गरियाबंद

कलाकार कभी परिपूर्ण नहीं होता, जिंदगी भर सीखता है-हिम्मत
12-Feb-2023 2:43 PM
कलाकार कभी परिपूर्ण नहीं होता, जिंदगी भर सीखता है-हिम्मत

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम 12 फरवरी।
हर कलाकार के पास कुछ न कुछ विशेष गुण होते हैं जिनके बदौलत उन्हें आगे बढऩे का मार्ग मिलता है। उन्हें खंगालने की कोशिश होनी चाहिए। कला कभी परिपूर्ण नहीं होता। ऊपर का स्थान हमेशा खाली रहता है। वह जिंदगी भर सीखता है। जितना मेहनत करोगे उतना उभरकर दर्शकों में छा जाओगे। लोककला पर मेहनत करने के अलावा और कुछ नजर नहीं आता। उक्त बातें लोक सरगम लोककला मंच छुईहा राजिम के लोक कलाकार हिम्मत सिन्हा ने मीडिया सेंटर में बातचीत करते हुए पत्रकारों से कही। 

उन्होंने अपनी कला यात्रा को बताते हुए कहा कि साल भर में 2 बार नए कलाकारों को सीखाने के लिए कार्यशाला आयोजित करता हूं जिसमें कला को नजदीक से जानने का अवसर मिलता है। हमारी संस्था छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में लगातार प्रस्तुति दिए हैं। वैसे तो लोक सरगम की स्थापना 1996-97 से हो गई थी। उस समय मैंने खुद छैला बाबू गीत लिखा। इन्हें कंपोजिंग भी किया तथा खूब चली और आज भी लोगों की जुबां पर यह गीत छाए हुए हैं। छुरा के पास खड़मा गांव में पहली प्रस्तुति दी। उसके बाद कार्यक्रम लगातार चलता रहा। बीच के दिनों में कुछ अंतराल आए। फिर 2017 के बाद तो नॉनस्टॉप प्रस्तुतियां हो रही है।

श्री सिन्हा ने बताया कि हमारे सभी कलाकार लंबी सोच के साथ प्रयास कर रहे हैं। मेरा लिखा प्रत्येक गीत संदेशनात्मक है। कार्यक्रम के शुरुआत में ही लोकधुन के अंतर्गत बारहमासी की प्रस्तुति देते हैं। परदेसी गंगा नाटक में खूब सराहना मिली। इसमें प्यार, संस्कार और बड़े बुजुर्गों का सम्मान छिपा हुआ है। वर्तमान में विधवा विवाह पर हमने फोकस किया है। अक्सर देखा गया है शादी होने के समय माता-पिता भी अपने बच्चों को पूछते नहीं हैं जिनके बाद उन्हें बाद में पछतावा होता है जबकि रिश्ते तो सभी से पूछ परख के बाद ही होनी चाहिए। हमने इस प्रहसन में पूरी जिम्मेदारी के साथ सभी पात्र के महत्व को आगे लाने का प्रयास किया है। इनके साथ ही भागदौड़ की जिंदगी में जो अनचाही घटनाएं हो जाती है उन्हें उकेरा है। बताया गया है कि नशा नाश का जड़ है इससे सुकून नहीं बल्कि बर्बादी ही हाथ लगती है। संस्कारवान अपनी छत्तीसगढ़ प्रदेश के लोक कला को देश के अलावा विदेशों में भी लोक सरगम के माध्यम से आगे ले जाने के लिए कमर कस ली। है आगे भगवान राजीवलोचन की मर्जी। उन्होंने राजिम महोत्सव मंच की खूब सराहना की और कहा कि ऐसे मंचों में प्रस्तुति देना अपने आप में अत्यंत गौरव की बात है हम बहुत गदगद है।

नवापारा के गोपाल सरकार से बहुत कुछ सीखा
उन्होंने आगे बताया कि पढ़ाई के समय संगीत सीखने के लिए नवापारा राजिम आना जाना होता था। नवापारा के गोपाल सरकार से मुझे संगीत का माहौल मिला और सन् 1989 में उससे जुड़ा रहा। लोक कला मंच में जाने से पहले रामायण और नाटक मंडली पर खूब काम किया।

 


अन्य पोस्ट