पिटल जाना नहीं हो पाता था, जब भी स्कूल की छुट्टी के समय होती थी, तब मैं हास्पिटल जाता था, तब से मुझे लगा कि मै एक दिन डाक्टर बन के मां के साथ में भी हास्पिटल जाऊंगा। बचपन से ही चिकित्सा के क्षेत्र में लगाव रखने वाले डॉ.तेजेंद्र की शुरुआती शिक्षा नवापारा सरस्वती शिशु मंदिर से हुई, जहां से वे आगे एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए भारती विद्यापीठ मेडिकल कॉलेज पुणे महाराष्ट्र जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की।
प्रमिला साहू बताती है कि मासिक वेतन मिलता है, इसी से उन्होंने बच्चों का पालन पोषण किया। बच्चों की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रमिला बताती हैं उस दिन उनका संघर्ष सफल हो गया जब उसी अस्पताल में बेटे की नियुक्ति डॉक्टर के रूप में हुई, जिसमें वे स्टाफ नर्स की नौकरी कर रही थीं। तेजेंद्र ने भी मां के संघर्ष का पूरा सम्मान किया।वे अस्पताल में ही उनके पास जाकर पैर छूते, फिर अपने काम में जुटते है।
प्रमिला ने 1989 में बतौर स्टाफ नर्स किया था ज्वाइन
प्रमिला ने भी 1989 में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोबरा नवापारा में स्टाफ नर्स बनकर अपने करियर की शुरूआत की थी। लगातार 32 सालों तक प्रमिला अस्पताल के विभिन्न विभागों की जिम्मेदारी संभालती रही। फिलहाल डॉ. तेजेन्द्र कोविड वार्ड की इंचार्ज के तौर पर कोरोना संक्रमण की लहर में फ्रंट लाइन वर्कर के तौर पर मानवता की सेवा में जुटे रहे, जिसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया।