बेमेतरा
केन्द्रीय सिल्क बोर्ड के अफसरों ने दिया रेशम कीट पालन प्रशिक्षण
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 27 सितंबर। समाधान महाविद्यालय में बीएड एवं आईटीआई के विद्यार्थियों को रेशम कीट पालन विषय पर प्रशिक्षण दिया गया 7 रेशम कीट पालन विषय के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए नाजीर अहमद, वैज्ञानिक बैंगलोर ने कहा कि रेशम उत्पादन का आशय बड़ी मात्रा में रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम उत्पादक जीवों का पालन करना होता है। इसने अब एक उद्योग का रूप ले लिया है। यह कृषि पर आधारित एक कुटीर उद्योग है।
इसे बहुत कम कीमत पर ग्रामीण क्षेत्र में ही लगाया जा सकता है। कृषि कार्यों और अन्य घरेलु कार्यों के साथ इसे अपनाया जा सकता है 7 यह कृषि क्षेत्र की एकमात्र नगदी फसल है, जो 30 दिन के भीतर प्रतिफल प्रदान करती है। व्यावसायिक महत्व की कुल 5 रेशम किस्में होती है जो रेशमकीट विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त होती है तथा जो विभिन्न खाद्य पौधों पर पलते है जैसे- शहतूत, ओक तसर एवं उष्णकटिबंधीय तसर, मूंगा, एरी आदि कसारे वान्या सिल्क मिल के डायरेक्टर डीएस कसारे ने कहा कि रेशम, रसायन की भाषा में रेशम कीट के रूप में विख्यात इल्ली द्वारा निकाले जाने वाले एक प्रोटीन से बना होता है रेशम किट का जीवन चक्र 4 चरणों का होता है ,अण्डा, इल्ली, प्यूपा तथा शलभ।
श्रम जनित होने के कारण इसमें विभिन्न स्तर पर रोजगार का सृजन भी होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह उद्योग पर्यावरण के लिए मित्रवत है। महाविद्यालय डायरेक्टर अविनाश तिवारी ने सभी प्रशिक्षण अधिकारियों का अभिवादन करते हुए कहा कि रेशम उत्पादन एक कृषि आधारित उद्योग है। इसमें कच्चे रेशम के उत्पादन हेतु रेशम कीट पालन किया जाता है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है। डॉ. अवधेश पटेल ने कहा कि रेशम, भारतीय जीवन एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ है।
इस प्रशिक्षण में विद्यार्थियों को रेशम कीटपालन में प्रशिक्षित किया जा सके इसलिये कसारे वान्या सिल्क मिल से एमओयू किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में, डॉ. दिनेश कुमार, वैज्ञानिक आरईसी, सीएसबी, चांपा, सीएस नोनहरे, जॉइंट डायरेक्टर डीओएस रायपुर, एसएस कंवर डिप्टी डायरेक्टर सेरीकल्चर रायगढ़, हेमलाल साहू सेरीकल्चर अधिकारी सभी ने रेशम कीटपालन के महत्व एवं तरीकों के बारे में बताया। इस अवसर पर प्राध्यापकगण, छात्र-छात्राएं उपस्थित रहें।