बेमेतरा

बेमेतरा के किसानों के लिए घाटे का सौदा हुआ चने की फसल
03-Feb-2023 4:10 PM
बेमेतरा के किसानों के लिए घाटे का सौदा हुआ चने की फसल

4 साल में 40 हजार हेक्टेयर रकबा घटा

आशीष मिश्रा

बेमेतरा, 3 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।  उच्च क्वालिटी का चना के बेहतर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध बेमेतरा जिले में विपरीत परिस्थितियां होने की वजह से किसान चने की फसल से मुँह मोडऩे लगे हंै। किसानों की रूठ जाने की वजह से जिले में साल दर साल चना का रकबा घटते जा रहा है। रकबा बढ़ाने सरकारी प्रोत्साहन भी बंद है। इस बार भी किसानों को खराब फसल और खरपतवार का सामना करना पड़ रहा है।

रबी सीजन में जिले में अब तक 64845 हेक्टेयर में चने की फसल ली जा रही है। जिस तरह से रकबा लगातार कम होते जा रहा है, उससे न केवल उत्पादन प्रभावित हुआ है बल्कि दाल उत्पादन उद्योग को भी गहरा झटका लगा है। बाजार नहीं मिलने की वजह से भी किसान चना के बाजाय गेहूं या ग्रीष्मकालीन धान का फसल ले रहे हैं।

किसान कमलेश वर्मा कोाबिया निवासी ने बताया कि पूर्व की अपेक्षा स्वयं भी कम रकबा में चना का उत्पादन कर रह हैं जिसमें भी खरतवार याने बथुवा व चनौरी का प्रकोप से फसल बचाने के लिए दवाओं व खरपतवार उखाडऩे में अधिक खर्च करना पड़ रहा है।

दाल उद्योग भी प्रभावित
बताना होगा कि ओन्हारी जिला के तौर पहचान पाने के बाद जिले मे उत्पादित दाल की दीगर प्रदेशों में लोकप्रिय रहा है जिसकी वजह से आज से दस साल पहले जिले में 30 अघिक दाल मिलें हुआ करती थीं जो आज चार या पांच ही रह गई हैं। संचालक राहूल्र अग्रवाल ने बताया कि बाजार व कच्चा माल के अभाव की वजह से करोबार सिमट चुका है।

चना प्रोत्साहन योजना की राशि नहीं मिली
2017-18 के दौरान जिले के 278 गावों केा किसानों को चना प्रोत्साहन राशि वितरण के लिए चिन्हीत किया गया था जिसमे बेमेतरा विकासखंड के 20 गांव, साजा के 24, बेरला के 50 व नवागढ विकासखंड के 184 गांव को लाभ मिलना था जहां पर 1500 प्रति एकड़ दिया जाना था पर जिले के किसानों केा दो साल बाद भी चना प्रोत्साहन की पूरी राशी नहीं दी गई। रकबा घटने के पीछे यह भी एक कारण है।

बथुवा चनौरी के प्रकोप से फसल को नुकसान
किसानों ने रकबा घटने का कारण बताते हुए कहा उनका अनुभव रहा है। बीते पांच साल में दैारन रबी फसल सीजन के समय मौसम बदलते रहा है जिससे हमेशा नुकसान होते रहा है। बिरमपुर के किसान कासी राजपूत ने बताया कि दो साल पहले भारी ओलावृष्टि से चने की फसल बरबाद हुई थी, तक से हमनेे रकबा घटा दिया। किसान प्रकाश वर्मा ने बताया कि चना में बथुवा चनौरी का प्रकोप बढ़ते जा रहा है जिसकी निंदाई पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है

रूतबा लौट  कर नहीं आया चने का

जिले में बीते रबी फसल सीजन 18 -19 के बाद से केवल 19 -20 के सीजन में चने का रकबा 5-6 फिसदी बढा था जिसके बाद से लगातार इसका रकबा घटते गया है। पांच साल का आंकड़ा देखें तो जिले में 100892 हेक्टेयर में चने का उत्पादन किया जा रहा था जिसके बाद 19 -20 के दौरान चना का रकबा बढक़र 11374 हेक्टेयर हुआ था तब चना फसल के उत्पादन केा बढावा देने के लिए चना प्रोत्साहन योजना संचालित किया जा रहा था इसके बाद 40 हजार हेक्टेयर में किसानों ने चना के बाजाय अन्य फसल लेना प्रांरभ किया जिसकी वजह से जिले में रकबा घटकर 65008 हेक्टेयर में आकर रूक गया। इसके बाद सरकारी प्रयास के बलबूते जिले में रकबा करीब 5 हजार हेक्टेयर का इजाफा हुआ और 20-21 के दौरान 69473 हेैक्टेयर में चने की फसल ली गई। इस सीजन में 64845 हेक्टेयर में किसान चने की फसल ले रहे हैं जो बीते पांच साल में सबसे कम है।

बहरहाल जिले की पहंचान रहे चने का रकबा जिस तरह से साल दर साल कम होते जा रहा है उसे देखते हुए चने की हालत सोयाबीन की तरह होने का खतरा बढ़ते जा रहा है।

जिले में चने का उत्पादन बढ़ा है
वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी डॉ. श्यामलाल साहू ने बताया कि चने का रकबा पूर्व सीजन की अपेक्षा इस बार कम हुआ है, किसानों को मौसम से होने वाले नुकसान को कारण बता रहे हंै। वहीं जिले में चना का उत्पादन बढ़ा है।
 

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