राजनांदगांव
राजनांदगांव, 27 जुलाई। जैन संतश्री हर्षित मुनि ने कहा कि हम इस संसार के अनमोल जीव हैं। भले ही हमारे पास संपत्ति न हो। उन्होंने कहा कि जिसकी चाह होती है, उसे दुख भी होता है और जितनी बड़ी चाह होती है उतना ही बड़ा दुख होता है। अपनी चाह को घटाएं। जितनी सत्संग होगी उतनी ही चाह घटेगी और जितने कुमित्र होंगे उतनी ही चाह बढ़ेगी।
मुनिश्री ने कहा कि यह संसार की सारी वस्तुएं अनित्य है। ये ज्यादा देर नहीं दिखती और न ही टिकती है। होगा सो देखा जाएगा, कहना बहुत ही सरल है परंतु इसका क्रियान्वयन बहुत कठिन है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से आप अपना जीवन चला रहे हैं, ऐसे जीवन नहीं चलता, जो चीज लंबे समय तक टिकती नहीं है, व्यक्ति उसके प्रति जागरूक होता है। हमें अपनी आत्मा को भावनाओं से भर दिया है, इसलिए हमें समाधि नहीं मिल रही है। समाधि यदि प्राप्त करनी है तो आत्मा को भावनाओं से दूर कीजिए। यह सारी चीजें अल्पकालीन है, ऐसा मन में विचार करना चाहिए। जीवन भी अनित्य है, किंतु इसे नित्य मानकर आत्मा को भावनाओं के बोझ से मत दबाइए।