रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 29 नवम्बर। उच्च शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापक (एपी) डेढ़ से दो दशक से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। जबकि इस दौरान उन्हें कम से कम 3 पदोन्नतियां मिल जानी थी। हाल यह है कि जिन छात्रों को इन सहायक प्राध्यापकों ने पढ़ाया था, वो छात्र भी सहायक प्राध्यापक बन गए हैं। यानी गुरु-शिष्य दोनों सहायक प्राध्यापक हो गए हैं।
प्रदेश के ढाई सौ से अधिक शासकीय डिग्री-पीजी कॉलेजों में इस समय 23 सौ से कुछ अधिक प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत हैं। इनमें से 1384 एपी की नियुक्ति पिछले वर्ष की गई। पुराने एपी में 4 00-450 होंगे। इन सबकी नियुक्ति डेढ़ से दो दशकों से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि 2016 में एक प्रमोशन बिस्ट निकली थी। नियमों में बदलाव कर दिया गया था इसका विरोध हुआ तो 28 को ही प्रमोशन मिल जबकि पात्र 300 एपी थे। उससे पहले 2006 में भी 325 एपी की सूची जारी हुई थी। उसका भी विरोध हुआ था। मध्यप्रदेश के समय
नियुक्ति एपी को 16-20 वर्षों से प्रोफेसर की पदोन्नति नहीं मिल पाई है। स्पष्ट है कि ये जब से एपी नियुक्त हुए हैं उनके बाद से पदोन्नत नहींं हुए हैं और कुछ लोग तो रिटायर भी हो चुके हैं। इनमें से कुछ एपी तो ऐसे हैं जिनके पढ़ाए, छात्र-छात्राएं, गत वर्ष हुई भर्ती में एपी नियुक्त हुए हैं। यानी गुरु-शिष्य दोनों असिस्टेंटएपी के पद पर कार्यरत है।
स्थिति यह है कि प्रदेश के ढाई सौ में से किसी भी कॉलेज में नियुक्ति प्रोफेसर नहीं है। जो है उन्हें पदेन प्रोफेसर के रूप में 2008 से नियुक्ति दी गई है। हाल में कुछ प्रोफेसरों ने कोर्ट से अंतरिक्ष राहत हासिल की है उन्हें 10 हजार 6 एजीपी के रूप में वित्तीय लाभ मिलेगा। इन नियमित प्रोफेसरों के न होने से प्रदेश के कॉलेजों को एनआईआर एफ या नैक की मान्यता नहीं मिल रही है। इस विडंबना को देखते हुए कुलाधिपति ने अपनी समीक्षा बैठकों में पदोन्नति के निर्देश भी दिए हैं, लेकिन उच्च शिक्षा संचालनालय चुप्पी साधे हुए है।