कोण्डागांव
बंग समाज मे वर्षो से चली आ रही है सिंदूर खेला कार्यक्रम
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
केशकाल, 6 अक्टूबर। नवरात्र के पहले दिन से ही घरों में मां दुर्गा की पूजा शुरू होती है। लेकिन, पूजा पंडालों में यहां बंगाली परंपरा के मुताबिक मां दुर्गा की पूजा षष्ठमी तिथि से शुरू होती है। बेलवरण पूजा के साथ मां को आमंत्रित किया जाता है। इसके बाद षष्ठी से पूजा पंडालों में मां दुर्गा की पूजा शुरू हो जाती है जो विजयादशमी की सुबह तक चलती है। सिंदूर खेला के बाद मां को विदाई के साथ दुर्गा पूजा समाप्त हो जाती है। इस मौके पर मां को अगले वर्ष फिर से आने के लिए आमंत्रण भी दिया जाता है।
केशकाल नगर के बोरगांव में बंग समाज द्वारा प्रति वर्ष की भांति षष्ठमी तिथि से मां दुर्गा जी का मूर्ति स्थापना शुरूआत की की जाती है । इस वर्ष भी भारी उत्साह का माहौल देखने को मिला। बंगाली समाज में यह उत्सव एक महत्वपूर्ण उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नए कपड़े पहन कर सभी बंगबंधुओ द्वारा मातारानी का भक्ति श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है और प्रतिदिन पूजा के दौरान माता रानी को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है। षष्टमी तिथि को माता का आगमन के पश्चात सप्तमी एवं महा अष्टमी को पूरी विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना की गई। इस दौरान मातारानी क़े नौ रुपों का नौ कन्याओं को विधि विधान पूर्वक पूजन कर उन्हें भोजन कराते हुए सिंगार सामग्री अर्पित की गई।
बंग समाज की महिलाओं ने बताया कि मां के मायके से ससुराल जाने की मान्यता को मानते हुए अपने पति की लम्बी आयु के लिए समाज की महिलाओं ने मां को समर्पित होने वाले सिंदूर से अपनी मांग भरकर एक दुसरे के गालों को सिंदूर से भर दिया जाता है । फिर एक दूसरे को मिठाई खिलाकर दुर्गोत्सव की शुभकामनाएं देते हैं। इस तरह सिंदूर खेला करने से माहौल और भक्तिमय बन गया। सिंदूर खेलने के पश्चात नम आंखों से मां की विदाई दी गई और अगले वर्ष फिर जल्दी आने का निमंत्रण दिया गया।