बेमेतरा

ज्ञान यज्ञ सप्ताह के पांचवे दिन शंकराचार्य ने स्त्रियों के महातम्य का किया वर्णन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बेमेतरा, 1 फरवरी। सनातन धर्म में स्त्रियों को विशेष सम्मान दिया गया है। यही एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जहां पर स्त्री को देवी एवं माता मानकर उनकी पूजा की जाती है। जिस प्रकार महत्वपूर्ण को बहुत संभालकर रखा जाता है वैसे ही यहां स्त्रियों को भी संरक्षित रखने को कहा गया है।
उक्त बातें जगतगुरु शंकराचार्य ने श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन के प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि जब स्त्री कन्या रूप में रहती है तो पिता, विवाहित होने पर पति और वृद्ध होने पर बच्चों को उसकी देखरेख करने कहा गया है। यहां पर देख-रेख करने का अर्थ यह नहीं कि उससे उसकी स्वतन्त्रता छीनी जा रही है। यहॉ पर न स्त्री स्वातर्न्त्यमर्हति का अर्थ है वृत्ति स्वातर्न्त्य। माने स्त्री को कभी भी अपनी आजीविका के लिए स्वयं कुछ न करना पड़े, यह कहा गया है। यह कितना बड़ा सम्मान है। लेकिन इसके अर्थ को बदलकर प्रस्तुत किया जाता है। इसे सभी को ठीक से समझने की आवश्यकता है।
कन्या उत्पन्न होती है, तभी माता की कोख को पवित्र माना जाता है
शंकराचार्य ने कहा कि श्रीमद् भागवत में भी स्त्रियों के माहात्म्य का निरूपण प्रमुखता से किया गया है। जब वंश वर्णन आरम्भ होता है तो सबसे पहले मनु-शतरूपा के पुत्रियों के वंश का वर्णन बताया गया है और पुत्रों का वंश बाद में। इससे भी हम सबको स्त्री का माहात्म्य समझना चाहिए कि जब ब्रह्मा ने सर्वप्रथम मैथुनी सृष्टि आरम्भ की तो दो पुत्र और तीन पुत्रियों को उत्पन्न किया। माने पुत्रियों की संख्या पुत्र से अधिक रखी गयी। यह भी कहा जाता है कि जब कन्या उत्पन्न होती है तभी माता की कोख को पवित्र माना जाता है।
आज के आयोजन में मुख्यरूप से ब्रह्मचारी ब्रह्मविद्यानन्द, साध्वी पूर्णाम्बा, साध्वी शारदाम्बा, रविन्द्र चौबे कृषि मंत्री , गुरुदयाल बंजारे संसदीय सचिव, प्रदीप दुबे, डॉ. सियाराम साहू, सुरेंद्र किरण छाबडा, आशीष छाबड़ा, विनु छाबड़ा आदि उपस्थित रहे।