बेमेतरा

बेमेतरा, 22 जनवरी। बांस उत्पादन के लिए किसानों को जागरुक किया गया। बताया गया कि बांस एक से 3 माह में अपनी वृद्धि प्राप्त कर लेता है। बांस की खेती खेतों में, बाडिय़ों, ब्यारा आदि में किया जा सकता है, जो पर्यावरण और भूमि संरक्षण के साथ-साथ उत्पादन से किसानों को लाभान्वित भी करता है। बांस की खेती के बारे में जागरूकता लाने पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र बेमेतरा द्वारा ग्राम झाल के किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के पादप आण्विक जीव विज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग से प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. जेनु झा ने बांस की जातियों, प्रजातियों की विशेषताओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
समझाई बांस की किस्में
डॉ. जेनु झा ने बताया कि बैंबुसा बल्कोआ किस्म सबसे उपयोगी किस्म है, जो वाद्य यंत्र, घर व अन्य कार्यों के लिए उपयोगी है। बैंबुसा टुल्डा किस्म पेपर पल्प बनाने का काम आता है और बैंबुसा न्यूटन का अगरबत्ती बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। वैज्ञानिक शिल्पा चंद्रवंशी ने बांस की उन्नत काश्त तकनीक, रखरखाव, खाद व सिंचाई प्रबंधन और कटाई की जानकारी दी। वैज्ञानिक एवं प्रमुख तोषण कुमार ठाकुर ने बताया कि हमारे क्षेत्र की जलवायु बांस के उत्पादन के लिए उपयुक्त है और भविष्य में बांस का उत्पादन कृषि के अलावा अतिरिक्त आय का साधन होगा।
बांस की ग्रामीण जीवन में उपयोगिता पर डॉ. प्रज्ञा पाण्डेय ने जानकारी दी। डॉ. एकता ताम्रकार ने बांस में कीट प्रबंधन और डॉ. चेतना बंजारे ने बांस की फसल कटाई के बाद उपयोग के बारे में किसानो को बताया। डॉ. चेतना बंजारे, डॉ. हेमंत साहू ने किसानों को कृषि विज्ञान केन्द्र की नर्सरी में उत्पादित टमाटर के पौधे वितरित किए।