महासमुन्द

योग की सर्वाधिक पूर्ण व शक्तिशाली प्रक्रिया शंख प्रक्षालन-स्वामी विद्यानंद सरस्वती
06-Dec-2022 4:37 PM
योग की सर्वाधिक पूर्ण व शक्तिशाली प्रक्रिया शंख प्रक्षालन-स्वामी विद्यानंद सरस्वती

पत्रकार स्व.हेमन्त राठौड़ की स्मृति योग प्रशिक्षण शिविर में दीर्घशंख प्रक्षालन 9 को
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,6 दिसम्बर।
दिव्य जीवन संघ,योग मित्र मंडल एवं मातृशक्ति संस्कृति के संयोजन में योग शिविर संस्थापक स्व.हेमन्त राठौड़ की स्मृति में 10 दिवसीय नि:शुल्क योग प्रशिक्षण शिविर शिवानंद कुटीर योगासन के संचालक एवं योगाचार्य स्वामी विद्यानंद सरस्वती के संचालन में 1 दिसम्बर से प्रारंभ हो चुका है। 

शिविर में प्रत्येक दिन सुबह आसान, प्राणायाम एवं ध्यान, शाम को प्राणायाम, योगनिद्रा एवं त्राटक एंव दोपहर सत्र में महिलायों को योग का अभ्यास कराया जा रहा है। करोना काल के समय योग भवन के सदस्य एंव उनके परिवार के सदस्य स्व. हेमन्त राठौर, स्व. नारद चन्द्राकर, स्व. अशोक कुमार ध्रुव, स्व.पन्नालाल श्रीवास्तव, डा. अनिल अग्रवाल की मात्रा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ग्यारह मृत्युजय पाठ पढ़ कर श्रद्धाजलि दी गई। 

शिविर में बड़ी संख्या में लोग योग प्रशिक्षण एंव योग चिकित्सा का लाभ ले रहे हैं। जिसका उद्देश्य स्वास्थ रक्षा, रोग उपचार,मनोनिग्रह एवं आत्मिक चेतना का विकास है। आगामी 9 दिसम्बर को कौंदकेरा जंगल में दीर्घशंख प्रक्षालन के अलावा जलनेति, कुंजल आदि हठयोग की यौगिक क्रियाएं संपन्न होगी। 

शंख प्रक्षालन पेट की यौगिक सफ ाई का तरीका है। यह योग की सर्वाधिक पूर्ण व शक्तिशाली प्रक्रिया है। साधारण उपवास द्वारा जो परिणाम हफ्तों या महिनों बाद सामने आते हैं उनका अनुभव इस क्रिया के माध्यम से 3-4 घंटे बाद होने लगता है। यद्यपि इसका गहरा प्रभाव शारीरिक स्तर पर ही दिखाई देता है। परंतु यह क्रिया मन और प्राण पर गहरा प्रभाव डालती है। 

स्वामी शिवानंद सरस्वती योग भवन में पहुंचे शिवानंद कुटीर योगाश्रम डोंगरगढ़ के संचालक स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने उक्त बातें योग अभ्यास सत्र के दौरान की। उन्होंने कहा कि 10 दिवसीय योग शिविर में आसन प्राणायाम के अभ्यास के बाद अंत में शरीर दीर्घशंख प्रक्षालय की क्रिया के लिए तैयार किया जाता है। 

इस वर्ष भी 9 दिसम्बर 22 को कौंदकेरा के जंगल में योगाभ्यार्थियों को जलनेति, कुंजल एवं दीर्घ शंख प्रक्षालन क्रिया खाली पेट में करना होता है। पूर्ण क्रिया हेतु 16 गिलास कुनकुने जल की आवश्यकता होती है। स्वामी जी ने बताया कि शंख प्रक्षालन के बाद न केवल हल्कापन अनुभव किया जा सकता है। बल्कि चेतना में भी एक स्पष्ट परिवर्तन अनुभव किया जा सकता है। इसका अभ्यास अनेक व्याधियों अचेतन, मानसिक कब्ज एवं शारीरिक कब्ज को दूर करता है। शरीर के शोधन के साथ मन का भी शोधन होता है सजगता की वृद्धि होती है। इस प्रकार इस क्रिया द्वारा चेतना के विकास को भी अनुभव कर सकते हैं।

स्वामी जी ने बताया कि शंख प्रक्षालन के 45 मिनट बाद मूंग दाल एवं चावल की खिचड़ी करीब 100 ग्राम घी मिलाकर खानी चाहिए। शंख प्रक्षालन के बाद एक सप्ताह तक आहार नियमों का पालन करना जरूरी है। गौरतलब है कि नगर में विगत 31 वर्षों से 10 दिनी योग प्रशिक्षण के दौरान हठयोग की क्रियाएं कराई जाती है।

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