बेमेतरा
हमारी संस्कृति , पितृ-पक्ष : पूर्वजों को किया जाता है याद
छत्तीसगढ़ संवादाता
बेमेतरा, 11 सितंबर। पितरों यानी मृत परिजनों के तर्पण के लिए पितृ-पक्ष प्रारंभ हो गया है। पितरों को कुशा से जल, तिल और जौ अर्पित करते हुए पिंड दान करते हुए पिंडदान कर पितरों की आराधना की जाती है। पूर्व में हुए मृत वंशजों की आत्मा की शांति एवं मुक्ति के लिए अश्विन माह के कृष्ण पक्ष एकम से पितृपक्ष की शुरुआत होती है, जो पूरे पखवाड़े तक जारी रहती है और अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या को पितृपक्ष का विसर्जन होगा।
श्राद्ध में इसका है विशेष महत्व
श्राद्ध में काशी के पौधे से बनी कुश , जौ , तिल व चावल का सर्वाधिक महत्व है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित करने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। साथ ही पितरों की श्राद्ध का अधिकार पुत्र , पौत्र , प्रपौत्र , भाई एवं महिलाओं को भी होता है। पंडित प्रशांत कुमार तिवारी ने बताया कि पूर्वजों की आराधना का पक्ष है। पितृपक्ष में तिथिवार श्राद्ध का विशेष महत्व है। साथ ही पितरों के रूठ जाने पर धन , वैभव से लेकर संतानपक्ष पर समस्याएं आ सकती है। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार पितृदोष को सबसे जटिल कुंडली दोष माना जाता है। पितरों की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
ओरिया में बनाते है चौक
पितृ पक्ष में घर के आंगन को गाय के गोबर से लीपकर चावल के आटे से चौक पूरकर जिसे ओरिया लीपना भी कहते हैं, उसमे रंग-बिरंगे फूल डाला भी डाला जाता है। तालाब में हांथो में कुश लेकर जल , जौ व तिल अर्पित करते करने के बाद घर मे हुम् दिया जाता है।
मान्यता है कि कौओं के रूप में आते है पितर
पितृ पक्ष में तालाबों में तर्पण कर आने के बाद घर में हुम् में उड़द दाल का बड़ा एवं चावल आटे से बनी गुरहा चीला हुम् में अर्पण करते हैं। मान्यता है कि कौआ पितर का रूप होता है। पितर श्राद्ध ग्रहण करने के लिए कौए के रूप में नियत तिथि को हमारे घर पहुँचते है। अगर उन्हें श्राद्ध नही मिलता तो वह नाराज हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।