कोरिया

देश के कोने-कोने से दो दर्जन पहुंचे, टेंट लगाकर रोमांच का उठा रहे आनंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बैकुंठपुर (कोरिया), 28 जनवरी। देशभर में सिर्फ गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों में टै्रकिंग की जा रही है, पूरे देशभर के अलग-अलग हिस्सों से ट्रैकर यहां पहुंचें है, इनमें कुछ तो सपरिवार है, इन ट्रैकर में आईटी सेक्टर से लेकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील के साथ सरकारी अधिकारी भी है, जो जंगल के बीच टेंट में रहकर यहां के रोमांच का आनंद उठा रहे है।
इस संबंध में गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के संचालक वायआरएस रामाकृृष्णन ने बताया कि इस वर्ष इंडिया हाईट्स द्वारा पार्क में टै्रकिंग का आयोजन किया गया है, इकोफे्रंडली टै्रकिंग के तहत देशभर से टै्रकर यहां आए हुए है अभी तक 13 बैच में ट्रैकर आ चुके है, एक बैंच और आएगा, 15 अक्टूबर से 15 फरवरी तक ट्रैकिंग का आयोजन किया जाता है।
जानकारी के अनुसार कोरिया जिले में स्थित गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में देश के कोने कोने से दो दर्जन ट्रेकर आए हुए है, पार्क के घने जंगलों के बीच छोटे-छोटे टेंट लगाकर रात और दिन वहीं रूक कर ट्रैकिंग का आनंद ले रहे, इसमें दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे सहित विदेशी ट्रैकर भी पहुंचे हुए हैं। इंडिया हाईट्स देश भी में ट्रेकिंग को प्रमोट करती है, गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में ट्रैकिंग की पूरी व्यवस्था उसी की है। ट्रैकर सुबह उठ कर पहले थोड़ा करसत करते है, इसमें महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल है उसके बाद प्रतिदिन पहाड़ों से होकर लगभग 10 किमी की दूरी तय कर दूसरे छोर पहुंचते है, जहां रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन के लिए वे तैयार होते है।
कचरा प्रबंधन खुद करते है ट्रैकर
पार्क में ट्रैकिंग के लिए आए ट्रैकर कचरा प्रबंधन खुद करते है, हर ट्रैकर अपने साथ एक थैली साथ रखता है, दूसरे लोगों को फेंका कचरा भी यह उठाते ही है, साथ खुद द्वारा किए कचरे को इक_ा कर डिस्पोज करते है। जहां रूकते है वहां से जाते वक्त उसको उसी हाल में ठीक करके जाते है।
इकोफेंड्रली है व्यवस्था
इंडिया हाईट्स के अधिकारी श्री नितेश बताते है कि ट्रेकर जहां रूकते है, उनके लिए इको फेंडली बायोटायलेटस लगाए जाते है, प्लास्टिक को दूर रखा जाता है।
खुले में शौच करना हानिकारक होता है, बायो टायलेटस में गड्ढा खोद कर मल पर नारियल का बुरादा डाला और टायलेट पेपर को उसी गड्ढे में डाल देते जिसके बाद इसे बंद कर देते है, जिसके बाद ये खाद बनकर तैयार हो जाता है और ये पर्यावरण के लिए काफी बढिय़ा है और इसे लगाना भी बेहद आसान है।