दुर्ग

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 4 फरवरी। पं. धीरेंद्र शास्त्री जो कर रहे हैं इसमें सबकी अलग अलग मान्यता है। उन्होंने जो धर्म के प्रति किया है उसमें प्रश्न उठाने का हक किसी को हक नहीं है। जो भी धर्म के लिए कार्य करता है, वो प्रणम्य है। यदि मेरी वजह से एक व्यक्ति भी कृष्ण बोलता है तो वो प्रणम्य है। रही दूसरी बात (चमत्कार) की तो उस पर मैं कुछ भी नहीं बोल सकती हैं, क्योंकि मेरी उसमें कोई अधिक रुचि नहीं है।
उन्होंने कहा कि संत किसी भी जाति या धर्म का हो सकता है, सभी को उसका सम्मान करना चाहिए। लेकिन व्यासपीठ में बैठने का हक केवल ब्राह्मण को ही है। ये हमारी हिंदू, सनातनी परंपरा है। सनातन में भी कहा गया है कि व्यास पीठ में केवल ब्राह्मण ही बैठ सकता है इसलिए हमें बिना किसी टिप्पणी या विवाद के उसे मानना चाहिए।
दुर्ग में श्रीमदभागवत कथा के लिए देवी चित्रलेखा आई हैं। उन्होंने कहा संत, संत होता है उसे भगवान का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। लोग सांई बाबा के भगवान मानने लगे हैं जबकि वो भगवान नहीं, वो संत हैं उन्हें संत का ही दर्जा मिलना चाहिए। इतना ही नहीं उन्होंने बागेश्वर धाम के नाम से विख्यात पंडित धीरेंद्र शास्त्री के कार्यों को प्रणम्य बताया। उन्होंने कहा कि वो जो कर रहे हैं उस पर उंगली उठाने का किसी को कई हक नहीं है।
देवी चित्रलेखा मूलत: हरियाणा की रहने वाली हैं। वो 7 साल की उम्र से कथा वाचन कर रही हैं। उनकी कथा दुर्ग में 2 फरवरी से चालू है, जो कि 8 फरवरी तक गंजपारा मैदान में होगी।
उन्होंने कहा कि संत चाहे किसी भी जाति का क्यों न हो उसका सम्मान करना चाहिए। कुछ लोग संत को भगवान का दर्जा दे रहे हैं वो पूरी तरह से गलत है। भगवान की जगह कोई नहीं ले सकता है। उन्होंने साईं बाबा का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे यहां साईं बाबा को भगवान माना जा रहा है, लेकिन ये पूरी तरह से गलत है। वो भगवान नहीं बल्कि संत हैं। संत के रूप में उनका सम्मान है।
संत और चमत्कार को लेकर उन्होंने कहा कि भक्ति में कभी चमत्कार नहीं होता, वो विश्वास है। मीरा को प्रभु कृष्ण पर विश्वास था, वो जहर पी गई और उन्हें कुछ नहीं हुआ। इससे बड़ा चमत्कार क्या होगा लेकिन ये चमत्कार नहीं। मीरा का कृष्ण के प्रति एक विश्वास था उसी विश्वास के बल पर जहर भी उन्हें नहीं मार पाया।
5 पांडवों की सेना ने केवल एक कृष्ण को लेकर कौरवों की इतनी बड़ी सेना को हरा दिया। ये क्या था इसे भी चमत्कार का नाम दे सकते थे, लेकिन ये भगवान कृष्ण के प्रति पाण्डवों का विश्वास था कि उन्होंने इतनी युद्ध को जीता।