कोरिया

राजभाषा पखवाड़ा: हिंदी के उत्थान को ले विद्वानों ने साझा किए विचार, साहित्यकारों और पत्रकारों का सम्मान
29-Sep-2022 2:48 PM
राजभाषा पखवाड़ा: हिंदी के उत्थान को ले विद्वानों ने साझा किए विचार, साहित्यकारों और पत्रकारों का सम्मान

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुण्ठपुर(कोरिया) 29 सितंबर।
हिंदी उस विशल सागर की तरह है जिसमें आकर विभिन्न भाषाओं की नदियां समाहित होती जा रही हैं और हिंदी प्रतिदिन समृद्ध हो रही है। राजभाषा पखवाड़ा के अंतर्गत जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर में साहित्य सेवा को लेकर एक बड़ा आयोजन हुआ। सौम्य महिला समिति बैकुण्ठपुर क्षेत्र और अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी के विकास पर एक वृहद एक दिवसीय आयोजन हुआ।

इस आयोजन में मुख्य अतिथि की आसंदी से साउथ इस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड बैकुंठपुर क्षेत्र के महाप्रबंधक ऑपरेशन श्री के मेरे ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य का मूल निवासी होने के बावजूद अपने शिक्षा और कार्य दायित्वों के दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहा परंतु मुझे हमेशा हिंदी की जानकारी होने से एक अलग तरह की मदद मिली।

उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी भाषा है जो हमेशा से मुझे प्रभावित करती है और दैनिक कार्य जीवन में भी इसका अधिकाधिक प्रयोग करने का प्रयास करता हूं। आए हुए विद्वानों से मुझे बहुत कुछ सीखने समझने का अवसर मिला है। उन्होने कहा कि हिंदी में प्रत्येक रिष्ते के लिए पृथक षब्द हैं परंतु अंग्रेजी जैसी भाषाओं में इसका बड़ा अभाव है। हिंदी पर व्याख्यान, परिचर्चा और काव्यगोष्ठी का आयोजन दो सत्र में पूरा हुआ। इसके प्रथम सत्र में व्याख्यान और परिचर्चा का आयोजन हुआ। इसमें लाहिड़ी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य व हिंदी के विभागाध्यक्ष श्री रामकिंकर पाण्डेय, शासकीय विवेकानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी प्राध्यापक  बृजलाल साहू, आत्मानंद महाविद्यालय महलपारा बैकुण्ठपुर के प्राचार्य राजीवलोचन त्रिवेदी और हिंदी वरिष्ठ षिक्षक आदित्य नारायण मिश्रा ने विशिष्ट अतिथि बनकर आयोजन को गरिमा प्रदान की।

इस अवसर पर अभिव्यक्ति संस्थान की सदस्य तारा पांडे, रेणुका तिर्की और पूजा ने मां सरस्वती की वंदना हेतु गीत प्रस्तुत किया। इसके बाद आयोजन में उपस्थित हिंदी विदों ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
सबसे पहले हिंदी की वर्तमान चुनौतियों पर अपनी बात कहते हुए प्राचार्य राजीव लोचन त्रिवेदी ने कहा कि हम हिंदी के शब्दों का प्रयोग धीरे धीरे स्वयं ही कम कर रहे हैं। पुस्तकों से अध्ययन की परिपाटी कम हो रही है। आधुनिकता के दौर में हम प्रत्येक खोज व विषय वस्तु की जानकारी के लिए इंटरनेट की ओर जा रहे हैं इससे धीरे धीरे हमारे पढक़र जानकारी लेने की आदत कमजोर हो रही है। हमें अपने बच्चों को व्यवहारिकता के साथ हिंदी का ज्ञान देना अति आवष्यक हो चला है।

हिंदी की चुनौतियों के निवारण विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए हिंदी के प्राध्यापक बृजलाल साहू ने कहा कि हिंदी को विकास को समझने के लिए जरूरी है कि इसके लिए हम संकल्पित हों। हम दैनिक जीवन में हिंदी को पूरी तरह से प्रयोग में लाएं और अपने विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनाएं क्योंकि हिंदी ही सर्वसमावेशी भाषा है।
दैनिक जीवन में हिंदी के निरंतर अपघटन पर बात करते हुए हिंदी के विद्वान  रामकिंकर पाण्डेय ने हिंदी के विकास के लिए सकारात्मकता का प्रचार करते हुए कहा कि हिंदी भाषा के लिए बने आयोग और संस्थाएं हिंदी के विकास में जो काम नहीं कर पाईं वह उत्थान आम जनमानस ही कर सकता है। अपने अध्ययन और अध्यापन के अनुभवों के साथ हिंदी साहित्य के विराट क्षेत्र को सरल शब्दों में परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के साथ ही इसके प्रभाव क्षेत्र में अन्य राज्यों में बोली जाने वाली भाषाओं के भी व्यापक विस्तार और शिक्षण की आवश्यकता है। उन्होंने सभी हिंदी प्रेमियों से आग्रह किया की इसे सरल और प्रत्येक व्यक्ति के लिए ग्राहय बनाने के लिए हमें इसके षब्दावली में जुड़ते प्रत्येक देषज, विदेषज षब्दों को स्वीकार करना होगा और साथ ही भाषा के मूल रूप और उसके व्याकरण में निरंतर ध्यान रखना होगा ताकि हम हिंदी की मूल भावना को बचाकर इसके विकास में सहभागी बन सकें।

उन्होंने कहा कि अंगे्रजी एक वैष्विक भाषा है इसको जानना, समझना और बोलना वर्तमान में विकास के लिए अत्यंत आवष्यक है परंतु इसके साथ ही हिंदी को अपनी मातृभाषा, राजभाषा होने के कारण गंभीरता से जानना, बोलना और समझना उससे भी ज्यादा जरूरी है।

विद्वानों के उद्बोधन क्रम में जीवन में हिंदी की उपयोगिता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए  आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा कि हिंदी जैसा मर्मस्पर्षी षब्दकोष दुनिया की किसी भी भाषा में नहीं है। आज हम अपने बच्चों को परिवार से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति से पृथक पृथक रिश्ते ना समझाते हुए सभी को अंग्रेजी के अंकल आंटी में समेट रहे हैं। यह हमारी संस्कृति सभ्यता और अध्यात्म तीनों के लिए नुकसानदायक है। उन्होने रामचरित मानस में चित्रकूट में प्रभु राम और सीता के बीच बिताए गए समय का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदी इतनी समृद्ध है कि यहंा विभिन्न भावों को प्रदर्षित करने के लिए अलग अलग रस छंद अलंकार हैं इतनी विराट षब्दकोष, भावनाओं से भरी हुई और दिल को छू सकने वाली विश्व में कोई भाषा नहीं है। उन्होंने आए हुए प्रत्येक व्यक्ति को हिंदी के सद साहित्य को पढऩे और उसे अपने दैनिक जीवन में अनुसरण करने का आग्रह किया।

प्रथम सत्र के समापन अवसर पर महाप्रबंधक ऑपरेशन के मेरे ने हिंदी के तीनों विशिष्ट वक्ताओं का साहित्य के लिए समर्पित  भोला प्रसाद मिश्रा, डा सपन सिन्हा, शैलेन्द्र श्रीवास्तव व वीरेंद्र श्रीवास्तव का शाल और प्रतीक चिन्ह देकर विषेष सम्मान किया। इसके साथ ही जन जन तक हिंदी को सुलभ करने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के कलमकारों का सम्मान किया गया।  प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि श्री के मेरे को अभिव्यक्ति संस्था की ओर से संरक्षक  नरेश सोनी के द्वारा प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मान दिया गया। आयोजन का संचालन रूद्र मिश्रा ने किया और अंत में अभिव्यक्ति की ओर से वरिष्ठ षिक्षाविद् साहित्यकार रामानुज स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राघ्यापक श्री एम सी हिमधर के द्वारा उपस्थित सभी विद्वानों के प्रति आभार प्रकट किया गया।

राजभाषा पखवाड़ा के अंतर्गत द्वितीय सत्र में हिंदी पर विषेष जानकारी प्रस्तुत करते हुए अभिव्यक्ति संस्थान के योगेष गुप्ता ने हिंदी के बाजार पर प्रभाव को उल्लेखित करते हुए विश्व में हिंदी की लोकप्रियता और उसके विषद शब्दकोष के बारे में तथ्यात्मक आंकड़े प्रस्तुत किए। साथ ही हिंदी की सहजता को प्रदर्शित करने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि किस तरह से हिंदी में षब्दों के क्रम को परिवर्तित करने से सामान्य और असामान्य प्रभाव होता है। इसके बाद काव्यगोष्ठी का सत्र प्रारंभ हुआ जिसमें विषिष्ट अतिथि के रूप में सौम्य महिला समिति की नीनी मेरे, झूमा मंडल,  सविता मंडल, सौम्य महिला समिति की सचिव श्रीमती संध्या रामावत के साथ मनेन्द्रगढ़ जिले में संबोधन साहित्य कला परिषद के संस्थापक सदस्य वीरेन्द्र श्रीवास्तव और व्यंगम साहित्य संस्थान अंबिकापुर के संस्थापक सदस्य डा सपन सिन्हा उपस्थित रहे। इस अवसर पर सरगुजा संभाग के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे विषिष्ट साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं का प्रभावी पाठ प्रस्तुत कर आयोजन का नई गरिमा प्रदान की। इसके पश्चात कोरिया, एमसीबी, सूरजपूर, अंबिकापुर से आए हुए रचनाधर्मियों श्रीमती वीरांगना श्रीवास्तव, श्रीमती अनामिका चक्रवर्ती, सुश्री ऋचा श्रीवास्तव, श्रीमती ज्योतिमाला सिन्हा, प्रतापपुर महाविद्यालय की प्राध्यापक श्रीमती कुसुमलता प्रजापति, डा राजकुमार षर्मा, श्रीमती तारा पाण्डेय, सुश्री रेणुका तिर्की, संदीप गौड़ बादल, राजेष पाण्डे, , सुश्री अलीषा,  शारदा गुप्ता, मृत्युंजय सोनी, कृष्णदत्त मौर्य, श्रीमती मंजू डड़सेना,  मनीष तिवारी, श्रीमती कविता मिश्रा, सूरजपूर के साहित्यकार  रमेश गुप्ता, हरिकांत अग्निहोत्री,  गौरव अग्रवाल, आयुष नामदेव का विषिष्ट सम्मान किया गया। उपस्थित अतिथियों ने सभी साहित्यकारों को पुष्पमाला और दुषाला ओढ़ाकर प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। अंत में आयुष नामदेव ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। इस आयोजन को सफल बनाने में एसईसीएल के प्रबंधक कार्मिक श्री गौरव दुबे, स्वामी आत्मानंद विद्यालय चिरमिरी के प्राचार्य डा डी के उपाध्याय, राजेन्द्र सिंह, नरेश सोनी, अतुल गुप्ता, शारदा गुप्ता आदि का विशेष योगदान रहा।

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