राजनांदगांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 25 जुलाई। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हर घर में प्रणाम की परंपरा होनी चाहिए, जिस घर में यह परंपरा होती है, वहां शांति होती है और परिवार के सदस्य एक-दूसरे का मान सम्मान करते हैं। प्रणाम करने से भीतर मन से आशीर्वाद निकलता है ।
मुनिश्री ने रविवार को समता भवन में अपने नियमित प्रवचन में कहा कि व्यक्ति यदि अपने संकल्प में दृढ़ रहता है तो लोग उनके कार्यों में सवाल नहीं उठाते, इसलिए व्यक्ति को अपने संकल्पों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि प्रणाम की परंपरा दशा और दिशा बदल देती है। इससे बिना हथियार के भी दुश्मनों से जीत हासिल की जा सकती है। कठोर से कठोर व्यक्ति का मन बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी पुरानी परंपराएं व्यक्ति के गुणों को बढ़ाने वाली थी, किंतु आज हम उससे दूर होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रणाम भी हमारी ऐसी पुरानी परंपराओं में से एक है, जिसे आज हम भूल से गए हैं। पहले हम चरण छूकर साष्टांग प्रणाम करते थे, किंतु अब पैर छूने की परंपरा लुप्त हो गई है।
श्री हर्षित मुनि ने कहा कि प्रणाम करने से आशीर्वाद मिलता है और यह आशीर्वाद दिल से मिलता है। इसके शब्द मन से निकले होते हैं, इसलिए यह काफी शक्तिशाली होता है और यह फलता भी है। उन्होंने कहा कि घर में बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें और प्रतिदिन सुबह प्रणाम करें। इससे घर की कलह भी शांत हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि आप को संकल्प लेना चाहिए कि प्रतिदिन आप कम से कम दस अपने से बड़ों का चरण छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। यह जानकारी विमल हाजरा ने दी।